विवाह रेखा का चित्रों के साथ मतलब जाने | Vivah Rekha
विवाह भारतीय समाज को जोड़ने का कार्य करता है और इसलिए भारतीय ज्योतिष शास्त्र में विवाह को अधिक महत्व दिया जाता है ।
हाथ में विवाह रेखा का बहुत महत्व है । विवाह रेखा से उसके वैवाहिक जीवन और प्रेम सम्बन्ध का अनुमान लगाया जा सकता है ।
आजकल गर्ल्स और बॉयज का ये ही सवाल होता है की शादी कब होगी और किस से होगी ? विवाह रेखा से अनुमान लगाया जा सकता है की कब होगी लेकिन ये नहीं बता सकते है की किस के साथ होगी या उसका नाम क्या होगा ।
विवाह रेखा (Marriage Line/Vivah Rekha) से जाने प्रेम विवाह और तलाक का योग
पढ़ें : - हाथ में गुरु मुद्रिका का राज हस्तरेखा
विवाह या प्रेम प्रदायिनी रेखा :--
(१) जिस मनुष्य के हाथ में विवाह रेखा जितनी साफ, सुन्दर, स्पष्ट तथा निर्दोष होगी वह उतने. ही शुभ विवाह की सूचना देगी। यह रेखा हृदय रेखा के जितनी समीप होगी उतनी ही जल्दी विवाह की तैयारियाँ होंगी और जितनी हृदय रेखा से दूरी पर होगी उतनी ही शादी देर से होगी। भारत में विवाह का समय अनिश्चित ही रहता है क्योंकि यहाँ गर्भावस्था से लेकर मरणावस्था तक मनुष्यों के विवाह होते रहते हैं । इसलिए हाथ देखते समय इस बात का विचार करना होगा कि विवाह रेखा हृदय रेखा को समीपता के अनुसार बाल, शैशव तथा किशोरावस्था में से कौन-सी अवस्था प्रदर्शित करती है। साथ ही यह भी देखना होगा कि वह मनुष्य या स्त्री किस वर्ग, वर्ण, तथा जाति, उपजाति से सम्बन्धित है क्योंकि सवर्ण उच्च जातियों के विवाह सम्बन्ध देर में तथा दलित अथवा शूद्र जातियाँ अपने विवाह सम्बन्ध छोटी अवस्था में करती हैं ।
(२) जिन मनुष्यों के हाथों में ये विवाह रेखाएँ दो, तीन, चार, तक होती है तो यह न समझना चाहिए कि उस मनुष्य के अवश्य ही तीन चार विवाहे होंगे बल्कि उन चारों रेखाओं में जो रेखा सबसे साफ, सुन्दर, स्पष्ट तथा निर्दोष होगी वही रेखा विवाह के समय को बताने के लिये सबसे उपयुक्त होगी और वही निश्चय से विवाह रेखा, है। इसके अतिरिक्त सभी रेखाएँ उसके प्रेम सम्बन्ध को अथवा विवाह की बातचीत छूटने को बतायेंगी । इसके साथ-साथ हृदय रेखा के टूटने के स्थान भी देखने चाहिए क्योंकि ये टूटे स्थान भी विवाह सम्बन्ध टूटने के समय को बताते हैं। किसी-किसी के लिए इस प्रकार की चारों रेखाएँ पूर्ण विवाह संबन्ध में ही परिवर्तित हो जाती हैं और उस मनुष्य को चार विवाह तक करने पड़ जाते हैं और चौथे विवाह से उसको सन्तान आदि का सुख पूर्ण रूप से होता है।
(३) यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ में विवाह रेखा बुध क्षेत्र पर मुड़कर, ऊपर की ओर कनिष्टिका उगली के तृतीय पोरुए की सन्धिगत मिल जाये तो उसको आजीवन क्वारा या अविवाहित ही रहना पड़ता है। ऐसी दशा में विवाह के लिए बातचीत तो बहुत होती है। किन्तु विवाह किसी प्रकार भी नहीं होता । यदि येन-केन -प्रकारेण शादी हो भी जाय तो उसका परिणाम बड़ा भयंकर होता है। क्योंकि देखने में यही आया है कि जिस स्त्री-पुरुष के हाथ में यह उर्ध्वगामी विवाह रेखा होती है उसकी मृत्यु विवाह संबन्ध होने के कुछ ही समय पश्चात् हो जाया करती है। जोकि किसी भी हाथ में दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण प्रतीत होता है ।
(२) जिन मनुष्यों के हाथों में ये विवाह रेखाएँ दो, तीन, चार, तक होती है तो यह न समझना चाहिए कि उस मनुष्य के अवश्य ही तीन चार विवाहे होंगे बल्कि उन चारों रेखाओं में जो रेखा सबसे साफ, सुन्दर, स्पष्ट तथा निर्दोष होगी वही रेखा विवाह के समय को बताने के लिये सबसे उपयुक्त होगी और वही निश्चय से विवाह रेखा, है। इसके अतिरिक्त सभी रेखाएँ उसके प्रेम सम्बन्ध को अथवा विवाह की बातचीत छूटने को बतायेंगी । इसके साथ-साथ हृदय रेखा के टूटने के स्थान भी देखने चाहिए क्योंकि ये टूटे स्थान भी विवाह सम्बन्ध टूटने के समय को बताते हैं। किसी-किसी के लिए इस प्रकार की चारों रेखाएँ पूर्ण विवाह संबन्ध में ही परिवर्तित हो जाती हैं और उस मनुष्य को चार विवाह तक करने पड़ जाते हैं और चौथे विवाह से उसको सन्तान आदि का सुख पूर्ण रूप से होता है।
(३) यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ में विवाह रेखा बुध क्षेत्र पर मुड़कर, ऊपर की ओर कनिष्टिका उगली के तृतीय पोरुए की सन्धिगत मिल जाये तो उसको आजीवन क्वारा या अविवाहित ही रहना पड़ता है। ऐसी दशा में विवाह के लिए बातचीत तो बहुत होती है। किन्तु विवाह किसी प्रकार भी नहीं होता । यदि येन-केन -प्रकारेण शादी हो भी जाय तो उसका परिणाम बड़ा भयंकर होता है। क्योंकि देखने में यही आया है कि जिस स्त्री-पुरुष के हाथ में यह उर्ध्वगामी विवाह रेखा होती है उसकी मृत्यु विवाह संबन्ध होने के कुछ ही समय पश्चात् हो जाया करती है। जोकि किसी भी हाथ में दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण प्रतीत होता है ।
(४) यदि किसी मनुष्य के हाथ में विवाह रेखा नीचोन्मुख होकर हृदय रेखा की ओर अत्यन्त झुक जाय तो जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में यह अंकित होगी तो पर-लिंग-जातक की शीघ्र मृत्यु को प्रदर्शित करती है अथवा अविवाहित रहना पड़ता है। अभाग्यवश किसी भी हाथ में यदि ऐसी ही कोई विवाह रेखा अत्यन्त बढ़कर हृदय रेखा से छु। जाय अथवा हृदय रेखा को काटकर नीचे को निकल जाय तो उस स्त्री को वैवव्य योग देखना पड़ता है और पुरुष के हाथ में यह लक्षण उस पुरुष को रँडुआ बनाता है अथवा स्त्री पुरुष दोनों को ही वियोग दुख सहना पड़ता है ।
(५) जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में विवाह रेखा द्विजिह्व या फोर्क वाली हो तो उस स्त्री की अपने पति से, पुरुष की अपनी पत्नी के सदैव ही विचारों की प्रतिकूलता के कारण अनबन ही रहेगी और जीवन के अधिकतर भाग में विरह वेदना का शिकार रहना पड़ेगा। ये दोनों कभी भी मिलें इनमें विचार विनिमय कभी न होगा फिर भी नितान्त त्याग की भावना कभी जागृत न होगी चाहे लड़ाई झगड़ा किसी हद तक क्यों न पहुँच जाय । यदि यही चिन्ह विवाह रेखा पर बुध क्षेत्र के बाहर की ओर साफ तौर पर दिखाई देता हो तो उस मनुष्य के विवाह के प्रस्ताव या संबन्ध आ-आकर नहीं होते यानी के संबन्ध के होने में अनेक बाधायें उपस्थित हो जाती हैं और विवाह नहीं हो पाता।
