अंगूठा (The Thumb) - हाथ की सम्पूर्ण सक्रियता का आधार अंगूठा है। किसी बारीक तिनके को पकडना हो या किसी पेड़ की विशाल डाली को, दोनों में से कोई भी काम अंगूठे के बिना सम्भव नहीं है। यदि हाथ की सम्पूर्ण रचना से अंगूठे को निकाल दिया जाये, तो हाथ की कार्यकुशलता और क्षमता अति न्यून हो जायेगी। अंगूठे के बिना केवल अंगुलियां कोई कार्य नहीं कर सकतीं। अंगूठे का आधार पाकर ही अंगुलियां अपनी कार्यकुशलता का जादुई करिश्मा दिखाती हैं। अंगूठे के व्यावहारिक महत्त्व के कारण प्राचीन काल में अनेक धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएं प्रचलित थीं।
अभी लेख प्रकाशित किया जा रहा है चित्र बाद में प्रकाशित किये जाएंगे।
इन मान्यताओं का रोचक वर्णन प्रस्तुत करते हुए कीरो ने लिखा है कि “प्रत्येक युग में अंगूठे ने केवल हाथ में ही नहीं, संसार-भर में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। यह सर्वविदित है कि पूर्वी देशों में जब बन्दी को बन्दीकर्ता के सम्मुख लाया जाता था, तो यदि वह अपने अंगूठे को अपनी अंगुलियों से ढांप लेता था, तो यह समझा जाता था कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया है और वह दया की भीख मांग रहा है। इजराइल के लोग युद्ध में अपने शत्रुओं के अंगूठे काट दिया करते थे। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । जिप्सी लोग अपनी भविष्यवाणियां करने में अंगूठे की परीक्षा को बहुत महत्त्व देते थे। हमने स्वयं उनको अंगूठे की बनावट, उसकी स्थिति और उसके कोण की स्थिति की परीक्षा करके गणनाएं करते देखा है।
भारत में हस्तपरीक्षा की विविध पद्धतियां प्रयोग की जाती थीं, परन्तु कोई भी पद्धति हो अंगूठे की परीक्षा को प्रमुख स्थान दिया जाता था। चीन के निवासी भी हस्तविज्ञान में विश्वास रखते हैं और हस्तपरीक्षा केवल अंगूठे से ही करते है। यह भी एक मनोरंजक बात है कि ईसाई धर्म में भी अंगूठे को एक सम्मानपूर्ण नामका दी गयी है। धर्मानुसार अंगुठा ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। अगूठे के प्रथम अगली सम्बोधित करके इसे जीसस क्राइस्ट माना गया है, जो ईश्वर की इच्छा को व्यक्त करता है। अंगूठा ही हाथ की ऐसी अंगुली है, जो अपनी स्थिति के आधार पर अन्य अंगलियों से पृथक स्वतन्त्रता रखता है और उनकी क्रिया के बिना सीधा खडा हो सकता है। ग्रीक चर्च के पादरी या बिशप अंगूठे व उसके बाद वाली अंगुली के द्वारा आशीर्वाद दिया करते थे। भारतीय धर्मशा । भी अंगूठे के मूल में ब्रह्मतीर्थ की स्थापना की गयी है और अंगूठे को भगवान शिव का निवास स्थान साक्षात् कैलास पर्वत माना गया है। अंगुठे की महत्ता कारण इसे विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। 'हस्त संजीवन में अग के विभिन्न नामों का वर्णन किया गया है -
मायाग्नहः यथायोगमगुठः क्वचिदुच्यते।।
अर्थात् अंगूठे के नाम - अंगुल, हस, शिव, राजा, चतुःप्रिय, भोगी, गणपति, विष्णु, मेरु, सूर्य व अक्षयवट हैं। कहीं-कहीं इसे 'मायाग्रह' भी कहा गया है।
धार्मिक, सामाजिक और पारम्परिक सन्दर्भो में हाथ के अंगूठे का अपना विशिष्ट महत्व है। शरीर रचना विज्ञान एवं चिकित्साशास्त्रों में भी अंगुठे की संरचना को मस्तिष्क से सम्बद्ध बताया गया है। मस्तिष्क विकास की प्रक्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव अंगूठे की संरचना को प्रभावित करता है। मस्तिक के एक क्षेत्र विशेष के परिवर्तनों का प्रभाव अंगूठे की संरचना पर विशेष रूप से पड़ता है। मस्तिष्क के इस क्षेत्र को अंगूठा केन्द्र (Thumb Center of the Brain) कहते हैं। अंगूठा केन्द्र और अंगूठे की रचना के शरीर रचना शास्त्रीय महत्व को समझने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है -
1.चिम्पांजी (Chimpanzee) या वनमानुष का हाथ प्रायः मनुष्य के हाथ की तरह विकसित होता है, किन्तु उसका अंगूठा अविकसित होता है। वनमानुष की अंगुलियां विकसित रहती हैं, किन्तु अंगूठा अत्यधिक निर्बल और बहुत छोटा होता है। यही कारण है कि उसका बौद्धिक विकास नहीं होता।
2. पक्षाघात (लकवा), डाउनसिण्ड्रम (Mongolism) और बुद्धि-दुर्बलता के लक्षण अंगूठे में विद्यमान महीन रेखाओं और उसके गठन में स्पष्टतः पहचाने जा सकते हैं।
3. अंगूठे के प्रथम पर्व में विद्यमान महीन रेखाएं इस प्रकार संयोजित होती हैं कि एक हाथ की समानता रखने वाला कोई अन्य दूसरा हाथ संसार में किसी भी हालत में नहीं हो सकता, अर्थात् एक आदमी के अंगूठे का निशान संसार के किसी अन्य व्यक्ति के अंगूठे के निशान से किसी भी हालत में मेल नहीं खा सकता यही कारण है कि अति महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर की जगह अंगूठे के निशान लिये जाते हैं।
4. अपराध विज्ञान अंगूठे में विद्यमान कुछ महीन धारियों को अपराधी दत्तियों के साक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है। डॉ. फ्रेंसिस गाल्टन ने अपने विश्लेषणों और प्रयोगों के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि अपराधियों की पहचान उनके अंगूठे के लक्षणों से की जा सकती है।
