सूर्य रेखा का अर्थ तथा पूरा विवरण ( Surya Rekha/Sun Line ) | Hast Rekha Gyan


surya rekha sun line
सूर्य रेखा (The Line of The Sun)

सूर्य रेखा ऊर्ध्वगामी रेखा है, जो सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होती है। इसे Line of the Sun, Line of Success Line of Brilliancy, Line of Apollo, प्रतिभा रेखा, सफलता रेखा, यश रेखा, धर्म रेखा, पुण्य रेखा, विद्या रेखा, विवेक रेखा, ज्ञान रेखा, प्रतिष्ठा रेखा एवं ऐश्वर्य रेखा आदि नामों से भी जाना जाता है। सूर्य रेखा मूलतः भाग्य रेखा की सहायक रेखा है। इसके द्वारा जातक की सफलता, विद्या, विवेक, यश, सौभाग्य, प्रतिष्ठा व आर्थिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। सूर्य रेखा और भाग्य रेखा के विषयों में काफ़ी समानता है। दोनों ही रेखाएं जीवन की प्रगति या सफलता की परिचायक हैं। भाग्य रेखा जातक के आर्थिक भाग्य को निर्धारित करती है, किन्तु सूर्य रेखा प्रतिष्ठापूर्ण भाग्योदय की परिचायक है, अर्थात् सूर्य रेखा का सम्बन्ध भी भाग्य रेखा की तरह भाग्य से ही है।


अन्तर केवल इतना है कि सूर्य रेखा भौतिक समृद्धि की अपेक्षा यश, कीर्ति, मान व प्रतिष्ठामूलक भाग्य पर विशेष रूप से केन्द्रित होती है, जबकि भाग्य रेखा भौतिक जीवन की प्रगति का निदर्शन कराती है।  सूर्य रेखा के प्रभाव एवं गुणों में भी हाथ की बनावट के अनुसार भिन्नता आ जाती है। ऐसा देखा गया है कि दार्शनिक, कोनिक और अत्यन्त नुकीले हाथों में यह स्पष्ट और गहरे रूप से अंकित होती है, किन्तु ऐसे हाथों में उतनी प्रभावशाली नहीं होती, जितनी कि वर्गाकार, चमसाकार या निम्न श्रेणी के हाथों में होती है।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसलिए सूर्य रेखा की प्रकृति व प्रभाव आदि का विश्लेषण करते समय हाथ की बनावट का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। भाग्य रेखा के गुणों और प्रभावों का समुचित लाभ तभी मिलता है, जब मस्तिष्क रेखा और अंगूठा सबल हो तथा हाथ के अन्य लक्षण भी अनुकूल हों, अन्यथा यह प्रभावहीन हो जाती है।

अभी सिर्फ लेख प्रकाशित किया जा रहा है लेकिन चित्र जल्दी ही प्रकाशित किये जायेँगे।

(1) सूर्य रेखा का आरम्भ - हस्तरेखा विज्ञान विश्वकोश

1. शुक्र क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा: यदि सूर्य रेखा का आरम्भ जीवन रेखा के भीतर शुक्र क्षेत्र से हो (चित्र-581), तो जातक का आरम्भिक जीवन घर-परिवार वालों के प्रभाव में गुजरता है। उसे अपने आरम्भिक जीवन में घर-परिवार द्वारा संचित सामाजिक प्रतिष्ठा का लाभ मिलता है।

2. जीवन रेखा से निकलने वाली सूर्य रेखा : जीवन रेखा से निकलने वाली सूर्य रेखा (चित्र-582) कलाप्रियता, साहित्यिक अभिरुचि और व्यक्तिगत प्रयासों से अर्जित सफलता की परिचायक होती है। यदि अंगुलियां लम्बी हों, तो जातक पूर्ण रूप से सौन्दर्योपासक होगा। ऐसे लोग घर-परिवार से सहायता प्राप्त कर स्वयं को योग्य बनाते हैं और इच्छित क्षेत्र में सफल होते है। वे जीवन, व्यवसाय, विवाह व स्वास्थ्य के मामले में खुशनसीब होते हैं।

3. नेप्च्यून क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ नेप्च्यून क्षेत्र से हो (चित्र-583), तो बौद्धिक योग्यता, ख्याति और समृद्धि प्रदान करती है, किन्तु यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मणिबन्ध की तीसरी अन्तिम रेखा से हो, तो इन गुणों में कमी आ जाती है।

4. चन्द्र क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा चन्द्र क्षेत्र से निकले (चित्र-584), तो विशिष्टता और सफलता दूसरों के ऊपर निर्भर होती है, किन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि ऐसी रेखा वाले जातकों को अपनी योग्यता के अनुसार ही सफलता मिलती है। ऐसे लोग जनता के सम्पर्क में रहने के कारण लोकप्रिय होते हैं और अपने परिवार के बाहर के लोगों से उन्हें सहायता मिलती है।प्रायः महिलाओं की सहायता से भी उन्हें उन्नति मिलती है। यह योग नेताओं, अभिनेताओं व कलाकारों के हाथों में पाया जाता है।

5. निम्न मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा निम्न मंगल क्षेत्र से निकले (चित्र-585), तो जातक को बहुत कठिन परिश्रम से ही सफलता मिलती है। सौभाग्य ऐसी रेखा वालों की बिलकुल सहायता नहीं करता और न ही उन्हें विरासत में धन, सम्पत्ति व जमीन-जायदाद का लाभ होता है।

6. उच्च मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ उच्च मंगल क्षेत्र से हो (चित्र-586), तो जातक को शौर्य-प्रदर्शन के क्षेत्र में सफलता मिलती है। वह सेना में उच्च पद प्राप्त करके मान व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