(५) जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में विवाह रेखा द्विजिह्व या फोर्क वाली हो तो उस स्त्री की अपने पति से, पुरुष की अपनी पत्नी के सदैव ही विचारों की प्रतिकूलता के कारण अनबन ही रहेगी और जीवन के अधिकतर भाग में विरह वेदना का शिकार रहना पड़ेगा। ये दोनों कभी भी मिलें इनमें विचार विनिमय कभी न होगा फिर भी नितान्त त्याग की भावना कभी जागृत न होगी चाहे लड़ाई झगड़ा किसी हद तक क्यों न पहुँच जाय । यदि यही चिन्ह विवाह रेखा पर बुध क्षेत्र के बाहर की ओर साफ तौर पर दिखाई देता हो तो उस मनुष्य के विवाह के प्रस्ताव या संबन्ध आ-आकर नहीं होते यानी के संबन्ध के होने में अनेक बाधायें उपस्थित हो जाती हैं और विवाह नहीं हो पाता।
(६) यदि इस द्विजिह्व विवाह रेखा की कोई शाख अन्दर की तरफ काफी से ज्यादह मुड़कर हृदय रेखा को स्पर्श करती हो तो ऐसा मनुष्य अपनी स्त्री से अधिक अपनी साली को चाहता है और इस रेखा का आगे बढ़कर हृदय रेखा को काटकर निकल जाना यह सिद्ध करता है। कि ऐसी स्त्री या पुरुष अपने जीवन साथी का आजन्म त्याग उसके हित की कामना में कर देगा।
(७) और यदि यही रेखा और आगे बढ़कर शीष रेखा को काटे तो उसके जीवन साथी का परित्याग उसके हृदय और मस्तिष्क पर वियोग दुख का इतना गहरा प्रभाव डालेगा कि वह मनुष्य प्रेम की विकलता में मस्तिष्क के बिगड़ जाने पर पागल या उन्मादी जैसा आचरण करने लगेगा। या तो वह एक दम चुप, शान्त, गुमसुम होकर एकान्त में रहने लगेगा और किसी से, किसी प्रकार भी बुलाये जाने पर नहीं बोलेगा । या फिर दिन भर बोलता ही रहेगा और अपने अश्लील शब्दों में गालियाँ देता रहेगा या फिर अपने पहनने के कपड़े फाड़-फाड़कर फेंकने लगेगा या फिर आते-जाते मनुष्यों पर पत्थर, किंकड़, ढेले आदि उछालता हुआ दृष्टिगोचर होगा।
(८) और कहीं, यही रेखा नीचोन्मुख होकर मस्तक रेखा को काटने के पश्चात् भाग्य या सफलता रेखा को काटती हुई जीवन रेखा से जाकर मिल जाय अथवा आयु रेखा को काटती हुई शुक्र क्षेत्र तक पहुँच जाय तो ऐसा विवाह या प्रेम संबन्ध उपयुक्त दोषों हानियों के साथ-साथ सफलता में नुकसान, दुर्भाग्य के कारण घाटा तथा आयु तथा जीवन शक्ति की क्षीणता के लिए किसी लम्बी बीमारी का आयोजन करती है जिसमें मनुष्य अत्यधिक रुपया खर्च करने पर भी आरोग्यता को प्राप्त नहीं होता और आयु रेखा के काटने वाले समय में सहयोगी की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसी रेखा विवाह संबन्ध के पश्चात् सर्वनाश का कारण ही प्रतीत होती है।
(९) यदि विवाह रेखा अथवा उसकी कोई शीख आगे बढ़कर | सूर्य या सफलता रेखा से मिल जाय तो उस मनुष्य या स्त्री को जिसके हाथ में यह अत्यन्त शुभ चिन्ह होता है उसे किसी शुभ गुणवान, धनवान तथा बुद्धिमान साथी मिलने का शुभ लक्षण ही समझना चाहिए. । यदि यह रेखा अथवा उसकी कोई शाख रवि रेखा को काटकर निकल जाय तो अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण हो जाता है। उसकी विवाह के पश्चात् बदनामी होती है, झगड़ा रहता है अपयश मिलता है, हानि होती है और साथ ही यदि इस रेखा द्वारा हृदय रेखा भी कट रही हो तो उसका सम्बन्ध सदैव हृदय विदारक ही रहेगा ।
(१०) यदि किसी मनुष्य के हाथ में कोई प्रभाविक रेखा क्रमशः विवाह, हृदय, शीष रेखाओं को काटती हो तो उस विवाह का परिणाम अत्यन्त दुखमय होगा जिसका प्रभाव क्रमशः हृदय और मस्तिष्क पर पड़ेगा। हो सकता है उसे वियोग दुख सहना पड़े और दिल घबराने अथवा उन्माद की शिकायत हो जाय । यदि यही रेखा आगे बढ़कर जीवन रेखा से मिल जाय तो उस विवाह में अपने ही सम्बन्धी अड़चने डालने वाले होते हैं । ऐसी दशा में विवाह का परिणाम अत्यन्त दुखमय होता है और यदि वह रेखा आयु रेखा को काटती हुई आगे बढ़ जाय तो उसका परिणाम अत्यन्त भयानक होता है। प्रथम तो उस मनुष्य का विवाह नहीं होता और यदि हो भी जाय तो साथी से विचार विनिमय न हो सकने के कारण जीवन भर वियोग दुख सहना पड़ता है। उपयुक्त दोषों के हो जाने पर विवाह रेखा का भी यही परिणाम होता है।
(११) जिस मनुष्य के हाथ को प्रभाविक रेखा, भाग्य मस्तिष्क हृदय और विवाह रेखा से मिलकर अपने फोर्क या द्विजिह्व हो जाने पर किसी प्रकार का भी त्रिभुज बनाये अथवा उसकी कोई शाख आगे निकलकर उपयुक्त रेखाओं में से किसी एक रेखा का भी काटे तो ऐसे लक्षण से युक्त मनुष्य को अथवा स्त्री को अपने साथी का परित्याग करना पड़ता है और वियोग दुख सहना पड़ता है। ये लक्षण विवाह के लिए अत्यन्त अशुभ माने जाते हैं ।
(१२) किसी भी मनुष्य अथवा स्त्री के हाथ में विवाह रेखा किसी भी अवरोध रेखा से काटी जाती हो तो ऐसे स्त्री पुरुषों के विचारों में नियमित रूप से प्रतिकूलता तथा प्रत्यक्ष रूप से द्वन्द रहता हैं।
(१३) यदि किसी हाथ में विवाह रेखा दो शाखाओं के मिलने से बनी हो अर्थात् विवाह रेखा में फोर्क हो और कोई रेखा हृदय रेख। से निकलकर उस फोर्स के बीच में जाकर ठहर जाय तो किसी तृतीय व्यक्ति के सम्बन्ध में आ जाने से उस मनुष्य या स्त्री के प्राणान्त हो जाने का अचूक लक्षण है। उसका विवाह प्रथम तो होता ही नहीं और होता भी है तो अत्यन्त विरोध के बाद जिसका परिणाम प्रत्यक्ष ही दिखाई देता है। प्राणान्त कब और किस प्रकार होगा यह जानने के लिए अङ्क विद्या का आना अत्यन्त आवश्यक है।
(१४) और यदि कोई रेखा शीष रेखा से निकलकर विवाह रेखा फोर्क के मध्य में जाकर ठहर जाय तो विचारों में सदा ही मतभेद रहन के कारण उनमें आजीवन लड़ाई झगड़ा रहेगा जो कि व्यर्थ सिर दर्दी का कारण बनकर जीवन भर दुख देता रहेगा।
(१६) यदि विवाह रेखा के प्रारंभिक काल में कोई छोटा-सा द्वीप विद्यमान हो और द्वीप के पश्चात् वह रेखा सुन्दर, साफ और स्पष्ट होकर बुध क्षेत्र पर विद्यमान हो तो उस मनुष्य के विवाह सम्बन्ध में अनेक अड़चनें आयेंगी और द्वीप के प्रभाव तक आती ही रहेंगी किन्तु उसके अशुभ प्रभाव के नष्ट होते ही उसका विवाह अवश्य किसी अच्छे घर में होकर रहेगा और जीवन सुखी हो जायगा ।
