Graho Aur Rashi Se Rog Pata Karna | Astrology


Graho Aur Rashi Se Rog Pata Karna | Astrology

ज्योतिष में राशियों और नवग्रहों के रोग - ASTROLOGY

ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में कालरूपी पुरुष के शरीरके विविध अंगों मे मेष से लेकर मीन तक बारह राशियो की स्थापना की गयी है, जिसके आधार पर उसके अंग रोगग्रस्त या स्वस्थ हैं,

ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में कालरूपी पुरुष के शरीरके विविध अंगों मे मेष से लेकर मीन तक बारह राशियो की स्थापना की गयी है, जिसके आधार पर उसके अंग रोगग्रस्त या स्वस्थ हैं, यह जाना जा सकता है ज्योतिषशास्त्र की मान्यता के अनुसार मेष राशि-सिर , वृष राशि - मुख , मिथुन - भुजा , कर्क-हृद्य , सिंह - पेट , कन्या-कमर , तुला-वस्ति, वृश्चिक-गुप्तांग, धनु-ऊरू, मकर-घुटने, कुम्भ-जंघा तथा मीन राशि पैरो का प्रतिनिधित्व करती है।

राशिया
मेष आदि बारह राशियाँ स्वभावत: जिन-जिन रोगो को उत्पन्न करती हैं, वे रोग इस प्रकार हैं.
मेष-नेत्ररोग, मुखरोग, सिरदर्ट, मानसिक तनाव तथा अनिद्रा
बृष-गले एवं श्वासनलीके रोग, ऑख, नाक एवं गलेके रोग
मिथुन-रक्तविकार, श्वास, फुफ्फुस रोग
कर्क-हृदयरोग तथा रक्तविकार
सिहं-पेट रोग तथा वायुविकार
कन्या - आमाशय के विकार, अपच, जिगर और क्रमरदर्द
तुला - मूत्राशयके रोग, मधुमेह, प्रदर एबं बहुमूत्र
वृश्चिक-गुप्तरोग, अगन्दर, संसर्गजन्यरोग
मकर – वातरोग, चर्मरोग, शीतरोग, रक्तचाप
कुम्भ-मानसिकरोग, ऐंठन, गर्मी, जलोदर
मीन - एलजीं, गठिया, चर्मरोग एबं रक्तविकार

नवग्रह
सभी पापग्रह रोगोंको उत्पन्न करते हैं, यदि ये शुभ स्थिति में न हो तो भी रोगोंको देते हैं।

सूर्य के रोग - आंखोकी रोशनि कम होना , अंधापन सिर तथा नेत्रपीड़ा , ज्वर, अतिसार, क्षय, पित्तविकार, अग्नि या आग्नेय शस्त्र तथा लकड़ी से पीड़ा करता है।
हदय तथा पेट मे रोग, शत्रु से भय कराता है। चर्मरोग,अस्थिभंग, स्त्री-पुत्रहानि, पशु-राजा और चोरसे हानि, देवता-ब्राह्मणभुत तथा सर्पसे भय उत्पन्न करता है।
अपमान, पठावन्ननि, जीवनशक्तिका हास, चिडचिडा होना आदि ।

चंद्रमा के रोग - चंद्रमा कमज़ोर हो तो निद्रा न आना, अत्यधिक नींद आना, नींद में चलना, नींद से संभंधित रोग, फोड़ा, बदहजमी, ठम्न, स्त्री या स्वीटेवता से पीड़ा शीतज्वर, रक्तविकार, खूनकी कमी, रक्तनसम्बन्धी सञ्चमी बीमारी, जलतन्तु, जलटशावाले पशु से पीडा, जलमें डूबना, सींगवाले पशुओं से पीडा आदि।

मंगल के रोग - मंगल पापदृष्ट या पीड़ित हो तो मांस , मज्जादोष (सूखारोग), रक्तकोप (रक्तमें खराबी), ज्वर, पित्तदोष, क्षत्रियोंसे पीडा, राज्याधिकारी से पीड़ा, अंगुलिया सूजना, निष्ठुरता वायुगोला, आईसे क्लेश, शत्रु चोरसे पीड़ा, बायें कानके रोग, टायफाइड, मूत्रपिण्डमें तकलीफ , माता निकलना, पथरी एवं गुर्दोंके रोग आदि होने हैं।

बुध के रोग - यदि बुध पापग्रह से युक्त या पापग्रहसे दृष्ट हो तो भ्रम, शंकाकी आदत, सन्तिपात-ज्वर, दुष्ट सपने आना, संग्रहणी, पेचिश तथा अतिसार आदि रोग होते हैं।

गुरु के रोग – गुरु यदि पापयुक्त या पापदृष्ट हो तो आँतके रोग, मूछ आना, दिमाग सुन्न हो जाना, शोक - विलाप, किसी अंगमें सूजन, रक्तसंचरणसम्बन्धी रोग, खूनका थक्का जमना, मोटापा, वमनपीडा , कर्णपीड़ा,गुरु या ब्राह्मणका शाप, लीवरके दोष, पीलिया तथा मधुमेह आदि।

शुक्र के रोग - यदि शुक्र पापदृष्ट या इससे युक्त हो तो प्रमेह, बहुमूत्रपीड़ा, पेशाब रुकना,प्रदररोग, मूत्रमें जलन, मूत्र रुकरुककर आना, गुर्द ठीकसे काम न करना, नेत्ररोग, शरीर पीला पड़ना,गुप्तांगरोग, अत्यधिक कामपीड़ा (व्यभिचार) दुष्ट स्त्रीयोंकी संगति, नपुंसकत्व गर्भाशय-सम्बन्धीरोग,गलेके रोग, चकत्ते होना, गले और स्तनके रोग,श्वारोग, दमा, श्वेत कुष्ठ, दमेसे सांस फूलना इत्यादि रोग।

शनि के रोग - शनि पापदृष्ट या इससे युक्त हो तो बहुत पीड़ादायक, बहुत ज्यादा बहकना, पैर दुखना, पिण्डलियाँ दुखना, जोडों तथा घुटनोंमें दर्द, हृदयमें ताप, हाई-लो ब्लडप्रेसर, दाँतके रोग, दरिद्रता, आलस्य, लकवा, कोई भी दीर्घ अवधिक रोग, भूख अधिक लगना, नस-नाडियोंके रोग, जांघ -पिण्डलीके रोग इत्यादि।

राहु के रोग – यदि राहु पापदुष्ट हो तो कुष्ठरोग, हृदयरोग, भूतबाधा, स्मरणशक्ति कमजोर होना, भूख-प्याससे सम्बन्धित बीमारी, छोटी माना (खसरा), पेट में कीड़े, बन्धन (हथकडी रस्सीसे बंधना) आदि होते हैं।

केतु के रोग-यदि केतु पापदुष्ट हो तो सारे शरीरमें खुजली चलना, चित्ती निकलना, प्रेतपीड़ा, दस्त बन्द हो जाना, तान्त्रिकपीडा आठी।