- प्रथम भाग्य रेखाः—यह वह भाग्य रेखा है जो कि मणिबन्ध से निकलकर केतु क्षेत्र से होती हुई राहु क्षेत्र को काटकर मस्तक और हृदय रेखा को स्पर्श करती हुई शनि क्षेत्र को जाती है ।
- विवाह रेखा के नाम से जानी जाने वाली रेखाएं बुध क्षेत्र पर होती हैं। वैसे तो ये रेखाएं विवाह से सम्बन्धी रीति और धर्म मर्यादा को मान्यता नहीं देती हैं। यह तो प्रेम से या किसी विपरीत लिंगी संबंधों को जो कि प्रभावित करे उसे ही स्पष्ट करती है।
- ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दोहरी मस्तक रेखा और दोहरी हृद्या रेखा का विवरण-कभी कभी ऐसा भी देखने में आता है कि जिन मनुष्यों के हाथों में जीवन के प्रारम्भ से ही दोहरी मस्तक रेखा या दुहेरी हदय रेखा होती है वो अविवाहित ही रहते हैं।
हस्तरेखा में भाग्य रेखा का परिचय
वर्तमान समय के जन मानस में भाग्य शब्द अपरिचित नहीं है । आज अगर कोई कार्य समय पर नहीं हो पाता या उसमें किसी भी प्रकार की अड़चन आती है तो भाग्य को ही दोष दिया जाता है ।
गीता के अठारहवें अध्याय में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण का सारा परिश्रम भाग्य के नीचे दब गया और उसमें लिखा है कि 'दैवंचैवात्र पंचमम्'। वास्तव में देखा जाय तो भाग्य एक बाजार है जहां थोड़ी देर ठहरने के बाद भाव गिर जाते हैं।
बालक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर जिस परिवार में जन्म लेता है उसका परिवेश परिजन बड़ी तन्मयता से पालन करता है। इस जीवन में जो कुछ मनुष्य कर्म करता है।
वह धीरे धीरे संचय होता जाता है और उसकी एक तलपट तैयार होती जाती है, हम उसे कलान्तर में भाग्य का रुप दे देते हैं। आज का जो हमारा पुरुषार्थ है वही कल का भाग्य है, वास्तव में कर्मफल भोग के परिपाक को ही भाग्य कहते हैं।
मातृ दोषेण दुःशीलो, पितृ दोषेण मूर्खता।
कार्पण्य वंश दोषेण, स्वदोषेण दरिद्रता।।
(श्रीमद्भागवत महापुराण)
मनुष्य यदि चरित्रहीन हो तो उसकी माता में दोष सम-हजयना चाहिए, यदि वह मूर्ख है तो उसके पिता का दोष सम-हजयना चाहिए, यदि वह गरीब है तो किसी का दोष नहीं स्वयं का दोष सम-हजयना चहिए।
इन्ही दस अंगुलियों द्वारा किये गये काम से दैनिक सप्ताहिक मासिक या वार्षिक रुप से भाग्य का संचय होता है। शनि रेखा या भाग्य रेखा मनुष्य का जीवन चक्र बतलाती है।
उसका कारबार, व्यक्तित्व, आर्थिक उन्नति, परिवर्तन, व्याप्त प्रवृतियां इन सब का चित्रण भाग्य रेखा या शनि रेखा करती है।
भाग्य रेखा का उद्गम स्थान मणिबन्ध है, वहां से निकलने वाली रेखा मध्यमा अंगुली की ओर जाती है। इस रेखा के मार्ग में आने वाले अनेक चिह्न एवं रेखाओं का भिन्न-ंभिन्न अर्थ निकलते हैं।
1. भाग्य रेखा आयु रेखा में से निकलकर शनि पर्वत को जाये तो व्यक्ति का शुरुआती जीवन कुछ कठिनाई युक्त व्यतीत होता है। मेहनत से कार्य करके ये लोग प्रायः 21 वर्ष की आयु के पश्चात उन्नति करते हैं।
2. भाग्य रेखा के शुरुआत में अगर यव का निशान होवे तो उसका जन्म रहस्मय बताया गया है, इन लोगों को बाल्यकाल में काफी कुछ खोना पड़ सकता है।