(१६) जव विवाह रेखा या उसकी कोई शाख रवि रेखा से मिलकर अथवा उसे काटकर कोई द्वीप चिन्ह सूर्य रेखा के साथ बनाती हो तो ऐसे लक्षण से युक्त मनुष्य का विवाह सम्बन्ध उसको अपमानित करके छूट जाता है और निन्दा तथा कुत्सा की प्रखरता उसे बदनामी तथा अपकीति प्रदान करती है।
(१७) यदि विवाह रेखा का विरोध सन्तान रेखायें करती हों यानी कि विवाह रेखा को सन्तान रेखायें काटती हों या फिर उसे आगे बढ़ने से रोकती हों तो उस मनुष्य का विवाह सम्बन्ध किसी प्रकार भी नहीं हो पाता यद्यपि विवाह प्रस्ताव चलते ही रहते हैं ।
(१८) यदि विवाह रेखा द्वीप पर द्वीप के बनने से दूषित हो गई हो अर्थात् तीन चार द्वीपों के मिलने से बनी हो तो उस मनुष्य का विवाह नहीं होता।
(१९) यदि विवाह रेखा पर कोई द्वीप हो और साथ ही शुक्र क्षेत्र पर अंगूठे से जुड़ा हुआ कोई द्वीप हो तो अपने ही रिश्तेदार, सम्बन्धी, इष्ट मित्र उस मनुष्य के विवाह में आक्षेप प्रगट करते हैं, विबाह में अड़चनें डालते हैं ।
(२०) यदि बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा के समानान्तर दो-तीन रेखाएँ सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष रूप से जा रही हों तो उस मनुष्य या स्त्री के, अपने पति या पत्नी के अतिरिक्त या विवाह साथी के सिवाय पर पुरुष या पर स्त्री से सम्बन्ध रखना प्रदर्शित करती हैं। जिनका प्रेम सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध के सम्पन्न हो जाने पर भी वर्षों तक चलता रहता है। यह प्रेम स्वलिग जातक के साथ न होकर सदैव परलिग जातक से रहता है।
(२१) विवाह रेखा का तनिक हृदय रेखा की ओर झुकना शुभ प्रद विवाह का लक्षण है और अधिक झुक जाना अपने साथी की, अपने से पहले मृत्यु सूचना देता है और कनिष्टिका उगली की ओर तनिक टेढ़ा होना, वियोग या कलह प्रदर्शित करता है और इसका अधिक झुक जाना विवाह के पश्चात् अपने जीवन साथी से प्रथम स्वर्गवासी होने का अचूक लक्षण है।
२२) विवाह रेखा के सुन्दर, साफ, लम्बी तथा स्पष्ट होने पर शुभ विवाह की सूचना मिलती है, यदि इस सुन्दर रेखा के अतिरिक्त कोई दूसरी उसकी सहचर रेखा उसके समीप ही उससे हर प्रकार छोटी किन्तु साफ और निर्दोष होकर चल रही हो तो उस मनुष्य का व्यक्तिगत विशेष प्रेम किसी व्यक्ति से रहता है, जो कि विवाह हो जाने पर भी जीवित रहता है । यदि यह रेखा विवाह रेखा के नीचे हृदय रेखा की ओर है तो पुरुष का स्त्री से और स्त्री का पुरुष से प्रेम जीवित रहता है। और विवाह रेखा के ऊपर समीप ही में होने से पुरुष का पुरूष और स्त्री का स्त्री से प्रेम रहता है।
(२३) विवाह रेखा का कनिष्टिका उगली की ओर को सहसा मुड़ जाना यह बताता है कि उस मनुष्य का विवाह सम्बन्ध होते समय किसी बच्चे की जिद अड़चन डालेगी फिर चाहे वह विवाह हो ही जाये किन्तु एक बार मनाही अवश्य ही होगी।
(२४) विवाह रेखा का अचानक टूट जाना बहुत ही खराब लक्षण | है क्योंकि रेखा के टूटे स्थान का समय आते ही पुरुष को स्त्री का और स्त्री को पुरुष का त्याग कर देना पड़ता है। यह त्याग चाहे तलाक | द्वारा हो या वियोगी बनकर अलग-अलग रहना पड़े।
(२५) यदि विवाह की दो रेखाएँ अत्यन्त समीप एक दूसरे के समानान्तर बुध क्षेत्र पर हों तो विवाह को छाँटते समय बड़ी ही दिक्कत | पेश आती है। कभी दोनों ही ओर से आए हुए रिश्ते के कारण झगड़ा | बढ़ जाता है । शुभ बात यही होती है कि आपसी बहस मुबहायसा या । बातचीत पर सम्बन्ध तय हो जाता है और फिर शादी में कोई दिक्कत नहीं रहती। लोगों के सहयोग से कार्य पूर्ण निभ जाता है।
(२६) यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ की विवाह रेखा, शीष रेखा से उठने वाली रेखा अथवा शीष रेखा की सहयोगी शाख से मिल जाय तो उस विवाह रेखा की मुखालफत मातृ पक्ष के प्रतिद्वन्दियों द्वारा अर्थात् दूर के नाना, नानी, मामा, मामी आदि द्वारा की जाती है। विवाह | चाहे हो ही जाय किन्तु अड़चन अवश्य ही डाली जायगी।
(२७) हृदय रेखा से उठने वाली शाखा पर यदि विवाह रेखा या | उसकी कोई शाख आकर मिले तो ऐसे चिन्ह वाले मनुष्य के विवाह में | उसके अपने सम्बन्धी अथवा इष्ट-मित्र ही अड़चन डालने वाले या झगड़ा कराने वाले होते हैं ।
(२५) यदि विवाह की दो रेखाएँ अत्यन्त समीप एक दूसरे के समानान्तर बुध क्षेत्र पर हों तो विवाह को छाँटते समय बड़ी ही दिक्कत | पेश आती है। कभी दोनों ही ओर से आए हुए रिश्ते के कारण झगड़ा | बढ़ जाता है । शुभ बात यही होती है कि आपसी बहस मुबहायसा या । बातचीत पर सम्बन्ध तय हो जाता है और फिर शादी में कोई दिक्कत नहीं रहती। लोगों के सहयोग से कार्य पूर्ण निभ जाता है।
(२६) यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ की विवाह रेखा, शीष रेखा से उठने वाली रेखा अथवा शीष रेखा की सहयोगी शाख से मिल जाय तो उस विवाह रेखा की मुखालफत मातृ पक्ष के प्रतिद्वन्दियों द्वारा अर्थात् दूर के नाना, नानी, मामा, मामी आदि द्वारा की जाती है। विवाह | चाहे हो ही जाय किन्तु अड़चन अवश्य ही डाली जायगी।
(२७) हृदय रेखा से उठने वाली शाखा पर यदि विवाह रेखा या | उसकी कोई शाख आकर मिले तो ऐसे चिन्ह वाले मनुष्य के विवाह में | उसके अपने सम्बन्धी अथवा इष्ट-मित्र ही अड़चन डालने वाले या झगड़ा कराने वाले होते हैं ।
(२८) यदि विवाह रेखा रवि रेखा के समीप आए तो सहयोगी बरोजगार, नौकर पेशा आदि मिलता है।
(२९) यदि विवाह रेखा अन्दर की ओर दो शाखाओं में विभक्त हो तो उसका साथी शीघ्र ही उसका साथ छोड़ देता है क्योकि उसका प्रेम किसी दूसरे से अवश्य होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसी बात के झगड़े में यह होता है। और यदि यही चिन्ह बाहर की ओर हाथ में अंकित होता है तो उसका साथी बारात चढ़ने से पहले अथवा फेरे फिरने से पहले ही किसी दूसरे के साथ भाग जाता है और विवाह सम्बन्ध टूट जाता है।
(२९) यदि विवाह रेखा अन्दर की ओर दो शाखाओं में विभक्त हो तो उसका साथी शीघ्र ही उसका साथ छोड़ देता है क्योकि उसका प्रेम किसी दूसरे से अवश्य होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसी बात के झगड़े में यह होता है। और यदि यही चिन्ह बाहर की ओर हाथ में अंकित होता है तो उसका साथी बारात चढ़ने से पहले अथवा फेरे फिरने से पहले ही किसी दूसरे के साथ भाग जाता है और विवाह सम्बन्ध टूट जाता है।