5.नवजात शिशु अंगूठे को हथेली के भीतर की ओर मोड़कर अपनी अंगुलियों के अन्दर बन्द किये रहता है, किन्तु जन्म के बाद जैसे-जैसे बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय होता जाता है, वैसे-वैसे उसका हाथ खुलने लगता है। और दो-तीन दिन के बाद अंगूठा अंगुलियों के अन्दर की ओर न मुड़कर स्वतन्त्र रूप से बाहर की ओर तन जाता है। यह स्थिति फिर आजीवन बनी रहती है। यदि जन्म के सात दिन बाद भी बच्चे का अंगूठा अंगुलियों के भीतर बन्द रहे, तो यह समझा जाता है कि बच्चा शारीरिक व मानसिक रूप से अस्वस्थ और निर्बल है। अत्यधिक शारीरिक या मानसिक निर्बलता की स्थिति में या मृत्यु के समय अंगूठा अंगुलियों के भीतर की ओर मुड़ जाता है।
6. उत्कृष्ट और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले लोगों के अंगूठे स्वतन्त्र और सुगठित होते हैं, किन्तु आत्महीन, परावलम्बी, आत्मविश्वास से रहित और आत्मगौरव की कमी वाले लोगों के अंगूठे निर्बल होते हैं। जो व्यक्ति अंगुलियों के भीतर अपने अंगूठे को दबाये रहते हैं, वे बहुत ही निकृष्ट कोटि के होते हैं। उनमें नैतिकता, आत्मविश्वास, आत्मगौरव व आत्मसम्मान का अभाव होता है।
7. शारीरिक, मानसिक आघात, गम्भीर ऑपरेशन, हार्टफ़ल, अत्यधिक रक्तस्राव या किसी अन्य कारण से जब रोगी मूर्छा (Coma) की स्थिति में रहता है, तो उस समय उसकी शारीरिक व वैचारिक शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यदि अंगूठा निष्क्रिय और चेतनाविहीन न हुआ हो, तो रोगी के बचने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। चिकित्सा विज्ञान में अंगूठे को चेतना का केन्द्र समझा जाता है।
अंगूठे की इन्हीं सब विशेषताओं के कारण हस्तरेखा विज्ञान में अंगूठे के अध्ययन को प्रमुखता दी गयी है। विश्व का हस्तरेखा विज्ञान अंगूठे को मानसिक वृत्तियों के साथ सम्बद्ध करने की धारणा के विषय में एकमत है। अंगूठे का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है-
1. अंगूठे के पर्व ।
2. अंगूठे एवं तर्जनी के बीच का कोण
3. अंगूठे के विभिन्न प्रकार
4. अंगूठे में विद्यमान चिह्न एवं रेखाएं
1. अंगूठे के पर्व
अंगूठे की सम्पूर्ण रचना तीन अलग-अलग हड़ियों से मिलकर होती है। ऊपरी हड़ी, जिसमें नाखून होता है, प्रथम पर्व बनाती है। दूसरी बीच की हड्डी से द्वितीय पर्व बनता है। प्रथम और द्वितीय पर्व हथेली से बाहर संलग्न रहते हैं, किन्तु तृतीय पर्व हथेली के साथ संयुक्त रहता है। इसलिए अंगुलियों के पर्वो की तरह अंगूठे के दो ही पर्व हथेली से बाहर दिखाई देते हैं, तीसरा पर्व शुक्र क्षेत्र में धंसा रहता है।
प्रथम पर्व (इच्छा शक्ति)
द्वितीय पर्व (तर्क शक्ति)
तीसरा पर्व (प्रेम एवं अनुराग)
चित्र-76 : अंगूठे के पर्व है, जैसा कि चित्र-76 में दिखाया गया है।
अंगूठे का प्रथम पर्व जातक की इच्छाशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। प्रथम पर्व के सुगठित और विकसित होने से जातक के अन्तःकरण में प्रबल इच्छाशक्ति मौजूद रहती है और वह अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हुए सफलता प्राप्त करता है। यदि यह क्षेत्र लम्बा व संकरा हो, तो इच्छाशक्ति की अतिवादी प्रवृत्तियां परिलक्षित होती हैं, जिससे जातक की इच्छाएं अनन्त हो जाती हैं, किन्तु वह उनको व्यावहारिक स्वरूप नहीं दे पाता। प्रथम पर्व का अधिक बड़ा होना, बेढंगा होना, स्वेच्छाचारिता, निर्दयता, हठवादिता, झगड़ालू प्रवृत्ति, विचारशक्ति की निर्बलता, क्रूरता एवं कठोरता का लक्षण है।
अंगूठे का दूसरा पर्व तर्कशक्ति या युक्तिसंगतता के गुणों को प्रकट करता है। यदि अंगूठे का दूसरा पर्व पतला या अपेक्षाकृत लम्बा हो, तो जातक अपने सभी काम बहुत सोच-समझकर युक्तिसंगत ढंग से करता है। उसकी कार्यशैली में तार्किक विचारों की प्रधानता होती है। वह परम्पराओं की तुलना में तर्क और विवेक को महत्त्व देता है। जब तक तर्क की कसौटी में कोई तथ्य सही नहीं उतरता, तब तक जातक उसे स्वीकार नहीं करता। इस पर्व का अत्यधिक पतला होना भी ठीक नहीं है। इस क्षेत्र के अत्यधिक पतले और आड़ी रेखाओं से युक्त होने से जातक की प्रवृत्ति छिद्रान्वेषण की हो जाती है। वह हर बात में मीन-मेख निकालता रहता है और अनावश्यक धारणाओं को अपने अन्तःकरण में बैठाता रहता है। परिणामतः उसका चिन्तन ईष्र्या व द्वेष की भावनाओं से ग्रसित हो जाता है। बात-बात पर शंकाएं करना, तर्क-वितर्क व कुतर्क करना उसकी आदत हो जाती है। द्वितीय पर्व के मोटे व अधिक मांसल होने से तर्कशक्ति कमजोर होती है।
अंगूठे का तीसरा पर्व प्रेम और अनुराग का क्षेत्र है। इसके पुष्ट और सामान्य विकसित होने से प्रेम की पवित्रता और नैतिकता का प्रभाव रहता है। अत्यधिक विकसित होने से प्रेम और वासना के मामले में अतिवादी वृत्तियों को आश्रय मिलता है, जिससे जातक दुनिया की परवाह किये बगैर अपने प्रेम-पथ पर अग्रसर होता है। वह कभी-कभी अपनी भावनाओं की अति भी कर डालता है। इस पर्व के अधिक लम्बे होने से वासनाओं की वृद्धि और कामुकता की प्रबलता के लक्षण उभरते हैं। इसी प्रकार तीसरे पर्व के अविकसित व निर्बल होने से जातक के जीवन में सरसता और प्रेम का अभाव रहता है।
अंगूठे का प्रथम पर्व इच्छाशक्ति, दूसरा पर्व तर्कशक्ति और तीसरा पर्व प्रेम एवं अनुराग की प्रवृत्तियों के लक्षणों को प्रकट करता है। इन सभी पर्वो का विकास उनकी लम्बाई, सुगठन और मांसलता पर निर्भर करता है। अंगूठे के किसी एक पर्व का अन्य पर्वो की अपेक्षा अधिक विकसित होना, उस पर्व के गुणों की प्रधानता को प्रकट करता है। जो पर्व सर्वाधिक विकसित होता है, वही सम्पूर्ण अंगूठे को नियन्त्रित करता है। उदाहरण के लिए यदि मध्य पर्व सर्वाधिक विकसित हो, तो तर्कशक्ति की प्रधानता के कारण इच्छाशक्ति दब जाती है और जातक शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता खो देता है। प्रथम पर्व की प्रधानता से उचित-अनुचित का विचार किये बिना आंख मूंदकर काम में लग जाने की कमजोरी जातक का स्वभाव बन