7.मंगल के मैदान से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मंगल के मैदान यानी करतल के मध्य से हो (चित्र-587), तो जातक को अत्यन्त परिश्रम, विकट कठिनाइयों और संघर्षों के पश्चात् सफलता मिलती है। ऐसी रेखा वाले लोग जीवन के आरम्भिक दिनों में असहाय स्थिति में रहते हैं। उनका आरम्भिक जीवन गुमनामी व गरीबी की विकट परिस्थितियों से गुजरता है कि उनके भीतर आत्मचेतना होती है। भाग्य की भीषण आंधी भी उनकी महत्त्वाका योग्यता व उत्कण्ठा के चिराग को बुझा नहीं पाती है और पच्चीस से की उम्र होते-होते वे सफलता के सूर्य की तरह चमचमा उठते हैं, फिर भी उनका संघर्ष समाप्त नहीं होता। संघर्ष तो आजीवन चलता रहता है।

8. भाग्य रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा से निकले (चित्र-588), तो यह अत्यन्त शुभ लक्षण माना जाता है। इस योग के भाग्य रेखा से सफलता में वृद्धि होती है और जातक को विशिष्ट ख्याति पदोन्नति और राजयोग की प्राप्ति होती है। इस स्थिति में सफलता अप्रत्याशित, असाधारण और विस्मयजनक ढंग से प्राप्त होती है।

9. मस्तिष्क रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मस्तिष्क रेखा से हो (चित्र-589), तो जातक को केवल अपनी बौद्धिक योग्यता और निजी प्रयत्नों से सफलता और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, किन्तु यह सफलता उसे पैंतीस वर्ष के बाद जीवन के दूसरे भाग में मिलती है। यह योग लेखकों, वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के हाथों में होता है।

10. हृदय रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ हृदय रेखा से हो (चित्र-590), तो जातक अत्यन्त कलाप्रिय व साहित्यिक अभिरुचि वाला होता है। सौन्दर्य और प्रेम का उसके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी रेखा वाले लोगों को जीवन के अन्तिम भाग में लगभग पचास वर्ष की आयु में सफलता मिलती है। ऐसे लोगों को वृद्धावस्था में सुख मिलता है।

11. बुध रेखा से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा : यदि भाग्य रेखा का आरम्भ बुध रेखा से हो (चित्र-591), तो जातक में व्यापारिक योग्यता होती है। वह व्यापार, विज्ञान एवं वाक्पटुता से सम्बन्धित क्षेत्र में सफल होता है।

12. यूरेनस क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सर्य रेखा: इदय व मस्ति रेखा के बीच वृहत् आयत या यूरेनस क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा चित्र-592) जातक के आवेगात्मक स्वभाव की परिचायक होती है, इसलिए हाथ के अन्य लक्षण शुभ होने पर कीर्ति एवं अशुभ होने पर अपकीर्ति मिलती है। जिन व्यक्तियों के हाथों में ऐसी रेखा मौजूद होती है, वे चालीस से पैंतालीस वर्ष की आयु में सफलता प्राप्त करते हैं, लेकिन उनकी सफलता कठिन परिश्रम, बौद्धिक योग्यता और आत्मविश्वास का परिणाम होती है।

13. विभिन्न क्षेत्रों से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखाएं : भाग्य रेखा की तरह सूर्य रेखा भी ऊर्ध्वगामी रेखा है। करतल की किसी भी रेखा या क्षेत्र से निकलकर सूर्य क्षेत्र की ओर जाने वाली रेखाएं सूर्य रेखा कहलाती हैं। ऐसी रेखाओं का होना अत्यन्त शुभ और सौभाग्यशाली लक्षण है।

14. हृदय रेखा के ऊपर सूर्य क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा: यदि सूर्य रेखा हृदय रेखा के ऊपर सूर्य क्षेत्र में अंकित हो, तो जीवन में सुख और सफलता इतने विलम्ब से मिलती है कि उसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता (चित्र-593)।

(2) सूर्य रेखा का समापन

1. त्रिशूल चिह्न में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा सूर्य क्षेत्र में त्रिशुल की आकृति की तरह समाप्त हो (चित्र-594), तो धन, यश द मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

यदि ऐसी सूर्य रेखा की तीनों शाखाएं विभिन्न क्षेत्रों-बुध, शनि व सूर्य क्षेत्र की ओर चली जायें और समान रूप से स्पष्ट हों (चित्र-595), तो बहुत अधिक धनलाभ होता है और यश भी मिलता है। इस योग में शनि क्षेत्र के प्रभाव से अचल सम्पत्ति, भूमि व मकान आदि भी प्राप्त होता है।

यदि सूर्य रेखा के अन्त में सूर्य क्षेत्र में त्रिशूल हो और उसकी दोनों बाहरी शाखाएं अन्दर की ओर लौटकर झुक जायें (चित्र-596), तो यह योग अशुभ फल देता है तथा धनहानि और असफलता का सामना करना पड़ता है।

2. अत्यन्त पतली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने आरम्भिक स्थान पर मोटो हो और समापन स्थान की ओर जैसे-जैसे बढे, वैसे-वैसे पतली होती जाये तथा अन्त में अत्यन्त क्षीण हो जाये (चित्र-597) तो उसका प्रभाव भी धीरे-धीरे समाप्त होता रहता है। ऐसी रेखा उम्र की वृद्धि के साथ सतत घटने वाले जातक के यश, धन और प्रभाव की परिचायक होती है।

3. बहुत सी रेखाओं के रूप में सूर्य रेखा का समापन : यदि सूर्य रेखा अपने मापन स्थान पर अनेक छोटी-छोटी शाखाओं (गोपुच्छाकार) में विभक्त हो जाये (चित्र-598), तो वह अपना प्रभाव खो देती है, क्योंकि जातक की रुचि किसी एक विषय पर केन्द्रित न होकर अनेक विषयों की ओर परिवर्तित होगी, जिससे उसकी सफलता सन्दिग्ध हो जायेगी।

