स्वास्थ्य रेखा या जिगर रेखा तथा उसका सम्पूर्ण विवरण | Detailed Interpretation Of Health Line In Hindi
स्वास्थ्य या जिगर रेखा-साधारणतया सभी पामिस्ट या हस्त प्रेक्षक हाथ देखते समय तथा अपना हाथ दिखाते समय स्वास्थ्य या जिगर रेखा की अवहेलना ही नहीं करते बल्कि उसके गुण तथा अवगुणों के प्रभाव से अवगत न रहने के कारण अपने मस्तिष्क से एक दम उसे भूल ही जाते हैं।
किन्तु सफलतामय तथा पुरुषार्थी जीवन व्यतीत करने के लिए जितने महत्त्व की यह रेखा है उतनी शायद ही कोई दूसरी रेखा इतनी महत्वपूर्ण हाथ में हो। यू” तो हाथ में सभी रेखायें अपने-अपने स्थान पर एक दूसरे से बढ़कर प्रभाव रखने वाली हैं फिर भी सब का प्रभाव सीमित ही रहता है । यह माना कि हृदय रेखा के न रहने पर मनुष्य हृदय शून्य, शीष रेखा के न होने पर मस्तिष्क रहित, भाग्य रेखा न होने पर भाग्यहीन या कर्महीन और रवि रेखा के न होने पर मनुष्य सफलता से रहित हो जाता है।
फिर भी स्वास्थ्य रेखा दूषित होने पर अथवा तन्दुरुस्ती के न रहने पर, मनुष्य क्रियाहीन, परिश्रम शून्य तथा आलसी हो जाता है। जीवन या आयु रेखा के न होने पर मनुष्य मृत प्राय ही रहता है जिसके लिए किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं रहती। इसलिये किसी भी मनुष्य के जीवित रहने के लिए जीवन रेखा की अत्यन्त आवश्यकता होती है और जीवन सुचारु रूप से चलाने के लिए मनुष्य का स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक है।
इसलिये मैं जीवन रेखा को प्रथम नम्बर देता हूँ और दूसरा नम्बर स्वास्थ्य रेखा या स्वस्थ को देता है क्योंकि इन दोनों रेखाओं का इतना घनिष्ट सम्बन्ध है कि मनुष्य इन दोनों रेखाओं का पूर्ण सहयोग प्राप्त किए बिना जीवित रह ही नहीं सकता।
इसलिये मैं जीवन रेखा को प्रथम नम्बर देता हूँ और दूसरा नम्बर स्वास्थ्य रेखा या स्वस्थ को देता है क्योंकि इन दोनों रेखाओं का इतना घनिष्ट सम्बन्ध है कि मनुष्य इन दोनों रेखाओं का पूर्ण सहयोग प्राप्त किए बिना जीवित रह ही नहीं सकता।
इसलिए इस मानवता के संसार में सफलतामय या पुरुषार्थी जीवन व्यतीत करने के लिए पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने की आवश्यकता है और स्वास्थ्य को कायम रखने के लिये जीवन की अत्यन्त आवश्यकता है। इसलिए जीवन स्वास्थ्य के और स्वास्थ्य पूर्णतया जीवन के आधीन है। इन दोनों का आपस में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि मनुष्य इन दोनों के पूर्ण रूप से न होने पर जीवित ही नहीं रह सकता यदि जीवित रहे भी तो क्रियाशील, परिश्रमी तथा पुरुषार्थी नहीं बन सकता है। अंग्रेजी में इसी प्रकार की एक कहावत है कि
Wealth is lost nothing is lost
Health is lost something is lost
Character is lost everything is lost
इससे प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य का मूल्य धन-दौलत के मूल्य से कहीं अधिक है। जिसकी आवश्यकता प्रत्येक धनिक, निर्धन, गरीब मोहताज आदि को हर समय पड़ती है।
कल्पना करो किसी मनुष्य की आयु बहुत लम्बी है और वह सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहने वाले हाथ में आयु या जीवन रेखा रखता है। हस्त प्रेक्षक उसके हाथ की लम्बी रेखा देखकर उसकी दीर्घायु की बड़ी प्रशंसा करते हैं। किन्तु वही मनुष्य अपनी दीन-हीन अवस्था पर रात दिन आँसू बहाता है क्योंकि उसका स्वास्थ्य सदा ही खराब रहने के कारण वह हमेशा ही किसी न किसी रोग से पीड़ित रहता है ।
वह अपने शरीर की दुर्बलता के कारण घिसट-घिसटकर चलता, उठने बैठने के लिए दूसरों को मोहताज रहता हो, पानी पीने के लिए भी जिसे पर जन का मुंह देखना पड़ता हो वह मनुष्य जीवित रहने के साथ-साथ मृत्यु को भी बुलाता रहेगा तो क्या ऐसा मनुष्य और अधिक दिन जीवित रहने की आशा करेगा ? मैं तो कहूँगा कि नहीं। वह कभी भी अधिक जीने की इच्छा न करेगा और यदि उसका वश चला तो वह अवश्य ही दूसरे मनुष्यों को धोखा देकर अपना प्राणान्त करने की सोचेगा ।
जहाँ सहस्रों मनुष्य प्रेम के वशीभूत होकर आत्महत्या कर लेते हैं हम वहाँ यह भी देखते हैं कि सैकड़ों मनुष्यों ने अस्वस्थ रहने के। कारण भी आत्महत्या कर ली है। जो लोग बीमारी से तंग आ जाते हैं। रुपया खर्चने पर दवाई खाते-खाते ऊब जाते हैं और जब एक लम्बी बीमारी से निःशक्त हो जाते हैं और खाने-पीने को तरस जाते हैं तो दूसरे मनुष्यों को चलता-फिरता, खाता-पीता, उठता-बैठता, हँसता-बोलता। देखकर अपने माथे पर हाथ मारकर अपने भाग्य को कोसा करते हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे और लेख भी पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ऐसे मनुष्य का जीवन दूसरों के लिए ही नहीं बल्कि अपने लिए भी भार हो जाता है। वे मनुष्य इस असहाय अवस्था में कहीं से कहीं पहुँच जाते हैं । इसलिए स्वास्थ्य के लिए जीवन की और जीवन के लिए स्वास्थ्य की अत्यन्त आवश्यकता होती है। इसीलिए मैं जीवन के बाद स्वास्थ्य को सबसे बड़ा स्थान देता हूँ ।
