ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दस प्रकार की भाग्य रेखा का विवरण | 10 Types Of Fate Line On Hand Palmistry
भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में नवम प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।
हस्तरेखा शास्त्र में 9 वी तरह की भाग्य रेखा | भाग्य रेखा ज्योतिष हस्त रेखा शास्त्र
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हस्तरेखा शास्त्र में 9 वी तरह की भाग्य रेखा | भाग्य रेखा ज्योतिष हस्त रेखा शास्त्र
परिस्थिति तथा योग्यता के अनुसार वह समाज, देश, जाति, वंश और पड़ोस आदि में विशेष सम्मान का अधिकारी होता है और जो रेखा रवि क्षेत्र को जाती है वह प्रदर्शित करती है कि ऐसा मनुष्य किसी व्यापार, या कलापूर्ण कार्यों में विशेष रूप से सफलता पायेगा । ये रेखाएँ जितनी सुन्दर, साफ और स्पष्ट होंगी उतनी ही यशस्वी धन-सम्पत्ति सम्बन्धी सफलता उसको प्राप्त होंगी और जितनी ट्टी, लहरदार, टेढ़ी-मेढ़ी, द्वीपदार या किसी और प्रकार से दूषित होने पर ये दोनों ही दूषित फलदायक होती जाती हैं । गुण-अवगणों में। बदल जाते हैं और यश के स्थान पर अपयश की प्राप्ति होने लगती है।
यदि यह भाग्य रेखा शाखा रहित होकर सीधी मध्यमा बन्द को स्पर्श करती हो या ऊपर पोरुओं पर चढ़ रही हो तो अत्यन्त दूषित फल प्रदान करती है। ऐसा मनुष्य कुचरित्र हो जाता है और अपयश को प्राप्त होता है और वह एक दुखित जीवन व्यतीत करता है। इसके प्रतिकूल यदि यह रेखा सुन्दर, साफ, स्पष्ट, पतली औरग हरी होकर अपने स्वाभाविक रूप से शनि क्षेत्र पर जाती हो तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि ऐसी भाग्य रेखा वाला पुरुष किसी स्त्री के और स्त्री किसी पुरुष के सम्बन्ध में आने के पश्चात् ही अपने-अपने उन्नति के मार्ग को उत्तरोत्तर उन्नत बनाते हैं ।
यह उन्नति उनकी स्थाई और अस्थाई दोनों प्रकार की अपने गुण, कर्म तथा स्वभाव या सहायक रेखाओं की सहायता पर बहुत कुछ निर्भर होती है। इस भाग्य रेखा से युक्त मनुष्य स्वतन्त्र विचारों वाले नहीं होते। उनका मन चंचल; तथा बुद्धि स्थिर नहीं होती जिस कारण वे अपना कोई कार्य समय पर नहीं कर पाने । ये लोग वायदे के पक्के नहीं होते। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।
ये लोग अच्छ कलाकार, गायक शास्त्रीय संगीत में विशारद, वाद्य प्रवीण, चित्रकार, 'वक, कवि, मवक्ता, मूत बनाने वाले इत्यादि शुभ गुणों से युक्त होते हैं। इनकी भाषा बड़ी ही कोमल, सुमधुर और रसिक होती है। जिसमें अश्लीलता और प्रेम का सम्मिश्रण विशेष रूप से पाया जाता है । इनका जीवन विषय वासनाओं से पूर्ण; अधूरा ही रहता है। ये लोग प्रकृति सौन्दर्य की पूजा करने के साथ-साथ जीती जागती प्रतिमाओं तथा स्थिर मूर्तियों की उपानसा भी समान रूप से करते हैं। यदि इनका विवाह या प्रेम सम्बन्ध २४ वर्ष की अवस्था तक न हो पाया तो ये लोग चरित्रहीन हो जाते हैं ।
यूं तो इससे पहले भी इनके गुप्त प्रेम की किवदन्तियाँ प्रसारित हो जाती हैं। ये लोग नशापान या धूम्रपान करने के आदी होते हैं। चाहे कुछ भी हो किन्तु इनका भाग्योदय या बुद्धि का विकास विवाह के पश्चात् या किसी सुन्दर स्त्री से प्रेम सम्बन्ध होने के पश्चात् ही होता है । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । यदि इन मनुष्यों के हाथ में जल यात्रा का यथेष्ट लक्षण न भी हो तो भी ये सुदूर समुद्र यात्रा में समर्थ हो जाते हैं।