4. बिन्दु चिह्न पर समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि भाग्य रेखा का अन्त किसी स्पष्ट व गहरे बिन्दु चिह्न पर हो (चित्र-599), तो उसकी सफलता और समृद्धि अन्त में धूल में मिल जाती है।

5. गहरी आड़ी रेखा में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि भाग्य रेखा के अन्त में गहरी आड़ी रेखा हो (चित्र-600), तो जातक के जीवन की प्रगति अचानक अवरुद्ध हो जाती है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

6. सूर्य रेखा के अन्त में दो समानान्तर रेखाएं : यदि सूर्य रेखा सूर्य क्षेत्र तक जा पहुचे और उसके अगल-बगल दो समानान्तर सीधी रेखाएं भी उपस्थित हों (चित्र-601), तो यश और अति विशिष्ट सफलता की प्राप्ति होती है।

यदि इस योग में सहायक रेखाएं लहरदार हों (चित्र-602), तो रेखाओं का शुभ प्रभाव कम हो जाता है और व्यक्ति की प्रतिभा का सदुपयोग नहीं होता तथा उसके विचार अस्थिर और भ्रमित हो जाते हैं।

7. सूर्य रेखा के अन्त तक समानान्तर चलती प्रभाव रेखाएं : शुक्र या चः क्षेत्र से निकलकर सूर्य रेखा के समानान्तर सूर्य क्षेत्र की ओर जाने वाली रेखाएं (चित्र-603) उत्तरदान या वसीयत में प्राप्त सम्पत्ति का संकेत देती चन्द्र क्षेत्र की प्रभाव रेखा अप्रत्याशित रूप से मिली वसीयत की और शुक्र क्षेत्र की प्रभाव रेखा रिश्तेदारों से मिली वसीयत की पुष्टि करती है।

8. बृहस्पति क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने मूल स्थान से मुड़कर बृहस्पति क्षेत्र में समाप्त हो (चित्र-604), तो अधिकार और नेतृत्व (राजनीति) के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। इस प्रकार का योग बहुत कम हाथों में पाया जाता है।

9. शनि क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा शनि क्षेत्र की ओर मुड़कर समाप्त हो (चित्र-605), तो यह एक अशुभ योग माना जाता है, क्योंकि प्रतिभा का स्थान सूर्य क्षेत्र है और शनि क्षेत्र निराशा की भावना को जन्म देता है। इसलिए कार्य के प्रति उत्साह की अपेक्षा निराशा की भावना विकसित होने लगती है। फलतः जातक को सफलता मिलती भी है, तो वह सूर्य क्षेत्र पर पहुंचने वाली सूर्य रेखा की अपेक्षा बहुत कम होती है।

10. बुध क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा बुध क्षेत्र पर समाप्त हो चित्र-606). तो जातक हर कार्य धन-प्राप्ति के दृष्टिकोण से करता है। ऐसे लोग ख्याति की अपेक्षा धन को अधिक महत्त्व देते हैं। वे भौतिकतावादी विचारों के होते हैं और व्यापार में अत्यन्त सफल होते हैं।

11. दो लहरदार शाखाओं के रूप में सूर्य रेखा का अन्त : यदि सूर्य रेखा का अन्त दो लहरदार शाखाओं के रूप में हो (चित्र-607), तो जातक की सारी महत्त्वाकांक्षाएं मिट्टी में मिल जाती हैं।

12. सूर्य क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का समापन सूर्य क्षेत्र में हो (चित्र-608), तो जातक अत्यन्त संवेदनशील, कलात्मक अभिरुचि वाला एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होता है। यदि ऐसी रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा सीधी हो व अंगूठा भी दृढ़ हो, तो जातक यश, धन, उच्च पद व सम्मान प्राप्त करता है।

13. सूर्य रेखा के अन्त में नक्षत्र चिह्न : यदि सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होने वाली सूर्य रेखा के अन्त में नक्षत्र चिह्न हो (चित्र-609), तो जातक को धन, प्रसिद्धि व मान-सम्मान सब कुछ मिलता है, किन्तु उसके मन में शान्ति नहीं होती। उसे अपने कार्यों में सफलता काफ़ी विलम्ब से मिलती है। तब तक उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। जब धन, यश प्राप्त होता है, तब मन की शान्ति और शारीरिक सुख समाप्त हो जाता है। सूर्य क्षेत्र का नक्षत्र चिह्न विपुल धन व भौतिक वैभव देता है, किन्तु मन की शान्ति, तृप्ति और चैन हर लेता है।

3. सूर्य रेखा की शाखाएं

1. यदि सूर्य रेखा में ऊपर की ओर उठती हुई कई शाखाएं हों, जिससे उसका स्वरूप वृक्ष की तरह बन गया हो (चित्र-610), तो यह असाधारण सफलता का चिह्न है। सौभाग्य ऐसे लक्षण वाले लोगों के चरण चूमता है।

2. सूर्य रेखा से निकलकर नीचे की ओर जाने वाली शाखाएं (चित्र-611) असफलता, निराशा तथा अवनति की सूचक होती हैं।

3. यदि सूर्य रेखा अपने समाप्ति-स्थान पर दो शाखाओं में विभक्त हो गयी हो और दोनों ही शाखाएं स्पष्ट, गहरी और सूर्य क्षेत्र में मौजूद हों, तो जातक को किन्हीं दो क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सफलता मिलती है (चित्र-612)। ऐसी रेखा वाले व्यक्तिं एक से अधिक क्षेत्रों में काम करने की योग्यता रखते हैं।

4. यदि सूर्य रेखा से एक से अधिक दोषयुक्त, टूटी-फूटी या लहरदार व कटी हुई ऊर्ध्वगामी शाखाएं निकल रही हों (चित्र-613), तो एकाग्रता की कमी के कारण कलात्मक एवं बौद्धिक कार्यों में जातक को असफलता का सामना करना पड़ेगा।