3. मणिबन्ध से प्रारम होनेवाली भाग्य रेखा शुभ मानी जाती है। आरम्भ में यदि मत्स्य रेखा हो तो अत्यन्त शुभ माना जाता है। यही रेखा चैकोर हाथ में होने से व्यक्ति काफी अधिक धन कमाता है तथा काम से जी नहीं चुराता है। यही रेखा दार्शनिक हाथ में होने से कम काम करने से अधिक पैसा प्राप्त होता है।
4. मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा शुरु होने पर काफी परेशानी को सह लने के बाद व्यक्ति का कार्य प्रगति पथ की ओर अग्रसर होता पाया गया है।
5. यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाती है तो व्यक्ति की बृद्धावस्था सुखमय व्यतीत होती है।
6. भाग्य रेखा के समाप्ति स्थान पर क्रास का चिह्न घातक संकेत है।
7. चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली भाग्य रेखा से दूसरों की सहायता या प्रोत्साहन से सफलता प्राप्त होती है राजनीतिज्ञ एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के हाथों में ऐसी रेखा अधिकांश पायी जाती है।
8. सीधी जाती हुई भाग्य रेखा में चन्द्र क्षेत्र से आकर अन्य रेखा मिलने पर व्यक्ति इच्छानुसार सफल होगा परन्तु किसी की सहायता से।
9. यही रेखा स्त्रियों के हाथ में होने से उसका विवाह या तो धनवान से होगा या फिर किसी द्वारा धन की सहायता प्राप्त होगी।
10. यदि भाग्य रेखा वृहस्पति क्षेत्र में पहुंच जाये तो व्यक्ति को अधिकार और विशिष्टता प्राप्त होती है ऐसे लोग उच्च पदों को प्राप्त करते हैं। इसके अलावा अगर अन्य शुभ लक्षण हों तथा रेखा के अन्त में त्रिशूल का आकार होवे तो यह राज योग होता है।
11. यदि भाग्य रेखा की कोई शाखा वृहस्पति क्षेत्र में पहंच जाये तो अति उत्तम योग होता है तथा ऐसे व्यक्ति अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं।
12. शनि क्षेत्र में पहुंचने वाली भाग्य रेखा अच्छा फल देती है।
13. जंजीरनुमा भाग्य रेखा व्यक्ति को दुःख में डाल देती हैं
14. दो भाग्य रेखा हो तथा उसमें कोई दोष न हो तो व्यक्ति उन्नति करता है, सम्मान प्राप्त करता है, यह रेखा समानांन्तर होगी तो भी शुभ फल प्रदान करेगी।
16. यदि भाग्य रेखा हाथ को पार करके मध्यमा में पहुंच जाये तो लक्षण शुभ नहीं होता, वह व्यक्ति हमेशा सीमा और नियम कायदे का उल्लंघन करता है।
17. यदि भाग्य रेखा शीर्ष रेखा पर ही रूकती हो तथा पुनः वहां से वृहस्पति क्षेत्र में पहुंचती हो तो व्यक्ति को प्रेम भावना के कारण बाधा उत्पन्न होती है। परन्तु गुरु के प्रभाव से पुनः प्रेम सम्बन्ध से सहायता द्वारा अभिलाषा पूर्ण होती है।
18. शीर्ष रेखा द्वारा भाग्य रेखा रुक जाय तो व्यक्ति को स्वयं की गलती से असफलता मिलती है।
19. मंगल पर्वत से भाग्य रेखा शुरु होने पर भ्रम, शंका आदि का डर रहता है। यही रेखा शनि क्षेत्र पर जाने से बाधाओं में सफलता तथा धैर्य, श्रम, और लगन से उन्नति होती है।
20. शुक्र पर्वत की ओर से आकर कई बारीक रेखायें जब भाग्य रेखा को काटती हैं, तो पारिवारिक कष्ट और उलझनों का सामना करना पड़ता है।
