हस्तरेखा विज्ञान से हृदय रेखा की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें

हृदय रेखा

हस्तरेखा विज्ञान से हृदय रेखा की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी गयी है।
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सर्वप्रथम ये बताना आवश्यक है की ये लेख हस्तरेखा पर लिखी पुस्तक "प्रैक्टिकल पामिस्ट्री" से लिया गया है।

हथेली में जीवन रेखा, और मस्तिष्क रेखा का जितना महत्त्व है लगभग उतना ही महत्त्व हृदय रेखा का भी है। इसलिये विद्वानों को चाहिए कि वह हृदय रेखा के गरे में सावधानी के साथ अध्ययन करें।

जिस व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा शुद्ध, स्पष्ट, निर्दोष और ललायी लियै हुए होती है, वह शक्ति वास्तव में ही अपने जीवन में सफल होता है, और उसे समाज से पूरा अंश तथा सम्मान मिलता है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक उत्तरदायित्व को अनुभव करते हैं और अपने जीवन में मानवोचित गुण सामने रखकर आगे बढ़ते हैं।

यदि यह रेखा अस्पष्ट कमजोर टूटी हुई या कटी-छटी होती है तो वह व्यक्ति फितना ही इङ एवं धनवान क्यों न हो उसे सही रूप में मानव नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसा व्यक्ति हृदय से स्वार्थी, पापी तथा कलुषित होगा। ऐसे व्यक्ति का सहज ही विश्वास नहीं करना चाहिए ।

हृदय रेखा मनुष्य की हथेली में कनिष्ठिका उंगली के नीचे दुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य तथा शनि क्षेत्र को पार करती हुई गुरु पर्वत तक जाती है, परन्तु सभी हार्यों में ऐसा नहीं होता। सामान्यत: इस रेखा की पांच स्थितियां पायी जाती हैं जो कि निम्नलिखित हैं :

१. पहले प्रकार की हृदय रेखा वह होती है जो बुध पर्वत के नीचे से प्रारम्भ होकर सूर्यं और शनि पर्वत के नीचे चलती हुई गुरु पर्वत पर जाकर समाप्त होती है।

२. कुछ लोगों के हाथों में बह रेखा बुध पर्वत के नीचे से प्रारम्भ होकर सूर्य शनि तथा गेरु पर्वत के नीचे-नीचे चलती हुई हथेली के उस पार तक जा पहुंचती है।

३. कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य पर्वत के नीचे ही समाप्त हो जाती है।

४. कुछ हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर शनि पर्वत के मीचे समाप्त हो जाती है।

५. कुछ व्यक्तियों की हथेलियों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर तर्जनी और मध्यमा के बीच में जाकर समाप्त होती है।

उपर्युक्त पांचों ही प्रकार की स्थितियों का अध्ययन करने से उनका फलादेश में असर 18 है। स चा से मानव ॥ ६य उसकी छाएं, इसका व्यवहार, उसकी भावनाए, उसकी मानसिक क्रियाएँ तथा प्रान्तरिक गोपनीय तथ्य का पता संता है।

अब में प्रत्येक प्रकार की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कर रहा हैं :  यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।

पहला प्रकार :

इस प्रकार की हृदय रेखा जिसकी हथेली में होती है बहू सर्वश्रेष्ठ रेखा कहलाती है। सही रूप में देखा जाय तो यह रेखा अपनी अन्तिम अवस्था में शनि गौर गुरू पर्वत को विभक्त कर लेती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की भलाई करने वाले निष्पक्ष, स्वतंत्र विचार-धारा रखने वाले तथा प्रेम के क्षेत्र में धैर्य से काम लेने वाले होते हैं। इनके जीवन में न तो उच्छवलती होती है, और न घूरापन ही स्पष्ट होता है । ऐसे व्यक्ति अपने वचनों की सामर्थ्य समझते हैं और जीवन में जो भी गत कह देते हैं उसे पूरी तरह से निभाने की क्षमता रखते हैं।

ऐसा व्यक्ति हलके स्तर को नहीं होता तथा अपनी पत्ली को भी सबसे अधिक महत्त्व देता है । यद्यपि यह बात सही है कि इसके जीवन में प्रेमिकाएं होती हैं। परन्तु उन्हें यह जरूरत से ज्यादा महत्त्व नहीं देते। ऐसा व्यक्ति घामक सात्विक तथा ईमानदार होता है ।

न तो यह धोखा खाता है और न किसी को धोखा देने का प्रयत्न करता है । इसका हृदय दयालु होता है तथा इसके जीवन को 'आदर्श जीवन' कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति अपने प्रयत्नों से जीवन में यश, मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।