5. यदि सूर्य रेखा के अन्तिम बिन्दु से निकलने वाली एक शाखा बुध क्षेत्र की ओर तथा दूसरी शनि क्षेत्र को जाये (चित्र-614), तो जातक में विवेक, बुद्धि और चतुराई के गुणों का सम्मिश्रण होता है, जिसके बल पर जातक यश और समृद्धि प्राप्त करता है। ऐसी रेखा वाले व्यक्ति सन्तुलित विचारों के होते हैं।

6. यदि सूर्य रेखा से निकलने वाली कोई शाखा बुध क्षेत्र की ओर जाये (चित्र-615), तो बुध क्षेत्र के गुणों से जातक का स्वभाव प्रभावित होता है। वह विज्ञान व व्यापार के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। उसमें चतुराई, व्यापारिक योग्यता व वैज्ञानिक बुद्धि होती है।

7. यदि सूर्य रेखा की कोई ऊर्ध्वगामी रेखा शनि क्षेत्र में चली जाये (चित्र-616), तो गम्भीर अध्ययन, अनुसन्धान एवं निगूढ़ विद्याओं के क्षेत्र में जातक सफलता प्राप्त करता है।

8. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा चन्द्र क्षेत्र में प्रवेश करती हो (चित्र-617) तो जातक की कल्पना शक्ति बढ़ जाती है। उसे साहित्य, संगीत, मनोविज्ञान, रहस्य विज्ञान व निगूढ़ विद्या के क्षेत्रों में सफलता मिलती है। ऐसे लोग विदेशयात्रा या विदेश व्यापार में भी सफल होते हैं।

9. सर्य रेखा से निकलकर उच्च मंगल के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सर्य रेखा की शाखा जातक को आत्मविश्वास, आत्मस्वतन्त्रता और बहादुरी का गुण प्रदान करती है (चित्र-618), जिससे वह सेना या शौर्य-प्रदर्शन के क्षेत्रों में सफल होता है।

10. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा शुक्र क्षेत्र में प्रवेश करे (चित्र-619), तो जातक कलात्मक और स्निग्ध भावनाओं से सम्बन्धित विषयों की ओर आकृष्ट होता है। ऐसे लोग ललित कलाओं के प्रति विशेष दिलचस्पी रखते है।

11. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा भाग्य रेखा से मिल जाये (चित्र-620), तो यह एक अत्यन्त भाग्यवर्धक योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक को अप्रत्याशित सफलता के साथ-साथ विशिष्ट सम्मान भी मिलता है।

12 यदि सूर्य रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाये, तो बौद्धिक कार्यों में सफलता की सम्भावना रहती है (चित्र-621)। ऐसी रेखा वाले लोग बुद्धिजीवी होते हैं।

13. यदि सूर्य रेखा की शाखा हृदय रेखा से मिलती हो (चित्र-622), तो जातक को उसके प्रेम सम्बन्धों के कारण सम्मान मिलता है। वह अपने प्रेम सम्बन्धों का उपयोग कर सफलता प्राप्त करता है।

14. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा बुध रेखा से मिल जाये (चित्र-623), तो व्यापार एवं वाक्पटुता से सम्बन्धित क्षेत्रों में सफलता मिलती है और जातक को सम्मान तथा धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोग विज्ञान व चिकित्सा के क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं और धन तथा यश प्राप्त करते हैं।

4. भाग्य रेखा एवं सूर्य रेखा का आपसी सम्बन्ध

यह पहले ही बताया जा चुका है कि भाग्य रेखा और सूर्य रेखा दोनों ही सफलता प्रदान करने वाली रेखाएं हैं, किन्तु भाग्य रेखा धन और जीवन-वृत्ति की सफलता का बोध कराती है, जबकि सूर्य रेखा मान, प्रतिष्ठा व प्रमुखता की अचानक व अप्रत्याशित वृद्धि करती है। जिस प्रकार सूर्य के निकलने से सम्पूर्ण अंधेरा व टिमटिमाते हुए तारे, यहां तक कि चन्द्रमा भी क्षीण और निर्बल हो जाता है, उसी प्रकार सूर्य रेखा की उपस्थिति से जातक की भाग्य रेखा में वर्णित भाग्य भी जीवन की विषमताओं व अंधेरों को नष्ट करता हुआ अचानक क्षितिज में चमक उठता है और जातक के ऊपर अनायास ही सबकी निगाहें पड़ने लगती हैं। उसकी कीर्ति व यशगाथाएं सूर्य की किरणों की भांति शीघ्र ही सर्वत्र बिखर जाती हैं।

सूर्य रेखा का समुचित विस्तार एवं उपस्थिति बहुत कम हाथों में देखने को मिलती है। अधिकांश हाथों में सूर्य रेखा या तो अनुपस्थित रहती है या अत्यन्त छोटी और अस्पष्ट होती है। सूर्य रेखा उन गरीब लोगों के हाथों में भी गायब रहती है, जिनका अस्तित्व समाज स्वीकार नहीं करता। वे निर्धनता, विपन्नता, विषमता की परिस्थितियों में मात्र अपना पेट-पालन करते हैं। उनके जीवन में कोई चमक-दमक नहीं होती। उनका जीवन मनुष्य का होते हुए भी पशुवत् होता है। इसके विपरीत जिन लोगों के हाथों में सूर्य रेखा होती है, वे प्रसन्नचित्त, उत्साही व आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । वे चाहे कलाकार न हों, फिर भी कलाप्रिय अवश्य होते हैं और सुन्दरता के बीच रहना पसन्द करते हैं। कभी-कभी वे भाग्यवश अनेक दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों व संघर्षों का सामना करते हैं, फिर भी अपने कार्यक्षेत्र में प्रमुख, असाधारण, अग्रणी और बहुचर्चित एवं लोकप्रिय होते हैं।

