Net (जाल/Jaal) Mounts Aur Lines Par Hona | Hast Rekha Gyan


रेखा जाल का ग्रह क्षेत्रों तथा रेखाओं पर प्रभाव
net sign palmistry

अनेक हाथों में यह रेखा जाल जोकि विभिन्न प्रकार की छोटी बड़ी रेखाओं के मिलने से अथवा काटने से बनता है किसी भी हाथ में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने पर उसके जीवन पर अपना एक विशेष ही प्रभाव रखता है । यह रेखा जाल अपनी आकृति के अनुसार तथा रंग की न्यूनता तथा प्रचुरता के कारण अपने शुभाशुभ प्रभाव को दिखाता है। जिस रेला जाल को सभी रेखाएँ समानान्तर तथा एक-दूसरे को सभकोण पर काटने वाली होती है और साथ ही उनके रंग भी अत्यन्त लाल सुख हो तो किसी भी मनुष्य के लिये बहुत ही खराब तथा खतरनाक साबित होती हैं । भाग्यवश यदि ये ही रेखाएँ तिछी, टेढ़ी-मेढ़ी होकर एक दूसरे को काटती हों और साथ ही इनका रंग भी हल्का गुलाबी हो तो यह देखा जाल इतना अधिक खतरनाक नहीं होता। ये रेखा जाल उपयुक्त रेखा जाल की अपेक्षा कुछ शुभ फलदायक होता है ।

इस रेखा जल का घनिष्ठ सम्बन्ध किसी भी मनुष्य के स्वास्थ्य, व्यवसाय, इन-जन की उन्नति तथा अवनति से बहुत कुछ होता है। जिसका वर्णन यथा समय तथा यथास्थान ही किया जायेगा। अधिकतर इस रेखा जाल का प्रभाव मनुष्यों के हाथों में अशुभ ही देखने में आया है। इसका प्रभाव वर्णन करते समय प्रत्येक प्रेक्षक को सतर्क ही रहना चाहिये, क्योंकि इसके फलादेश कहते समय तनिक-सी असावधानी प्रलयकारी कोहराम मचा देती है।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । यह रेखा जाल; ग्रह क्षेत्रों के अतिरिक्त हाथ के किसी और भाग में दृष्टिगोचर नहीं होता; इसलिये हम इस रेखा जाल का वर्णन हाथ की रेखाओं के साथ न करके केवल ग्रह क्षेत्रों पर ही करेंगे और इसके भले-बुरे प्रभाव से मनुष्य के उत्थान तथा पतन पर यथाशक्ति प्रकाश डालकर अपने पाठकों को शान्ति तथा सन्तोष प्रदान करने का सफल प्रयास करेगे ।

आशा है सभी पाठक अपनी अभिरुचि के अनुसार इस ओर अपना ध्यान देकर लाभ उठाने का कष्ट सहन करेंगे । यूं तो सभी चिन्हें अपने प्रभाव से सभी मनुष्यों को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं, किन्तु खेद इस बात का है कि यह रेखा जाल किसी भी समय किसी भी ग्रह क्षेत्र पर अपना शुभ प्रभाव दिखाते हुए दृष्टिगोचर नहीं होता। इसलिये यह एक बड़ा ही अशुभ लक्षण है जोकि मनुष्य को बर्बाद किये बिना नहीं छोड़ता।

रेखा जाल गुरु क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के हाथ में यह रेखा जाल गुरु क्षेत्र पर होता है, उस मनुष्य को अहंकारी, स्वार्थी, उदंड, निर्दयी तथा निर्लज्ज बनाये बिना नहीं रहता। यह रेखा जाल बृहस्पति देव के सभी गुणों को अवगुणों तथा बुराइयों में बदलकर उस मनुष्य के उन्नति पथ को आपत्तियों से भरकर आगे बढ़ने से रोकता है। ऐसा मनुष्य मिथ्याभिमान के कारण अपने पथ से गिर जाता है और सदैव किसी भी कार्य या बात का कलुषित भाग अपनाकर, नास्तिकतामय तामसिक, धार्मिक विचारों का प्रचार करता है और सदैव अपनी बात पर अड़कर रूढ़िवाद को ही धर्म समझकर मदान्ध की भाँति वितंडवाद में फंसा रहता है और अपनी न झुकने वाली आदत को न छोड़ने के कारण सदा ही तिरस्कृत होता है।

