मंगल क्षेत्र (Mars) - Hastrekha
हथेली में मंगल के दो स्थान माने गए हैं :
(1) जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान के नीचे, इसी रेखा से घिरे हुए शुक्र स्थान के ऊपर फैला हुआ भाग मंगल का पर्वत कहलाता है।
(ii) मंगल के प्रथम क्षेत्र के ठीक विपरीत दिशा में हथेली के किनारे पर हृदय और मस्तिष्क रेखा के बीच का स्थान मंगल का दूसरा क्षेत्र माना गया है।
संक्षेप में मंगल का प्रथम क्षेत्र जातक को शारीरिक रूप से प्रभावित करता है और दूसरा क्षेत्र जातक को मानसिक रूप से प्रभावित करता है। यदि प्रथम क्षेत्र सुविकसित हो तो जातक संघर्ष करनेवाला होता है।
हिंसा और क्रोध की भावना प्रकट होते देर नहीं लगती। ऐसे जातक अपने को उन्मुक्त समझते हैं।
अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप या अपने ऊपर किसी का नियंत्रण इन्हें स्वीकार नहीं होता। ये नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं और मात्र इसी गुण के कारण सामान्य बुद्धि के होने पर भी उच्च एवं उच्चतम पद तक पहुँचकर अपने उत्तरदायित्व को संभाल लेते हैं। अपने उद्देश्य की पूर्ति में किसी बाधा की परवाह नहीं करते। हठी बन जाते हैं। उनका निर्णय पत्थर की लकीर होता है। बनाई गई योजना को पूरा किए बिना चैन नहीं होता।
वे अपने गुरुजनों या अभिन्न मित्र तक के विचारों को भी टालने में नहीं हिचकते यदि उन्हें स्वयं नहीं जैच रहा हो। अपने कार्य एवं विचारों में दखल देखकर विरोध करने के प्रसंग में लड़ाई-झगड़ा भी करना पड़े तो ये चूकते नहीं हैं। क्रोध इनका अस्थायी होता है। अभी आया, अभी गया। कभी-कभी तो ये क्षणभर बाद ही अपने किए पर पश्चाताप करने लगते हैं।
यह सब मंगल के प्रथम क्षेत्र के विकसित होने का प्रभाव है। ऐसे जातक की यदि मस्तिष्क रेखा सुंदर सुस्पष्ट नहीं हो तो स्पष्ट है कि सोचने-समझने की क्षमता कम होगी। परिणामतः जातक क्रोध का शिकार बनकर समय-समय पर संकट में धिर जाता है। उन्हें अपने आप पर नियंत्रण नहीं होता।
ऐसा भी होता है कि स्वयं क्रोध में जल रहे होते हैं, पर सामने से जीवन की दिशा को ही बदलनेवाला अवसर निकल जाता है। ऐसे जातक अपने जीवन में प्रेम और गृहस्थी के क्षेत्र में सुखी नहीं माने जाते। ऐसा योगायोग कम ही होता है ऐसे जातक को कि उसके दांपत्य जीवन में दरार न पड़े। नितिन कुमार पामिस्ट
यदि ऐसी दरार न भी पड़े तो फिर पुत्र या पुत्रों के साथ अवश्य पड़ती है। पिता और पुत्र के बीच दूरी होती है। यदि सभी पुत्रों से न भी हो तो कम से कम प्रथम पुत्र का मानसिक विचार तो अवश्य ही भिन्न होता है। इन्हें ज्वर एवं रकतदोष की शिकायत की संभावना रहती है। मस्तिष्क की मिगी आदि जैसी बीमारी होने की संभावना रहती है।
सिरदर्द, दंतरोग आदि के भी शिकार हो सकते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा टूटी जैसी हो तो वृद्धावस्था में ही सही लेकिन मूच्छा, चक्कर आदि जैसे कष्ट होते ही हैं। इन्हें प्रारंभ से ही अपने आपको नियंत्रण में रखने का अभ्यास करना चाहिए। नशासेवन इनके लिए विशेष अहितकर है। यद्यपि नशासेवन इनकी कमजोरी होती है।
शांतिपूर्ण नीद इनके लिए सेवनीय है। मनोरंजन के लिए कुछ क्षण निकालना इनके लिए हितकर होता है। नितिन कुमार पामिस्ट
यदि जातक क्रोध जैसे दुर्गुण पर नियंत्रण रख सकें तो जीवन में अपने लक्ष्य पर पहुँचने में सफल होते हैं। मंगल का प्रथम क्षेत्र यदि अति विकसित हो तो जातक स्वभाव से दुराचारी, अत्याचारी, झगड़ालू और अपनी सही-गलत बातों में अनुचित समर्थन पाने का प्रयास करता है। यदि झुकाव शुक्र की पर्वत की ओर हो तो बनावटी या व्यर्थ का आडंबर प्रदर्शन में रुचि रखता है। स्वयं डरपोक स्वभाव के होने पर भी दूसरों के सामने बहादुरी का प्रदर्शन करता है।
मंगल पर्वत पर क्रॉस (Cross X) का चिहन दिखलाई दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु निश्चय ही युद्ध में या चाकू लगने से होती है। यदि स्पष्ट किसी क्रास का चिहन न हो और आड़ी-तिरछी रेखाओं से जालसदृश रचना बनी हो तो मृत्यु दुर्घटना से होगी।
यदि द्वितीय क्षेत्र का मंगल विकसित हो, जैसा कि प्रारंभ में ही कहा गया है, तो इसका स्थान प्रथम क्षेत्र के सामने विपरीत दिशा में हदय और मस्तिष्क रेखा के बीच में होता है। यह पर्वत जिस जातक के हाथ में विकसित होता है वह प्रथम क्षेत्र विकसित वाले जातक से पूर्णतः भिन्न, विपरीत होता है।