स्वास्थ्य का पूर्ण प्रभाव केवल जीवन विकास तथा उसके दीर्घायु होने पर ही नहीं पड़ता बल्कि मस्तिष्क, हृदय भाग्य तथा सफलता आदि सभी बातों पर पड़ता है। जो मनुष्य जितना स्वस्थ तथा आरोग्य रहेगा उसको मस्तिष्क उतना ही स्वस्थ तथा विचारशील, क्रियात्मक तथा ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण होगा। उसका हृदय उतना ही प्रफुल्लित तथा सद्भावनापूर्ण सरस, मिलनसार, प्रसन्न तथा शान्त और हँसमुख रहेगा और अपनी वार्ता से दूसरे मनुष्यों को भी प्रसन्न करने में समर्थ हो सकेगा। परिश्रम रत रहने के कारण अपने प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त कर अपने भाग्य को बनाने में समर्थ हो सकेगा इसलिए किसी भी मनुष्य को सौसारिक सफलतामय जीवन व्यतीत करने के लिये स्वस्थ रहना परमावश्यक है ।
स्वास्थ्य का अर्थ मोटा होना तथा चर्वी चढ़ जाने के कारण चल न सकना नहीं है। चर्वी चढ़े, मोटे आदमी तो एक तरह से अस्वस्थ कोटि में ही आते हैं । जिसका स्वास्थ्य अच्छा होता है वे मनुष्य उत्तम विचार रखने वाले, निरन्तर कार्य करने पर भी न थकने वाले, कभी बीमार न पड़ने वाले, नियमित रूप से सभी कार्यों को नियत समय पर समाप्त करने वाले होते । हैं शान्त रहकर शान्ति से कार्य करने वाले होते हैं।
जो मनुष्य अपने स्वास्थ्य के सहारे अपने भाग्य का निर्माण करते हैं सदैव सुखी रहते हैं। संचित कर्मों द्वारा प्रारब्ध से घनादि प्राप्त करने वाले मनुष्य का जन्म-जन्मान्तर का स्वास्थ्य ही उसका भाग्य निर्माता बनता है और बनता रहेगा और यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मनुष्य का स्वास्थ्य ही उसके भाग्य का निर्माता है क्योंकि उसके द्वारा किया गया पुरुषार्थ उसके आगामी संचित कर्मों का खण्डन तथा मंडन कर उसके जीवन को विफल या सफल बनाने में पूर्ण सहायक हो सकेगा।
प्रश्न-स्वास्थ्य रेखा की परिभाषा, इसका उद्गम स्थान तथा उसका मानव जीवन पर प्रभाव :
उत्तरः-यद्यपि उपयुक्त प्रश्न का उत्तर इतना सहज नहीं है फिर भी यहाँ इतना कह देना अत्यन्त आवश्यक समझता हूँ कि किसी भी मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा अपने उद्गम स्थान से निकल कर किसी न किसी रूप में कनिष्टिका उगली के नीचे बुध क्षेत्र पर पहुँचने का प्रयत्न करती हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे और लेख भी पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसके लिए यह आवश्यक नहीं होता कि प्रत्येक रेखा बुध क्षेत्र तक पहुँचे ही, बल्कि कोई रेखा मस्तक रेखा के पास, तो कोई हृदय रेखा के पास तो कोई मार्ग में ही ठहर जाती है किन्तु सबका रुख बुब क्षेत्र की ओर ही होता है । इसे कोई-कोई मनुष्य जिगर रेखा के नाम से भी पुकारा करते हैं।
उत्तरः-यद्यपि उपयुक्त प्रश्न का उत्तर इतना सहज नहीं है फिर भी यहाँ इतना कह देना अत्यन्त आवश्यक समझता हूँ कि किसी भी मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा अपने उद्गम स्थान से निकल कर किसी न किसी रूप में कनिष्टिका उगली के नीचे बुध क्षेत्र पर पहुँचने का प्रयत्न करती हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे और लेख भी पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसके लिए यह आवश्यक नहीं होता कि प्रत्येक रेखा बुध क्षेत्र तक पहुँचे ही, बल्कि कोई रेखा मस्तक रेखा के पास, तो कोई हृदय रेखा के पास तो कोई मार्ग में ही ठहर जाती है किन्तु सबका रुख बुब क्षेत्र की ओर ही होता है । इसे कोई-कोई मनुष्य जिगर रेखा के नाम से भी पुकारा करते हैं।
जीवन पर प्रभाव :--निस्सन्देह स्वास्थ्य रेखा का शुभाशुभ प्रभाव प्रत्येक मानव जीवन पर पड़ता है। यह रेखा जिस हाथ में जितनी सुन्दर, पतली, स्पष्ट, निर्दोष होगी उस मनुष्य का स्वास्थ्य उतना ही सुन्दर तथा आरोग्यवर्धक होगा। प्रतिकूल इसके यह रेखा जितनी लम्बी, चौड़ी या फैली हुई होगी, द्वीपदार, कटी-फटी तथा लहर गहरी होगी उस मनुष्य पर उतना ही बुरा प्रभाव डालेगी और वह मनुष्य उतना ही बीमार रहेगा। सदोष स्वास्थ्य रेखा द्वारा प्रदर्शित होने वाले रोगों का विस्तृत विवेचन यथा स्थान इस ही अध्याय में किया जायगा ।
यद्यपि स्वास्थ्य या जिगर रेखा का हाथ में न होना या बिल्कुल ही लोप होना किसी भी व्यक्ति की आरोग्यता के लिए या स्वस्थ रहने के लिए प्रत्यक्ष रूप से सभी लक्षणों में सर्वश्रेष्ट या शुभ लक्षण है। जिन हाथों में यह रेखा बिल्कुल नहीं होती वे मनुष्य अधिकतर बीमारी से दूर रहकर हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान होते हैं। जोकि दूसरे आदमियों की अपेक्षा क्रियाशील, परिश्रमी तथा पुरुषार्थी होने के कारण सदैव अपने अधिकतर कार्यों में सफलता प्राप्त कर लेते हैं। फिर भी ‘शरीरस्य व्याधि मन्दिरम्' की कहावत के अनुसार उन मनुष्यों को भी कोई न कोई रोग रहता ही है।