सूर्य रेखा बहुत कम हाथों में होती है, जबकि भाग्य रेखा अधिकांश हाथों में मौजूद रहती है। इसके अलावा दोनों ही रेखाएं ऊर्ध्वगामी और लगभग समान प्रकृति की होती हैं। इसलिए अनेक विद्वानों ने भाग्य रेखा को प्रधान रेखा के रूप में स्वीकार करते हुए सूर्य रेखा को उसकी सहायक रेखा का दर्जा दिया है। जिस व्यक्ति के हाथ में भाग्य रेखा और सूर्य रेखा दोनों स्पष्ट और सुन्दर हों, निश्चय ही वह समाज और राष्ट्र का अद्वितीय व असाधारण व्यक्ति होगा, परन्तु यदि भाग्य रेखा निर्बल हो तथा सूर्य रेखा शक्तिशाली हो, तो जातक की आर्थिक स्थिति बहुत वैभवपूर्ण नहीं होगी, फिर भी उसका जीवन वैभवपूर्ण और यशस्वी होगा।

यदि भाग्य रेखा अनुपस्थित हो, परन्तु सूर्य रेखा मौजूद हो, तो ऐसी स्थिति में सूर्य रेखा ही भाग्य रेखा का काम करती है और जातक को कोई कमी नहीं होती। यदि सूर्य रेखा बिलकुल न हो, परन्तु भाग्य रेखा प्रबल हो, तो जातक धनी होते हुए भी यशस्वी, लोकप्रिय व वैभवपूर्ण नहीं होगा।

निष्कर्षतः भाग्य रेखा की अपेक्षा सूर्य रेखा की उपस्थिति जीवन की सफलता, यश, वैभव आदि को अधिक सुनिश्चित और सुस्पष्ट करती है। इसलिए कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि वे व्यक्ति, जिनके हाथों में निर्बल भाग्य रेखाएं हों, वे भी सूर्य रेखा के बल पर अपने से अधिक योग्य लोगों से सफलता की बाजी मार ले जाते हैं, जबकि निर्बल सूर्य रेखा और सबल भाग्य रेखा वाले लोग सफलता, सौभाग्य व प्रतिष्ठा के मामले में पीछे रह जाते हैं।

भाग्य रेखा धन उतना नहीं देती, जितना कि मान, प्रतिष्ठा और यश प्रदान करती है। यही कारण है कि अच्छी सूर्य रेखा वाली वेश्या भी अपने क्षेत्र में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करती है। इसलिए सूर्य रेखा का अध्ययन और फलकथन जातक के स्तर, कार्यक्षेत्र व हाथ की बनावट आदि के आधार पर किया जाना चाहिए। वर्गाकार हाथों में छोटी-सी सूर्य रेखा भी सांसारिक सफलताओं, जैसे धन व यश आदि को प्रदान करने में सक्षम होती है। दार्शनिक व कलात्मक हाथों में यह रेखा साहित्य एवं कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट सफलता और यश देती है, जबकि निकृष्ट प्रकार के हाथों में अच्छी सूर्य रेखा भी जातक को चोर, डकैत, हत्यारा, अपराधी व देशद्रोही के रूप में व्यापक स्तर पर कुख्याति दिलाती है, किन्तु इन सब सफलताओं की सीमा को निर्धारित करने के लिए जातक के जीवन-स्तर की स्थिति पर विचार करना बहुत आवश्यक है।

इस सन्दर्भ में विद्वानों का मत है। कि “यदि कोई व्यक्ति संसद् सदस्य है, तो बलवान् सूर्य रेखा उसे मन्त्री या प्रधानमन्त्री भी बना सकती है। यदि कोई अधिकारी है, तो उच्च-से-उच्च पद तक पहुंच सकता है। यदि कोई व्यापारी है, तो वह व्यापार के क्षेत्र में प्रमुख बन सकता है, परन्तु यदि कोई साधारण मजदूर है, तो यही समझना चाहिए कि वह मजदूरों का प्रमुख-मेट या ठेकेदार बन सकता है। यद्यपि ऐसे भी बहुत से उदाहरण पाये जाते हैं, जब फैक्ट्री का एक साधारण कर्मचारी अपनी योग्यता द्वारा उसका स्वामी बन जाता है। कई देशों के ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने अपना कैरियर सड़कों पर समाचार-पत्र बेचकर आरम्भ किया था।

ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सूर्य रेखा का प्रबल प्रभाव अवश्य रहा होगा और हाथ के अन्य लक्षण भी अत्यन्त शुभ रहे होंगे, परन्तु याद रहे कि अत्यन्त संघर्ष के बाद अप्रत्याशित व उत्कृष्ट सफलता प्राप्त करने वालों के हाथों में सूर्य रेखा प्रायः करतल के मध्य मंगल के मैदान से आरम्भ होती है। विश्वविख्यात उद्योगपति हेनरी फोर्ड, अब्राहम लिंकन आदि इसी श्रेणी के व्यक्ति थे।

यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा की अपेक्षा अधिक गहरी और स्पष्ट हो, तो जातक को अपने पुरखों के महान् नाम का बोझ ढोना पड़ता है। सामान्यतः ऐसे लोग, जो अति प्रतिनि अक्तियों के दज होते हैं, उनमें यह क्ष दादा जाता है।

यदि भाग्य रेखा से निकलकर कोई शाखा सूर्य रेखा को स्पर्श करे, तो यह सफल विवाह का संकेत है, किन्तु जब ऐसो शाखा सूर्य रेखा को काटकर आगे निकल जाती है, तो वैवाहिक सम्बन्ध टुट जाता है।

यदि भाग्य रेखा को अगामी शाखा सूर्य रेखा के साथ मिलकर ऊपर को ओर बढने लगे चित्र-624, तो जातक को देना प्रयास, अचानक हो भाग्यवश धनलाभ या सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस लाभ या सौभाग्य को प्राप्त करने में व्यक्ति का अपना कोई व्यक्तिगत प्रयास नहीं होता बङि केसी ते को अन्य किसी अप्रत्याशित घटना या संयोग के कारण भाग्यवश उसे यह असर मिलता है। इस योग में समय की गणना भाग्य रेखा से निकलने वाली शाखा के उदगम स्थान के आधार पर करनी चाहिए।

