हस्तरेखा शास्त्र में 8वी तरह की भाग्य रेखा | Bhagya Rekha Jyotish Hast Rekha Shastra



ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दस प्रकार की भाग्य रेखा का विवरण | 10 Types Of Fate Line On Hand Palmistry

भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में अष्टम प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।

 हस्तरेखा शास्त्र में 8 वी तरह की भाग्य रेखा | भाग्य रेखा ज्योतिष हस्त रेखा शास्त्र
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हस्तरेखा शास्त्र में 8 वी तरह की भाग्य रेखा | भाग्य रेखा ज्योतिष हस्त रेखा शास्त्र 


अष्टम भाग्य रेखाः--अष्टम प्रकार की भाग्य रेखा वह कहलाती है जो कि नेपच्यून (वरुण) क्षेत्र से आरम्भ होकर (चित्र देखे १) मस्तक रेखा को पार करती हुई हृदय रेखा से निकलकर शनि प्रदेश में प्रविष्ट होती है । अधिकतर इस प्रकार की भाग्य रेखा सहायक भाग्य रेखा के रूप में ही पाई जाती है किन्तु किसी-किसी हाथ में स्वतन्त्र भाग्य रेखा के रूप में भी पाई जाती है।

जिन मनुष्यों के हाय में यह रेखा सुन्दर, साफ, स्पष्ट, गहरी और पतली होकर अपने स्वाभाविक रूप से शनि क्षेत्र पर ठहर जाती है उन मनुष्यों के लिए यह रेखा उनके विद्यार्थी जीवन में अत्यन्त शुभफल प्रदान करती है। ऐसे विद्यार्थी बाल्यकाल में सुस्त तथा उदासीन से रहते हैं फिर भी उनकी कुशाग्रबुद्धि का प्रमाण यदा कदा प्राप्त होता ही रहता है। ऐसे लक्षणों से युक्त मनुष्य अपनी असाधारण प्रतिभा को, अपने माता, पिता तथा इष्ट-मित्र-सम्बन्धियों की साधारण बुद्धि के समझ में न आने के कारण, एक समय तक पूर्ण रूप से विकसित नहीं कर पाते क्योंकि उनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति उनके वास्तविक रूप को न समझकर अपनीअपनी अभिरूचि के अनुसार चलाना चाहते हैं और ऐसे मनुष्य स्वतन्त्र प्रकृति के होने के कारण किसी दूसरे मार्ग पर ही चलना चाहते हैं । 

इसलिए आपसी मनमुटाव, वैमनस्य के रूप में पलटता जाता है जिस कारण उनकी पढ़ाई पूर्ण रूप से विद्यार्थी जीवन में नहीं हो पाती, जिसकी पूति वे अपनी स्वतन्त्र प्रकृति के अनुसार अवकाश पाते ही पूर्ण कर लेते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य अपने प्रारम्भिक जीवन में पूर्ण विद्याध्ययन में सफल नहीं हो पाता वह अपनी अध्ययन परिपाटि को अपनी वृद्धावस्था तक पूर्ण कर सुयश प्राप्त कर लेता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।  ऐसा मनुष्य अच्छा लेखक, सुवक्ता अच्छा दाशिनिक, कलाकार, चित्रकार गायनवाद्य प्रवीण, प्रतिष्ठावान मनुष्य बन जाता है ।

यद्यपि उसको अपने विद्यार्थी जीवन में अनुतीर्ण होकर या घरेलू परिस्थिति के वशीभूत होकर कभी-कभी अपनी पढ़ाई को छोड़ना भी पड़ता है फिर भी वह अपने पुरुषार्थ तथा परायणता के कारण अपनी बुद्धि का विकास किए बिना नहीं रह सकता ऐसा मनुष्य अपने प्रारम्भिक जीवन में स्वजन समुदाय का कृपापात्र रहता है । उसका गार्हस्थ्य जीवन सुखमय होते हुए भी घनतृषित होता है। 

उसके मित्रों की संख्या अधिक होती है जोकि समय-समय पर उसकी सहायता कर हाथ बटाते रहते हैं और वह भी उनकी कृपा का सदा-सदा के लिए स्नेहभाजन रहता है। ऐसे लक्षणों से युक्त मनुष्य को विदेश यात्रा का सुअवसर दूसरी रेखाओं के सहयोग से प्राप्त हो सकता है। यदि यह रेखा लहरदार हो तो मनुष्य के भाग्योदय में भी लहरदार रुकावट आती रहती हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।  द्वीपदार रेखा के होने पर मनुष्य के उत्तरोनर बढ़ते हुए उत्कर्ष में अचानक अड़चन आ जाती हैं।

टूट-टूटकर बढ़ने वाली रेखा प्रदर्शित करती है कि इस मनुष्य के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव के पश्चात् उन्नति होगी, इस रेखा के शृंखलाबद्ध होने पर उस मनुष्य के भाग्योन्नति में एक श्रृंखला जैसी कठिन स्थित का सामना करके आगे बढ़ना होता है । निर्दोष सर्प जिह्वाकर होने से मनुष्य दुतरफा प्रगति समान रूप से कर सकता है।

जिस मनुष्य की वृद्धावस्था सुखमय हो जाए तो समझना चाहिए कि उस मनुष्य ने पूर्व जन्म में बड़े ही शुभ कर्म किए हैं क्योंकि बाल्यावस्था की पीड़ा और कष्ट मनुष्य अपने यौवनावस्था के सुख में सभी भुला देता है और मध्यमावस्था के क्लेश वृद्धावस्था के सुखमय जीवन के सामने दब जाते हैं किन्तु वृद्धावस्था मरणपर्यन्त दुखदाई रहती है। जिसको मृत्यु भी सुखदायक अनुभव नहीं होती। 

जिसकी अन्तिमावस्था सुखदायक होती है, वास्तव में वही सुखी होता है। शरीर अवयवों के थक जाने पर मनुष्य में क्रोध बढ़ जाता है मन्दाग्नि होने पर भोजन सुपच नहीं होता, मन्द दृष्टि पड़ जाने पर दिखाई नहीं देता, कर्ण श्रवण शक्ति से हीन हो जाते हैं। इसलिए मानव की वृद्धावस्था सबसे दुखदाई होती है । जिस मनुष्य की यह अष्टम भाग्य रेखा भी शुभ फलदायक हो उसका जीवन भी धन्य तथा सुफल ही समझना चाहिए ।

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