आंशिक कालसर्प योग के प्रभाव व उपाय
जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु केतु के एक ओर हो तो कालसर्प योग बनता है। यदि राहु केतु की परिधि से एक ग्रह बाहर हो तो अांशिक कालसर्प योग बनता है। ये दोनों ही परिस्थितियाँ व्यक्ति के लिए कष्टकारक होती हैं। राहु व केतु अनिष्ट फलदायक ग्रह हैं तथा छाया ग्रह होने के कारण इनका विपरीत परिणाम कब भोगना पड़ेगा, यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यदि जन्मकुंडली में कालसर्प योग है और उसके लिए उपयुक्त उपाय नहीं अपनाये जाते तो व्यक्ति को आजीवन अन्य ग्रहों का पूर्ण प्रभाव प्राप्त नहीं होता । निरन्तर संघर्ष करने के बावजूद भी व्यक्ति अपने महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त नही कर पाता है ।
कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति का जीवन संघर्षपूर्ण रहता है। कालसर्प योग के अनिष्ट प्रभावों को दूर करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाने की आवश्यकता होती है। आपकी जन्मकुंडली में कालसर्प योग है या नहीं और यदि है तो कालसर्प योग के अनिष्ट प्रभावों का निवारण
करने के लिए आपको क्या-क्या उपाय अपनाने चाहिए इसकी जानकारी आपके लिए आवश्यक है।
आर्छिाक कालसर्प योग-
यदि जन्मकुंडली में राहु केतु की परिधि से एक ग्रह बाहर हो तो अांशिक कालसर्प योग बनता है। यह भी कालसर्प योग के समान ही दुश्प्रभाव देने वाला योग है। इसके अतिरिक्त इस योग में जो भी ग्रह कालसर्प की परिधि से बाहर होता है जीवन में अधिक मिलते हैं।
यदि जन्मपत्री में शनि ग्रह कालसर्प की परिधि से बाहर है तो शनि ग्रह के अधिक दुश्प्रभाव देने वाला आशिक कालसर्प योग बनता है। शनि ग्रह सामान्यतया जीवन में व्यक्तियों से मित्रता, क्रूर कर्म तथा कठोर मेहनत का कारक होता है। कालसर्प योग से शनि ग्रह बाहर होने के कारण आपको जीवन में शनि ग्रह से संबंधित अशुभ फल अधिक मिलने की संभावना रहेगी। इसके प्रभाव से आपको महत्वपूर्ण कार्यों के अन्तिम चरण में असफलता, निराशा जीवन के प्रति उदासीनता, चिन्ता व वैराग्य की भावना, दीर्ध अवधि के रोग, मानसिक प्रति अनास्था, पैतृक सम्पति व अच्छे वाहनों से हानि, कब्ज का रोग, जोड़ों के दर्द, मुकदमे में हार, कान में दर्द या अन्य रोग या बहरापन आदि से शक्तियों का सदुपयोग करने में असमर्थ रहेंगे। इन सब दुश्प्रभावों को दूर करने के लिए आपको कालसर्प शांति के उपाय अवश्य करने चाहिए।
आंशिक कालसर्प योग को अब एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।
ऊपर दी गई जन्मपत्री में शनि के अतिरिक्त सभी ग्रह राहु केतु के एक ओर स्थित हैं। राहु की स्थिति द्वादश भाव में है। इसलिए इस जन्मपत्री में शेषनाग नामक कालसर्प योग हे | इसके दुश्प्रभाव के कारण व्यक्ति के अनेक गुप्त शत्रु होते हैं। जीवन में प्राय: लड़ाई झगड़े का सामना करना पड़ता है। विजयी होने के पश्चात् भी अन्ततः पराजय को इोलना पड़ता है। अiखों के कष्ट होते हैं । सिर के पिछले भाग में चोट लगने का भय रहता है | यह दुर्योग व्यक्ति को चिन्तायें अधिक देता है।
कालत्सर्प शांति के उपाय-
1. कालसर्प योग के दुश्प्रभावों को दूर करने के लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को कालसर्प शाति यज्ञ मे भाग लेना है । विधिवत् कालसर्प शांति पूजा के द्वारा आप इस दुर्योग के अशुभ परिणामों से हमेशा के लिए बच सकते हैं। इस महायज्ञ में भाग लेने के लिए हमारे कार्यालय में फोन द्वारा सम्पक करके आप तिथि व समय आदि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वर्ष 2017 में यह पूजा शुक्रवार 28 जुलाई को सम्पन्न होगी।
2. हर रोज प्रातः एक माला सर्प गायत्री मंत्र का जाप करें।
सर्प गायत्री मंत्र है-
''ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।'
3. भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय:' अथवा महामृत्युंजय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें।
4. घर में पारद शिवलिंग और कालसर्प यंत्र की स्थापना करें।
5. हर वर्ष नागपंचमी की दिन व्रत करें सपों की पूजा करें और उनके लिए दूध आदि हेतु सपेरों को दक्षिणा दे |
6. भगवान कृष्ण की पूजा करें। घर में मोर पंख लगायें । 7. धातु के बने 108 नाग-नागिन जल में प्रवाहित करें।
8. पक्षियों को जो डालें या बहते जल में जो प्रवाहित करें।
9. गले में रुद्राक्ष व सीप से निर्मित विशेष कालसर्प शांति माला धारण करें।
10. कालसर्प शांति लॉकट धारण करें | कालसर्प यंत्र के नीचे गोमेद व लहसुनिया लगवाकर नवनाग मंत्र से सिद्ध करें तथा इसे अपने गले में धारण करें। इससे आपको इस दुर्योग के दुश्प्रभाव से शांति मिलेगी। यह सवधिक लाभदायक तथा शांति प्रदान करने वाला उपाय है।
नितिन कुमार पामिस्ट