(३०) यदि विवाह रेखा में से कुछ बारीक-बारीक, सुन्दर, साफ और स्पष्ट रेखाएँ ऊपर कनिष्टिका उगली की ओर जा रही हों तो वे सुयोग्य सन्तान की सूचना देती हैं जिनमें से बलिष्ट रेखाएँ पुत्र और निर्बल रेखाएँ लड़कियों की सूचना देती हैं।
(३१) जो बारीक-बारीक रेखाएँ विवाह रेखा से निकलकर हृदय रेखा की ओर जाती हैं वे नीचोन्मुख रेखाएँ उस मनुष्य को किसी विशेष बीमारी की ओर संकेत करती हैं।
(३२) विवाह रेखा से सटी हुई उसके समानान्तर रेखा या रेखाएँ किसी विशेष प्रेम की परिचायक हैं। शुक्र और चन्द्र क्षेत्रों की प्रभाविक रेखाएँ, पर-लिग जातक अथवा स्व मित्र से भिन्न सहयोगी का प्रेम प्रदर्शित करती हैं । ये रेखाएँ सात्विक हाथों में शुभ तथा राजस हाथों में शुभाशुभ तथा मिश्रित और तामसिक हाथों में निकृप्ट तथा निन्द्य फलदायक होती हैं । शुक्र, चन्द्र क्षेत्रों पर व्यर्थ रेखाओं का जाल मनुष्य को धने लोलुप, इन्द्रिय लोलुप, कामासक्त विषय वासनाओं में लिप्त तथा अधम कोटि का प्रेमी प्रदर्शित करता है । ये लोग कृत्रिम हँसी-हँसने वाले, मीठी, चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले, बनावटी प्रेम दिखलाकर प्रेमपात्र को फंसाने वाले तथा मतलब निकलने तक रिझाने वाले होते हैं। उनका किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम न होकर वासना तृप्ति तक ही सबसे प्रेम रहता है। तत्पश्चात कोई वास्ता नहीं रहता । ये रेखाएँ अतृप्त प्रेम की अचूक सूचना देती हैं ।
(३३) अब तक कितने ही हाथों में यह बात देखने को मिली है। कि जिन हाथों में विवाह रेखा साफ तौर पर बुध क्षेत्र पर दिखाई देती है। उनमें बहुत से मनुष्य अविवाहित ही रह जाते हैं और बहुत कम संख्या में ऐसे भी व्यक्ति मिलते हैं कि जिनके हाथों में विवाह रेखा का अभाव | होते हुए भी एक के स्थान पर दो-दो विवाह तक करते देखे गये हैं। पामिस्ट तथा हस्त शास्त्र विशेषज्ञ इस स्थान पर अपनी मस्तिष्क दुर्बलता देखकर कुछ हैरान से हो जाते हैं कि उनका कथन असत्य क्यों हुआ जबकि हस्त-रेखा-परिचय की सभी पुस्तकें किसी न किसी रूप में इस विवाह रेखा की समर्थक ही रही हैं। यह बात एक अच्छे प्रेक्षक के मस्तिष्क में उथल-पुथल मचा देती है । जिस कारण उसे रातों नींद नहीं आती । किन्तु विवश है मनुष्य विधि के विधान से, और वहाँ तक पहुँचने की विवशता से अन्त में किसी न किसी गतिविधि द्वारा उसे सन्तोष ही करना पड़ता है फिर भी यह बात उसके हृदय में काँटे के समान हर समय
खटकती रहती है और वह अभ्यासगत उस अपनी पराजय के अन्वेषण | में लगा रहता है। किन्तु अब देखना यही है कि ऐसा क्यों होता है। इसके लिये हस्त प्रेक्षक स्वयं उत्तरदायी है । क्योंकि संसार में कुछ मनुष्य ऐसे भी हैं जोकि किसी प्रकार का प्रेम सम्बन्ध अथवा विवाह किसी से भी करना ही नहीं चाहते और अपनी प्रबल इच्छा शक्ति की प्रखरता से विवाह का समय टाल देते हैं। समय के टल जाने पर अथवा आयु के बढ़ जाने पर या अपने योग्य वर-वधु के न मिलने पर कोई भी स्त्री या पुरुष अविवाहित ही रह सकता है।
इसमें कोई विशेष परेशानी की बात नहीं है । यहाँ आत्मशक्ति की प्रखरता ही प्रबल मानी जायगी जिसके कारण मनुष्य ने प्राकृतिक नियम का उल्लंघन कर दिया है। भारतीय दार्शनिकता में यह बात प्रत्यक्ष रूप से प्रकट कर दी गई है कि समस्त संसार ही नहीं बल्कि यह तमाम सृष्टि चक्र ही किसी की इच्छा शक्ति या आत्म-शक्ति के बल पर चल रहा है । यदि यह इच्छा शक्ति योग द्वारा ब्रह्ममय विलीन कर दी जाय तो प्रत्येक मनुष्य इस सृष्टि चक्र का संचालन करने में यथेष्ट रूप से समर्थ हो सकता है क्योंकि ब्रह्म | से दूसरी वस्तु या ब्रह्म के अतिरिक्त संसार में कुछ भी नहीं है । इसलिये इस ब्रह्ममय इच्छाशक्ति के द्वारा प्रत्येक कार्य कर लेना सम्भव है इसीलिये प्राकृतिक नियम का उल्लंघन करने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता क्यों कर्ता और क्रिया एक ही वस्तु प्रतीत होती है।
(३४) अब तो प्रश्न केवल यही रह जाता है कि मनुष्य के हाथ सुन्दर, साफ और स्पष्ट विवाह रेखा के होते हुए, और विवाह की इच् रखते हुए भी, क्यों अविवाहित रह जाता है या फिर यों कहिये कि सः साफ, स्पष्ट रेखा के होते हुए भी उसे विवाह की इच्छा ही उत्पन्न क्यों नहीं होती। मेरी समझ में इसके दो ही कारण ते हैं। प्रथम तो विवाह कोई ऐसी वस्तु नहीं कि जिसका उपचार किसी के प्रेम द्वारा न हो सके अर्थात् वह मनुष्य अपने विवाह के समय को किसी प्रेयसी के प्रेम पाश में अपने को बाँधकर अपनी हादिक इच्छाओं तथा वासनाओं की तृप्ति करके टाल रहा हो यदि वासना तृप्ति का प्रत्यक्ष रूप न भी हो तो भी कोई न कोई और कुछ न कुछ बात अवश्य ही हृदय को आकर्षित करने के लिये प्रेममय अवश्य ही पाई जायगी।
इस प्रकार कोई भी मनुष्य अपने अभीष्ट की सिद्धि को प्राप्त कर अपने मनोवांछित फल को पा लेता है अथवा हृदय रेखा के टूट जाने पर या किसी और दोष के उत्पन्न हो जाने पर कोई भी व्यक्ति किसी प्रतिज्ञा के अन्र्तगत अपनी प्रेयसी या प्रियतम से धोखा खाकर दूरस्थल पर उस समय की बाट में जबकि प्रेम ने परिचय देना है याद कर-करके उसके विचारों में प्रतिच्छाया को सजीव प्रतिमा का आभास लेकर वास्तविक विवाह के | समय को टाल देता है और दोनों दीन से गये पाण्डे, हलुआ रहे न भाण्डे' की कहावत को चरितार्थ कर-करके पछताता है ।
(३५) दूसरी बात साथ में विशेष रूप से ध्यान देने योग्य यह है कि प्रेक्षक विवाह रेखा पर जिन खड़ी रेखाओं को सन्तान रेखा समझकर सन्तान होना निश्चित करता है। कभी-कभी अवरोध रेखाओं के रूप में प्रकट होकर विवाह रेखा का विरोध करती हैं। विवाह रेखा की बढ़ती हुई अग्रगति को रोकने वाली रेखा तथा ऊपर से नीचे तक काटने वाली रेखाएँ विवाह या प्रेम सम्बन्ध का विरोध करती हैं।
(३५) दूसरी बात साथ में विशेष रूप से ध्यान देने योग्य यह है कि प्रेक्षक विवाह रेखा पर जिन खड़ी रेखाओं को सन्तान रेखा समझकर सन्तान होना निश्चित करता है। कभी-कभी अवरोध रेखाओं के रूप में प्रकट होकर विवाह रेखा का विरोध करती हैं। विवाह रेखा की बढ़ती हुई अग्रगति को रोकने वाली रेखा तथा ऊपर से नीचे तक काटने वाली रेखाएँ विवाह या प्रेम सम्बन्ध का विरोध करती हैं।