दुसरा प्रकार :

इसमें हृदय रेखा का उद्गम बुध पर्वत के नीचे से ही होता है। परन्तु इसका अन्त तर्जनीं और मध्यमा उंगली के बीच में न होकर गुरु पर्वत के नीचे चलकर हथेली के पास जाकर होता है। ऐसी रेखा बहुत ही कम लोगों के हाथों में दिखाई देती है परन्तु जिन व्यक्तियों के हाथों में ऐसी रेखा होती है ।

व्यक्ति जीवन में जरूरत है। ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होते हैं और अपने प्रयलों से अपने जीवन को सुखमय बनाने में समर्थ होते हैं।

सही रूप में देखा जाय तो ऐसे व्यक्ति कठोर परिश्रमी होते हैं और इनका लक्ष्य हमेशा इनके सामने रहता है। जब तक ये अपने लक्ष्य को भली प्रकार से प्राप्त नहीं कर लेते तब तक ये जीवन में विश्राम नहीं लेते।

इस रेखा के बारे में विचारणीय तथ्य यह है कि जहां यह रेखा समाप्त होती है उस स्थान का सूक्ष्मता से अध्ययनं आवश्यक है। यदि अन्तिम स्थिति में इस रेखा का व नीचे की तरफ होता है तो वह व्यक्ति अपने वन में अपनी छाओं को पूरी नहीं कर पाता ।

परन्तु अन्तिम अवस्था में यदि यह रेखा ऊपर की बोर ठती हुई दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में अपने भक्ष्य तक पहुच जाता है और उसके सौंचे हुए सभी काम पूरे हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में यश, भान, पद, प्रतिष्ठा की दृष्टि से पूर्ण सौभाग्यशाली कहा जाता है।

तीसरा प्रकार :

इस प्रकार की रेखा बुध पर्वत के नीचे से लेकर सूर्य पर्वत के नीचे ही समाप्त हो जाती है। ऐसा व्यक्ति अदूरदर्शी तथा कुण्ठाग्रस्त होता है। इसका हृदय कमजोर होता है । छोटी-छोटी बातों पर झुंझला जाता है, तथा इसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है । सही रूप में देखा जाय तो ऐसे व्यक्ति दयाहीन होते हैं। ये अक्ति दुःखी मनुष्यों की सहायता नहीं करते अपितु उनकी निन्दा करने में ही अपना सौभाग्य मानते हैं। ऐसे व्यक्ति सामान्य दृष्टि से सफल नहीं कहे जा सकते।

वृद्धावस्था में ऐसा व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित रहता है । तथा ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु हार्ट-अटैक से ही होती है । यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।

चौथा प्रकार :

कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर शनि पर्वत के नीचे जाकर समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति कई स्त्रियों से प्रेम करते हैं और लगभग सभी को धोखा देते हैं। इनके जीवन में छल, कपट आदि बराबर बना रहता है। सही शब्दों में कहा जाय तो ऐसे लोगों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं किया जा सकता।

इनका प्रेम सात्विक प्रेम न होकर वासना-पूति का एक साधन होता है। इनके मन में बराबर स्वार्थ बना हम होता है, तथा लोगों को धोखा देने में ये कुशल होते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रदर्शन तथा छाइम्बर को ज्यादा महत्व देते हैं। झूठा प्रचार नकलीं शान-शौकत तथा व्यर्थ का दिखावा करने में यह विश्वास रखते हैं।

एक बार तो लोग इनका विश्वास कर लेते हैं, परन्तु बाद में इनसे वे लोग घृणा करते हैं । अपना काम निकल जाने के बाद ये उसकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते । समाज में इन लोगों को किसी प्रकार का प्रदर या सम्मान नहीं मिलता।

ऐसे व्यक्ति निर्दयी, डाकू तथा अत्याचारी भी हो सकते हैं।

पाचवा प्रकार :

जिनके हाथों में इस प्रकार की हृदय रेखा दिखाई देती है। व्यक्ति एक प्रकार हे यात्म केन्द्रित से ही होते हैं, मौर जीवन में लगभग अपने आप में ही होये रहते हैं।

यपि ऐसे माल जपत से ज्यादा परिश्रमी तथा अपने अश्य की शीर बढ़ने वाले होते है। परन्तु कई बार के प्रयत्नों के बाद ही इनको सामान्यतः सफलता नहीं मिल पाती। जीवन के मध्य काल तक आते-आते ये व्यक्ति ऊब से जाते हैं। । यधपि इन व्यक्तियों के पास उर्वर मस्तिष्क होता है, तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य भी प्रारम्भ करते हैं। परन्तु जितने उत्साह से ये कार्य प्रारम्भ करते हैं उस कार्य के मध्य में आते-आते उनका जोश या उत्साह ठंडा पड़ जाता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में असफल होने पर चिड़चिड़े हो जाते हैं तथा इनकी प्रकृति संशयालू हो जाती है ।