जाती है।
पर्वो का असामान्य विकास : अंगूठे के प्रथम पर्व के असामान्य रूप से विकसित होने पर जातक के कार्य इच्छाशक्ति से प्रेरित होते हैं। उसके कार्यों में युक्तिसंगतता, संयम और सन्तुलन का अभाव होता है। इसी प्रकार पहला पर्व छोटा और तीसरा अधिक विकसित होने से जातक के मन में कामवासना का ज्वार उमड़ता रहता है। वह इच्छाशक्ति के अभाव में अपने आपको नियन्त्रित करने में असफल रहता है और शीघ्र ही पतित या पथभ्रष्ट हो जाता है। ऐसे पुरुष या महिलाएं वासना के क्षेत्र में बदनाम हो जाते हैं।
दूसरे पर्व के अत्यधिक मोटे और मांसल होने से जातक की बौद्धिक क्षमता न्यून हो जाती है और वह पाशविक प्रवृत्तियों से ग्रसित हो जाता है। पतला एवं लम्बा पर्व विचार सन्तुलन की कमी को प्रकट करता है। ऐसे जातक जिनके अंगूठे का दूसरा पर्व पतला और लम्बा होता है, वे किसी भी विषय को समझ तो सकते हैं किन्तु स्नायुशक्ति की कमजोरी के कारण विचार करते-करते घबरा जाते हैं। उनके निर्णय भावुकतापूर्ण होते हैं। दूसरे पर्व का अत्यधिक लम्बा होना आत्मविश्वास की कमी को प्रकट करता है। ऐसे लोग अपने तर्कों से अपने आपको ही भ्रमित करते रहते हैं। एक तर्क को लेकर कुछ दूर चलते हैं और दूसरे तर्क के मन में आ जाने से उलटे पांव उसी जगह वापस लौट आते हैं, जहां से पहले चले थे। अपने तर्कों से अपने आपको उठाना उनकी मजबूरी बन जाती है। दूसरे पर्व के छोटे होने से तर्कशक्ति कमजोर और अत्यधिक छोटे होने से बौद्धिक क्षमता का अभाव होता है।
अंगूठे के तृतीय पर्व के असामान्य रूप से विकसित होने पर जातक की प्रवृत्तियों में कामवासना की प्रधानता रहती है। कामान्धता के कारण उसे लोकनिन्दा का सामना करना पड़ता है। यदि यह पर्व अत्यधिक छोटा या अविकसित हो, तो जातक स्वार्थी, विवेकशून्य, कामान्ध व नीरस स्वभाव का होता है।
2. अंगूठे एवं तर्जनी के बीच का कोण
अंगूठे एवं तर्जनी या करतल के बीच के कोण की स्थिति के अनुसार अंगूठे के निम्नलिखित पांच प्रकार हो सकते हैं-
1. हथेली से चिपका हुआ अंगूठा
2. 30-40 डिग्री का कोण बनाता हुआ अंगूठा
3. 45-80 डिग्री का कोण बनाता हुआ अंगूठा
4. समकोण अंगूठा
5. अधिक कोण अंगूठा
हथेली से चिपका हुआ अंगूठा बहुत ही निम्न कोटि के अविकसित हाथों में होता है। चिम्पांजी के हाथों का अंगूठा इस कोटि का अच्छा उदाहरण है। ऐसे लोग, जो बौद्धिक रूप से अविकसित, किन्तु शारीरिक रूप से खूब मोटे-तगड़े होते हैं, उनके अंगूठे छोटे, निर्बल और हथेली से चिपके हुए रहते हैं। जिन लोगों के हाथों में अंगूठा हथेली से चिपका रहता है, उनका जीवन पशुवत् व आदिम वृत्तियों से भरा रहता है। इनका बौद्धिक विकास अति न्यून होता है। ऐसे व्यक्ति सोचने-समझने की क्षमता के अभाव में जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़े रहते हैं। आवेगात्मक स्थितियों में ऐसे व्यक्ति आक्रामक, निर्दयी तथा क्रूर कर्म करने वाले व हिंसक बन जाते हैं।
30-40 डिग्री का कोण बनाने वाला अंगूठा पहले की अपेक्षा अधिक विकसित रहता है। इस श्रेणी के अंगूठे का जातक चालाक होता है। अपनी अल्प विकसित बुद्धि के बल पर समाज में ऊपर उठने का प्रयास करता है, किन्तु बौद्धिक कुशलता के अभाव में अपनी योजनाओं में असफल होता रहता है। उसे लोकनिन्दा का विशेष भय नहीं होता। वह उलटे-सीधे विचारों को कार्य रूप देने का प्रयास करता है।
चित्र-79 : 45-80 डिग्री का कोण बनाता हुआ अंगूठा (बुद्धिमत्ता)
45-80 डिग्री का कोण बनाने वाला अंगूठा तमोगुणी प्रवृत्तियों का द्योतक होता है। इस अंगूठे को न्यून कोण अंगूठा भी कहते हैं। न्यून कोण अंगूठे की लम्बाई बहुत अधिक नहीं होती। यह मुश्किल से तर्जनी के मूल से थोड़ा अधिक ऊपर तक जाता है। इस अंगूठे के जातक असभ्य, मिथ्यावादी, क्रूर और धोखाधड़ी करने वाले होते हैं। इनके अनेक शत्रु होते हैं। अपनी अज्ञानता, कठोर वाणी व चालाकी की वजह से ये सबकी उपेक्षा के पात्र बनते हैं। अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए बड़े-से-बड़ा अपराध कर डालना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होती। फुजूलखर्ची, दुर्व्यसन, अन्धमान्यता, अश्लीलता और उन्मुक्त यौनाचार के ये पक्षधर होते हैं।
समकोण अंगूठा सन्तुलन का प्रतीक है। इसे रजोगुणी वृत्तियों का परिचायक माना जाता है। समकोण अंगूठे वाले जातक कर्मवादी, कार्यकुशल और परिश्रमी होते हैं। इनमें बुद्धि और भावनाओं का सन्तुलन होता है। ऐसे लोग सिद्धान्तप्रिय, सत्यवादी और उच्चादर्शों पर चलने वाले होते हैं। आमतौर पर इन्हें गुस्सा नहीं आता, किन्तु दुष्टों, धोखेबाजों, बेईमानों के प्रति इनकी प्रतिक्रिया अति तीखी होती है। अन्याय का दृढ़तापूर्वक मुक़ाबला करना इनका स्वभाव होता है। जीवन के अनेक क्षेत्रों में शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का प्रयोग करना और संयम के साथ, सही समय पर शत्रु को पराजित करने की कला में ये बहुत माहिर होते हैं। अपनी तरफ से ये किसी भी व्यक्ति का अहित नहीं चाहते, किन्तु यदि अकारण इन्हें कोई परेशान करे, तो इनका क्रोध अनियन्त्रित हो जाता है। समकोण अंगठे के जान शत्रुओं के प्रबल शत्रु और मित्रों के परम हितैषी होते हैं। इन्हें जीवन के विवि क्षेत्रों में यश और उत्कृष्ट सफलता मिलती है।