21. भाग्य रेखा मध्य में खण्डित होने से या टूट जाने से कुछ समय के लिए जीवन निष्क्रिय हो जाता है।
22. भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम का ऐसा भी क्षण आता है कि जिनका अन्त विवाह बाद भी नहीं होता।
23. त्रिकोण से (दोनों हाथों में) शुरु होने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति को बौद्धिक योजनाओं में सफलता प्रदान करती है।
24. भाग्य रेखा के शुरुआत में टेडी मेडी रेखा एवं श्रृंखला व्यक्ति के बचपन में कष्ट का संकेत देती है।
25. भाग्य रेखा मध्य में हल्की पड़ जाने से उसके मध्य जीवनकाल में सुखमय समय का प्रतीक है।
26. दोनों हाथों में बुध पर्वत पर जानेवाली भाग्य रेखा व्यापार में सफलता देती है।
27. शुक्र पर्वत से एक गहरी रेखा भाग्य रेखा की ओर जाये तो व्यक्ति हिंसात्मक काम भावना वाला होता है।
28. यदि इसी रेखा के साथ अन्य रेखा भी जाती हो तो भारी बाधाओं पर आनन्दपूर्ण विजय होती है।
29. भाग्य रेखा पर नीचे की ओर जाने वाली शाखायें व्यक्ति को आर्थिक कष्ट देती है।
30. भाग्य रेखा तीन जगह से बीच में टूटने से वात रोग द्वारा कष्ट होता है।
31. अगर भाग्य रेखा को कोई अन्य शाखा काटती हुई बुध की जाली को पार कर जाये तो व्यक्ति की बेईमानी उसे ले डूबती है तथा उसे पश्चाताप करना होता है।
32. चन्द्र क्षेत्र से सूर्य या बुध क्षेत्र को सीधी जाने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति को व्यापार से महान सफलता दिलाती है। ऐसे लोगों को साहित्य और कला में भी सफलता मिलती है।
33. मष्तिष्क रेखा से शुरु होने वाली भाग्य रेखा का व्यक्ति शराब या नशीले पदार्थों की दुकान आदि चलाता है।
34. जिन हाथों में भाग्य रेखा नहीं पायी जाती वे जीवन में सफल तो होते हैं पर उनमें विशेष निखार या तेज नहीं पाया जाता है। ऐसे लोगों को सामान्य सुखी कहा जा सकता है।
सभी प्रकार की भाग्य रेखा का फल पढ़े - भाग्य रेखा का फल हस्तरेखा
गीता के अठारहवें अध्याय में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण का सारा परिश्रम भाग्य के नीचे दब गया और उसमें लिखा है कि 'दैवंचैवात्र पंचमम्'। वास्तव में देखा जाय तो भाग्य एक बाजार है जहां थोड़ी देर ठहरने के बाद भाव गिर जाते हैं।
बालक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर जिस परिवार में जन्म लेता है उसका परिवेश परिजन बड़ी तन्मयता से पालन करता है। इस जीवन में जो कुछ मनुष्य कर्म करता है।
वह धीरे धीरे संचय होता जाता है और उसकी एक तलपट तैयार होती जाती है, हम उसे कलान्तर में भाग्य का रुप दे देते हैं। आज का जो हमारा पुरुषार्थ है वही कल का भाग्य है, वास्तव में कर्मफल भोग के परिपाक को ही भाग्य कहते हैं।
मातृ दोषेण दुःशीलो, पितृ दोषेण मूर्खता।
कार्पण्य वंश दोषेण, स्वदोषेण दरिद्रता।।
(श्रीमद्भागवत महापुराण)
मनुष्य यदि चरित्रहीन हो तो उसकी माता में दोष सम-हजयना चाहिए, यदि वह मूर्ख है तो उसके पिता का दोष सम-हजयना चाहिए, यदि वह गरीब है तो किसी का दोष नहीं स्वयं का दोष सम-हजयना चहिए।
