रेखा का टूट जाना | श्रृंखलाबद्ध या जंजीरदार रेखा | फुँदनी | दो रेखाएँ | Hast Rekha Shastra


रेखा का टूट जाना | श्रृंखलाबद्ध या जंजीरदार रेखा | फुँदनी | दो रेखाएँ | Hast Rekha Shastra 


रेखा का टूट जाना | श्रृंखलाबद्ध या जंजीरदार रेखा | फुँदनी | दो रेखाएँ | Hast Rekha Shastra


रेखा का टूट जाना

इसे रेखा खण्डित होना भी कहते हैं। इससे यह समझा जाता है कि व प्रकट होने वाले विषय पर खराब असर पड़ेगा। लेकिन निम्नलिखित स्थितियों में इसका खराब असर बहुत कम हो जायेगा (अ) यदि पास की समानान्तर उस कटाव को भर दे। (ब) अगर टूटी हुई रेखा पर कोई चतुष्कोण हो। (स) जब रेखा के दोनो टूटे हुए सिरे एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं। (द) यदि रेखा ट हुई है तथा उसके सिरे अपने उद्गम की दिशा में हुक का निशान बना रहे है। तो यह अनिष्ट सूचक चिह्न माना जाता है परन्तु चतुष्कोण या भगिनी रेखा इस अनिष्ट को काफी हद तक बचा देते हैं।

श्रृंखलाबद्ध या जंजीरदार रेखा

यह कई जोड़ो के मिलने से जंजीर की तरह दिखती है। यह बल तथा उद्देश्य की निश्चितता की कमी दर्शाती हैं जो अशुभ संकेत कहा जाता है। जीवन रेखा का जंजीरदार होना-लम्बी बीमारी। मस्तिष्क रेखा का जंजीरदार होना-बुद्धि की अस्थिरता, कभी यह कार्य कभी वह कार्य, इच्छाशक्ति की कमी। हृदय रेखा का श्रृंखलाबद्ध होना-चुलबुलापन, प्रेम में असफलता और दु:ख। । भाग्य रेखा का श्रृंखलाबद्ध होना-नौकरी अथवा व्यापार में सफलता का अभाव होनः ।

फुँदनी 

किसी रेखा के अन्त में कई रेखाएँ गुच्छे की तरह निकलती हो तो उसे ‘रेखा फुदनी में खत्म हुई' ऐसा मानते हैं। यह शक्तियों के बिखराव और भ्रष्ट आचरण को प्रकट करती है। चतुष्कोण द्वारा फंदनी के अनिष्ट को दूर किया माना जाता है, यदि वह हुँदनी को घेरे हुए हो।

दो रेखाएँ

किसी व्यक्ति में मस्तिष्क रेखा अथवा भाग्य रेखा दो भी हो सकती हैं। इन्हें भगिनी रेखा (Sister Line) से अधिक शक्तिदायक कहा जाता है।

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