ऐसी दशा में मनुष्य न प्रेम कर पाता है और न विवाह ही कर पाता है। इस प्रकार की अवरोध रेखाओं वाले हाथों को देखने से कितने ही हाथों से यह पता चला है कि उनमें से बहुत-सों के न तो प्रेम सम्बन्ध हुए और न विवाह ही हुए और कितने ही हाथों में इन रेखाओं के प्रभाव से विवाह तो न हुए किन्तु प्रेम सम्बन्ध हुए जिनमें कई सफल रहे और कई विफल भी रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक रेखा की गतिविधि देखकर ही प्रेक्षक से बात करनी चाहिये ।
(३६) कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि जिन मनुष्यों के हाथों में जीवन के प्रारम्भ से ही दुहेरी मस्तक या दुहैरी हृदय रेखा होती है वे अविवाहित ही रहते हैं । विचार करने पर पता चला कि दुरी शीष रेखा वाले व्यक्ति दार्शनिक प्रकृति के होते हैं। वे बचपन में चाहे जैसे भी रहे हों समझदार होते ही अपनी प्रगति रेखा को पलटकर आत्मचिन्तन में लग जाते हैं और उनका हृदय संसार की असारता से उदास तथा नीरस हो जाता है इसलिये विवाह नहीं कर पाते । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसके अतिरिक्त जिन हाथों में दुहेरी हृदय रेखा होती है वे बड़े ही हिम्मती तथा मजबूत होते देखा गया है ऐसे व्यक्ति बड़े-बड़े पहलवान तथा डाकू आदि भी होते हैं जोकि अपनी शक्ति तथा ताकत को स्थिर रखने के लिये तथा दूसरों को नीचा दिखाने तथा पराजित करने के लिये विवाह बन्धन से दूर रहकर कसरत आदि कर शरीर को हृष्ट तथा पुष्ट रखते है ।
(३७) जिन मनुष्यों के हाथों में विवाह रेखा सुन्दर, साफ तथा स्पष्ट होती है वे तभी अविवाहित रह जाते हैं जबकि यह रेखा हृदय रेखा के नीचे प्रजापति क्षेत्र पर अथवा दो हृदय रेखा के बीच में स्थित हो। इस प्रकार की विवाह रेखा किसी भी ग़रीब या अमीर के हाथ में समान प्रभाव रखती है, यह बात कई हाथों को देखकर निर्धारित की गई है । मैंने देखा है कि उन गरीब और अमीर दोनों ही आदमियों के विवाह नहीं हुए यद्यपि आयु काफी से ज्यादह व्यतीत हो चुकी है फिर भी विचारणीय बात यही है कि उन दोनों के प्रेम सम्बन्ध दो-तीन स्त्रियों से रहे हैं। ऐसे व्यक्ति वारोजगार कमाते खाते पीते होने पर, विवाह की इच्छे रखते हुए भी पाणिग्रहण संस्कार से सदैव वंचित रहते हैं ।
(३८) जिन हाथों में वरुण-चन्द्र तथा शुक्र क्षेत्रों से आकर भाग्य रेखा में लय हो जाने वाली प्रभाविक रेखाएँ होती हैं तो पामिस्ट तुरन्त किसी शुभ विवाह की सूचना देने से पहले ही खुशी से फूल जाता है। किन्तु वास्तव में निरीह ही ऐसी बात नहीं है । क्योंकि मैंने देखा है कि इनमें से ऊर्ध्वमुख रेखाएँ किसी का प्रेम प्रदर्शित करती हैं । यह प्रेम केवल स्त्रीपुरुष का ही न होकर, पुस्तकों, चित्रों, दस्तकारी, प्राकृतिक छटा, बनउपवन विहार, पशु पक्षी की लड़ाई देखने तथा जल में नौका विहार आदि से भी हो सकता है । विशेषकर वरुण या नेपच्यून अथवा चन्द्र क्षेत्र से आने वाली प्रभाविक रेखा जो कि भाग्य रेखा में लय होकर मस्तक रेखा पर ठहर जाती है उतम कोटि के कवियों तथा लेखकों के हाथों में देखने में आती है और शुक्र से आने वाली रेखाएँ उच्च कोटि के संगीतज्ञों तथा नर्तकों या नर्तकियों के हाथ में पाई जाती है। यही रेखाएँ नीचोन्मुख होने पर किसी बीमारी की सूचना देती हैं अथवा बदनामी कराती हैं।
(३९) ये उर्ध्वमुख प्रभाविक रेखाएँ जितनी सुन्दर, साफ, स्पष्ट । तथा निर्दोष होंगी मनुष्य उतना ही मिलनसार, सरस, सहृदय, परोपकारी, | दयालु, दानी तथा धार्मिक प्रवृत्ति का होगा । वरुण क्षेत्र से आने वाली रेखा के प्रभाव से मनुष्य पढ़ा-लिखा, समझदार, प्रभावशाली, इज्जतदार तथा सर्व साधारण में आदरणीय समझा जाता है और विशेष कला कृत्तियों द्वारा एक न एक दिन अवश्य ही यशस्वी होता है। देखा है ऐसे
व्यक्ति दुहेरी मस्तक रेखा के होने पर तथा समकोण अँगूठे के होने निरामिष रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य ब्रत का पालन कर प्रत्येक अपने पराउ प्रेम बन्धन से दूर रहकर विवाह नाम की वस्तु से भी घृणा करते हैं कि यह नियम दो-चार प्रतिशत भी लागू नहीं होता बल्कि सहस्त्रों में एक-दो पर अवश्य ही लागू होता है ।
(४०) विवाह रेखा के शुभाशुभ लक्षण तथा उससे सम्बन्धित रेखाओं का प्रभाव यथा स्थान वर्णन कर दिया गया है। जिसके सहा मनुष्य की प्रसन्नता-अप्रसन्नता, उन्नति-अवनति, यश-अपयश, उत्थान पतन आदि पर करीब-करीब पूर्ण प्रकाश डाला जा चुका है और हाथ में अंकित दूसरे चिन्हों के अनुसार भी विवाह तथा प्रेम सम्बन्धों द्वारा प्राप्त घन-दौलत, यश-अपयश, कलह आदि पर भी यथा स्थान प्रकाश डाला। जायगा। यह नियम क्रमानुसार ही करना पड़ा है । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । पाठक दोनों प्रकार के पाठ्यक्रमों को मिलाकर अपने विवाह तथा प्रेम सम्बन्ध, सम्बन्धी उद्देश्यों की पूर्ति सहज ही कर सकते हैं। फिर भी यहाँ यह बात दोहरानी अत्यन्त आवश्यक समझते हैं कि जिन मनुष्यों के हाथों में अत्यन्त शुभ तथा नर्दोष विवाह रेखा होती है वे यदि किसी प्रतिज्ञावश अथवा किसी हठ के कारण विवाह नहीं करते तो समय के व्यतीत हो जाने पर ईश्वर प्रदत्त वस्तु को ठुकराकर जीवन में कभी सुख, शान्ति तथा सन्तोष लाभ नहीं कर पाते ।
जिन हाथों में विवाह रेखा होती ही नही अर्थात् ईश्वर ने भाग्य में विवाह नहीं लिखा तो परिस्थिति विशेष के अन्र्तगत विवाह करके पछताते हैं या तो स्त्री मर जाती है या किसी के साथ चली जाती है । ऐसे मनुष्य सदैव वियोग भरा, दुखी तथा उद्विग्नतामय असन्तोषी जीवन व्यतीत करते हैं। उनको जीवन में कभी भी सुख का अनुभव नहीं होता। वे सर्वदा रोते ही रहते हैं ।
विवाह रेखा के नाम से जानी जाने वाली रेखाएं बुध क्षेत्र पर होती हैं। वैसे तो ये रेखाएं विवाह से सम्बन्धी रीति और धर्म मर्यादा को मान्यता नहीं देती हैं। यह तो प्रेम से या किसी विपरीत लिंगी संबंधों को जो कि प्रभावित करे उसे ही स्पष्ट करती है।
विवाह व्यक्ति के जीवन की एक प्रभावशाली और विशिष्ट घटना है, इस रेखा द्वारा यह ज्ञात होता है कि विवाह कब होगा या किसी महिला से घनिष्ट सम्बन्ध कब होगा और कैसा होगा।