अधिक कोण अंगूठा सात्त्विक गुणों का परिचायक है। इस तरह के अंगठेत जातक परिष्कृत विचारों के होते हैं। इनका जीवन बुद्धिवाद के दायरे से नि होता है। ये आध्यात्मिक विचारधारा से ओत-प्रोत होते हैं। जीवन के लक्ष्य व जीवन की प्रगति आदि विषयों पर इनके विचार अलग तरह के होते हैं। अधिक कोण अंगूठे के जातक उच्च कोटि के कलाकार, धर्मप्रचारक व दार्शनिक होते हैं। अपने स्वभाव की मधुरता और सौजन्य से सभी को आकृष्ट करने की अदभूत क्षमता ऐसे लोगों में होती है। इनका खान-पान, रहन-सहन तो बहुत साधारण कोटि का होता है, किन्तु विचारों में ये उच्च कोटि के होते हैं। दया, क्षमा, करुणा उज्ज्वल प्रेम व परोपकार की भावनाए इनके कार्य-व्यवहार में चरितार्थ होते देखी जा सकती हैं। ऐसे लोग किसी के नियन्त्रण में नहीं रह सकते। ये स्वशासी और आत्मनियन्त्रित होते हैं।
3. अंगूठे के विभिन्न प्रकार
हाथ के अंगूठों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है।
1. अंगूठे की लम्बाई
2. अंगूठे की स्थिति
3. अंगूठे का लचीलापन
4. अंगूठे की आकृति
(1) अंगूठे की लम्बाई : अंगूठे की लम्बाई की माप के लिए अंगूठे को करतल से चिपकाते हुए तर्जनी के पर्वो से उसकी तुलना करनी चाहिए। यदि अंगूठा तर्जनी के मूलस्थान के नीचे रह जाये, तो अंगूठा छोटा समझना चाहिए, यदि वह तीसरे पर्व को स्पर्श करे, तो सामान्य लम्बाई और अगर दूसरे पर्व को स्पर्श करे, तो लम्बा समझना चाहिए। लम्बाई के अनुसार अंगूठे के दो भेद हो सकते हैं।
(अ) लम्बा अंगूठा : लम्बा अंगूठा बौद्धिक क्षमता का परिचायक है। लम्बे अंगूठे वाले लोगों के कार्यों में बुद्धि का प्रभाव देखने को मिलता है। ऐसे लोग अपनी बौद्धिक क्षमता के बल पर अपने प्रतिस्पर्धी को परास्त कर देते हैं। इनकी नीति ‘सांप मरे, न लाठी टूटे होती है। आक्रामक व विध्वंसात्मक कार्यों में लम्बे अंगूठे वाले प्रत्यक्षतः संलग्न नहीं होते। बड़ी योजनाओं का निर्माण करना व सोच-समझकर नये-नये प्रगति के रास्तों को खोजने की क्षमता इनमें होती है। लम्बा अंगूठा बौद्धिक क्षमता और प्रबल इच्छाशक्ति का प्रतीक है। इसलिए इस तरह के अंगूठे वाले जातक आत्मनिर्भर, स्वेच्छाचारी, प्रभुतासम्पन्न, कर्मठ और सूझबूझ (Understanding) वाले होते हैं। ये अपनी प्रबल इच्छाशक्ति और बौद्धिक क्षमता के बल पर जीवन के विविध क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं।
इनके जीवन एवं कार्यों में भावनाओं की अपेक्षा बुद्धि की प्रधानता होती है। विश्वसनीयता व द्धान्तप्रियता इनके श्रेष्ठ गुण हैं। समाज में इन्हें गौरव और प्रतिष्ठा मिलती है।
यदि लम्बा अंगूठा अशुभ लक्षणों से युक्त, अत्यधिक मोटा, सख्त व बेढंगा हो, तो जातक हठी और स्वेच्छाचारी हो जाता है। वह सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने में भी नहीं हिचकता। ऐसे जातक अपनी बौद्धिक एवं शारीरिक क्षमता का उपयोग विध्वंसक और समाज-विरोधी गतिविधियों में करते हुए कुख्यात होते हैं, किन्तु उनका प्रभाव अपने क्षेत्र पर बहुत अधिक होता है। आतंकवादी, डाकू, जालसाज व तस्कर इसी श्रेणी में आते हैं। | अत्यधिक लम्बा अंगूठा, जो तर्जनी के दूसरे पर्व का स्पर्श करता हो, वह तीव्र इच्छाशक्ति का बोध कराता है। ऐसी स्थिति में जातक अपनी व्यावहारिक परिस्थितियों का विचार किये बिना इच्छाशक्ति के बल पर कार्य करता है। महात्मा गांधी का अंगूठा इसी कोटि का था। यही कारण है कि उन्होंने परिस्थितियों की विषमता पर ध्यान न देते हुए, अपने सिद्धान्तों को इच्छाशक्ति के बल पर व्यावहारिक रूप दिया और सत्य व अहिंसा के द्वारा असम्भव कार्य को सम्भव कर दिखाया। गांधी की यह जीत उनके लम्बे अंगूठे की जीत थी।
(ब) छोटा अंगूठा : छोटा अंगूठा कमज़ोर इच्छाशक्ति को प्रकट करता है। छोटा अंगूठा बुद्धि-विकास और तर्कसंगतता की कमजोरी का भी बोधक होता है। इसलिए यदि छोटा अंगूठा अशुभ लक्षणों से युक्त हो, तो जातक के जीवन में तर्कसंगत एवं उचित-अनुचित के निर्णय का अभाव होता है। वह आवेश में आकर बिना विचार किये कार्य करता है। बुद्धि के अभाव में वह दूसरों का दास बना रहता है। छोटा और मांसयुक्त, मोटा व बेढंगा अंगूठा पाशविक वृत्तियों का परिचायक है। ऐसे लोग हठधर्मी, क्रूरकर्मी एवं विवेकरहित होते हैं। यदि अंगूठा छोटा और निर्बल हो, तो जातक में कार्यक्षमता व इच्छाशक्ति की कमी होती है। ऐसे लोग अपने जीवन में निराशा, असफलता व अर्थाभाव का सामना करते हैं। उद्योगरहित व आलस्यपूर्ण जीवन जीने के आदी लोगों के अंगूठे छोटे और कमजोर होते हैं। ऐसे लोग स्वयं प्रभावशून्य होते हैं और दूसरों का प्रभाव या दासता स्वीकार कर काम करते हैं।
(2) अंगूठे की स्थिति : अंगूठे की करतल के साथ संलग्नता को ध्यान में रखते हुए अंगूठे के तीन स्वरूप देखने को मिलते हैं।
(अ) उच्च स्थित अंगूठा
(व) मध्य स्थित अंगूठा
(स) निम्न स्थित अंगूठा