रेखा जाल शनि क्षेत्र पर :-शनि क्षेत्र पर रेखा जाल का होना एक अत्यन्त दुर्भाग्य तथा अभाग्यपूर्ण लक्षण है जो कि मनुष्य को एकान्त प्रिय, उदास, आलसी, दीर्घसूत्री तथा अनमना बनाये रखता है। ऐसा व्यक्ति बड़ा ही स्वार्थ परायण, मतलबी, अमिलनसार तथा अस्थिर विचार होता है और सदैव असम्भव बातों को सम्भव बनाने की सोचा करता है । यदि यह जाल शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा से भी सम्बन्धित हो तो उस मनुष्य की निर्भय तथा नृशंस हत्या होती है। ऐसा मनुष्य आद्योपान्त अपने जीवन में अभागी रहकर अपने दुर्दिन ही गिनता रहता है। यदि किसी कारणवश उसकी मृत्यु न हुई या किसी कारणवश उसे फाँसी न लगी तो निस्सन्देह यह पूर्णतया कहा जा सकता है कि उसको आजन्म कारावास की एक न एक दिन अवश्य ही सजा भुगतनी पड़ेगी। शनि क्षेत्र का रेखा जाल मनुष्य की दुर्गति कराये बिना नहीं मानता।

रेखा जाल रवि क्षेत्र पर :-यदि रवि क्षेत्र पर यह रेखा जाल स्पष्ट रूप से विद्यमान् हो तो उस मनुष्य की मूर्खता को प्रकाशित कर भेद्र पुरुषों में उपहास तथा समाज में निरादर कराता है। ऐसा मनुष्य निन्द्य तथा अश्लील चित्रकारी या कलापूर्ण दस्तकारी द्वारा अपनी उन्नति कर यशस्वी होना चाहता है। वह बड़ा ही वहमी हो जाता है। जिस कारण वह अपनी बनी बनाई बात को खोकर अपनी आर्थिक परिस्थिति को भी बिगाड़ लेता है। यदि साथ ही दूसरा रेखा जाल चन्द्र क्षेत्र पर उपस्थित हो तो ऐसा मनुष्य उन्मादी या पागल होकर शीघ्र ही जेलखाने की सैर करता है । यह सभी कुछ उसकी बुद्धि भ्रम के कारण से ही होता है। उसके चरित्र का बनावटी ओछापन प्रदर्शित हो जाने पर वह मनुष्य अपनी पैतिक तथा वंशपरम्परागत इज्जत को बट्टा लगाकर बर्बाद कर देता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण जिसके हाथ में होता है उसको सांसारिक पदार्थों से दूर रखकर पतन की ओर ले जाता है।

रेखा जाल बुध क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के बुध क्षेत्र पर यह रेखा जाल स्पष्ट रूप से विद्यमान् हो तो वह मनुष्य पढ़ा-लिखा होने पर भी मूर्ख ही जैसा रहता है । क्योंकि ऐसे मनुष्य का जीवन ध्येय कुछ भी नहीं होता और अनियमित रूप से कार्य तथा भोजन करने वाला होता है। अस्थिर स्वभाव, चंचल चित विषयासक्त तथा चौर कला पूर्ण, निरुद्यमी होता है। ऐसा मनुष्य सदैव, बेइमानी के कारण अपनी राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक प्रवृत्ति को अपनी ही दुष्टता तथा अपने दुव्र्यवहार के कारण ही खो बैठता है और कहीं अभाग्यवश दुसरा रेखा जाल कनकी या कनिष्टिका उगली के तीसरे पोरुए पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो यह चिन्ह बुध क्षेत्र के सभी गुणों को अवगुणों तथा बुराइयों में बदलकर उस मनष्य को कलंकित कर देता है और उसे कारागार या जेल भगतनी पड़ती है। अथवा आत्महत्या कर अपने कलंकित मुह को छिपा लेना पड़ता है। कभी-कभी यह मूर्खतापूर्ण कार्य रूपये पसे के हेर-फेर में भी कर लेना पड़ता है।