विवाह से संबंधित विचार करने हेतु इस रेखा के अलावा अनेक चिह्नों एवं संकेतों का भी विचार करना होता है। विवाह रेखा जो लम्बी हो वही विवाह का सूचक है।
1.ब. एक ही विवाह रेखा होना अधिक शुभ माना जाता है।
1.स. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में एक अतिरिक्त शाखा होने पर पति पत्नी में भिन्नता या मतभेद रहता है।
2.ब. जहां विवाह रेखा एक से अधिक होती है वहां ऊपरी रेखा प्रभावी मानी जाती है।
2.स. चन्द्र पर्वत से जाती हुई भाग्य रेखा विवाह के बाद भाग्योदय करती है।
3.अ. अंगूठा दुबला हो हृदय रेखा में कुछ अलग सा कटापन हो तथा शुक्र मुद्रिका में कटापन हो तो ऐसी स्थिति में हिस्टीरिया जैसी बीमारी होती है तथा काम वासना विवाह के बाद भी पूरी नहीं होती।
3.ब. विवाह रेखा के ठीक नीचे हृदय रेखा पर दोनों ओर तिरछी रेखा होने से व्यक्ति वासना और प्रेम का अर्थ नहीं सम-हजयता तथा इनमें कामातुरता अधिक पायी जाती है।
3.स. यदि विवाह रेखा इतनी लम्बी हो कि सूर्य रेखा को काटे तो व्यक्ति को विवाह से मान मर्यादा, व सम्मान को धक्का लगेगा।
4.अ. यदि कोई शाखा आकर भाग्य रेखा में मिले तो समझना चाहिए कि उसका विवाह हो चुका है।
4.ब. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में छोटी सी समांतर रेखा होने से पति पत्नी का संबंध
कुछ दिनों के लिए विच्छेद हो जाता है, पुनः पूर्ववत स्थिति हो जाती है।
4.स. विवाह रेखा के अंत में क्रास होना अत्यन्त अशुभ है, ऐसी स्थिति में दाम्पत्य
जीवन में कोई अशुभ घटना होती है।
4.ब. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में छोटी सी समांतर रेखा होने से पति पत्नी का संबंध
कुछ दिनों के लिए विच्छेद हो जाता है, पुनः पूर्ववत स्थिति हो जाती है।
4.स. विवाह रेखा के अंत में क्रास होना अत्यन्त अशुभ है, ऐसी स्थिति में दाम्पत्य
जीवन में कोई अशुभ घटना होती है।
5.ब. विवाह रेखा मस्तिष्क रेखा को काटती हुई रूक जाय तो कोर्ट केश होकर विवाह सम्बन्ध खत्म होता है।
5.स. कोई रेखा शुक्र पर्वत से निकल कर भाग्य रेखा के साथ साथ आगे निकल जाय तो निकट सम्बन्धी की लड़की से विवाह होता है।
5.द. यदि कोई रेखा पतली हो और विवाह रेखा को छूती हुई उसके समानान्तर चलती हो तो विवाह के बाद जीवन साथी से बहुत प्रेम होता है।
2. द्वितीय विवाह के विरोधी, उदार, प्रेमी पर अधिकार, भावना संतान सुख।
3. वासना से हानि, यव होने पर मान हानि एवं कारावास।
4. दुर्घटना आदि का भय।
5. दुःखी हृदय, स्वयं को नष्ट करने की चेष्टा, यही चिह्न कुछ आगे मंगल क्षेत्र पर होने से युद्ध क्षेत्र में वीरगति ।
6. विवाह टलने की आशंका, विवाह में बाधाएं।
7. विधवापन, भीषण दुर्घटना, पति लापता।
8. अविवाहित, विवाह न होना।
9. विधवापन के रेखा की पुष्टि।
10. रोका गया विवाह।
11. विवाह में विघ्न बाधायें।
12. विवाह सम्बन्ध में निराशा, विवाह सम्बन्धी कष्ट।
13. सुन्दर स्त्री को देखकर शीघ्र लालायित होना।
14. अचानक भीषण घटना, मृत्यु सम्भावित।
15. प्राण रक्षा।
16. शुक्र पर्वत उच्च होने से यह निशान हो तो कामुक वृति, चारित्रिक दुर्बलता, अनैतिकता एवं अनेक बुराइयां।
17. विवाह से असन्तोष।
18. विवाह रेखा शनि पर क्रास ग चिह्न शुक्र मुद्रिका युक्त किसी स्वार्थ के कारण घटना।
19. निकट सम्बन्धी से विवाह (दोषपूर्ण रवैया के कारण)
20. जीवन भर पुराना प्रेम दिमाग में मौजूद।
21. संतान रेखायें (पौर्वात्य पद्धतिनुसार)
हस्तरेखा में पर्वतो का महत्त्व अधिक है और पर्वतो से निकलने वाली रेखाओ का महत्त्व भी अधिक होता है।
1.अ.हृदय रेखा फीकी तथा चैड़ी, साथ में शुक्र पर्वत से निकलने वाली तथा मंगल अथवा बुध पर्वत को जाने वाली रेखा- भौतिक प्रेम विषय वासना।
1.ब.शुक्र पर्वत से निकलने वाली रेखा द्वारा हृदयरेखा, जीवनरेखा, मस्तिष्करेखा तथा विवाहरेखा को काटती हुई- विवाह सम्बन्धी कष्ट।
1.स.बृहस्पति पर्वत के नीचे आरम्भ होकर समरूप में हो तथा साथ में शुक्र पर्वत पर एक क्रास- - एकमात्र प्रेम।
2.अ.बृहस्पति पर्वत के नीचे शाखापुंज, एक शाखा शुक्रपर्वत को जाये- सुखद प्रेम।
2.ब.मस्तिष्क रेखा से शाखापुंज सहित निकलने वाली हृदय रेखा जो नीचे शुक्र पर्वत की ओर पहुंचे- विवाह विच्छेद।
2.स. हृदय रेखा शाखापुंज सहित उदय, जिसकी शाखा पहली और दूसरी उंगली की ओर च-सजयती हो, साथ में रेखाहीन बृहस्पति पर्वत तथा बिना किसी चिन्ह अथवा रेखा का साधारण चन्द्र पर्वत- अभावात्मक प्रेम।
3.अ.मस्तिष्क रेखा से बहुत दूर तक दोनों रेखायें शाखा हीन- प्रेम हीन जीवन।
3.ब.हृदय रेखा पर सफेद धब्बे- प्रेम के मामले में असफलता।
3.स.मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा के साथ जाती हुई- घातक प्रेम।
4.अ.सीधे बृहस्पति क्षेत्र से आ रही हो और हृदय रेखा से मिल जाने वाली मस्तिष्क रेखा- एक ही के प्रति प्रेम।
4.ब.शुक्र पर्वत से निकल रही रेखा मस्तिष्क, जीवन, हृदय तथा विवाह रेखायें काटती हुई- विवाह सम्बन्धी कष्ट।
4.स.भाग्य रेखा, हृदय रेखा को काटते समय जंजीरदार- प्रेम, कष्ट।
5.अ.शुक्र पर्वत तथा हृदय रेखा के मध्य में शाखापंुज- तलाक।
5.ब.सूर्य रेखा, विवाह रेखा द्वारा कटी हुई- अनुपयुक्त विवाह के कारण सामाजिक स्थिति की अनिष्ठा।
5.स.विवाह रेखा टूटी हुई- सम्बन्ध विच्छेद अथवा तलाक।
6.अ.विवाह रेखा शाखापुंज पर समाप्त और हृदय रेखा की ओर -हजयुकती हुई- तलाक की
द्योतक है।
6.ब.विवाह रेखा, बृहस्पति पर्वत पर शाखापुंजदार- सगाई टूटना।
6.स.सूर्यरेखा को छूती हुई नीचे की ओर एक शाखा- अनमेल विवाह।
7.अ.स्वास्थ्य रेखा पर तारक चिन्ह दूसरी उंगली के तीसरे पर्व पर तारक (तारा)चिन्ह। निकृष्ट हृदय रेखा बिना शाखापुंज - सन्तानहीनता।
7.ब.शुक्र तथा चन्द्र पर्वत पर स्टार होने से - रोमांसपूर्ण प्रेम और प्रेमी के साथ पलायन, यदि हाथ की रेखायें निकृष्ट हों- प्रेम के मामलों में अस्वाभाविक मनोवृत्तियां, अस्थिरता।
7.स.बृहस्पति- पर्वत पर क्रास- सुखी विवाह।
8.अ.बृहस्पति- पर्वत पर एक नक्षत्र- आकांक्षा तथा प्रेम की पूरी सन्तुष्टि।
8.ब.बृहस्पति- पर्वत एक नक्षत्र - श्रेष्ठ विवाह।