(अ) उच्च स्थित अंगूठा : उच्च स्थित अंगूठा करतल में तर्जनी अंगुली के मूलस्थान के निकट स्थित रहता है। उच्च स्थित अंगूठा अविकसित मानसिक योग्यता का परिचायक है। बन्दर या लंगूरों के हाथ की बनावट मानव के हाथों जैसी होती है, किन्तु लंगूर का अंगूठा करतल के ऊपरी हिस्से में तर्जनी के मूल के पास संलग्न रहता है। यह अंगूठा करतल से प्रायः चिपका रहता है और तर्जनी के साथ 30-40 डिग्री का कोण बनाता है। ऐसे जातक आदिम वृत्तियों से ग्रसित एवं स्वार्थी प्रवृत्ति के होते हैं। इनका बौद्धिक विकास बहुत कम मात्रा में होता है। ऐसा अंगूठा तामसी प्रवृत्तियों की वृद्धि करता है।
(ब) मध्य स्थित अंगूठा : मध्य स्थित अंगूठा सन्तुलित विचारशक्ति और व्यावहारिक बौद्धिक क्षमता का प्रतीक है। ऐसे अंगूठे के स्वामी अपने कार्यों में न तो भावुक होते हैं और न ही जड़ प्रकृति के, बल्कि इनकी कार्यनीति मध्यमार्गी होती है। आसपास के वातावरण, समय और समाज के साथ सामञ्जस्य स्थापित करने की क्षमता इनमें होती है। ऐसे लोग अपने उद्देश्यों के प्रति जागरूक और सदा सक्रिय रहते हैं। संकल्पशक्ति की प्रबलता, व्यावहारिकता और भौतिकतावादी दृष्टि इन्हें यथार्थवादी बना देती है। ये विश्वसनीय मित्र, स्पष्टवादी और संयमी होते हैं। मध्य स्थित अंगूठा राजसी प्रवृत्तियों की वृद्धि करता है।
(स) निम्न स्थित अंगूठा : अंगूठा जब हथेली के निचले हिस्से में संलग्न रहता है, तो शुक्र क्षेत्र का विकास अधिक होता है। इसके अलावा अंगूठे का संचालन करते समय शुक्र क्षेत्र विशेष रूप से सक्रिय होता रहता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में अंगठा शुक्र क्षेत्र के निचले हिस्से में संलग्न रहता है और उसका सम्पूर्ण वजन वजन शुक्र क्षेत्र से संयोजित होता है।इसीलिए निम्न स्थित अंगूठे वाले हाथों में शुक्र क्षेत्र अधिक विकसित और प्रभावशाली रहता है। एक तरह से सम्पूर्ण हाथ का स्वरूप शुक्र प्रधान हाथों की आकृति जैसा दिखाई देता है।
निम्न स्थित अंगूठे के हाथ वाले जातक शुक्र क्षेत्र के गुणों की प्रधानता रखते हैं। उनकी शारीरिक रचना स्वस्थ और आकर्षक होती है। भावना की प्रधानता और आदर्श प्रेम उनके जीवन के मूल तत्त्व होते हैं। इनकी रुचियां परिष्कृत, स्निग्ध, मृदु और सरसतापूर्ण होती है। दूसरों का दुःख देखकर दुखी होना, भावुकता में उचित-अनुचित भूलकर कार्य करना, उदारतापूर्वक जरूरतमन्दों की सहायता करना इनका स्वभाव होता है। ऐसे लोग प्रेम की उत्कृष्ट भावना की बहुत क़द्र करते हैं। यदि इनके प्रति कोई थोड़ी-सी भी संवेदना प्रकट करे, तो उसके लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन्हें प्रेम और भावना के बल पर बहुत आसानी से जीता जा सकता है।
यदि निम्न स्थित अंगूठा लचीला और पीछे की ओर मुड़ने वाला हो, तो भावुकता की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि जातक सांसारिक छल, कपट, वैर, द्वेष, घमण्ड, चालाकी, बेईमानी से ऊबकर वैराग्य ग्रहण कर लेता है। अविकसित या अशुभ लक्षण वाले अंगूठे आलस्य, प्रमाद व कामुकता की वृद्धि करते हैं और जातक को विषयवासनाओं का पुतला बना देते हैं।
3. अंगूठे का लचीलापन : अंगूठे के प्रथम एवं द्वितीय पर्व दो अलग-अलग
हहियों से बने होते हैं। इन हड्डियों के जोड़ों (Joints) पर गांठें उभरी रहती हैं। हड़ियों के जोड़ एवं गांठे अंगूठे के लचीलेपन को निर्धारित करते हैं। जब जोड़ की गांठे नरम या लचीली होती हैं, तो अंगूठे का प्रथम एवं दूसरा पर्व बाहर की ओर आसानी से धनुषाकार होकर घूम जाता है, किन्तु जोड़ों के सख्त होने पर अंगूठा तना हुआ सीधा रहता है। लचीलेपन के गुण के अनुसार अंगूठे के दो स्वरूप होते हैं—पहला लचकदार अंगूठा, दूसरा सख्त अंगूठा।
(अ) लचकदार अंगूठा : अंगूठे के प्रथम जोड़ के नरम या लचीला होने से अंगूठा पीछे की ओर आसानी से धनुषाकार होकर घूम जाता है। ऐसे अंगूठे का जोड़ बहुत लचकदार होता है। लचकदार अंगूठे वाले जातकों का स्वभाव भी लचकदार होता है। अपने किसी निर्णय पर ये बहुत समय तक स्थिर नहीं रह सकते। अवसर एवं समय के रुख के अनुसार इनके विचार बदलते रहते हैं। फुजूलखर्ची, अस्थिरता व भावुकता इनके स्वभाव में होती है। ऐसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनके निर्णय कब बदल जायें, इसका कोई पता नहीं है। गिरगिट की तरह रंग बदलना इनके जीवन की अभिन्न सचाई है, किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि वे दगाबाज़ और बेईमान होते हैं। दरअसल, ऐसे लोग भावुकता और उदारतावश दूसरों के प्रभाव में आकर अपने निर्णय बदल देते हैं, किन्तु अपने इस बदलाव का दु:ख इन्हें होता है। ऐसे लोग नयी परिस्थितियों व नये व्यक्तियों के साथ आसानी से घुल-मिल जाते हैं, इसलिए
इन्हें कहीं भी परेशानी नहीं होती। दूसरों के गुणावगुणों को भी शीघ्र अपनाना इनका स्वभाव होता है। लचीले अंगूठे वाले जातक जल्दबाज़, कलाप्रेमी, भावुक व सहज होते हैं। प्रेम-प्रदर्शन, आकर्षण तथा काल्पनिक विचारों में निपुण होते हैं। घर, परिवार व राष्ट्र के प्रति इन्हें भावात्मक प्रेम होता है, किन्तु इनमें क्रियात्मक क्षमता और संकल्पशक्ति का अभाव होता है। कई बार बिना सोचे-समझे गलत निर्णय ले लेते हैं और परेशानी में पड़ जाते हैं।