इनके सम्पर्क में जो भी व्यक्ति आता है उन सब पर इझ करना इनका स्वभाव हो जाता है। धीरे-धीरे यह व्यक्ति अपने मित्रों तथा परि से कट जाते हैं तथा इनमें निराशा की भावना जरूरत से ज्यादा व्यापित हो जाती है। एक प्रकार से ये आगे चलकर अपने आपको बेसहारा और पराभय-सा अनुभव करते हैं। अब मैं आगे के पृष्ठों में हृदय रेखा से सम्बन्धित उन तथ्यों को स्पष्ट कर रही हैं, जिसके माध्यम से इससे सम्बन्धित फला-फले शत किया जा सकता है।

१. हृदय रेखा जिस पर्वत के नीचे तक पहुंचती है, उस पर्वत मैं उससे सम्बन्धित विशेष गुण स्वतः ही आ जायेंगे उदाहरणार्थ यदि हृदय रेखा अनामिका के मूल में स्थित सूर्य पर्वत के नीचे जाकर समाप्त होती है तो सूर्य से सम्बन्धित विशेष गुण प्रसिद्धि, कीति, सम्मान आदि में स्वतः ही वृद्धि का योग बन जायगा।

२. यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा की ओर झुके तो जिस जगह वह मुड़ती है मस्तिष्क रेखा के उस बिन्दु के समान आयु में मस्तिष्क का पूर्ण विकास होता है। । ३. यदि यह रेखा आगे चलकर मस्तिष्क रेखा से पूर्णतः मिल जाती है, तो वह अपने दिमाग में कुछ नहीं सोचता अपितु दूसरों के कहने के अनुसार कार्य करता है, और उसके आदेश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर लेता है।

४, यदि हृदय रेखा आगे बढ़कर मस्तिष्क रेखा को काट लेती है, तो दिमाग अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा उस व्यक्ति में निर्णय लेने की पूर्ण क्षमता नहीं होती।

५. यदि हृदय रेखा पर आकर कोई अन्य पतली रेखा मिले तो जिस पर्वत की तरफ से बहू पतली रेखा आती है, उस पर्वत के गुणों को उसके हृदय पर विशेष प्रभाव रहता है।

६. यदि हृदय रेखा से पतली-पतली छोटी-छोटी रेखाएं मस्तिष्क रेखा की और बढ़ती हों तो ऐसा व्यक्ति जीवन-भर मानसिक चिन्ताओं से परेशान रहता है।

७. यदि हृदय रेखा कई जगह टूट-फट जाती है तो वह व्यक्ति हृदय रेखा को शिकार होता है।

८, यदि किसी की हवेली में हृदय रेखा पर दीप काहि दिखाई दे तो वह याँ समाज में विशेष सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता तथा उसका सामाजिक स्वरूप एक तरह से वाप्ति हो जाता है।

६. दृदय रेखा बितनी अधिक अम्बी होती है और बृहस्पति पर्वत से जितनी है औपक दूर होती है उतनी ही ज्यादा श्रेष्ठ कही जाती है।

१०. यदि हृदय रेखा अलती-चलती मार्ग में कहीं टूट जाती है और फिर गाने चलकर प्रारम्भ हो जाती है, तो जीवन के उस भाग में वह व्यक्ति मृत्यु-तुल्य कष्ट उपसा है।

११. यदि हृदय रेखा लम्बी स्पष्ट तथा सुन्दर होती है तो उस व्यक्ति को प्रत्येक प्राणी से भरपूर प्यार तथा स्नेह मिलता है।

१२. यदि हृदय रेखा हथेली के पास पहुंच जाती है तो वह व्यक्ति किसी के भी प्रवि अन्ध श्रद्धा का शिकार होता है।

१३. यदि हृदय रेखा कई जगह से कटी हुई हो तो उस व्यक्ति के जीवन में निराशा की भावना बराबर बनी रहती हैं।

१४. यदि हथेली में दूसरी हृदय रेखा हो तो वह व्यक्ति जीवन में ऊंचे स्तर पर प्रेम करता है परन्तु उसे जीवन में निराशा हाथ लगती है।