इसके विपरीत यदि सूर्य रेखा की ऊगामी शाखा भाग्य रेखा से लेकर चित्र-625,तो जातक को मिलने वाली भौतिक सफलता के साथ-साथ विशिष्टता और लोकप्रियता मिलेगी तथा उसके विचारों और कार्यों माजिक आस्था तथा मान्यता प्राप्त होगी। यह एक अत्यन्त सौभाग्यशाली योग है।

सूर्य रेखा भाग्य रेखा की सहायक रेखा होती है। इसलिए जिस अवस्था में भाग्य रेखा टूटी हुई हो, उसी अवस्था में सूर्य रेखा स्पष्ट और सुन्दर हो (चित्र-626), तो जातक का वह जीवनकाल भाग्य रेखा के टूटे रहने पर भी यश और मान से परिपूर्ण होगा। भाग्य रेखा के खण्डित होने पर, उसके पास कोई सहायक समानान्तर रेखा थोड़ी दूर चलकर खण्डित होने के दोष का जितना निवारण करती है, उसकी अपेक्षा स्वतन्त्र व स्पष्ट सूर्य रेखा का काम कहीं अधिक है।

5. सूर्य रेखा की प्रकृति एवं दोहरी रेखाएं

जिन व्यक्तियों के हाथों में सूर्य रेखा होती है, वे अपने चारों ओर के वातावरण के सम्बन्ध में अत्यन्त सचेष्ट होते हैं। वे गन्दे या घुटन उत्पन्न करने वाले वातावरण को पसन्द नहीं करते। यह रेखा कलाप्रिय स्वभाव की परिचायक मानी जाती है। सूर्य रेखा वाले जातकों को वही वातावरण एवं वही वस्तु प्रिय लगती है, जो देखने में सुन्दर हो। जिनके हाथों में सूर्य रेखा नहीं होती, उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि उनकी बैठक की सजावट कैसी है, क़ायदे के परदे लगे हैं या नहीं, कालीन का रंग एवं अन्य सजावट अनुकूल है या नहीं?

यदि अनामिका अंगुली तर्जनी से अधिक लम्बी हो, तो जातक में रिस्क लेने व जुआ खेलने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। यदि सूर्य रेखा सुस्पष्ट हो, तो उसे जुए में सफलता मिलती है और धनलाभ भी होता है, परन्तु यदि अनामिका तर्जनी अंगुली के बराबर हो, तो जातक में यही धुन होगी कि धनी होते हुए भी और धन-संग्रह करता जाये। यदि अनामिका अंगुली असामान्य रूप से लम्बी हो और टेढ़ी-मेढ़ी भी हो, तो जातक किसी भी उपाय से, चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो, धन प्राप्त करने का प्रयास करेगा। यह अशुभ बनावट चोरों और अन्य अपराधियों के हाथों में पायी जाती है, जो धन प्राप्त करने के लिए। भयानक-से-भयानक कर्म कर गुजरते हैं। यदि इस स्थिति में मस्तिष्क रेखा करतल में बहुत ऊंचाई पर स्थित हो और अन्त में ऊपर की ओर मुड़ गयी हो, तो यह अवगुण और भी अधिक बढ़ जाता है।

यदि हाथ में एक से अधिक सूर्य रेखाएं मौजूद हों, तो जातक अत्यन्त कलाप्रिय स्वभाव का होता है। यदि ऐसी दो या तीन रेखाएं एक-दूसरे के बिलकुल समानान्तर हो, तो जातक को दो-तीन क्षेत्रों में सफलता मिलती है (चित्र-627)। निबल और पतली अनेक सर्य रेखाओं की उपस्थिति से विचारधारा और कार्यशक्ति अनेक क्षेत्रों में बंट जाती है, जिससे सफलता की सम्भावना कम हो जाता है। इसलिए अनेक निर्बल रेखाओं की अपेक्षा एक या दो स्पष्ट सूर्य रेखाओं का होना शुभ और उत्तम माना जाता है, किन्तु भाग्य रेखा के सम्बन्ध में सिद्धान्त अलग हैं। 

अकेली शाखाहीन भाग्य रेखा जातक के जीवन में एकरसता लाती है और हानि पहुंचाती है। करतल को मध्य भाग उभरा हुआ हो, तो सूर्य रेखा का प्रभाव बढ़ जाता है, किन्तु यदि करतल के मध्य में गड्डा हो, तो सूर्य रेखा प्रभावहीन हो जाती है।

6. सूर्य रेखा के दोष

1. अस्पष्ट या धुंधली सूर्य रेखा : यदि हाथ में सूर्य रेखा न हो या बिलकुल अस्पष्ट या धुंधली हो, तो जातक कितना भी परिश्रम करे, उसकी योग्यता और विचारों को महत्ता नहीं मिलती।यह सम्भव है कि ऐसे लोग सम्मान के अधिकारी व योग्यतासम्पन्न हों, परन्तु यश से वंचित रह जाते हैं। कभी-कभी ऐसे लोगों की मृत्यु के पश्चात् क़द्र होती है, किन्तु जीवित रहते ये अपनी योग्यता का फल नहीं भोग पाते।

2. गहरी और चौड़ी सूर्य रेखा : गहरी और चौड़ी सूर्य रेखा वाले जातक सुन्दरता के प्रति शीघ्रता से आकृष्ट होते हैं, किन्तु उनमें रचनात्मक कार्य करने की क्षमता कम होती है तथा उनका ध्यान विचलित होता रहता है। उनमें एकाग्रता का अभाव होता है।