सख्त अंगूठा : सख्त अंगूठे के जोड़ दृढ़ होते हैं। गांठों पर अंगूठा सख्ती के साथ जुड़ा रहता है, वह आसानी से इधर-उधर नहीं मुड़ सकता। अंगूठे की संरचना की तरह ही जातक के विचार भी दृढ़ और स्थिर होते हैं। ऐसे अंगूठे वाले जातक मितव्ययी, कार्यक्षमतासम्पन्न, परिश्रमी और दृढ़निश्चयी होते हैं। परिस्थितियों के सामने लचीले अंगूठे वालों की तरह सिर झुकाना इन्हें नहीं आता। यह सिर कटा तो सकते हैं, किन्तु सिर झुका नहीं सकते। लचीले अंगूठे वाले सिर को बचाने के बजाय सिर को झुका देना उचित समझते हैं। सख्त अंगूठे के जातक बहुत सोच-समझकर कोई क़दम उठाते हैं, हड़बड़ी या जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेते, किन्तु एक बार जिस काम को शुरू करते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। विचारों में बार-बार परिवर्तन इनके स्वभाव के खिलाफ़ है। अपने वचन, अपने कर्तव्य व अपने सिद्धान्त की रक्षा करते हुए ये ख़ुशी-खुशी बलिदान हो जाते हैं, किन्तु अपने लक्ष्यों व सिद्धान्तों के साथ कभी समझौता नहीं करते।
इनका कार्य, इनका लक्ष्य व इनका उद्देश्य ही इनका जीवन होता है। इसलिए अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कभी-कभी ये हठधर्मी बन जाते हैं। अपने कार्य में किसी प्रकार की बाधा इन्हें पसन्द नहीं होती। यदि कोई इनके ध्यान को बंटाने या कार्य में बाधा डालने का प्रयास करे, तो ये क्रोध में बौखला उठते हैं और उचित-अनुचित का मान खो बैठते हैं। । किन्तु शान्त चित्त में सरस, उदार और सहयोगी स्वभाव के होते हैं। दृढ़ अंगूठे वाले लोग वचन के पक्के, विश्वसनीय मित्र, राष्ट्रभक्त, निडर सेनानी, अद्भुत कार्यक्षमतासम्पन्न व दृढ़ निश्चयी होते हैं। इन्हें अपने देश, अपनी जाति एवं अपनी संस्कृति का गर्व होता है। मानव सभ्यता ऐसे ही लोगों की उपस्थिति से बनी है, जिन्हें यह विश्वास था कि जो काम उन्होंने अपने हाथ में लिया है, वे उसे अवश्य पूरा करके रहेंगे। मानव सभ्यता के निर्माणकर्ता दृढ़ अंगूठे वाले आत्मविश्वासी और कर्मठ लोग ही रहे हैं।
अंगूठे की आकृति : अंगूठे की आकृति या बनावट के अनुसार उसके चार भेद हो सकते हैं- (1) सीधा अंगूठा या राजनयिक अंगूठा, (2) गदा के आकार का अंगूठा, (3) पैडल के आकार का अंगूठा तथा (4) कमर के आकार का बीच में से पतला अंगूठा। अंगूठे की आकृति के अनुसार जातक के गुण व स्वभाव में परिवर्तन आता है। इसलिए इन सबका अलग-अलग विश्लेषण प्रस्तुत है।
(अ) सीधा या राजनयिक अंगुठा : सीधा या राजनयिक अंगूठा समान रूप से विकसित होता है। इसके सभी पर्व अच्छी तरह से विकसित होते हैं। यह अपने आधार पर एकदम सीधा खड़ा रहता है। इसकी लम्बाई औसत होती है। यह न तो छोटा होता है और न ही बहुत बड़ा। अपनी सुन्दरता और सन्तुलन में यह अप्रतिम होता है। सीधे अंगूठे वाले जातक गोपनीय और सन्तुलित विचारों के होते हैं। इनके मुंह से निकलने वाला एक-एक शब्द गम्भीर और दूरदृष्टिपूर्ण होता है। इनकी बुद्धि चौकन्नी और तीक्ष्ण होती है। किसी की गलतियों या खूबियों को कम्प्यूटर की तरह ये शीघ्र पकड़ लेते हैं, किन्तु अपने प्रभाव से यह प्रकट नहीं होने देते कि सामने वाले की कमियों को पकड़ लिया गया है। ऐसे लोग बहुत ही मितभाषी (कम बोलने वाले) होते हैं, किन्तु जो भी बोलते हैं, वह गम्भीर और प्रभावोत्पादक होता है। दूसरों के प्रभाव में न आना भी इनकी विशेषता होती है। इनका कार्य और व्यवहार इतना असंगत होता है कि इनके अन्तःकरण की बात को साधारण आदमी समझ नहीं सकता। जिस व्यक्ति से इनकी भयानक दुश्मनी होती है, उससे भी अपने बात-व्यवहार को औपचारिक रूप से इतना ठीक रखते हैं कि वह आदमी समझ नहीं पाता कि यह उसके शत्रु हैं या मित्र? किन्तु अवसर आते ही अपना वैर भंजाने में कोई संकोच नहीं करते। ये किसी को अपने दिल की बात नहीं बताते और हर क़दम फूक-फूककर रखते हैं। समय और आवश्यकता के अनुसार कब, कौन इनका शत्रु या मित्र हो जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता।
(ब) गदा के आकार का अंगूठा : गदा के आकार का अंगूठा उच्च स्थित अंगूठे की श्रेणी का होता है। यह करतल के ऊपरी हिस्से में बृहस्पति के क्षेत्र के नीचे संलग्न रहता है। यह ऊपर की ओर मोटा ओर बेढंगा होता है। नाखून काफ़ी छोटा और नाखून वाला पर्व मांस के मोटे लोथड़े का बना होता है। यह देखने में अनगढ लगता है। गदा के आकार के अंगूठे वाले जातक बौद्धिक रूप से बहुत कमजोर होते हैं। इनमें सोचने-समझने की क्षमता का प्रायः अभाव होता है, किन्तु इनके मन में कोई वैर-द्वेष की भावना आ जाये, तो ये आक्रामक व हिंसात्मक ख अपनाते हैं। ऐसे लोगों का स्वभाव निष्ठुरतापूर्ण और हठी होता है। क्रोध की स्थिति में ये पागलों की तरह आक्रामक और हिंसक हो जाते हैं। आगे-पीछे की परवाह किये बगैर ये जघन्य हत्याएं भी कर डालते हैं। कभी-कभी क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति या दूसरों के बहकावे में आकर भी अपराध करते हैं, किन्तु स्वयं योजना बनाकर अपराध करने की क्षमता इनमें नहीं होती। इनके अधिकांश कार्य तात्कालिक आवेश की प्रतिक्रिया मात्र होते हैं। रहन-सहन और कार्य-व्यवहार में भी ऐसे लोग रूखे, बेढंगे और अशिष्ट होते हैं। अनेक दुर्व्यसनों एवं विडम्बनाओं से इनका जीवन ग्रसित होता है।
(स) पैडल के आकार का अंगूठा : पैडल जैसे अंगूठे को देखकर कई बार गदा के आकार के अंगूठे का भ्रम होता है, किन्तु इन दोनों की संरचना और आकार में बहुत अन्तर होता है। गदा के आकार का अंगूठा बीच में पतला और नाखून के पर्व में काफ़ी विस्तृत होता है। इसका नाखून बहुत छोटा होता है, किन्तु पैडल जैसा अंगूठा ऊपर से नीचे तक बराबर मोटाई वाला होता है। इसका नाखून भी बड़ा होता है। अंगूठे की मोटाई अंगुलियों की तुलना में काफ़ी अधिक होती है। इस अंगूठे के मध्य की गाठ समतल होती है। पैडल जैसा अंगूठा भारी और मांसल होता है।