रेखा जाल प्रजापति क्षेत्र पर :--प्रजापति क्षेत्र पर इस प्रकार का स्पष्ट रेखा जाल रक्तपात या नृशंस हत्याएँ करने का प्रत्यक्ष लक्षण प्रतीत होता है। ऐसा मनुष्य बड़ा ही अत्याचारी तथा निर्मम और निर्दयी होता है। यदि अशुभ प्रजापति क्षेत्र पर यह रेखा जाल हो तो मनुष्य जन्म से या स्वभाव से ही हत्यारा होता है जो कि अपनी हिसावृत्ति का प्रारम्भ चिड़िये या मछली मारकर शुरू करता है । किसी से भी लड़ाई झगड़ा, मारपीट तथा कलह करना उसका नित्य कर्म-सा हो जाता है। जिस कारण वह आवेशपूर्ण अस्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसे मनुष्य की खूनी प्रकृति बिना रक्तपात के शान्त ही नहीं होती। यदि इस चिन्ह से चिन्हित मनुष्य की सभी उगलियां छोटी-मोटी तथा सीधी हों और साथ ही उसका अँगूठा भी समकोण नितान्त छोटा तथा सीधा तथा पत्थर की मानिन्द सख्त सीधा खड़ा रहने वाला हो और उसके छोटे नाखूनों का रंग अत्यधिक लाल सुर्ख हो, इसके अतिरिक्त शीष रेखा किसी प्रकार से दूषित और हृदय रेखा दुहेरी हो तो इन सभी लक्षणों से युक्त मनुष्य जन्मजात, लुटेरा, डाकू, वधिक तथा हत्यारा होता है जोकि अपने निर्दय तथा निर्मम पूर्ण कार्यों के करते समय ही निर्मम हत्या को प्राप्त होता है अर्थात् बुरी तरह मारा जाता है। यदि येन-केन प्रकारेण बच जाय तो पुलिस के हाथों पकड़ा जाकर जेलखाने की सैर करता है और किसी हत्या के आरोप में फाँसी पर लटका दिया जाता है जो कि अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण है।

रेखा जाल वरुण क्षेत्र पर :--वरुण क्षेत्र पर रेखा जाल किसी भी मनुष्य के हाथ में होने से उसकी बचपन में पढ़ाई को खराब करता है। वह धनिक घर में पैदा होकर भी विद्या चोर ही रहता है जिस कारण अपने जीवन में कोई भी उन्नति नहीं कर पाता। ऐसे मनुष्य का जिगर खराब रहने के कारण उसको कोई न कोई रोग लगा ही रहता है । हृदय रेखा के टूटे हुए होने पर इसका प्रभाव और भी दूषित हो जाता है और वह मनुष्य प्रेम के सम्बन्ध में अधीर होकर दुश्चरित्रता को प्राप्त होता है और अपनी अचल कीति को खोकर पछताता है। यदि जाल रेखाएँ गहरे लाल रंग की एक दूसरे को समकोण पर काटती हों तो उस मनुष्य को अवश्य ही पेचिश रोग होता है।

रेखा जाल चन्द्र क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के हाथ में यह रेखा जाल स्पष्ट रूप से चन्द्र क्षेत्र पर दिखाई देता हो तो वह बड़ा ही अधीर, असन्तुष्ट अस्थिर तथा चंचल चित्त होता है। उसकी मुख मुद्रा सदैव अशान्त, उदास तथा रोग ग्रस्त-सी दिखाई देती है। ऐसा व्यक्ति अश्लील शृंगार मय कविता करने वाला सदैव अपयश का भागी होता है। उसके पेट या पेडू में दर्द, मंगल क्षेत्र पर भी यह जाल होने से उसे चित्रकोढ़ आदि रोग होते हैं अथवा पेशाब रोग जैसे शूगर जाना, अल्कोहल जाना धातु तथा शुक्र क्षीण होना आदि रोग हो जाते हैं। ऐसा मनुष्य बड़ा ही कामासक्त तथा विषयी होता है जिसकी तृप्ति के लिये निम्नि कोटि के उपाय सोचता रहता है और हस्त मैथुन द्वारा वीर्य नष्ट कर अपनी आकृति को विकृत बना लेता है। यदि चन्द्र क्षेत्र के साथ-साथ यह रेखा जाल शुक्र, शनि, बुधिादि क्षेत्रों में से किसी एक पर भी विद्यमान् हो तो वह मनुष्य शराबी, कबाबी होने के अतिरिक्त अनेक मादक तथा नशीली वस्तुओं का इस्तेमाल करने वाला होता है जिस कारण अपने स्वास्थ्य, मस्तिष्क तथा चरित्र के साथ-साथ समस्त धन को भी खो बैठता है और अपना पतन अपनी आँखों से देखकर रोता है।

रेखा जाल केतु क्षेत्र पर :-यदि केतु क्षेत्र पर यह रेखा जाल स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो ऐसा मनष्य बाल्यावस्था में म्यादी बुखार, निमोनियाँ, चेचक आदि का रोगी रहता है। यह एक अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है जोकि उस मनुष्य को पग-पग पर देवी दुर्घटना की ठोकर देता रहता है। ऐसा मनुष्य सट्टे, लाट्री, रेस, जुआ आदि में अपना समस्त धन गंवाकर, चोरी, धोखा, ठगी, जेब कतरादि के कामों को करके पुलिस के डंडे खाता है और जेल की लम्बी सैर करता है। यदि यह जाल जीवन रेखा को स्पर्श करता हो तो ऐसा मनुष्य अपने ही आदमियों को धोखा देता है और उनका जानी दुश्मन हो जाता है। केतु क्षेत्र पर यह रेखा जाल अत्यन्त भयंकर प्रभाव दिखाता है जबकि भाग्य रेखा को स्पर्श करता हो। ऐसे मनुष्य को धन-जन दोनों ही प्रकार की हानि उठानी पड़ती है।