जिनका इलाज करने के लिए इस संसार में लाखों डाक्टर, हकीम, वैद्य तथा और भी बहुत से व्यक्ति सर्वत्र उपलब्ध हो जाते हैं और अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार सभी अपने-अपने तरीकों से इलाज कर किसी भी मनुष्य का रोग दूर कर उसे स्वस्थ बनाने में समर्थ हो जाते हैं। वास्तव में यह कार्य मेडीकल डिपार्टमैंट अर्थात डाक्टरी विभाग वालों का ही है और वे ही रोगों का निदान कर उसे दूर करने में समर्थ होते हैं । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे और लेख भी पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । यद्यपि यह विषय पामिस्ट्री या सामुद्रिक शास्त्र वालों का नहीं है फिर भी स्वास्थ्य रेखा के शुभाशुभ प्रभाव द्वारा रोगों का नाम जानने तथा मेडीकल डिपार्टमैंट से उस रोग की सत्यता को ज्ञात करने के लिए ही अथवा इस तरफ भी अपना ज्ञान दिखाने के लिए अथवा इसमें भी यशस्वी बनने के लिए रोगों के नाम तथा निदान बताया करते हैं ।
यद्यपि इसमें कोई तत्व नजर नहीं आता क्योंकि रोग के नाम या स्वभाव का पता लग जाने पर भी कोई पामिस्ट उसका इलाज कर उसे स्वस्थ बनाने में समर्थ तब तक नहीं हो सकता जब तक कि वह होमयोपेथिक, प्राकृतिक चिकित्सा, डाक्टरी, वैद्यक तथा हकीमी न जानता हो।
आखिर उसे दवाइयों या औषधियों का आश्रय लेना ही पड़ेगा। कोई भी पामिस्ट या हस्त प्रेक्षक मुझे आज तक ऐसा दिखाई नहीं दिया कि जिसने इस स्वास्थ्य रेखा के दोष को दूसरी रेखा हाथ में खींचकर निवारण किया हो और किसी भी बीमार को आरोग्यता प्रदान की हो । चाहे जो कुछ भी हो रोग से मुक्ति पाने के लिये मनुष्य को किसी न किसी औषधि या दवाई का सहारा लेना ही पड़ता है जोकि डाक्टरी विभाग से पूर्णतया सम्बन्धित है।
इसलिए चाहे कोई पामिस्ट या हस्तप्रेक्षक कुछ भी कहे किन्तु मैं तो यही कहूँगा कि बीमारी तथा रोगादि का विषय पामिस्ट्री का न होकर मेडीकल डिपार्टमैंट का ही रहना चाहिए और किसी भी रोगी ने पामिस्ट से रोग पूछने की अपेक्षा किसी डाक्टर, हकीम या वैद्य का ही सहारा लेना चाहिये, इसी में उसकी भलाई है।
(१) अत्यधिक हाथों के निरन्तर देखने से यह पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य रेखा अधिकतर मणिबन्ध अथवा जीवन रेखा शुक्रादि क्षेत्रों से प्रारम्भ होकर, केतु, राहु, वरुण, प्रजापति आदि क्षेत्रों को होती हुई, कनिष्टिका उगली के नीचे ही बुध क्षेत्र पर जाकर समाप्त होती है। जिस मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा जितनी, सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष होगी उस मनुष्य का स्वास्थ्य उतना ही सुन्दर तथा आरोग्यवर्धक होगा। पतली तथा लम्बी स्वास्थ्य रेखा किसी भी मनुष्य के स्वभाव को हटी तथा रूखा बना देती है। उसका व्यवहार सर्व साधारण के साथ कुछ अच्छा नहीं रहता और वह मनुष्य अपना एकाकी जीवन पसन्द करता है ।।
यद्यपि इसमें कोई तत्व नजर नहीं आता क्योंकि रोग के नाम या स्वभाव का पता लग जाने पर भी कोई पामिस्ट उसका इलाज कर उसे स्वस्थ बनाने में समर्थ तब तक नहीं हो सकता जब तक कि वह होमयोपेथिक, प्राकृतिक चिकित्सा, डाक्टरी, वैद्यक तथा हकीमी न जानता हो।
आखिर उसे दवाइयों या औषधियों का आश्रय लेना ही पड़ेगा। कोई भी पामिस्ट या हस्त प्रेक्षक मुझे आज तक ऐसा दिखाई नहीं दिया कि जिसने इस स्वास्थ्य रेखा के दोष को दूसरी रेखा हाथ में खींचकर निवारण किया हो और किसी भी बीमार को आरोग्यता प्रदान की हो । चाहे जो कुछ भी हो रोग से मुक्ति पाने के लिये मनुष्य को किसी न किसी औषधि या दवाई का सहारा लेना ही पड़ता है जोकि डाक्टरी विभाग से पूर्णतया सम्बन्धित है।
इसलिए चाहे कोई पामिस्ट या हस्तप्रेक्षक कुछ भी कहे किन्तु मैं तो यही कहूँगा कि बीमारी तथा रोगादि का विषय पामिस्ट्री का न होकर मेडीकल डिपार्टमैंट का ही रहना चाहिए और किसी भी रोगी ने पामिस्ट से रोग पूछने की अपेक्षा किसी डाक्टर, हकीम या वैद्य का ही सहारा लेना चाहिये, इसी में उसकी भलाई है।
(१) अत्यधिक हाथों के निरन्तर देखने से यह पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य रेखा अधिकतर मणिबन्ध अथवा जीवन रेखा शुक्रादि क्षेत्रों से प्रारम्भ होकर, केतु, राहु, वरुण, प्रजापति आदि क्षेत्रों को होती हुई, कनिष्टिका उगली के नीचे ही बुध क्षेत्र पर जाकर समाप्त होती है। जिस मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा जितनी, सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष होगी उस मनुष्य का स्वास्थ्य उतना ही सुन्दर तथा आरोग्यवर्धक होगा। पतली तथा लम्बी स्वास्थ्य रेखा किसी भी मनुष्य के स्वभाव को हटी तथा रूखा बना देती है। उसका व्यवहार सर्व साधारण के साथ कुछ अच्छा नहीं रहता और वह मनुष्य अपना एकाकी जीवन पसन्द करता है ।।
