ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दस प्रकार की भाग्य रेखा का विवरण | 10 Types Of Fate Line On Hand Palmistry
भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में चतुर्थ प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।
चतुर्थ प्रकार की भाग्य रेखा वह रेखा कहलाती है जोकि मंगल क्षेत्र से निकलकर, यम क्षेत्र को होती हुई मस्तक रेखा को पार कर हृदय रेखा से निकल शनि क्षेत्र में प्रविष्ट होती है। यदि यह रेखा शनि क्षेत्र तक ही निर्दोष सीमित रहे तो मनुष्य के लिये, महत्त्वपूर्ण मार्ग का प्रदर्शन करने वाली होती है।
ऐसी रेखा से युक्त हाथ वाला मनुष्य चाहे जितना भी परिश्रमी उद्यमी तथा उद्योगी हो फिर भी वह अपने यौवन के आरम्भ काल तक कोई विशेष उन्नति नहीं कर पाता क्योंकि उसकी भाग्य रेखा का प्रारम्भ जीवन काल में देर से होता है। यदि वह मनुष्य विद्यार्थी जीवन व्यतीत कर रहा है तो परीक्षाओं में सफलता बहुत देर से प्राप्त होगी यदि परीक्षा में उत्तीर्ण होता भी रहे तो परीक्षा परिणाम फल निम्न कोटि का ही रहेगा। यदि कोई मनुष्य इसके प्रतिकूल उन्नति करता है तो दूसरी सहकारी रेखाओं का पूर्ण रूप से सहयोग प्राप्त समझना चाहिए।
अन्यथा केवल भाग्य रेखा के आश्रय तो उसका जीवन, चाहे निर्धनता के कारण या किसी देवी आपत्ति के कारण, या फिर अपनी ही भूल के कारण या कुसंगति के कुप्रभाव के कारण श्रमसाध्य होने पर भी कष्टसाध्य ही रहेगा। ऐसे व्यक्ति को अपने पुरुषार्थ के अधिकतम भाग को परिश्रम द्वारा कार्यान्वित करते रहने पर भी न्यूनतम सफलता का ही उपभोग प्राप्त होता है।
किन्तु फिर भी इसका यह अर्थ कभी नहीं है कि ऐसे लक्षणों से युक्त मनुष्य का कभी भाग्योदय होगा ही नहीं या वह कभी अपने जीवन में सुख का अनुभव करेगा ही नहीं। वह उन्नति करेगा और अवश्य करेगा किन्तु यह समय उसके यौवन के मध्य या अन्तिम भाग से प्रारम्भ होकर जीवन पर्यन्त रहेगा, बशर्ते कि उसको कोई ऐसी अवरोध रेखा न काटती हो या रोकती हो जो कि उसके जीवन पथ को कंटकाकीर्ण बना कर उसे पथ से अष्ट करने में समर्थ हो जाय । ऐसा व्यक्ति, किसी सामर्थज्ञान मनुष्य की सहायता से ही अपने जीवन मार्ग को उन्नति की ओर ले जाता है।
यह एक निर्विवाद बात है कि ऐसे लक्षणों से युक्त मनुष्य को जब से उसको भाग्य रेखा का प्रारम्भ होता है, एक धनिक, हृष्ट, पष्ट, बलवान तथा प्रभावशाली मनुष्य का सहयोग प्राप्त होगा जोकि उसके समस्त कायों में सहायता प्रदान कर उसके जीवन को सफल इनाये बिना नहीं रह सकता। वह मनुष्य पुलिस तथा सैनिक विभाग में नौकरी करने, व्यापारी होने पर लाल वस्त्र तथा लाल ही वस्तुओं के व्यवसाय से ही लाभ भी प्राप्त हो सकता है और वह अपने जीवन को भविष्य में सुख और शान्ति से व्यतीत करने में पूर्णतया सफल हो सकेगा। ऐसे मनुष्य ईर्षालु तथा झगड़ालु स्वभाव के होने पर भी दयालु तथा धार्मिक प्रकृति के होते हैं।
ये लोग, पूजा पाठ, जप-तप मंत्र-तंत्र स्वाध्याय आदि पर पूर्ण आस्था रखते हैं और आन को निभाने के लिए प्राणों की भी परवाह नहीं करते। यदि इस प्रकार की भाग्य रेला मंगल क्षेत्र से बकर मस्तक रेखा पर ठहर जाती है तो समझना चाहिए कि उस मनुष्य ने अपने मस्तिष्क की चपलता से; शीष की चोट के कारण या किसी उन्माद या पागलपन के कारण, उस बाहरी सहायता को ठुकरा दिया है जोकि उसकी पथ प्रदर्शक थी।
यदि इसी प्रकार यह रेखा हृदय रेखा से आगे न बढ़कर वहीं रुक जाती है तो समझना चाहिये कि इसके हृदय की मलिनता, उदासीनता, चंचलता, प्रेमोन्माद ने इस मनुष्य को इसके उन्नति पथ से दूर हटा दिया है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । या किसी को मोह उसके उन्नति पथ पर बाधक रहा है ऐसा समझना चाहिये और यदि यह रेखा बिना विरोध, शनि क्षेत्र पर स्वतः ही ठहर जाती है तो इच्छापूर्वक किसी भी एक दिशा में उन्नति करेगा।
इसकी मध्यमावस्था सुख और शान्ति से व्यतीत होगी और वृद्धावस्था उदासीन तथा उदार रहेगी। इस रेखा का टूटकर आगे बढ़ना सहसा आपत्ति का आना प्रदर्शित करता है। विरोधी रेखाओं का काटना, इसका लहरदार होना रेखा में द्वीप पड़ना, शृंखलाबद्ध होना, धन, जन, मन सम्पत्ति आदि की हानि को प्रदर्शित करता है। इन दोषों से निकलकर फिर सुन्दर, साफ और स्पष्ट भाग्य रेखा का हो जाना, विपत्ति से निकलकर फिर उन्नति को प्राप्त करने का साधन बन जाती है ।
इस रेखा का सहसा टूट जाना दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना को प्रत्यक्ष लक्षण है जोकि किसी समय भी आपत्ति ला सकता है।