रेखा जाल शुक्र क्षेत्र परः--जिस मनुष्य के शुक्र क्षेत्र पर यह रेखा जाल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, वह व्यवित बड़ा ही लम्पट, अधीर, कामासक्त, अनाधिकार प्रेम को चाहने वाला अत्यन्त निकृष्ट प्रकार का प्रेमी होता है। ऐसे मनुष्य का प्रेम स्वार्थमय केवल विषय वासना की तृप्ति के लिए ही होता है। उसमें सत्यता तथा दृढ़ता ढूढ़ना एक मात्र भूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। ऐसा मनुष्य अपने पर तथा अपने प्रेम पात्र पर भरोसा न करके अन्धे व्यक्ति जैसा व्यवहार करता है। और अपने प्रेम पात्र के लिए व्याकुल होकर इधर-उधर दौड़ लगाया करता है और अपनी मान मर्यादा को भुलाकर तथा कीति प्रतिष्ठा को खोकर, कभी-कभी जेल यात्रा भी कर लेता है। यदि शुक्र क्षेत्र छोटा और सख्त हो तो वह मनुष्य बड़ा ही निर्दयी तथा बेहरम हो जाता है। अशुभ शुक्र क्षेत्र के होने पर वह व्यक्ति अपनी इन्द्रिय लोलुपता के कारण ही अपने पतन को देखता है।

रेखा जाल मगर क्षेत्र परः—संगल क्षेत्र का रेखा जाल किसी भी मनुष्य के लिए अत्यन्त अशुभ फलदायक होता है । वह मनुष्य के मानसिक विश्वास के साथ-साथ उसको शारीरिक शक्ति का भी हास करता है। जिस कारण झापत्ति के समय अपनी रक्षा करने में भी असमर्थ रहता है। और उसका हृदय कमजोर होकर दूषित भावनाओं के पूर्ण करने में तत्पर रहता है। शुभ मंगल क्षेत्र पर यह जाल मनुष्य को शान्त नहीं रहने देता है। मुझे किसी-किसी सर्जन के हाथ में यह चिन्ह देखकर प्रथम तो बड़ा हो अचम्भा हुआ किन्तु फिर मैंने सोचा कि यह उसकी रक्तपात प्रवृत्ति को इस प्रकार चीरफाड़ (औपरेशन) करने पर शान्त कर देता है।

रेखा जाल राहु क्षेत्र परः—यह रेखा जाल किसी भी मनुष्य के हाथ में राहु क्षेत्र पर होने से उसके दुर्भाग्य के साथ-साथ किसी मस्तिष्क रोग के होने को भी प्रदर्शित करता है। उसमें ईर्षा, द्वेष की मात्रा प्रबल होने के कारण कोई भी उन्नति नहीं कर सकता। वह परिश्रम से दूर क्रियोहीन होने के साथ-साथ बड़ा ही उन्मादी तथा प्रमादी होता है और सदैव बहकी-बहकी बात करता है। कर्म-हीन होने के कारण वह सर्वदा ही दुखित जीवन व्यतीत करता है।
रेखा जाल इन्द्र क्षेत्र परः-इन्द्र क्षेत्र पर स्पष्ट रूप से फैला हुआ यह रेखा जाल यदि मस्तक रेखा तथा हृदय रेखा को भी स्पर्श करता हो तो मनुष्य के पतन का ठिकाना नहीं रहता।

क्योंकि उसके मस्तिष्क तथा हृदय दोनों ही की गति कुछ ठीक न रहने के कारण कोई उसकी विचारधारा को पा ही नहीं सकता। वह यदि किसी को प्रेम करता है, तो अपनी बातों द्वारा अपमानित होता है। यदि किसी को दीक्षा देता है तो स्वयं ही मूर्ख समझा जाता है। यदि इन दोनों रेखाओं से बना हुआ हो तो वह मनुष्य कुछ संभल जाता है किन्तु दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ता और वह मनुष्य सतत प्रयत्न करते रहने पर भी किसी विशेष सफलता को प्राप्त नहीं होता। उसके मित्र उसे धोखा देते हैं।

नितिन कुमार पामिस्ट

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