(२) जिस मनुष्य के हाथ की स्वास्थ्य रेखा का रंग लाल तथा गहरा सुर्ख होता है वह मनुष्य अत्यन्त कामी, निर्दयी, मूर्ख, कठोरवृत्ति वंश परम्परागत मर्यादा का उल्लंघन करने वाला घमंडी होता है। यदि यह रेखा जीवन रेखा से प्रारम्भ होकर मस्तिष्क रेखा पर समाप्त हो जाय तो मस्तिष्क सम्बन्धी रोग उत्पन्न करती है जैसे सिर में चक्कर आना, सिर घूमना, रतौंदा आना, उन्माद होना, आँखों में भारीपन रहना आदि रोग हो जाते हैं।
(३) किन्तु उपयुक्त स्वास्थ्य रेखा अत्यन्त लाल रंग की जीवन रेखा से प्रारम्भ होकर हृदय रेखा तक ही पहुंचे तो वह मनुष्य का हृदय अतिशय दुर्बल तथा कमज़ोर बना देती है। उसके हृदय की धड़कन या स्पन्दन बढ़ जाने से अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। वह सदैव मन्दाग्नि रोग से पीड़ित रहता है जिस कारण उसे भोजन देर से हजम होता है और उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। वह किसी से बात करना पसन्द नहीं करता।
(४) जिस मनुष्य के दाहिने हाथ की स्वास्थ्य रेखा बहुत ही छोटी, गहरी तथा फैली हुई सुर्ख रंग की आयु रेखा से निकलकर ऊपर को जाती हो तो यह एक अत्यन्त अशुभ लक्षण है जोकि मनुष्य को उसके अन्तिम समय में जिगर-तिल्ली, मन्दाग्नि रोग उत्पन्न कर स्वास्थ्य को खराब करती है। वह मनुष्य बादी की अर्श तथा रक्तपित्त का पीड़ित रहता है ।
(५) यदि इसी प्रकार की स्वास्थ्य रेखा आगे बढ़कर शीष रेखा को काटकर प्रजापति क्षेत्र को जाती हो अथवा वरुण या नेपच्यून क्षेत्र पर ही चौड़ाई में अपना विस्तार करती हो तो या शीष रेखा से ही मिलती हो तो उस मनुष्य के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है । अनेक रोगों के साथ-साथ उसके वंश परंपरागत उन्माद की बीमारी को प्रदर्शित करती है और कई पैत्रिक रोग जैसे अर्श, प्रमेह, सुजाकादि की द्योतक हो जाती है। वह सदैव कब्ज तथा पेचिश की बीमारी से बीमार रहता और साथ ही रक्त विकार आदि भी होते रहते हैं । ऐसा मनुष्य सदा ही एक के बाद एक रोग होने के कारण परेशान रहता है। ।
(६) जब किसी मनुष्य के दाहिने हाथ में स्वास्थ्य रेखा हृदय रेखा को काटती हो तो बहुत कुछ सम्भव है कि उस मनुष्य का हृदय रक्त विकार तथा रक्त चाप के कारण ही दुर्बल हुआ हो और हृदय की इस दुर्बलता के कारण ही उसे मृगी, मूर्छ, बेहोशी तथा दौरा आदि पड़ने का रोग लग गया हो।
रक्त अनियमिता के कारण उसके जिगर में गड़बड़ हो गई हो और वह भोजन पचाने में भी असमर्थ हो गया हो। इस प्रकार भोजन के न पचने पर प्रत्येक रोग के उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।
(७) यदि स्वेत रंग की हथेली पर पीले रंग की स्वास्थ्य रेखा हो तो उस मनुष्य को सदैव जिगर-तिल्ली तथा कब्ज की शिकायत रहती है।
और यदि हल्के गुलाबी या पीले रंग की हथेली पर स्वेत रंग की स्वास्थ्य रेखा विद्यमान हो तो उस मनुष्य को धातु क्षीण, शुक्रपात तथा प्रमेहादि का रोग विशेष रूप से रहता है।
(७) यदि स्वेत रंग की हथेली पर पीले रंग की स्वास्थ्य रेखा हो तो उस मनुष्य को सदैव जिगर-तिल्ली तथा कब्ज की शिकायत रहती है।
और यदि हल्के गुलाबी या पीले रंग की हथेली पर स्वेत रंग की स्वास्थ्य रेखा विद्यमान हो तो उस मनुष्य को धातु क्षीण, शुक्रपात तथा प्रमेहादि का रोग विशेष रूप से रहता है।
(८) साधारणतया स्वास्थ्य रेखा को लहरदार होना स्वास्थ्य की अनियमितता को प्रदर्शित करता है अर्थात् कभी पेट दर्द, कभी सिर दर्द, कभी टौन्सिल, कभी कनवर आदि कोई न कोई रोग उसे लगा ही रहता है।
यदि यह लहर हृदय रेखा पर हो तो हृदय रोग मस्तिष्क रेखा पर ही तो मस्तिष्क रोग, भाग्य रेखा पर हो तो धन-जन, मान हानि, रवि रेखा पर सफलता तथा प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाता है और यदि यह लहर आयु रेखा से सम्बन्धित हुई तो किसी विशेष बीमारी का प्रत्यक्ष लक्षण है यदि उस लहर स्थान पर आयु रेखा टूटी हो अथवा समाप्त प्रायः हो तो यह लक्षण उस मनुष्य की मृत्यु की सूचना देता है।
यदि यह लहर बुध क्षेत्र पर हो तो व्यापार या व्यवसाय में नुकसान, प्रजापति क्षेत्र पर कोई दुर्घटना, वरुण क्षेत्र पर बुद्धि हीनता, चन्द्र क्षेत्र पर पानी से भय। या नुकसान, नजला, जुकाम, खाँसी आदि, राहु तथा केतु क्षेत्र पर दुर्भाग्य, अचानक धन सम्बन्धी आपत्ति और शुक्र क्षेत्र पर प्रेम में निराशा, जल में डूबना तथा दाँत आदि में पीड़ा या धातु क्षीण आदि रोग उत्पन्न करती है ।