3. श्रृंखलाकार सूर्य रेखा : सूर्य रेखा में उपस्थित द्वीप चिह्न जातक की प्रतिष्ठा का नाश कर देता है। श्रृंखलाकार रेखा द्वीप चिह्नों से मिलकर बनी होती है। इसलिए यह सफलता व सौभाग्य को बाधित कर देती है। ऐसी रेखा का न होना ही ठीक है।

4. लहरदार सूर्य रेखा : लहरदार सूर्य रेखा (चित्र-629) विचारों और लक्ष्यों के प्रति जातक के अस्थिर विचारों को प्रकट करती है। यदि ऐसी रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और अंगूठा श्रेष्ठ हो, तो सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है।

5. अनामिका के तीसरे पर्व तक जाने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने समापन स्थान को पार करती हुई अनामिका के तीसरे पर्व में प्रवेश कर जाये (चित्र-630), तो जातक प्रतिष्ठा के लिए अतिवादी स्वभाव का हो जाता है। उसके लिए जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रतिष्ठा बन जाती है और वह प्रतिष्ठा की प्राप्ति के लिए अपने जीवन की अन्य पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियां भूल जाता है। यहां तक कि अपने जीवन की आहुति देकर भी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त करने का प्रयास करता है। ऐसे लोग बहुत ही अहवादी, आत्मनिष्ठ व आत्मकेन्द्रित स्वभाव के होते हैं और जीवन में प्रगति की हर चीज़ को अपनी प्रतिष्ठा के तराजू में तौलते हैं। यदि हाथ के अन्य लक्षण अशुभ हो, तो जातक कुख्यात होकर भी अपनी आकांक्षा को पूरी करने से नहीं घबराता।

6. आड़ी रेखाओं से कटी हुई सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अनेक छोटी-छोटी जाड़ी रेखाओं से कटी हुई हो (चित्र-631). तो जातक की कलात्मक जीवन प्रगति या करियर को शत्रुता रखने वाले प्रतिद्वन्द्वी बाधित करते हैं। यदि ऐसी आड़ी रेखाएं सूर्य रेखा के बिलकुल आरम्भ में हों, तो यह समझना चाहिए कि माता-पिता से सम्बन्धित शत्रु जातक को हानि पहुंचाने का प्रयास करते हैं, किन्तु यदि आड़ी रेखाएं भाग्य रेखा के मध्य, ऊपर या अन्त में हों, तो प्रतिस्पर्धी स्वयं जातक के ही शत्रु होंगे।

यदि शनि क्षेत्र से आने वाली कोई आड़ी रेखा सूर्य क्षेत्र में सूर्य रेखा को काट दे (चित्र-632), तो जातक गरीबी के कारण अपनी सफलता से वंचित रह जाता है, अर्थात् आर्थिक असमर्थता के कारण उसकी जीवन-प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसा योग प्रायः साहित्यकारों व संगीतकारों के हाथों में होता है। किन्तु यदि ऐसी रेखा बुध क्षेत्र से आकर सूर्य रेखा को काट दे (चित्र-633), तो जातक का उसके चञ्चल व ऐय्याश स्वभाव के कारण असफलता का सामना करना पड़ता है। यदि इस योग में बध क्षेत्र अधिक विकसित, उभरा हुआ व दोषपूर्ण हो तथा कानाष्ठका अंगुली भी टेढी हो तो जातक के कुटिल स्वभाव के कारण उसका सफलता में बाधा उत्पन्न होती है। याद उच्च मंगल के क्षेत्र से निकलकर कोई आडी रेखा सूर्य रेखा को काट दे 3-634), तो शत्रुओं के द्वारा उत्पन्न की गयी विषम परिस्थितियों के समाधान
में धनहानि होती है।

यदि उच्च मंगल क्षेत्र से निकलने वाली कोई वलयाकार आड़ी रेखा सूर्य क्षेत्र में सूर्य रेखा को काटकर शनि क्षेत्र की ओर बढ़ जाये (चित्र-635), तो जातक की अनेक महत्त्वाकांक्षाएं धूल में मिल जाती हैं, जबकि इनकी पूर्ति के लिए वह हर सम्भव साधनों व शक्तियों का उपयोग करता है।

7. सूर्य रेखा का खण्डित होना:- यदि सूर्य रेखा बीच में टूटी हुई हो, तो जातक को आर्थिक और प्रतिष्ठा से सम्बन्धित क्षति या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। यदि बायें हाथ में सूर्य रेखा खण्डित हो, तो परिवार वालों को आर्थिक क्षति होती है। यदि दाहिने हाथ में सूर्य रेखा टूट जाये, तो स्वयं जातक को आर्थिक क्षति होती है।

ऐसी सूर्य रेखा जो बीच में खण्डित हो जाये और उसकी ऊर्ध्वगामी शाखा कटान बिन्दु के थोड़ी नीचे से आरम्भ हो (चित्र-636), तो यह जातक द्वारा अपनी इच्छा से किये गये प्रतिष्ठा एवं कार्यक्षेत्र में परिवर्तन का संकेत है। यदि ऊर्ध्वगामी रखाखण्ड स्पष्ट हो और सूर्य क्षेत्र तक पहुंच जाये, तो इसे शुभ व सौभाग्यशाली लक्षण मानना चाहिए। इसमें न तो आर्थिक हानि होती है और न ही प्रतिष्ठा पर कोई बुरा प्रभाव पड़ता है।

यदि सूर्य रेखा वृहत् आयत अर्थात मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा के बीच में कटी हुई हो (चित्र-637), तो सफलता की अच्छी सम्भावना रहती है।

यदि सूर्य रेखा वृहत् आयत में टूटी हुई हो और शुक्र क्षेत्र में जाने वाली प्रभाव रेखा कटान बिन्दु के पास उसे स्पर्श करे, चित्र-638 तो यह जातक द्वारा अपने विचारों की मान्यता के लिए किये जाने वाले संघर्ष में मिली असफलता का संकेत है।

