ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दस प्रकार की भाग्य रेखा का विवरण | 10 Types Of Fate Line On Hand Palmistry
भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में पंचम प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।
पंचम भाग्य रेखा :--पंचम प्रकार की भाग्य रेखा वह कहलाती है। जोकि विशेष रूप से जीवन रेखा से ही निकलती है किन्तु इसके लिये कोई स्थान विशेष ही निर्धारित नहीं है । यह भाग्य रेखा जीवन रेखा के किसी भी भाग से (शुक्र क्षेत्र से, राहु क्षेत्र से, या मंगल क्षेत्र से) अर्थात किसी भी क्षेत्र या स्थान से निकलकर ऊपर को जाती है। शीर्ष रेखा और हृदय रेखा को पार कर यदि यह भाग्य रेखा स्वाभाविक रूप से शनि क्षेत्र पर ठहर जाती है तो समयानुकूल शुभ फल प्रदान करती है ।
पंचम भाग्य रेखा :--पंचम प्रकार की भाग्य रेखा वह कहलाती है। जोकि विशेष रूप से जीवन रेखा से ही निकलती है किन्तु इसके लिये कोई स्थान विशेष ही निर्धारित नहीं है । यह भाग्य रेखा जीवन रेखा के किसी भी भाग से (शुक्र क्षेत्र से, राहु क्षेत्र से, या मंगल क्षेत्र से) अर्थात किसी भी क्षेत्र या स्थान से निकलकर ऊपर को जाती है। शीर्ष रेखा और हृदय रेखा को पार कर यदि यह भाग्य रेखा स्वाभाविक रूप से शनि क्षेत्र पर ठहर जाती है तो समयानुकूल शुभ फल प्रदान करती है ।
यदि यह रेखा मध्यमा उगली के प्रथम बन्द को स्पर्श करती हुई प्रथम, द्वितोय या तृतीय पोरुए तक पहुँच जाये तो अत्यन्त अशुभ फल प्रदान करती है । ऐसा मनुष्य गुणवान होने पर भी अपने गुणों का विकास नहीं कर पाता, उसके सभी गुण अन्य मनुष्यों के आश्रय से विकसित होते हैं। यदि उचित समय पर सहायता न मिली तो सभी गुण दबे से रहते हैं। और उस मनुष्य का जीवन चिन्तित तथा उदास ही बना रहता है। वह मानसिक क्लेश से सदा ही व्यथित रहता है। उसका प्रारम्भिक जीवन, सम्बन्धयों के अधीन ही व्यतीत होता है। सुन्दर भोजन तथा 'मुन्दर वस्त्र तक की कभी-कभी व्यवस्था नहीं होती ।
उसको अपना जीवन सुखमय बनाने के लिये अत्यन्त कठिन परिश्रम करना पड़ता है फिर भी वह सुख से नहीं रह पाता। कोई न कोई शारीरिक या 'मानसिक वेदना उसको दबाये ही रहती है। वह अपने गुणों को प्रशंसा का इच्छुक होता है किन्तु कहीं भी उचित पारितोषिक पाने के रहता है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वह अपने जीवन का उन्नति का मुख ही नहीं देख पाता।
यदि उस मनुष्य को अपने पराली काल में किसी अच्छे व्यक्ति का सहयोग प्राप्त हो जाता है तो वह अपने प्रारम्भिक जीवन से ही उत्तरोत्तर उन्नति करता चला जाता है किन्त उसकी अपने पुरुषार्थ द्वारा उन्नति का श्रीगणेश उसी समय से होता है जब से यह भाग्य रेखा जीवन रेखा से पृथक् होकर अपना सीधा मार्ग ग्रहण करती है।
यह रेखा जितनी साफ, सुन्दर, पतली, गहरी तथा निर्दो होगी उतनी ही गुणों का विकास करने में समर्थ रहेगी। ऐसा मनष्य अपने जीवन के मध्य काल में उन्नति की ओर अग्रसर होता है । सौभाग्यवश यदि हाथ की बनावट उत्तम प्रकार की हुई, गुरु, शुक्र, सूर्य और बुध क्षेत्र उत्तम फलदायक हुए तो ऐसा मनुष्य उत्तम कोटि का कलाकर, चित्रकार, दस्तकार तथा व्यवहार कुशल व्यापार से (वाणिज्य) समुचित लाभ उठाने वाला होता है। उसको अपने कलापूर्ण कार्यों के लिये समुचित, यश, कीर्ति पारितोषिक तथा धन प्राप्त होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । जिस प्रकार उसकी अवस्था प्रौढ़ होती जाती है उसी प्रकार उसकी क्रियाशीलता, परिश्रम, उद्योग, तथा पुरुषार्थ भी योग्यता के अनुसार प्रौढ़ तथा शुभ फलदायक होता जाता है।
उसका भाग्य, उसके जीवन में शुभ घटनाओं का साथ देने लगता है और परिस्थिति उसके अनुकूल होकर उसके जीवन में चार चाँद लगा देती है और वह सुखमय जीवन व्यतीत करता है। किन्तु यदि यह भाग्य रेखा, जीवन रेखा से पृथक् होने के पश्चात् भी किसी प्रकार से दूषित हो रहे (जैसे भाग्य रेखा का लहर दार होना, द्वीपदार होना, टूट-टूटकर ऊपर को चढ़ना, शनि क्षेत्र पर पहुँचने से पहले ही मस्तक रेखा पर या हृदय रेखा पर या अचानक किसी भी स्थान पर ठहर जाना,) तो मस्तिष्क, हृदय प्रेम या उन्माद अथवा किसी दुर्घटना के कारण, उसके उन्नति न कर सकने व लक्षण है।
प्रत्येक मनुष्य के उत्थान-पतन, उन्नति और ति का प्रत्यक्ष कारण उस मनुष्य के हाथ की निर्दोष तथा सदोष वाओं पर बहुत कुछ निर्भर है। प्रतिकूल अवरोध रेखाओं का टमा स्थान-स्थान पर काटते रहना, तथा और किसी प्रकार से विरोध प्रकट करते रहना, उन्नति के मार्ग में अड़चनें डालना ही प्रदर्शित करता है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को हाथ में होना, गुरु जनों की, समाज तथा देश की सेवा का भाव उत्पन्न करने का प्रत्यक्ष लक्षण है।
ऐसे लोग कष्टसाध्य जीवन व्यतीत करके भी परोपकार में रत रहते हैं। इनका परिश्रम तथा ईमानदारी इनको जीवन स्तर ऊँचा उठाने में बहुत कुछ सहायक होते हैं। इनके जीवन का अन्तिम चरण सुखमय व्यतीत होता है। इसमें सन्देह नहीं है ।