(९) जिस मनुष्य की उगलियाँ तथा नाखून लम्बे हों और नाखूनों पर नव चन्द्र चिन्ह अनियमित रूप से पड़े हों और हृदय रेखा पर स्वास्थ्य रेखा अपना पूर्ण प्रभाव डालती हो तो उस मनुष्य के फेफड़े कमजोर होते हैं और ऐसे मनुष्य को बचपन में निमोनियाँ, पसलियाँ चलना, हब्बा-डब्बा का रोग होना साधारण-सी बात रहती है । तीव्र गति से दौड़ने पर, सख्त परिश्रम करने पर उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है ।
(९) जिस मनुष्य की उगलियाँ तथा नाखून लम्बे हों और नाखूनों पर नव चन्द्र चिन्ह अनियमित रूप से पड़े हों और हृदय रेखा पर स्वास्थ्य रेखा अपना पूर्ण प्रभाव डालती हो तो उस मनुष्य के फेफड़े कमजोर होते हैं और ऐसे मनुष्य को बचपन में निमोनियाँ, पसलियाँ चलना, हब्बा-डब्बा का रोग होना साधारण-सी बात रहती है । तीव्र गति से दौड़ने पर, सख्त परिश्रम करने पर उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है ।
कभी-कभी मादक वस्तुओं के प्रयोग से हृदयोत्तेजना तीव्र हो जाती है और सहसा हृदय गति के रुक जाने पर मृत्यु तक हो जाती है । इसलिये अधिक परिश्रम, कसरत करना, शराब, सिगरेट, हुक्कादि नशीली वस्तुओं का प्रयोग पूर्णतया वर्जित है।
(१०) जिस मनुष्य के हाथ की स्वास्थ्य रेखा का रंग अत्यधिक सुर्ख होगा उस मनुष्य की पित्त प्रकृति होगी । गर्म वस्तुओं के प्रयोग से उसके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। उसे शीघ्र ही लू या घाम लगकर बुखार आ जाता है। गर्दन तोड़ बुखार भी आ सकता है। गर्मी के कारण उसके रवितम पेचिश हो जाती है। ऐसे मनुष्य के मुंह का जायका तथा स्वाद दोनों ही बिगड़ जाते हैं ।
(१०) जिस मनुष्य के हाथ की स्वास्थ्य रेखा का रंग अत्यधिक सुर्ख होगा उस मनुष्य की पित्त प्रकृति होगी । गर्म वस्तुओं के प्रयोग से उसके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। उसे शीघ्र ही लू या घाम लगकर बुखार आ जाता है। गर्दन तोड़ बुखार भी आ सकता है। गर्मी के कारण उसके रवितम पेचिश हो जाती है। ऐसे मनुष्य के मुंह का जायका तथा स्वाद दोनों ही बिगड़ जाते हैं ।
उसका स्वभाव चिड़चिड़ा तथा झगड़ालू हो जाता है। ऐसे मनुष्य को यदि शीघ्र औषधि का प्रयोग न कराया गया तो प्राणान्त तक हो जाने का भय रहता है।
(११) जिस किसी मनुष्य के दाहिने हाथ की स्वास्थ्य रेखा का रंग गुलाबी हो और उसमें अनेक छोटी-छोटी रेखाएँ इधर-उधर से आकर मिलती हो और गुरु क्षेत्र पर बुहारी को सींकों जैसा जाल बिछा हो तो उस मनुष्य को ब्लडप्रेशर, रक्तचाप, रक्त विकार तथा अर्श का रोग हो जाना अवश्यम्भावी है ।
(१२) किसी भी हाथ में स्वास्थ्य रेखा का आद्योपान्त टुकड़े-टुकड़े होकर बढ़ना या कहीं-कहीं से टूट जाना या बीच-बीच में धीमी होकर, फिर चमक जाना, जिगर-तिल्ली की बीमारी का होना, मन्दाग्नि रहना, अनियमित आहार करना तथा हृदय दौर्बल्यता को प्रदर्शित करता है।
(१३) जिन मनुष्यों की हृदय रेखा तथा स्वास्थ्य रेखा का रंग हल्का गुलाबी होता है और शनि की मुद्रा अपूर्ण-सी हो तो उस मनुष्य को वायु प्रकृति होती है। तनिक-सी भी वायु वाली वस्तुओं के प्रयोग से उस मनुष्य के शरीर में वायु प्रकोप बढ़ जाता है और उस मनुष्य के हाथ पैर भारी हो जाते हैं। पेट में दर्द, छाती में जलन, अपान वायु का बढ़ जाना तथा डकार आना आदि रोगों के साथ-साथ यदि हाथ में मंगल रेखा भी हो तो बादी की बवासीर भी हो सकती है।
(१४) जिसकी हथेली का रंग स्वेत-पीतादि मिश्रित हो और उसके स्वास्थ्य रेखा का रग स्वेत-कालिमा लिये हुए हो तो उस मनुष्य की कफ प्रकृति होती है। यदि चन्द्र शुक्र क्षेत्र अशुभ फलदायक पड़े हों। तो वह मनुष्य नजला, जुकाम, खाँसी आदि रोगों से पीड़ित रहने वाला, विशेषकर सर्दी के मौसम में पानी से डरने वाला होता है। सर्दव नजले से पीड़ित रहने के कारण उसका स्वास्थ्य गिर जाता है। मुखाकृति पीली हो जाती है । वह रात-दिन थूकते-थूकते परेशान हो जाता है । शूल का पेट में उठना, कफ का जाना, स्वास का बढ़ जाना आदि के साथसाथ खाँसते-खाँसते एक दम साँस का रुक जाना और फिर लौटकर न आना आदि मृत्यु सूचना भी देते हैं।
(१५) यह हम पहले ही कह आये हैं कि स्वास्थ्य रेखा का किसी भी हाथ में बिल्कुल ही अलोप होना सबसे अच्छा तथा अत्यन्त शुभ लक्षण है क्योंकि न स्वास्थ्य रेखा हाथ में होगी और न किसी रेखा को काटेगी और न कोई अशुभ दोष उत्पन्न होगा। किन्तु नितान्त इस प्रकार की धारणा धारण कर लेना भी उस मनुष्य के मस्तिष्क की एक मात्र भूल ही होगी क्योंकि लाखों मनुष्यों में दो चार ही व्यक्ति ऐसे मिल सकते हैं जो कि कभी भी अपने जीवन में बीमार न पड़े हों ।
(११) जिस किसी मनुष्य के दाहिने हाथ की स्वास्थ्य रेखा का रंग गुलाबी हो और उसमें अनेक छोटी-छोटी रेखाएँ इधर-उधर से आकर मिलती हो और गुरु क्षेत्र पर बुहारी को सींकों जैसा जाल बिछा हो तो उस मनुष्य को ब्लडप्रेशर, रक्तचाप, रक्त विकार तथा अर्श का रोग हो जाना अवश्यम्भावी है ।