पैडल जैसे अंगूठे के जातक गदा जैसे अंगूठे वालों की तरह हिंसक और निर्दयी नहीं होते, किन्तु अपने कार्य-व्यवहार में दृढ़ होते हैं। अंगूठे के दूसरे पर्व के मोटे होने से तर्कशक्ति की तीक्ष्णता कम हो जाती है और व्यवहार में भावुकता का समावेश होने लगता है। यही कारण है कि जातक की क्रूर प्रवृत्तियां दब जाती है और हठवादिता दृढता का रूप ले लेती है, जिससे वह अपने उद्देश्यों के प्रति दढप्रतिज्ञ बन जाता है। पैडल के आकार का अंगूठा बहुत अच्छा नहीं समझा जाता, किन्तु गदा के आकार की अपेक्षा श्रेष्ठ है, क्योंकि यह गदा जैसे अंगठे का विकसित और परिमार्जित रूप है।
(4) बीच में पतला अंगूठा : बीच में पतली कमर के आकार का अंगठा राजनयिक अंगूठे के गुणों से समानता रखता है। पतली कमर के आकार के अंगठे वाले जातक अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए तर्क या चालाकी का सहारा लेते हैं। किन्तु राजनयिक अंगूठे वाले कूटनीति और विचारशक्ति के माध्यम से सफलता प्राप्त करते हैं। अंगू दूसरे पर्व के पतला होने से जातक में नीतिकुशलता और व्यावहारिक चतुरता का गुण आ जाता है। इन गुणों की वजह से जातक अपने व्यावहारिक जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त करता है। ऐसे लोग दूसरों के मनोविज्ञान को समझने वाले होते हैं, दूसरे लोगों की मनपसन्द बातें करके अपना काम निकालने में ये बहुत माहिर होते हैं। किस व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार रखा जाये, इन्हें अच्छी तरह मालूम होता है।
कमर के आकार के अंगूठे वाले जातक शिष्ट, मृदुभाषी और शान्त प्रकृति के होते हैं। अपने व्यवहार से किसी को दुखी या असन्तुष्ट करना इन्हें पसन्द नहीं है, किन्तु अकारण मुसीबत खड़ी करने वाले व अभद्र लोगों को ये अच्छी तरह सबक सिखा देते हैं। इनकी लड़ाई आमने-सामने नहीं होती, किन्तु इनका वैर दूसरों को काफ़ी महंगा पड़ता है। अपने प्रतिद्वन्द्वी या दुश्मन को नीति-कुशलता के साथ शान्तिपूर्ण ढंग से परास्त करने में इन्हें मजा आता है। ऐसे लोग जीवन, व्यापार, विज्ञान, कला, राजनीति के क्षेत्रों में सर्वत्र सफल और लोकप्रिय होते हैं। यदि अंगूठे का दसरा पर्व अत्यधिक पतला होगा, तो जातक की स्नायु शक्ति
में कमजोरी आ जायेगी और वह वैचारिक निर्णय के समय घबरा जायेगा। यह लक्षण शुभ नहीं है।
4. अंगूठे में विद्यमान चिह्न एवं रेखाएं
यव चिह्न : हिन्दू पामिस्ट्री में अंगूठे के जोड़े में विद्यमान यवों (Islands) को अतिश्रेष्ठ लक्षण माना गया है। यव या जौ की रचना दो लहरदार रेखाओं के सम्मिलन या एक रेखा के बीच में फूट जाने (फैल जाने) से होती हैं। अंग्रेजी में यव को आइलैण्ड कहते हैं। हिन्दी में जौ, द्वीप या यव कहते हैं। जौ के दाने की तरह यह बीच में फैला हुआ और किनारों में संकरा रहता है। कई यवों के एक साथ होने से यव माला बनती हैं।
‘नारदीय संहिता' में इसकी महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है-
अमत्स्यस्य कुतो विद्या अयवस्य कुतो धनम्।।
अर्थात् मत्स्य (मछली) चिह्न के बिना व्यक्ति विद्वान् नहीं हो सकता और यव चिह्न के बिना धन या ऐश्वर्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है। हस्त संजीवन' का मत है।
अंगुष्ठोर्थ्य यवपूर्णः सदा पुंसा यशस्करः।
अंगूठे में यव चिह्न होने से व्यक्ति सदा यशस्वी और धनवान् रहता है। अंगूठे के दोनों जोड़ों में यव चिह्न मौजूद हो सकते हैं। अंगूठे के मध्य और मूल में विद्यमान यवों का अलग-अलग फल होता है। अंगूठे के मध्य में यब होने से विद्या, ख्याति और ऐश्वर्य का ज्ञान करना चाहिए-
विद्या ख्यातिविभूतिः स्याद्यवे ह्यगुष्ठमध्यगे। (हस्तसंजीवन)
अङ्गुष्ठयवैरायाः सुवन्तोऽङगुष्ठमूलगैश्च यवैः। (सामुद्रिक रहस्यम्)
अंगुष्ठोदर मध्यस्थे यवे भोगी सदा सुखी। बहुनामथवैकस्य यवस्य फलतुल्या।। (जैन सामुद्रिक)
अंगूठे के बीच में पाया जाने वाला यव विद्या, ख्याति, धन और ऐश्वर्य का प्रतीक होता है। ऐसा विभिन्न भारतीय विचारकों का मत है। अंगुष्ठ के मध्य के यव से जातक के जन्म के समय की आर्थिक स्थिति का भी परिचय मिलता है। अंगूठे के मध्य में जितने यव मौजूद हों, उतना ही शुभ फल जानना चाहिए, किन्तु एक यव की उपस्थिति से भी समृद्धि और ऐश्वर्य की कमी नहीं होती। इसीलिए जैन सामुद्रिक' में लिखा गया है कि कई यव होने पर भी एक ही यव का फल मिलता है, अधिक यवों का फल अधिक नहीं समझना चाहिए।
अंगूठे के मूल में पाये जाने वाले यवों के विषय में दो मत हैं-‘सामुद्रिक तिलक व ‘प्रयोग पारिजात' आदि ग्रन्थों में अंगूठे के मूल में विद्यमान यव या यवमाला विपुल धन-सम्पदा के स्वामी, राज्यमन्त्री, राजपूजित व्यक्ति होने का लक्षण है, किन्तु ‘विवेक विलास' व 'सामुद्रिक रहस्य' में इन यवों को पुत्रों की संख्या का संकेत माना गया है। अंगूठे के मूल में जितने यव होते हैं, पुत्र-पुत्रियों की कुल संख्या भी उतनी जाननी चाहिए।