१५. यदि हृदय रेखा के अन्त में तारे का चिह्न बना हुआ हो तो उस व्यक्ति की मृत्यु आकस्मिक दुर्घटना से होती है।

१६. यदि हृदय रेखा बृहस्पति पर्वत को घेर कर चलती हो तो उस व्यक्ति में नफरत की भावना जरूरत से ज्यादा होती है।

१७, यदि हृदय रेखा पर नक्षत्र का चिह्न दिखाई देता है तो वह व्यक्ति बाजीवन रोगी बना रहता है।

१८. यदि हृदय रेखा के अन्तिम सिरे दो भागों में बंट जाते हैं तो ऐसा व्यक्ति सफल न्यायाधीश सहृदय सामाजिक तथा सद्गुणों से सम्पन्न होता है।

१६. यदि यह रेखा शनि पर्वत पर समाप्त हो जाती है तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कामी होता है।

२५, यदि यह सूर्य पर्वत पर समाप्त हो जाती है तो ऐसा अक्ति बार-बार मोसा खाता है।

२१. यदि यह रेखा गुरु पर्वत के नीचे जाकर त्रिशुल की तरह बन जाती है, को उसका यौवन कास पागलखाने में ही व्यतीत होता है।

२३. यदि शनि पर्वत के नीचे हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखा पर कॉस का हि हो तो उस व्यक्ति की बहुत छोटी उम्र में मृत्यु हो जाती है।

२३. इस के मस्तिष्क रेखा से जितनी ही ज्यादा सम्वी, स्पष्ट और सालिमा लिगे हुए होती है उतनी ही ज्यादा श्रेष्ठ कही जाती है। ऐसा व्यक्ति विश्वस्तरीय सम्मान प्राप्त करता है।

३४. दोहरी हृदय रेखा अत्यन्त उच्च पद प्राप्ति में सहायक होती है।

२५. यदि मंगल पर्वत उभरा हुआ हो और हृदय रेखा स्पष्ट हो तो वह व्यक्ति जीवन में जोखिम पूर्ण कार्य करता है।

२६. यदि वर्गाकार उंगलियां हों और हृदय रेखा आगे चलकर मस्तिष्क रेखा की मोर झुकती हो तो ऐसा व्यक्ति निम्नस्तर का होता है।

२७. अत्यन्त गैटी हृदय रेखा व्यक्ति के दुर्भाग्य को सूचित करती है।

२८. यदि हृदय रेखा जरूरत से ज्यादा लाल हो तो वह व्यक्ति हिसक होता है।

२६. यदि यह रेखा पीलापन लिये हुए होती है तो उसे हृदय के रोग बराबर बने रहते हैं।

३०, पदि हृदय रेखा जरूरत से ज्यादा चौड़ी हो तो स्वास्थ्य के मामले में वह जीवन-भरे बराबर कमजोर बना रहता हैं।

३१. यदि यह रेखा बहुत अधिक पतली और लम्बी हो तो वह व्यक्ति निस्संदेह हत्यारा होता है।

३२. यदि हृदय रेखा हथेली के अन्तिम सिरे पर पहुंचती हैं, परन्तु अपने आप में बहुत ही कमजोर होती है तो उस व्यक्ति के सन्तान नहीं होती।

३३. यदि हृदय रेखा जंजीर के समान हो तो ऐसे व्यक्तियों का विश्वास नहीं किया जा सकता । झूठ बोलने में ये व्यन्ति चतुर होते हैं।

३४. यदि यह रेखा जंजीरदार हो और शनि पर्वत के नीचे जाकर समाप्त होती हो तो उसे विपरीत सैक्स के प्रति घृणा रहती है।

३५. यदि किसी स्त्री के हाथ में शनि पर्वत पर जाकर वृदय रेखा जंजीर के समान बन गई हो तो वह स्त्री कुलटा होती है।

३६, यदि यह रेखा सूर्य पर्वत के नीचे छिन्न-भिन्न हो जाती है, तो वह व्यक्ति कमजोर होता है।

३७. बुध पर्वत के नीचे यदि यह रेखा टूट-फूट जाती है तो उसका वैवाहिक जीवन दुखमय होता है।

३८, गदि हृदय रेखा से कोई शाखा निकल कर मंगल पर्वत की और बाती है तो ऐसा व्यक्ति कठोर हृदय का तथा निर्दयी समाप का होता है।