(१२) किसी भी हाथ में स्वास्थ्य रेखा का आद्योपान्त टुकड़े-टुकड़े होकर बढ़ना या कहीं-कहीं से टूट जाना या बीच-बीच में धीमी होकर, फिर चमक जाना, जिगर-तिल्ली की बीमारी का होना, मन्दाग्नि रहना, अनियमित आहार करना तथा हृदय दौर्बल्यता को प्रदर्शित करता है।
(१३) जिन मनुष्यों की हृदय रेखा तथा स्वास्थ्य रेखा का रंग हल्का गुलाबी होता है और शनि की मुद्रा अपूर्ण-सी हो तो उस मनुष्य को वायु प्रकृति होती है। तनिक-सी भी वायु वाली वस्तुओं के प्रयोग से उस मनुष्य के शरीर में वायु प्रकोप बढ़ जाता है और उस मनुष्य के हाथ पैर भारी हो जाते हैं। पेट में दर्द, छाती में जलन, अपान वायु का बढ़ जाना तथा डकार आना आदि रोगों के साथ-साथ यदि हाथ में मंगल रेखा भी हो तो बादी की बवासीर भी हो सकती है।
(१४) जिसकी हथेली का रंग स्वेत-पीतादि मिश्रित हो और उसके स्वास्थ्य रेखा का रग स्वेत-कालिमा लिये हुए हो तो उस मनुष्य की कफ प्रकृति होती है। यदि चन्द्र शुक्र क्षेत्र अशुभ फलदायक पड़े हों। तो वह मनुष्य नजला, जुकाम, खाँसी आदि रोगों से पीड़ित रहने वाला, विशेषकर सर्दी के मौसम में पानी से डरने वाला होता है। सर्दव नजले से पीड़ित रहने के कारण उसका स्वास्थ्य गिर जाता है। मुखाकृति पीली हो जाती है । वह रात-दिन थूकते-थूकते परेशान हो जाता है । शूल का पेट में उठना, कफ का जाना, स्वास का बढ़ जाना आदि के साथसाथ खाँसते-खाँसते एक दम साँस का रुक जाना और फिर लौटकर न आना आदि मृत्यु सूचना भी देते हैं।
(१५) यह हम पहले ही कह आये हैं कि स्वास्थ्य रेखा का किसी भी हाथ में बिल्कुल ही अलोप होना सबसे अच्छा तथा अत्यन्त शुभ लक्षण है क्योंकि न स्वास्थ्य रेखा हाथ में होगी और न किसी रेखा को काटेगी और न कोई अशुभ दोष उत्पन्न होगा। किन्तु नितान्त इस प्रकार की धारणा धारण कर लेना भी उस मनुष्य के मस्तिष्क की एक मात्र भूल ही होगी क्योंकि लाखों मनुष्यों में दो चार ही व्यक्ति ऐसे मिल सकते हैं जो कि कभी भी अपने जीवन में बीमार न पड़े हों ।
इसलिये निस्सन्देह यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य रेखा के न होने पर भी मनुष्य बीमार पड़ सकता है। बहुत सम्भव है कि ऐसा व्यक्ति किसी असाध्य रोग का बीमार न हो और दो-चार दिन में शीघ्र ही अच्छा हो जाय। तिसपर भी यह देखने में आता ही है कि ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य की ओर से निडर रहते हैं और बिना शक उनका स्वास्थ्य दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा सुन्दर तथा ठीक रहता है। यह एक प्राकृतिक बात है कि जिन मनुष्यों का स्वास्थ्य ठीक होता है अर्थात् जिन्हें कोई रोग नहीं होता वे दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा अधिक परिश्रमी, क्रियाशील, साहसी, मेहनती तथा स्फूर्ति वाले होते हैं।
उनमें कार्य करने की क्षमता बहुत होती हैं। वे सदैव, बड़े ही शान्त, हँसमुख तथा प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं जिससे दृष्टा पर उनके दर्शन तथा गम्भीर व्यवहार का अत्यन्त प्रभाव पड़ता है। यदि ऐसे मनुष्य पढ़े-लिखे विद्वान् हुए तो सोने में सुगन्धि का काम होता है। वे लोग समाज में आदर पाते हैं और भद्र पुरुष समझे जाते हैं। विपरीत इसके जो लोग पढ़े लिखे नहीं होते वे भी अपनी मान-मर्यादा को रखने वाले बड़े ही रोबीले चेहरे वाले होते हैं।
(१६) इसका यह अर्थ कभी नहीं होता कि स्वास्थ्य रेखा के होने पर सभी मनुष्य बीमार पड़ जाते हैं। अब तक देखने में यही आया है कि जिन मनुष्यों के हाथों में स्वास्थ्य रेखा, सुन्दर, साफ, स्पष्ट, पतली तथा निर्दोष होती है उनका स्वास्थ्य भी साधारण रूप से बहुत ही अच्छा रहता है और वे बहुत ही कम बीमार पड़ते हैं। निर्दोष जिगर रेखा का हाथ में होना भी आरोग्य होने की पूर्ण निशानी है।
ऐसी रेखा के होने से मनुष्य की स्मरण शक्ति बढ़ती है। हृदय को शक्ति प्राप्त होती है और कार्य में सफलता प्राप्त होती है। सूर्य रेखा के निर्दोष होने के साथ-साथ यदि स्वास्थ्य रेखा भी बुध क्षेत्र पर निर्दोष रूप से विद्यमान हो तो मनुष्य को निश्चय से व्यापार में खूब लाभ होता है।
प्रतिकूल इसके स्वास्थ्य रेखा जिस मनुष्य के हाथ में जितनी दूषित तथा खराब दशा में होगी मनुष्य उतना ही रोगी, स्वभाव का चिड़चिड़ा, क्रोधी, वायु, पित्त, कफ रोग से पीड़ित होगा । सिर दर्द, पेट दर्द, कमर दर्द आदि-आदि रोग उस समय मनुष्य को अधिक होते हैं जब कि दूषित स्वास्थ्य रेखा का पूर्ण प्रभाव उस मनुष्य की आयु तथा जीवन रेखा पर पड़ रहा हो ।
(१७) जिस मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा जंजीरदार लहरदार बिन्दुदार तथा अनेक छोटी-छोटी रेखाओं से पृथक्-पृथक् रहने पर भी एक ही रेखा-सी प्रतीत होने पर मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालती है। ऐसे मनुष्य सदैव किसी लम्बी चलने वाली बीमारी से पीड़ित रहते हैं। यदि यह रेखा दोष शीष रेखा पर हो तो मस्तिष्क रोग और हृदय रेखा पर हो तो हृदय रोग और यदि राहु केतु क्षेत्र तथा आयु रेखा पर हो तो शरीर रोग होता है।