8.स.शनि- पर्वत पर एक क्रास - सन्तानोंत्पत्ति की असमर्थता।
9.अ.शनि- पर्वत पर क्रास के साथ- 2 शुक्र- पर्वत पर भी क्रास का चिन्ह- सुखांत प्रेम।
9.ब.शुक्र- पर्वत के अंगूठे के दूसरे पर्वं के बहुत समीप नक्षत्र- विवाह अथवा ’अवैध प्रेम सम्बन्ध’ जो व्यक्ति की सारा जीवन दुःखमय बनाये रखेगा।
9.स.जीवन रेखा अंगूठे के पास स्थिर विशेषकर यदि स्वास्थ्य तथा मस्तिष्क रेखायें नक्षत्र द्वारा जुड़ी हुई हों- सन्तानोत्पत्ति की अक्षमता।
10.अ.जीवन रेखा से मंगल पर्वत (बृहस्पति के नीचे) को जा रही किरण- युवावस्था के प्रतिकूल प्रेम जो कष्ट देवे।
10.ब.शुक्र पर्वत अथवा जीवन रेखा से किसी प्रमुख रेखा को द्वीप के साथ उपर्युक्त रेखा चाहे मध्यम हो- यह कष्ट तलाक देनेवाले व्यक्ति को गत जीवन में हुआ होगा।
10.स.मणिबन्ध- पहला वलय कलाई मंे ऊँचा और बीच में काफी उभरा हुआ- जनन क्रियाओं में कष्ट विशेषकर सन्तानोंत्पत्ति में।
11.अ.हृदय रेखा अपनी सामान्य स्थिति से नीचे स्थित भावहीनता ।
11.ब.हृदय रेखा जितनी लम्बी तथा बृहस्पति पर्वंत में जितनी दूर तक यह हो- उतना ही स्थिर और आदर्श प्रेम।
11.स.हृदय रेखा, बृहस्पति पर्वत के बजाए शनि- पर्वत के नीचे से उदित- कामुकता भरा प्रेम।
12.अ.हृदय रेखा कमजोर तथा निकृष्ट और हाथ के सिरे पर समाप्त होने वाली- सन्तान का न होना।
12.ब.हृदय रेखा में उदति तथा शनि क्षेत्र तक पहुंचने तथा यकायक हट जाने वाली गौण रेखा- अनुपयुक्त प्रेम।
12.स.भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें- प्रेम जिसका अन्त विवाह से भी न हो।
13.अ.जीवन रेखा के साथ चल रही और मंगल पर्वत को जा रही रेखा प्रेम सम्बन्ध में स्त्री अधिक स्थिर स्वभाव।
13.ब.शुक्र पर्वत के बहुत अन्दर, मंगल को उठ रही रेखा- किसी व्यक्ति से उस स्त्री का सम्बन्ध होगा और वह उससे दूर होता चला जायेगा।
13.स.हृदय रेखा को जा रही सीधी रेखा जीवन रेखा को जिस स्थान पर काट रही हो वहाँ शाखापंुज का होना- सुखहीन विवाह, तलाक तक हो सकता है।
14.अ.सीधी हृदय रेखा को जा रही रेखा पर द्वीप- सुखहीन विवाह सम्बन्ध के परिणाम गम्भीर यहां तक कि लज्जाजनक रहे हैं या रहेंगे।
14.ब.जीवन रेखा को काटती हुई और विवाह रेखा को पहुंचती हुई किरण जिस व्यक्ति के हाथ में हो उसे तलाक।
नितिन कुमार पामिस्ट
विवाह व्यक्ति के जीवन की एक प्रभावशाली और विशिष्ट घटना है, इस रेखा द्वारा यह ज्ञात होता है कि विवाह कब होगा या किसी महिला से घनिष्ट सम्बन्ध कब होगा और कैसा होगा।
विवाह से संबंधित विचार करने हेतु इस रेखा के अलावा अनेक चिह्नों एवं संकेतों का भी विचार करना होता है। विवाह रेखा जो लम्बी हो वही विवाह का सूचक है।
विवाह रेखा के गुण और दोष की संपूर्ण जानकारी
1.अ. जब कोई रेखा सारे हाथ को काटकर विवाह रेखा का स्पर्श करे या काट दे तो विवाह टूट जाता है।1.ब. एक ही विवाह रेखा होना अधिक शुभ माना जाता है।
1.स. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में एक अतिरिक्त शाखा होने पर पति पत्नी में भिन्नता या मतभेद रहता है।
2.अ. यदि विवाह रेखा कनिष्ठा की ओर मुड़ी होगी तो व्यक्ति विवाह के पक्ष में नहीं होता या फिर अविवाहित रहता है।
2.ब. जहां विवाह रेखा एक से अधिक होती है वहां ऊपरी रेखा प्रभावी मानी जाती है।
2.स. चन्द्र पर्वत से जाती हुई भाग्य रेखा विवाह के बाद भाग्योदय करती है।
3.अ. अंगूठा दुबला हो हृदय रेखा में कुछ अलग सा कटापन हो तथा शुक्र मुद्रिका में कटापन हो तो ऐसी स्थिति में हिस्टीरिया जैसी बीमारी होती है तथा काम वासना विवाह के बाद भी पूरी नहीं होती।
3.ब. विवाह रेखा के ठीक नीचे हृदय रेखा पर दोनों ओर तिरछी रेखा होने से व्यक्ति वासना और प्रेम का अर्थ नहीं सम-हजयता तथा इनमें कामातुरता अधिक पायी जाती है।
3.स. यदि विवाह रेखा इतनी लम्बी हो कि सूर्य रेखा को काटे तो व्यक्ति को विवाह से मान मर्यादा, व सम्मान को धक्का लगेगा।
4.अ. यदि कोई शाखा आकर भाग्य रेखा में मिले तो समझना चाहिए कि उसका विवाह हो चुका है।
4.ब. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में छोटी सी समांतर रेखा होने से पति पत्नी का संबंध
कुछ दिनों के लिए विच्छेद हो जाता है, पुनः पूर्ववत स्थिति हो जाती है।
4.स. विवाह रेखा के अंत में क्रास होना अत्यन्त अशुभ है, ऐसी स्थिति में दाम्पत्य
जीवन में कोई अशुभ घटना होती है।
4.ब. विवाह रेखा के ऊपरी भाग में छोटी सी समांतर रेखा होने से पति पत्नी का संबंध
कुछ दिनों के लिए विच्छेद हो जाता है, पुनः पूर्ववत स्थिति हो जाती है।
4.स. विवाह रेखा के अंत में क्रास होना अत्यन्त अशुभ है, ऐसी स्थिति में दाम्पत्य
जीवन में कोई अशुभ घटना होती है।
5.स. कोई रेखा शुक्र पर्वत से निकल कर भाग्य रेखा के साथ साथ आगे निकल जाय तो निकट सम्बन्धी की लड़की से विवाह होता है।
5.द. यदि कोई रेखा पतली हो और विवाह रेखा को छूती हुई उसके समानान्तर चलती हो तो विवाह के बाद जीवन साथी से बहुत प्रेम होता है।
2. द्वितीय विवाह के विरोधी, उदार, प्रेमी पर अधिकार, भावना संतान सुख।
3. वासना से हानि, यव होने पर मान हानि एवं कारावास।
4. दुर्घटना आदि का भय।
5. दुःखी हृदय, स्वयं को नष्ट करने की चेष्टा, यही चिह्न कुछ आगे मंगल क्षेत्र पर होने से युद्ध क्षेत्र में वीरगति ।
6. विवाह टलने की आशंका, विवाह में बाधाएं।
7. विधवापन, भीषण दुर्घटना, पति लापता।
8. अविवाहित, विवाह न होना।
9. विधवापन के रेखा की पुष्टि।
10. रोका गया विवाह।
11. विवाह में विघ्न बाधायें।
12. विवाह सम्बन्ध में निराशा, विवाह सम्बन्धी कष्ट।
13. सुन्दर स्त्री को देखकर शीघ्र लालायित होना।
14. अचानक भीषण घटना, मृत्यु सम्भावित।
15. प्राण रक्षा।
16. शुक्र पर्वत उच्च होने से यह निशान हो तो कामुक वृति, चारित्रिक दुर्बलता, अनैतिकता एवं अनेक बुराइयां।
17. विवाह से असन्तोष।
18. विवाह रेखा शनि पर क्रास ग चिह्न शुक्र मुद्रिका युक्त किसी स्वार्थ के कारण घटना।
19. निकट सम्बन्धी से विवाह (दोषपूर्ण रवैया के कारण)
20. जीवन भर पुराना प्रेम दिमाग में मौजूद।
21. संतान रेखायें (पौर्वात्य पद्धतिनुसार)
विवाह कब होगा कैसे पता करे ?