इन्ही दस अंगुलियों द्वारा किये गये काम से दैनिक सप्ताहिक मासिक या वार्षिक रुप से भाग्य का संचय होता है। शनि रेखा या भाग्य रेखा मनुष्य का जीवन चक्र बतलाती है।
उसका कारबार, व्यक्तित्व, आर्थिक उन्नति, परिवर्तन, व्याप्त प्रवृतियां इन सब का चित्रण भाग्य रेखा या शनि रेखा करती है।
भाग्य रेखा का उद्गम स्थान मणिबन्ध है, वहां से निकलने वाली रेखा मध्यमा अंगुली की ओर जाती है। इस रेखा के मार्ग में आने वाले अनेक चिह्न एवं रेखाओं का भिन्न-ंभिन्न अर्थ निकलते हैं।
1. भाग्य रेखा आयु रेखा में से निकलकर शनि पर्वत को जाये तो व्यक्ति का शुरुआती जीवन कुछ कठिनाई युक्त व्यतीत होता है। मेहनत से कार्य करके ये लोग प्रायः 21 वर्ष की आयु के पश्चात उन्नति करते हैं।
2. भाग्य रेखा के शुरुआत में अगर यव का निशान होवे तो उसका जन्म रहस्मय बताया गया है, इन लोगों को बाल्यकाल में काफी कुछ खोना पड़ सकता है।
3. मणिबन्ध से प्रारम होनेवाली भाग्य रेखा शुभ मानी जाती है। आरम्भ में यदि मत्स्य रेखा हो तो अत्यन्त शुभ माना जाता है। यही रेखा चैकोर हाथ में होने से व्यक्ति काफी अधिक धन कमाता है तथा काम से जी नहीं चुराता है। यही रेखा दार्शनिक हाथ में होने से कम काम करने से अधिक पैसा प्राप्त होता है।
4. मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा शुरु होने पर काफी परेशानी को सह लने के बाद व्यक्ति का कार्य प्रगति पथ की ओर अग्रसर होता पाया गया है।
5. यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाती है तो व्यक्ति की बृद्धावस्था सुखमय व्यतीत होती है।
6. भाग्य रेखा के समाप्ति स्थान पर क्रास का चिह्न घातक संकेत है।
7. चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली भाग्य रेखा से दूसरों की सहायता या प्रोत्साहन से सफलता प्राप्त होती है राजनीतिज्ञ एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के हाथों में ऐसी रेखा अधिकांश पायी जाती है।
8. सीधी जाती हुई भाग्य रेखा में चन्द्र क्षेत्र से आकर अन्य रेखा मिलने पर व्यक्ति इच्छानुसार सफल होगा परन्तु किसी की सहायता से।
9. यही रेखा स्त्रियों के हाथ में होने से उसका विवाह या तो धनवान से होगा या फिर किसी द्वारा धन की सहायता प्राप्त होगी।
10. यदि भाग्य रेखा वृहस्पति क्षेत्र में पहुंच जाये तो व्यक्ति को अधिकार और विशिष्टता प्राप्त होती है ऐसे लोग उच्च पदों को प्राप्त करते हैं। इसके अलावा अगर अन्य शुभ लक्षण हों तथा रेखा के अन्त में त्रिशूल का आकार होवे तो यह राज योग होता है।
11. यदि भाग्य रेखा की कोई शाखा वृहस्पति क्षेत्र में पहंच जाये तो अति उत्तम योग होता है तथा ऐसे व्यक्ति अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं।
12. शनि क्षेत्र में पहुंचने वाली भाग्य रेखा अच्छा फल देती है।
13. जंजीरनुमा भाग्य रेखा व्यक्ति को दुःख में डाल देती हैं