(१८) द्वीप चिन्ह स्वास्थ्य रेखा पर अपना विशेष स्थान रखता है । ये द्वीप चिन्ह किसी-किसी हाथ में एक, दो, तीन, चार तक पाये जाते हैं जिनका अशुभ प्रभाव स्थानान्तर से मनुष्य के भिन्न-भिन्न अवयवों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से पड़ता है। यदि केतु क्षेत्र पर स्वास्थ्य रेखा पर एक द्वीप हो तो किशोरावस्था तक पेट में खराबी, वायु दर्द तथा रक्तिम पेचिश होती है। यदि दो द्वीप साथ-साथ हों तो मनुष्य में उपर्युक्त रोगों के साथ रात्रि को बिस्तर पर पेशाब कर देने के अतिरिक्त सोते-सोते रात में सैर करने की आदत भी होती है। यह एक प्रकार की बेहोशी है जिसमें सब कुछ कर लेने पर भी अपनी जागृत अवस्था के प्राप्त होने पर यह ज्ञात नहीं रहता कि उसने कोई भी काम किया है।
(१९) राहु क्षेत्र पर बड़ा द्वीप होने पर मनुष्य को राजयक्ष्मा या टी.बी. का रोग होता है। इस द्वीप के बाद यदि स्वास्थ्य रेखा सुन्दर, साफ या स्पष्ट हो जाय तो मनुष्य का रोग दुसाध्य नहीं होता। वह मनुष्य द्वीप रहने तक के समय में बीमार रहता है और फिर आरोग्य रहकर कार्य करने लगता है।
(१७) जिस मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य रेखा जंजीरदार लहरदार बिन्दुदार तथा अनेक छोटी-छोटी रेखाओं से पृथक्-पृथक् रहने पर भी एक ही रेखा-सी प्रतीत होने पर मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालती है। ऐसे मनुष्य सदैव किसी लम्बी चलने वाली बीमारी से पीड़ित रहते हैं। यदि यह रेखा दोष शीष रेखा पर हो तो मस्तिष्क रोग और हृदय रेखा पर हो तो हृदय रोग और यदि राहु केतु क्षेत्र तथा आयु रेखा पर हो तो शरीर रोग होता है।
(१८) द्वीप चिन्ह स्वास्थ्य रेखा पर अपना विशेष स्थान रखता है । ये द्वीप चिन्ह किसी-किसी हाथ में एक, दो, तीन, चार तक पाये जाते हैं जिनका अशुभ प्रभाव स्थानान्तर से मनुष्य के भिन्न-भिन्न अवयवों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से पड़ता है। यदि केतु क्षेत्र पर स्वास्थ्य रेखा पर एक द्वीप हो तो किशोरावस्था तक पेट में खराबी, वायु दर्द तथा रक्तिम पेचिश होती है। यदि दो द्वीप साथ-साथ हों तो मनुष्य में उपर्युक्त रोगों के साथ रात्रि को बिस्तर पर पेशाब कर देने के अतिरिक्त सोते-सोते रात में सैर करने की आदत भी होती है। यह एक प्रकार की बेहोशी है जिसमें सब कुछ कर लेने पर भी अपनी जागृत अवस्था के प्राप्त होने पर यह ज्ञात नहीं रहता कि उसने कोई भी काम किया है।
(१९) राहु क्षेत्र पर बड़ा द्वीप होने पर मनुष्य को राजयक्ष्मा या टी.बी. का रोग होता है। इस द्वीप के बाद यदि स्वास्थ्य रेखा सुन्दर, साफ या स्पष्ट हो जाय तो मनुष्य का रोग दुसाध्य नहीं होता। वह मनुष्य द्वीप रहने तक के समय में बीमार रहता है और फिर आरोग्य रहकर कार्य करने लगता है।
यदि ये द्वीप एक के बाद एक चार तक या तीन ही तक की संख्या तक सीमित रह जाय तो उस मनुष्य को असाध्य टी.बी. (क्षय) होती है और वह मनुष्य एक हजार दिन की अवधि तक अधिक से अधिक जीवित रहकर अन्त में मृत्यु को प्राप्त होता है। हो सकता है। कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस बात में दखलनदाज हो अन्यथा मृत्यु आवश्यक है।
(२०) हृदय रेखा के आर-पार द्वीप का होना हृदय रोग से सम्बन्ध रखता है । जिस मनुष्य के यह द्वीप होता है उसके फेफड़े तथा छाती दुर्बल होती है, उसे ठंड का असर जल्दी पकड़ता है जिस कारण निमोनिया, म्यादी बुखार, बचपन में पसली चलना, हब्बाडब्बा होना आदि रोग तनिक-सी असावधानी पर हो जाते हैं।
(२०) हृदय रेखा के आर-पार द्वीप का होना हृदय रोग से सम्बन्ध रखता है । जिस मनुष्य के यह द्वीप होता है उसके फेफड़े तथा छाती दुर्बल होती है, उसे ठंड का असर जल्दी पकड़ता है जिस कारण निमोनिया, म्यादी बुखार, बचपन में पसली चलना, हब्बाडब्बा होना आदि रोग तनिक-सी असावधानी पर हो जाते हैं।
(२१) यदि यह द्वीप मस्तक या शीष रेखा के पास उसे छूता हुआ हो अथवा आर-पार काटता हुआ हो तो उस मनुष्य को मस्तिष्क अथवा मुखाकृति सम्बन्धी रोग होते हैं । टौंसिल, कन्वर, मसूड़े जीभ में छाले, मुह से रक्त आना, नकसीर छूटना आदि रोग होते हैं। सिर में चक्कर, रतौंदा तथा रिगोंडे का दुख होता है जिसमें आँखों के सामने चलते-चलते, उठते-बैठते अँधेरा-सा आ जाता है और मनुष्य खड़े से गिर पड़ता है, चोट लग जाती है, हाथ पैर टूट जाते हैं।