हृदय रेखा के निकट विवाह रेखा होने से जातक का विवाह 15 से 19 वर्ष में होगा। यदि यह रेखा बुध क्षेत्र के मध्य में हो तो 20 से 27 वर्ष में तथा उससे अधिक ऊपर की ओर होने से 28 से 38 के उम्र में विवाह का योग
होता है। परन्तु इसका पूर्ण निर्णय भाग्य रेखा और जीवन रेखा को देखकर ही किया जा सकता है।
वैवाहिक जीवन का स्वरूप कैसा होगा ?
हस्तरेखा में पर्वतो का महत्त्व अधिक है और पर्वतो से निकलने वाली रेखाओ का महत्त्व भी अधिक होता है।
1.अ.हृदय रेखा फीकी तथा चैड़ी, साथ में शुक्र पर्वत से निकलने वाली तथा मंगल अथवा बुध पर्वत को जाने वाली रेखा- भौतिक प्रेम विषय वासना।
1.ब.शुक्र पर्वत से निकलने वाली रेखा द्वारा हृदयरेखा, जीवनरेखा, मस्तिष्करेखा तथा विवाहरेखा को काटती हुई- विवाह सम्बन्धी कष्ट।
1.स.बृहस्पति पर्वत के नीचे आरम्भ होकर समरूप में हो तथा साथ में शुक्र पर्वत पर एक क्रास- - एकमात्र प्रेम।
2.अ.बृहस्पति पर्वत के नीचे शाखापुंज, एक शाखा शुक्रपर्वत को जाये- सुखद प्रेम।
2.ब.मस्तिष्क रेखा से शाखापुंज सहित निकलने वाली हृदय रेखा जो नीचे शुक्र पर्वत की ओर पहुंचे- विवाह विच्छेद।
2.स. हृदय रेखा शाखापुंज सहित उदय, जिसकी शाखा पहली और दूसरी उंगली की ओर च-सजयती हो, साथ में रेखाहीन बृहस्पति पर्वत तथा बिना किसी चिन्ह अथवा रेखा का साधारण चन्द्र पर्वत- अभावात्मक प्रेम।
3.अ.मस्तिष्क रेखा से बहुत दूर तक दोनों रेखायें शाखा हीन- प्रेम हीन जीवन।
3.ब.हृदय रेखा पर सफेद धब्बे- प्रेम के मामले में असफलता।
3.स.मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा के साथ जाती हुई- घातक प्रेम।
4.अ.सीधे बृहस्पति क्षेत्र से आ रही हो और हृदय रेखा से मिल जाने वाली मस्तिष्क रेखा- एक ही के प्रति प्रेम।
4.ब.शुक्र पर्वत से निकल रही रेखा मस्तिष्क, जीवन, हृदय तथा विवाह रेखायें काटती हुई- विवाह सम्बन्धी कष्ट।
4.स.भाग्य रेखा, हृदय रेखा को काटते समय जंजीरदार- प्रेम, कष्ट।
5.अ.शुक्र पर्वत तथा हृदय रेखा के मध्य में शाखापंुज- तलाक।
5.ब.सूर्य रेखा, विवाह रेखा द्वारा कटी हुई- अनुपयुक्त विवाह के कारण सामाजिक स्थिति की अनिष्ठा।
5.स.विवाह रेखा टूटी हुई- सम्बन्ध विच्छेद अथवा तलाक।
6.अ.विवाह रेखा शाखापुंज पर समाप्त और हृदय रेखा की ओर -हजयुकती हुई- तलाक की
द्योतक है।
6.ब.विवाह रेखा, बृहस्पति पर्वत पर शाखापुंजदार- सगाई टूटना।
6.स.सूर्यरेखा को छूती हुई नीचे की ओर एक शाखा- अनमेल विवाह।
7.अ.स्वास्थ्य रेखा पर तारक चिन्ह दूसरी उंगली के तीसरे पर्व पर तारक (तारा)चिन्ह। निकृष्ट हृदय रेखा बिना शाखापुंज - सन्तानहीनता।
7.ब.शुक्र तथा चन्द्र पर्वत पर स्टार होने से - रोमांसपूर्ण प्रेम और प्रेमी के साथ पलायन, यदि हाथ की रेखायें निकृष्ट हों- प्रेम के मामलों में अस्वाभाविक मनोवृत्तियां, अस्थिरता।
7.स.बृहस्पति- पर्वत पर क्रास- सुखी विवाह।
8.अ.बृहस्पति- पर्वत पर एक नक्षत्र- आकांक्षा तथा प्रेम की पूरी सन्तुष्टि।
8.ब.बृहस्पति- पर्वत एक नक्षत्र - श्रेष्ठ विवाह।
8.स.शनि- पर्वत पर एक क्रास - सन्तानोंत्पत्ति की असमर्थता।
9.अ.शनि- पर्वत पर क्रास के साथ- 2 शुक्र- पर्वत पर भी क्रास का चिन्ह- सुखांत प्रेम।
9.ब.शुक्र- पर्वत के अंगूठे के दूसरे पर्वं के बहुत समीप नक्षत्र- विवाह अथवा ’अवैध प्रेम सम्बन्ध’ जो व्यक्ति की सारा जीवन दुःखमय बनाये रखेगा।
9.स.जीवन रेखा अंगूठे के पास स्थिर विशेषकर यदि स्वास्थ्य तथा मस्तिष्क रेखायें नक्षत्र द्वारा जुड़ी हुई हों- सन्तानोत्पत्ति की अक्षमता।
10.अ.जीवन रेखा से मंगल पर्वत (बृहस्पति के नीचे) को जा रही किरण- युवावस्था के प्रतिकूल प्रेम जो कष्ट देवे।
10.ब.शुक्र पर्वत अथवा जीवन रेखा से किसी प्रमुख रेखा को द्वीप के साथ उपर्युक्त रेखा चाहे मध्यम हो- यह कष्ट तलाक देनेवाले व्यक्ति को गत जीवन में हुआ होगा।
10.स.मणिबन्ध- पहला वलय कलाई मंे ऊँचा और बीच में काफी उभरा हुआ- जनन क्रियाओं में कष्ट विशेषकर सन्तानोंत्पत्ति में।
11.अ.हृदय रेखा अपनी सामान्य स्थिति से नीचे स्थित भावहीनता ।
11.ब.हृदय रेखा जितनी लम्बी तथा बृहस्पति पर्वंत में जितनी दूर तक यह हो- उतना ही स्थिर और आदर्श प्रेम।
11.स.हृदय रेखा, बृहस्पति पर्वत के बजाए शनि- पर्वत के नीचे से उदित- कामुकता भरा प्रेम।
12.अ.हृदय रेखा कमजोर तथा निकृष्ट और हाथ के सिरे पर समाप्त होने वाली- सन्तान का न होना।
12.ब.हृदय रेखा में उदति तथा शनि क्षेत्र तक पहुंचने तथा यकायक हट जाने वाली गौण रेखा- अनुपयुक्त प्रेम।
12.स.भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें- प्रेम जिसका अन्त विवाह से भी न हो।
13.अ.जीवन रेखा के साथ चल रही और मंगल पर्वत को जा रही रेखा प्रेम सम्बन्ध में स्त्री अधिक स्थिर स्वभाव।
13.ब.शुक्र पर्वत के बहुत अन्दर, मंगल को उठ रही रेखा- किसी व्यक्ति से उस स्त्री का सम्बन्ध होगा और वह उससे दूर होता चला जायेगा।
13.स.हृदय रेखा को जा रही सीधी रेखा जीवन रेखा को जिस स्थान पर काट रही हो वहाँ शाखापंुज का होना- सुखहीन विवाह, तलाक तक हो सकता है।
14.अ.सीधी हृदय रेखा को जा रही रेखा पर द्वीप- सुखहीन विवाह सम्बन्ध के परिणाम गम्भीर यहां तक कि लज्जाजनक रहे हैं या रहेंगे।
14.ब.जीवन रेखा को काटती हुई और विवाह रेखा को पहुंचती हुई किरण जिस व्यक्ति के हाथ में हो उसे तलाक।