३६. हृदय रेखा पर काले बिन्दु उसके विवाह में बाधा कारक माने गये हैं।

४६. यदि हृदय रेखा पर सफेद बिन्दु हों तो उसका वैवाहिक जीवन आदर्श कहा जाता है।

४१. यदि हृदय रेखा पर त्रिकोण का चिह्न हो तो उसे विश्व व्यापी कीति मिलती है।

४२. यदि हृदय रेखा गुरु पर्वत पर जाकर मंगल पर्वत की ओर मुड़ जाती है तो वह व्यक्ति मूर्ख होता है ।

४३. मदि यह रेखा चतुर्भुज के साथ कहीं पर भी समाप्त होती है तो वह अस्थिर स्वभाब वाला माना जाता है।

४४. यदि यह रेखा शनि पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा से मिलती हो तो इसके जीवन में कई दुर्घटनाएं होती हैं।

४५. यदि हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा से मिलती हो तो उस व्यक्ति की यौवन काल में ही मृत्यु हो जाती है।

४. यदि यह रेखा नीचे झुक कर चन्द्र पर्वत की ओर जा रही हो, मा बन्द पर्वत से कोई रेखा निकलकर इससे मिलती हो तो उसे जीवन में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त होती है।

४७. यदि कुछ तिरछी रेखाएं हृदय रेखा को कई जगह से काटती हो तो उसे जीवन में कई प्रकार के रोग होते है ।

४८. यदि हृदय रेखा से निकल कर कोई सहायक रेखा मस्तिष्क रेखा से जुड़ जाती है तो उममें प्रेम करने की क्षमता जरूरत से ज्यादा होती है।

४६. यदि हृदय रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर शनि पर्बत की और जाती है तो उसे प्रेम के क्षेत्र में निराशा मिलती है।

५०. यदि भाग्य रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर हृदय रेखा को स्पर्श करती हो तो उसका गृहस्थ-जीवन परेशानी पूर्ण होता है।

५१. यदि शुक्र पर्वत से कोई सहायक रेखा निकल कर हृदय रेखा से मिलती हो तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भोगी होता है ।

५२. यदि इस रेखा पर बुध पर्वत के नीचे क्रॉस हो तो उसे व्यापार में बारबार असफलता का मुंह देखना पड़ता है।

५३. यदि इस रेखा से कई चतुर्भुज बनते हों तो उसकी प्रतिभा अत्यधिक होती है, परन्तु अपने मामले में बह असफल रहता है ।

५३. यदि हृदय रेखा गुरु पर्वत के नीचे कई शाखामों में बंट जाती है, तो वह व्यक्ति भाग्यशाली होता है।

५५. यदि इस रेखा के प्रारम्भ में ही शाखा पुंज हो तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा बोलने वाला होता है।

५६. यदि इस रेखा के मध्य में शाखा पुंज हो तो ऐसा व्यक्ति कट्टर एवं घमणी होता है।

५७ अगर किसी व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा नहीं हो तो वह निर्दयी होता है।

५८, यदि हृदय रेखा से किसी प्रकार की कोई सहायक रेखा नहीं निकलती है तो ऐसे व्यक्ति को सन्तान का सुख नहीं मिलता।

 ५६. यदि बिना किम शाखा के यह रेखा गुरु पर्वत के नीचे समाप्त होती हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में गरीब बना रहता है ।

६०. यदि रेखा के अन्तिम सिरे पर कोई अलग तरह का निशान हो तो वह व्यक्ति लकवे का शिकार होता है।

६१. यदि सूर्य पर्वत के नीचे कोई बिन्दु हो तो ऐसा व्यक्ति भावुक होता है।

६२. बुध पर्वत के नीचे यदि कोई बिन्दु दिखाई दे तो बह प्रसिद्ध चिकित्सक होगा।

६३. यदि रेखा पर वृत्त का चिह्न अनुभव हो तो हृदय रेखा की दृष्टि से कमजोर होता है ।

६४. यदि हृदय रेखा पर कोई द्वीप दिखाई दे तो उसके जीवन में कई विश्वासघात होते हैं।

६५. यदि भाग्य रेखा तथा हृदय रेखा दोनों का द्वीप के चिह्न दिखाई दें तो वह व्यक्ति व्यभिचारी होता है।

६६. हृदय रेखा पर कोई चोट का चिह्न प्रतीत हो तो उसे जीवन में असफल प्रेम का सामना करना पड़ता है।

६७. हृदय रेखा जितनी ही ज्यादा स्पष्ट सुन्दर और लालिमा लिये हुए होगी वह व्यक्ति जीवन में उतनी ही ज्यादा सफलताएं एवं श्रेष्ठता प्राप्त करता है।

वस्तुतः हृदय रेखा का मानव जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है और हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए यह आवश्यक है कि वह इस रेखा का सावधानी के साथ अध्ययन करे।