14. दो भाग्य रेखा हो तथा उसमें कोई दोष न हो तो व्यक्ति उन्नति करता है, सम्मान प्राप्त करता है, यह रेखा समानांन्तर होगी तो भी शुभ फल प्रदान करेगी।
16. यदि भाग्य रेखा हाथ को पार करके मध्यमा में पहुंच जाये तो लक्षण शुभ नहीं होता, वह व्यक्ति हमेशा सीमा और नियम कायदे का उल्लंघन करता है।
17. यदि भाग्य रेखा शीर्ष रेखा पर ही रूकती हो तथा पुनः वहां से वृहस्पति क्षेत्र में पहुंचती हो तो व्यक्ति को प्रेम भावना के कारण बाधा उत्पन्न होती है। परन्तु गुरु के प्रभाव से पुनः प्रेम सम्बन्ध से सहायता द्वारा अभिलाषा पूर्ण होती है।
18. शीर्ष रेखा द्वारा भाग्य रेखा रुक जाय तो व्यक्ति को स्वयं की गलती से असफलता मिलती है।
19. मंगल पर्वत से भाग्य रेखा शुरु होने पर भ्रम, शंका आदि का डर रहता है। यही रेखा शनि क्षेत्र पर जाने से बाधाओं में सफलता तथा धैर्य, श्रम, और लगन से उन्नति होती है।
20. शुक्र पर्वत की ओर से आकर कई बारीक रेखायें जब भाग्य रेखा को काटती हैं, तो पारिवारिक कष्ट और उलझनों का सामना करना पड़ता है।
21. भाग्य रेखा मध्य में खण्डित होने से या टूट जाने से कुछ समय के लिए जीवन निष्क्रिय हो जाता है।
22. भाग्य रेखा से हृदय रेखा की ओर जाने वाली छोटी रेखायें हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम का ऐसा भी क्षण आता है कि जिनका अन्त विवाह बाद भी नहीं होता।
23. त्रिकोण से (दोनों हाथों में) शुरु होने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति को बौद्धिक योजनाओं में सफलता प्रदान करती है।
24. भाग्य रेखा के शुरुआत में टेडी मेडी रेखा एवं श्रृंखला व्यक्ति के बचपन में कष्ट का संकेत देती है।
25. भाग्य रेखा मध्य में हल्की पड़ जाने से उसके मध्य जीवनकाल में सुखमय समय का प्रतीक है।
26. दोनों हाथों में बुध पर्वत पर जानेवाली भाग्य रेखा व्यापार में सफलता देती है।
27. शुक्र पर्वत से एक गहरी रेखा भाग्य रेखा की ओर जाये तो व्यक्ति हिंसात्मक काम भावना वाला होता है।
28. यदि इसी रेखा के साथ अन्य रेखा भी जाती हो तो भारी बाधाओं पर आनन्दपूर्ण विजय होती है।
29. भाग्य रेखा पर नीचे की ओर जाने वाली शाखायें व्यक्ति को आर्थिक कष्ट देती है।
30. भाग्य रेखा तीन जगह से बीच में टूटने से वात रोग द्वारा कष्ट होता है।
31. अगर भाग्य रेखा को कोई अन्य शाखा काटती हुई बुध की जाली को पार कर जाये तो व्यक्ति की बेईमानी उसे ले डूबती है तथा उसे पश्चाताप करना होता है।
32. चन्द्र क्षेत्र से सूर्य या बुध क्षेत्र को सीधी जाने वाली भाग्य रेखा व्यक्ति को व्यापार से महान सफलता दिलाती है। ऐसे लोगों को साहित्य और कला में भी सफलता मिलती है।
33. मष्तिष्क रेखा से शुरु होने वाली भाग्य रेखा का व्यक्ति शराब या नशीले पदार्थों की दुकान आदि चलाता है।
34. जिन हाथों में भाग्य रेखा नहीं पायी जाती वे जीवन में सफल तो होते हैं पर उनमें विशेष निखार या तेज नहीं पाया जाता है। ऐसे लोगों को सामान्य सुखी कहा जा सकता है।
सभी प्रकार की भाग्य रेखा का फल पढ़े - भाग्य रेखा का फल हस्तरेखा