पञ्चांगुली देवी | हस्तरेखा विज्ञान | Panchanguli Devi Palmistry

पञ्चांगुली देवी | हस्तरेखा विज्ञान | Panchanguli Devi Palmistry

पञ्चांगुली देवी | 
Panchanguli Devi

हस्तरेखा विज्ञान भारतीय आध्यात्मिक विचारधारा की आत्मज्ञानात्मक इकाई का दिव्य रत्न है। भारतीय मनीषियों ने हमेशा अपने अन्तःकरण की 'शक्तियों को जागृत करने की नीति अपनायी है। आज का विज्ञान बाह्य जगत के विश्लेषण और भौतिक प्रगति की बात करता है। उसका ध्यान अन्तःकरण में विद्यमान शक्तियों की ओर नहीं जाता। अतः उसकी पहुंच सीमित है, किन्तु भारतीय मनीषियों ने अपने प्रज्ञाचक्षुओं को खोलकर अनेक ऐसे तथ्यों का रहस्योद्घाटन हज़ारों वर्ष पहले कर दिया था, जिनका तथ्यगत मूल्य आज के वैज्ञानिक नहीं आंक पा रहे हैं। आध्यात्मिक विषयों के समाहार में 'दिव्य ज्ञान' शब्द बार-बार प्रयुक्त होता है। आखिर दिव्य ज्ञान का आशय क्या है? मेरा अभिप्राय यहां शब्द की भाषाशास्त्रीय या शब्दगत व्याख्या से नहीं है, बल्कि इसमें निहित भाव से है। सामान्यतया दिव्य ज्ञान आध्यात्मिक उपचारों से प्राप्त होने वाली वह दिव्य मानसिक शक्ति है, जो अनभव से विकसित ज्ञान की तलना में अति श्रेष्ठ और विलक्षण होती है। पञ्चांगुली देवी की साधना इसी दिव्य ज्ञान की आध्यात्मिक उपचार क्रिया के सिद्धान्त पर आधारित है। 

पञ्चांगुली देवी और उसकी साधना की मान्यता पूर्णतः भारतीय है। अनेक प्राचीन, संस्कृत एवं जैन ग्रन्थों में भी पञ्चांगुली देवी की साधना की बात कही गयी है।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ऐसी मान्यता है कि इस साधना के बाद साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है और वह किसी भी व्यक्ति का हाथ देखकर अनायास ही उसके भूत, भविष्य एवं वर्तमान का वृत्तान्त विलक्षण ढंग से बता सकता है। अतः भविष्यदृष्टा और भविष्यवक्ता बनने के लिए यह साधना करनी चाहिए। कहा जाता है कि 'कीरो' ने भारत में रहकर यह साधना की थी, तभी वह विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और हस्तरेखाशास्त्री बन सका था। 

 पञ्चांगली देवी की साधना विधि बहुत सरल और सूक्ष्म है। यह साधना कोई भी व्यक्ति कर सकता है। साधना के लिए ऐसे स्थान का चूनाव करना चाहिए, जो स्वच्छ, पवित्र और शोर-शराबे से दूर, एकान्त में हो-नदी का किनारा. तालाब का किनारा, मन्दिर या अपने घर का कोई एकान्त हवादार, रोशनीयक्त कमरा हो, जहां ध्यान जम सके। नहा-धोकर, पवित्र वस्त्र पहनकर पञ्चांगली देवी की साधना करनी चाहिए। 

ध्यान 

ॐ पञ्चांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने। 
अधिष्ठात्री करस्यत्सौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः।।

'अर्थात हाथ की पांचों उंगलियां अधिष्ठात्री देवियां हैं, जो साक्षात् इन्द्र की शक्तियां हैं। 

मन्त्र 

ॐ नमो पञ्चांगली पञ्चांगली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लौहमयदण्डमणिनी चौंसठकाम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये दीवानमध्ये भतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये कोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शाकिनीमध्ये यक्षणीमध्ये दोषणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गारुणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाधरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ उपरे बुरे जो करावे जड़े जडावे तत चिन्ते चिन्तावे तसमाथे श्रीमाता पञ्चांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठः ठः ठः ठः स्वाहा।। 

साधना समय-कार्तिक महीने में जब हस्त नक्षत्र हो, उस दिन किसी भी शुभ मुहूर्त में साधना आरम्भ की जाती है और समापन मार्गशीर्ष महीने में जब हस्त नक्षत्र आये, तब करना चाहिए। 

साधना विधि - कार्तिक महीने में जब शुभ दिन व शुभ मुहूर्त हो, तब पञ्चांगुली देवी की स्थापना कर षोडषोपचार से पूजा कर ध्यानमन्त्र का उच्चरण करते हुए ध्यान करना चाहिए। 

1.पञ्चांगुली देवी की स्थापना चित्र रूप में या प्रतीक रूप में (किसी नारियल आदि के ऊपर कपड़ा लपेटकर) की जा सकती है। 
2. जिस दिन से यह साधना आरम्भ की जाये, उस दिन से लगातार एक ही कार्यक्रम के अनुसार प्रतिदिन पूजन, मन्त्र-जाप आदि कार्य तब तक करने चाहिएं, जब तक कि अगले महीने में हस्त नक्षत्र न आ जाये, बीच में रुकावट या व्यवधान नहीं आना चाहिए। 
3. मन्त्र का जाप प्रतिदिन 108 बार (एक माला) कम-से-कम करना चाहिए तथा पंचमेवा की दस आहुतियां इसी मन्त्र के उच्चारण के साथ 'स्वाहा' आने पर देनी चाहिएं। 
4. साधना आरम्भ करने से पूर्व मन्त्र को अच्छी तरह से कण्ठस्थ कर लेना चाहिए । मन्त्रोच्चारण शुद्ध और लयबद्ध रखा जाये तथा मन्त्र को यथावत् (जैसा लिखा है) उच्चरित किया जाये, अपनी बुद्धि के अनुसार मन्त्र भेद, अक्षर या मात्रा भेद करना बर्ण्य है।
 5. साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य, शुद्ध शाकाहार, मनः शुद्धि, शरीर शुद्धि, सन्ध्यावन्दन आदि का विशेष ध्यान रखा जाये। 
6. साधना का मन्त्र जाप के लिए प्रातः (ब्राह्ममुहूर्त) का समय बहुत उपयुक्त रहता है। अतः यदि सम्भव हो, तो मन्त्र-जाप इसी समय करें। 
7. ये सभी कार्य श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ किये जायें। इस तरह की विधि अपनाने से मन्त्र अवश्य ही सिद्ध हो जायेगा । मन्त्रसिद्धि के बाद साधक को चाहिए कि वह प्रतिदिन सुबह उठकर मन्त्र का सात बार जाप करके फिर अपने हाथ में फूंक मारे और हाथ को समस्त शरीर पर फिराये। तदुपरान्त वह जिसका भी हाथ देखेगा, उसके भूत, भविष्य व वर्तमान को शीशे की तरह साफ़-साफ़ देख लेगा एवं उसका भविष्यकथन सर्वथा सत्य निकलेगा, ऐसा अनेक हस्तरेखाशास्त्रियों का मानना है।