(२२) स्वास्थ्य रेखा का अत्यधिक गहरा होना किसी भी असाध्य रोग का होना बतलाता है। स्वास्थ्य और जीवन रेखा का दोषपूर्ण होना किसी भी मनुष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है । इन रेखाओं का क्रमशः प्रारम्भिक, माध्यमिक और अन्तिम काल सदोष होना किसी भी मनुष्य के लिए उसके बचपन से किशोरावस्था, मध्यमावस्था और वृद्धावस्था में बीमार होने की क्रमशः सूचना देता है। यदि स्वास्थ्य रेखा, जीवन रेखा के अवसान पर दोषपूर्ण अवस्था में काटे या द्वीप बनाये तो उस मनुष्य के अन्तिम दिनों में एक लम्बी बीमारी होती है। और वह आदमी बड़ी तकलीफ के बाद मृत्यु को प्राप्त होता है। उसका जीवन नीरस रहता है ।
(२३) यदि किसी मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य, भाग्य तथा मस्तक, इन तीनों रेखाओं के मिलने से यदि कोई त्रिभुज बन जाय तो उस मनुष्य को धन लिप्सा, काम पिपासा, तथा गुप्त रोगों से पीड़ित तथा अनेक रहस्यों से युक्त रखती है। निर्दोष स्वास्थ्य रेखा की सहायक रेखा स्वास्थ्य की रक्षा और सदोष सहाय रेखा मनुष्य की बीमारी बढ़ाने में सहायक होती है। इसलिए अच्छी नहीं होती।
(२४) यदि स्वास्थ्य रेखा निर्दोष होकर स्पष्ट रूप से चन्द्र क्षेत्र को अपनाती हो तो स्वास्थ्य के लिए सुखकर होती है और यदि यह रेखा सदोष गहरी, चौड़ी केवल हृदय और शीष रेखा के बीच हो तो हृदय और मस्तिष्क दोनों को निर्बल तथा स्मरण शक्ति को क्षीण करके मनुष्य को किसी के प्रेम में विह्वल, विकल तथा अधीर बनाती है । स्वास्थ्य रेखा का रंग यदि गहरा लाल हो तो इसका प्रभाव और अशुभ हो जाता है ।
(२६) यदि व्यापारिक हाथों में स्वास्थ्य रेखा की कोई शाख रवि रेखा को काटकर आगे बढ़ जाय तो उस मनुष्य को व्यापार में हानि तथा कीति या मान प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगता है और बदनामी या अपयश सिर पर आता है और यदि स्वास्थ्य रेखा अनेक रेखाओं के मिलने से बनी हो तो उस मनुष्य के पेट में गुर्दे का अथवा वायु गोले का दर्द उठता है । इसलिए अशुभ स्वास्थ्य रेखा का हाथ में होना अत्यन्त ही हानिकारक है ।
(२२) स्वास्थ्य रेखा का अत्यधिक गहरा होना किसी भी असाध्य रोग का होना बतलाता है। स्वास्थ्य और जीवन रेखा का दोषपूर्ण होना किसी भी मनुष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है । इन रेखाओं का क्रमशः प्रारम्भिक, माध्यमिक और अन्तिम काल सदोष होना किसी भी मनुष्य के लिए उसके बचपन से किशोरावस्था, मध्यमावस्था और वृद्धावस्था में बीमार होने की क्रमशः सूचना देता है। यदि स्वास्थ्य रेखा, जीवन रेखा के अवसान पर दोषपूर्ण अवस्था में काटे या द्वीप बनाये तो उस मनुष्य के अन्तिम दिनों में एक लम्बी बीमारी होती है। और वह आदमी बड़ी तकलीफ के बाद मृत्यु को प्राप्त होता है। उसका जीवन नीरस रहता है ।
(२३) यदि किसी मनुष्य के हाथ में स्वास्थ्य, भाग्य तथा मस्तक, इन तीनों रेखाओं के मिलने से यदि कोई त्रिभुज बन जाय तो उस मनुष्य को धन लिप्सा, काम पिपासा, तथा गुप्त रोगों से पीड़ित तथा अनेक रहस्यों से युक्त रखती है। निर्दोष स्वास्थ्य रेखा की सहायक रेखा स्वास्थ्य की रक्षा और सदोष सहाय रेखा मनुष्य की बीमारी बढ़ाने में सहायक होती है। इसलिए अच्छी नहीं होती।
(२४) यदि स्वास्थ्य रेखा निर्दोष होकर स्पष्ट रूप से चन्द्र क्षेत्र को अपनाती हो तो स्वास्थ्य के लिए सुखकर होती है और यदि यह रेखा सदोष गहरी, चौड़ी केवल हृदय और शीष रेखा के बीच हो तो हृदय और मस्तिष्क दोनों को निर्बल तथा स्मरण शक्ति को क्षीण करके मनुष्य को किसी के प्रेम में विह्वल, विकल तथा अधीर बनाती है । स्वास्थ्य रेखा का रंग यदि गहरा लाल हो तो इसका प्रभाव और अशुभ हो जाता है ।
(२५) यदि स्वास्थ्य रेखा और उसकी कोई शाख मस्तक रेखा पर त्रिभुज बनाये तो उस मनुष्य को अपने शारीरिक बल, यश, कीति तथा मान, प्रतिष्ठा की विशेष इच्छा रहती है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे और लेख भी पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसके बढ़ते वेग को यदि उचित समय पर न रोका गया तो मस्तिष्क के लिए घातक होता है। और यदि इसी प्रकार स्वास्थ्य रेखा बुध क्षेत्र पर द्विजिह्न हो तो उस मनुष्य को अन्त कालीन बीमारियों की सूचना देती है। इसी प्रकार स्वास्थ्य रेखा की कोई शाख रवि क्षेत्र पर जाने से व्यापारिक कुशलता प्रदर्शित करती है ।
(२६) यदि व्यापारिक हाथों में स्वास्थ्य रेखा की कोई शाख रवि रेखा को काटकर आगे बढ़ जाय तो उस मनुष्य को व्यापार में हानि तथा कीति या मान प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगता है और बदनामी या अपयश सिर पर आता है और यदि स्वास्थ्य रेखा अनेक रेखाओं के मिलने से बनी हो तो उस मनुष्य के पेट में गुर्दे का अथवा वायु गोले का दर्द उठता है । इसलिए अशुभ स्वास्थ्य रेखा का हाथ में होना अत्यन्त ही हानिकारक है ।
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स्वास्थ्य रेखा या जिगर रेखा तथा उसका सम्पूर्ण विवरण | Health Line Palmistry