जहाँ प्रथम क्षेत्र वाले जातक शारीरिक रूप से निडर, जोशीले, क्रोधी एवं आवेशपूर्ण होते हैं, वहीं द्वितीय क्षेत्र वाले लड़ाई-झगड़े से दूर रहना चाहते हैं, रक्तपात देखना या करना इनके वश की बात नहीं। नितिन कुमार पामिस्ट
हाँ, इसका अर्थ यह नहीं कि ये लड़ते नहीं है। लड़ते हैं ये भी पर मानसिक रूप से। बुद्धि की लड़ाई में ये प्रथम क्षेत्र वाले को बहुत पीछे छोड़ देते हैं। ये बातों को सही ढंग से कहने या तर्कयुक्त बहस के जरिए ही अपनी समस्या को सुलझाने में सफल होते हैं। प्रथम क्षेत्र वालों की तुलना में हठी ये भी कम नहीं होते, पर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कभी तलवार उठाने के पक्ष में नहीं होते।
अपने प्रतिस्पर्धी के साथ भी ये हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं, पर अवसर पाते ही अपना उल्लू सीधा कर प्रतिस्पधी या विरोधी को पराजित कर देते हैं। ये अच्छे संगठनकर्ता होते हैं।
ये युद्धकर्ता नहीं, युद्ध के संयोजक होते हैं। अपनी योजना में सफल होने के लिए हर तरह की कूटनीति का प्रयोग करते हैं। चाहे इन्हें अपने विरोधी के प्रति विश्वासघात ही क्यों न करना पड़े, ये नहीं हिचकते। यदि हथियार के रूप में इन्हें इस्तेमाल करने के लिए तलवार और विष दिया जाए तो ये विष ही पसंद करेंगे क्योंकि तलवार इनके वश की बात नहीं होती। ऐसे जातक रहस्यपूर्ण आकर्षण के केंद्र होते हैं। अतः ये अपने इस गुण का दूसरों पर जाने-अनजाने प्रयोग भी करते हैं।
ये सफल सम्मोहक (Hypnotist) हो सकते हैं और गुप्त विद्या के ज्ञाता भी। ये इनके रुचि का विषय होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा सुंदर सुस्पष्ट हो एवं सोचविचार की क्षमता अच्छी हो तो ये अपने उपरोक्त गुणों का उपयोग लोगों की भलाई में ही करते हैं। ऐसे जातक सफल चिकित्सक या वैज्ञानिक हो सकते हैं।
क्योंकि प्रथम क्षेत्र वाले यदि शारीरिक शक्ति वाले होते हैं तो द्वितीय क्षेत्र वाले मानसिक शक्ति से संपन्न होते हैं। इनमें मानसिक शक्ति की तेजी इतनी अधिक होती है कि जिस कार्य का प्रशिक्षण पाते हैं वही काम कर नहीं पाते, क्योंकि प्रशिक्षण समाप्त होते-होते इनके विचार ही बदल जाते हैं। जहाँ लाभ ही लाभ दिखता था, वहाँ अब कोई आकर्षण ही नहीं होता।
क्योंकि प्रथम क्षेत्र वाले यदि शारीरिक शक्ति वाले होते हैं तो द्वितीय क्षेत्र वाले मानसिक शक्ति से संपन्न होते हैं। इनमें मानसिक शक्ति की तेजी इतनी अधिक होती है कि जिस कार्य का प्रशिक्षण पाते हैं वही काम कर नहीं पाते, क्योंकि प्रशिक्षण समाप्त होते-होते इनके विचार ही बदल जाते हैं। जहाँ लाभ ही लाभ दिखता था, वहाँ अब कोई आकर्षण ही नहीं होता।
यही कारण है कि अपने गुणों से संपन्न होने के बावजूद जीवन को ठीक से संवारने में जातक सफल नहीं हो पाता। पर हाँ, यदि मस्तिष्क रेखा बलवान हो तो जातक अपने सुलझे विचारों से किनारा ढूंढ़ लेता है एवं ऐसे दुर्गुणों से बच जाता है। सफलता प्राप्त कर लेता है। नित्य व्यवसाय नही बदलता।
अनुकरणशीलता ऐसे जातक में विचित्र तरह की होती है। चाहे अच्छी संगति की हो या बुरे की। जिस वातावरण में होते हैं उसी में बुरी तरह से रैंग जाते हैं। ये अपने अणुओं से भी आगे हो जाते हैं। बुरी संगति में होते हैं तो कुकर्मों में आगे बढ़ जाते हैं। अच्छी संगति में होते हैं तो सद्गुणों में आगे निकल जाते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
अनुकरणशीलता ऐसे जातक में विचित्र तरह की होती है। चाहे अच्छी संगति की हो या बुरे की। जिस वातावरण में होते हैं उसी में बुरी तरह से रैंग जाते हैं। ये अपने अणुओं से भी आगे हो जाते हैं। बुरी संगति में होते हैं तो कुकर्मों में आगे बढ़ जाते हैं। अच्छी संगति में होते हैं तो सद्गुणों में आगे निकल जाते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
प्रौढ़ावस्था के बाद पाचनक्रिया में कुछ गड़बड़ी एवं गुरदे में दोष उत्पन्न होने की संभावना रहती है। मोटापा के भी शिकार हो सकते हैं। इन्हें यथासाध्य अश्लील वातावरण एवं पुस्तकों से दूर रहना चाहिए।
नितिन कुमार पामिस्ट