अंगूठे का प्रथम पर्व इच्छाशक्ति का परिचायक है और दूसरा पर्व तर्क और नीति-निपुणता का। इन दोनों पर्वो के बीच में जो गांठ (जोड़) पड़ती है, वह इच्छा और निपुणता को सन्तुलित करती है। विद्या, समृद्धि, ख्याति, ऐश्वर्य व धन-प्राप्ति के लिए इच्छा और निपुणता दोनों का होना आवश्यक है। इस सन्तुलन में जो यवचिह्न बनता है, उसे इन्हीं उपलब्धियों का प्रतीक समझना उचित होगा, किन्तु अंगूठे का मूलस्थान तर्क और प्रेम-भावनाओं का सन्धिस्थल है। इस सन्धिस्थल में पायी जाने वाली यवमाला या यवचिह्नों को पुत्रों का प्रतीक समझा जा सकता है। इस यवमाला से जातक के पुत्र-पुत्रियों की आर्थिक व सामाजिक उन्नति का विचार किया जाना उचित होगा, न कि स्वयं जातक की आर्थिक स्थिति का।
अगूठ के यव से जन्म पक्ष का ज्ञान : भारतीय हस्त सामुद्रिक शास्त्र में अगुठे म यवा की उपस्थिति के आधार पर जातक के जन्म मास के पक्ष (शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष) का विचार किया जाता है। ‘हस्त संजीवन' का मत है-
शुक्ल पक्षे जन्म रात्रौ वामांगुष्ठगते पुनः।
कृष्ण पक्षे दिवाजन्म दक्षिणांगुष्ठगैर्यवैः।
विद्धाविद्धविवेकेन पक्षस्य व्यत्ययः क्वचित् ।।
अर्थात बायें अंगूठे में यव चिह्न होने से जातक का जन्म शुक्ल पक्ष में रात्रि के समय होता है और दायें अंगूठे में यव होने से कृष्ण पक्ष में दिन के समय जन्म होना समझा जाना चाहिए। यदि दोनों हाथों में यव मौजूद हो, तो जिस हाथ का चिह्न अधिक स्पष्ट और पूर्ण हो, उसी के अनुसार फल समझना उचित है। कटे हुए, अस्पष्ट व अपूर्ण यव निष्फल होते हैं, किन्तु 'विवेक विलास' के मत में भिन्नता है-
शुक्ल पक्षे दिवाजन्म दक्षिणांगुष्ठगैर्यवैः।।
कृष्णपक्षे नृणाम् जन्म वामांगुष्ठगतैर्यवैः।
अर्थात् बायें अंगूठे ने यव होने से कृष्ण पक्ष में जन्म और दायें अंगूठे में यव होने से शुक्ल पक्ष के दिन में जन्म समझना चाहिए।
उपर्युक्त दोनों ही मत परस्पर विरोधी हैं। इस सन्दर्भ में मेरा अपना अनुभव है कि अनेक व्यक्तियों के दोनों हाथों के अंगूठे में यव पाये जाते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनके किसी भी अंगूठे में यव नहीं रहते। जन्म पक्ष जानने के लिए दोनों ही हाथों का सूक्ष्म निरीक्षण करना आवश्यक है। यदि दोनों अंगूठों में यव मौजूद हों, तो जिस हाथ में वह बिलकुल स्पष्ट दिख रहा हो, उसका विचार करना चाहिए। जिन व्यक्तियों का जन्म शुक्ल पक्ष में होता है, उनके दायें हाथ के अंगूठे का यव अधिक सुस्पष्ट और शुद्ध दिखाई देता है, किन्तु जिनका जन्म कृष्ण पक्ष में होता है, उनके बायें अंगूठे का यव शुद्ध होता है। कटे हुए, अधूरे व अस्पष्ट यवों का विचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे निष्फल और प्रभावहीन होते है। यदि किसी भी अंगूठे में यव चिह्न मौजूद न हो, तो जातक का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ समझना चाहिए।
अंगूठे पर पाये जाने वाले अन्य चिह्न या रेखाएं
प्रथम पर्व पर - व्यभिचारी, कामुकता
दूसरे पर्व पर - लक्ष्य के प्रति दृढ़ता का अभाव, तर्कशक्ति की कमी
2. जाल
प्रथम पर्व पर - जीवन-साथी को खतरा, दुर्घटना
दूसरे पर्व पर - नैतिकता एवं तर्कशक्ति का अभाव, बेईमानी
3. वर्ग
प्रथम पर्व पर - एकाग्रता, कठोरता नैतिकता की कमी
दूसरे पर्व पर - तर्कशक्ति, हठवादिता
4. तारक चिह्न
प्रथम पर्व पर - वैज्ञानिक विषयों में रुचि एवं इच्छाशक्ति
दूसरे पर्व पर - दुर्व्यसन का शिकार, निम्नस्तरीय इच्छाएं, लोभी स्वभाव
5. त्रिकोण
प्रथम पर्व पर - चरम सफलता, लगन
दूसरे पर्व पर - वैज्ञानिक एवं दार्शनिक प्रतिभा। इच्छाओं की पूर्ति एवं सफलता
6. वृत्त (सर्किल)
प्रथम पर्व पर - समृद्धि, वैभव, सुख
दूसरे पर्व पर - अनिर्णय की स्थिति। प्रबल (तीक्ष्ण) तर्कशक्ति
7. धनुषाकार रेखा
प्रथम पर्व पर - इच्छाशक्ति, सफलता
दूसरे पर्व पर - तर्कशक्ति में भावनाओं का प्रभाव
8. लम्बवत् रेखाएं (अधिकतम तीन)
प्रथम पर्व पर - संघर्ष, बाधाएं
दूसरे पर्व पर - नर्वसनैस
9. अधिक संख्या में मौजूद लम्बवत् रेखाएं
प्रथम पर्व पर - सफलता में सन्देह
दूसरे पर्व पर - त्वरित निर्णय न लेने की आदत
10. आड़ी रेखाएं (अधिकतम तीन)
प्रथम पर्व पर - अशुभ संकेत
दूसरे पर्व पर - कूटनीतिक चाल में माहिर
11. अधिक संख्या में मौजूद आड़ी रेखाएं
प्रथम पर्व पर - अशुभ संकेत
दूसरे पर्व पर - तर्कशक्ति और त्वरित निर्णय की क्षमता का अभाव
अंगूठे के चक्र एवं प्रभाव रेखाएं चक्र : चक्र, शंख या सीप अंगूठे के प्रथम पर्व में होते हैं। बायीं ओर झुका। हुआ शंख समृद्धिकारक और शुभ माना जाता है।
नाखून के पास छोटी लम्बवत् रेखा : अंगूठे के प्रथम पर्व में नाखून के पास मौजूद छोटी रेखा विरक्ति की परिचायक है।
जीवन रेखा को स्पर्श करती हुई प्रभाव रेखा : अंगूठे के प्रथम पर्व से निकलकर जीवन रेखा को स्पर्श करती हुई प्रभाव रेखा घातक हथियारों-तलवार आदि से जातक की मृत्यु या भयानक जानलेवा आघात की परिचायक है।
प्रथम पर्व से निकलती हुई दो प्रभाव रेखाएं : अंगूठे के प्रथम पर्व से निकलती हुई दो प्रभाव रेखाएं, जो जीवन रेखा तक जाती हों, समृद्धि और वैभव की परिचायक हैं, किन्तु यदि ये दोनों रेखाएं एक-दूसरे के बहुत क़रीब स्पर्श करती हुई चल रही हों, तो जातक अपना धन लाटरी और सट्टेबाजी में बरबाद करता
है।
दूसरे पर्व से निकलती हुई प्रभाव रेखा : अंगूठे के दूसरे पर्व से निकलकर जीवन रेखा तक जाती हुई रेखा वैवाहिक जीवन में परेशानियों और अस्थिरताओं का संकेत देती है।
नितिन कुमार पामिस्ट