हस्तरेखा और जाल चिन्ह


जाल


हाथ में केवल अशुभ लक्षण देखकर किसी निर्णय पर पहुँच जाना अनुचित है। मानव हाथ में गौण एवं मुख्य रेखाओं के साथ-साथ अनेक प्रकार के चिह्न भी पाये जाते हैं जिनमें मुख्यतः विन्दु, क्रास, वर्ग, जाल, तारे (स्टार) त्रिभुज, वृत्त, द्वीप, मत्स्य, पेड़, धनुष, कमल, सर्प आदि हैं।

आड़ी रेखा पर खड़ी रेखाओं के होने से जाल सा बन जाता है, यह मानव हाथों पर अधिकाशं पाया जाता है।

हस्त रेखा विज्ञान में जाल का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है। अतः इसका अध्ययन भी अति आवश्यक है।रवि क्षेत्र-सूर्य क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति समाज में निन्दा तथा उपहास

का पात्र बन जाता है।

चन्द्र क्षेत्र- चन्द्र क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति निरन्तर चंचल स्वभाव युक्त, अधीर एवं असन्तुष्ट रहता है।

मंगल क्षेत्र-मंगल क्षेत्र पर जाल होने से मानसिक अशान्ति एवं उद्विग्नता रहती है।

बुध क्षेत्र-बुध क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति को स्वतः के कार्यो में हानि का सामना एवं पश्चाताप होता है।

गुरु क्षेत्र-गुरु क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति घमण्डी, स्वार्थी और निर्लज्ज हो जाता है।

शुक्र क्षेत्र-शुक्र क्षेत्र पर जाल होने से भोगी, लम्पट, अधीर तथा कामातुर होता है।

शनि क्षेत्र-शनि क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति आलसी, कंजूस अर्कमण्य एवं अस्थिर चित्त वाला होता है।

राहु-राहु केतु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति द्वारा जीवन हत्या जैसे अपराध होते हैं एवं दुर्भाग्य का सामना होता है।

केतु क्षेत्र-केतु क्षेत्र पर जाल होने से चेचक या चर्म रोग जैसे रोगों का सामना होता है।