7. सूर्य रेखा में विभिन्न चिह्न

1. वर्ग चिह्नः यदि सूर्य रेखा में वर्ग चिड़ हो चित्र को मान-प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने का प्रयत्न करने वाले उसके विरोध और शत्रुओं से उसकी रक्षा होती है और धनहानि भी नहीं होती हुई रेड के में वर्ग चिह्न हो, तो सभी दोषों का निवारण होता है।

2. त्रिकोण चिहः सूर्य रेखा से जुड़ा हुआ हुदय रेखा के शत कि हो (चित्र-640), तो उस समयावधि में जातक को खुशी और प्रतिष्ठा मिलती है। यह योग सुखी और समृद्धिशाली जीवन का भी परिचायक है।

3. क्रॉस चिह: यदि सूर्य रेखा पर बुध क्षेत्र की ओर ऊस क्षेत्र हो (चित्र-641), तो जातक में यापारिक योग्यता की कमी होती है जैसे - असफलता मिलती है।

यदि क्रॉस का चित्र शनि क्षेत्र की ओर हो चित्र (642) तो जातक गंभीर स्वभाव का व पवित्र मन वाला होता है। उसकी प्रवर्ति धार्मिक भावनाओ की और होती है।

यदि शनि क्षेत्र की ओर क्रास चिह्न हो, चन्द्र और शनि क्षेत्र दूषित हत्या मस्तिष्क रेखा चन्द्र क्षेत्र की ओर अधिक झुकी हुई हो (चित्र-543, तो जातक को धार्मिक उन्माद का खतरा रहता है। यदि शनि क्षेत्र की ओर से देह हों, तो यह प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। यदि सूर्य रेखा का अन्त क्रास हि से हो (चित्र-644), तो जातक को अपने गलत निर्णयों के कारण कलकित होना पड़ता है व उसकी प्रतिष्ठा अन्त में धूल में मिल जाती है।

4. बिन्दु चिह्न : यदि सूर्य रेखा और हृदय रेखा के काटने के स्थान प्रकला बिन्दु हो (चित्र-645), तो उस अवस्था में जातक के दृष्टिहीन होने की सम्भावना होती है।

5. नक्षत्र चिह्न :सूर्य रेखा पर नक्षत्र चिह्न का होना (चित्र-65 इयत शुभ लक्षण है। इसके होने से जातक को प्रतिभा, सुख, सौभाग्य, सफलता, इन व ख्याति की प्राप्ति होती है।

यदि सूर्य रेखा के आरम्भ, अन्त या अन्य स्थानों पर नक्षत्र चिङ्ग हो, तो अत्यन्त शुभ होता है, किन्तु यदि यूरेनस क्षेत्र में सूर्य रेखा पर नक्षत्र चिह्न हो क्षेत्र तो यह किसी बड़ी विपत्ति का परिचायक है। यूरेनस क्षेत्र में सूर्य रेखा के ऊपर नक्षत्र चिह्न का होना अशुभ लक्षण है।

यदि सूर्य रेखा से निकलने वाली किसी शाखा में नक्षत्र चिह्न हो, तो यह भी एक अत्यन्त शुभ लक्षण है। नक्षत्र चिह्नयुक्त सूर्य रेखा की शाखा जिस ग्रह क्षेत्र की ओर जाती है या जिस रेखा से मिलती है, उसी के शुभ गुणों को द्विगुणित कर देती है (चित्र-648)।

6. द्वीप चिह्न : यदि सूर्य रेखा में द्वीप चिह्न हो (चित्र-649), तो जातक के धन व मान-प्रतिष्ठा को अत्यधिक हानि पहुंचती है, वह पदच्युत हो जाता है और कलंकित जीवन व्यतीत करता है। यदि द्वीप के अदृश्य हो जाने या उसकी अवधि समाप्त हो जाने पर बाद की रेखा सबल हो, तो जातक अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा और पद को पुनः प्राप्त कर लेता है तथा उसके ऊपर लगा हुआ कलंक धुल जाता है

यदि सूर्य रेखा के अन्त में द्वीप चिह्न हो (चित्र-650), तो यह एक अशुभ संकेत है। जातक को अन्तिम समय में अन्धकारपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है, उसकी समृद्धि और प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है।

यदि सूर्य रेखा के आरम्भ में द्वीप चिह्न हो (चित्र-651),तो जातक को अनुचित प्रेम सम्बन्धों के कारण जीवन में सफलता मिलती है। यह योग किसी उच्च स्थिति के व्यक्ति के जारज पुत्र के उज्ज्वल भविष्य का सूचक है। यदि द्वीप चिह्न के बाद सूर्य रेखा स्पष्ट और सुन्दर हो, तो जातक वैभवपूर्ण व सुद जीवन व्यतीत करता

यदि सर्य रेखा के बीच में द्वीप चिह्न हो और जीवन रेखा दोषयुक्त हो (चित्र-652), तो आंख की बीमारी का संकेत मिलता है।

यदि सूर्य रेखा के बीच में द्वीप चिह्न हो और शुक्र क्षेत्र से निकलने वाली प्रभाव रेखा द्वीप चिह्न के पहले जुड़ गयी हो (चित्र-653), तो पारिवारिक जीवन में कोई कलंक लगने व प्रतिष्ठा या धनहानि होने का खतरा रहता है।

9. आड़ी रेखा
यदि सर्य रेखा किसी आड़ी रेखा से कटी हुई हो, तो प्रतिष्ठा व धनहानि का संकेत देती है। यदि सूर्य रेखा को विवाह रेखा आकर काट दे या उसे बढ़ने से रोक दे (चित्र-654), तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धनहानि सहनी पड़ती है और वह पदच्युत हो जाता है।

चित्र समय के आभाव के चलते प्रकाशित नहीं किए जा सके है लेकिन जल्द ही किए जाएंगे । 


नितिन कुमार पामिस्ट

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