इनकी बुद्धि का विकास चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और जल में चन्द्र-प्रतिबिम्ब के समान इनका स्वभाव चंचल, कामासक्त, तथा विषय वासनाओं से पूर्ण होता है। ये लोग अपने कोमल प्रकृति के कारण अपने मित्र की संख्या अतिशीघ्र ही बढ़ा लेते हैं।
इनका मन, इनकी आँखों में होता है जो कि स्त्री प्रेमासक्त की ओर नित्यप्रति नवीनता को ढूढ़ता रहता हैं । ऐसे व्यक्ति समाज बन्धनों, रुढीवादों, वंशपरम्परा तथा कुल की मर्यादादि की कुछ भी परवाह न करके अर्थात् सभी बन्धनों को तोड़कर, शत प्रति शत तो नहीं किन्तु ९० प्रतिशत मनुष्य अवश्य ही, विधर्मी, विजाति, 'विदेशी लड़की से प्रेम विवाह करना पसन्द ही नहीं करते बल्कि प्रेम विवाह (Love Marriage) करते ही हैं। इसके लिए शुक्र क्षेत्र का उठा होना और गुरु क्षेत्र का दबा होना अति आवश्यक होता है । कुछ लोग दूसरे क्षेत्रों के शुभ होने पर-परस्त्री प्रेम में रत रहते हैं किन्तु प्रेम विवाह करने में सफल नहीं हो पाते । कुछ लोग केवल मन बहलावे के लिए ही परस्त्री प्रेम रत रहते हैं ।
यदि वह चन्द्र स्थान से आने वाली हृदय रेखा पर सहसा ठहर जाती है तो निश्चय ही ऐसे मनुष्य के उन्नति पथ में किसी को प्रेम बाधक रहेगा और उसे प्रेम व्यवहार में पूर्ण निराशा रहेगी । उसका जीवन देखने में गम्भीर और उदासीन दृष्टिगोचर होगा किन्तु वास्तव में पूर्ण रूप से अशान्त तथा व्याकुल ही होगा ।
ऐसे लोग हृदय प्रधान होते हैं जोकि भूत भविष्य की सोचे बिना ही मनचाही कर बैठते हैं और कार्य के प्रतिकूल होने पर (बिगड़ जाने पर) मन ही मन पछताते हैं, रोते और चिल्लाते हैं और जन साधारण की दृष्टि में उपहास का पात्र बने, बिना नहीं रहते और जब यह भाग्य रेखा अचानक मस्तक रेखा पर ठहर जाती है तो मनुष्य के प्रेम पथ में उसका स्वयं मस्तिष्क ही बाधक होता है। वह अवसर के प्राप्त होने तक यह निर्णय नहीं कर पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए किम्कर्तव्यविमूढ़ की भाँति जड़वत बैठा रहता है और उन्मादादि या पागल की भाँति चेष्टा करता रहता है। एकाकी जीवन व्यतीत करता है। अकेला ही बैठा-बैठा घंटों अपने आप से बातें करता रहता है।
कुछ लोग उसे दया पात्र समझते हैं तो कुछ उपहास करते हैं। उनका जीवन भी दुखी रहता है। इस रेखा का लहरदार होना उसके प्रेम पथ को उलझनों का द्योतक है । द्वीप का होना उसके प्रेम में एक बड़े भारी बवन्डर का आना प्रदर्शित करता है। श्रृंखलाबद्ध या जंजीर के समान होना उसके जीवन मार्ग में आने वालो प्रेम समस्याओं के विफल मार्ग प्रदर्शन का प्रत्यक्ष द्योतक है।
इस भाग्य रेखा का एक या दो स्थान पर टूटकर ऊपर को बढ़ते रहना, उन्नति में बाधा आने के बाद उन्नति करना और प्रेम सम्बन्ध के टूट जाने के बाद नवीन प्रेम का । होना प्रदर्शित करता है। यदि इन टूटे हुए भागों को कोई तीसरी रेखा उनके समानान्तर चलकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कर रही हो तो उसकी उन्नति या प्रेम सम्बन्ध किसी दूसरे की सहायता या कारणों से स्थिर रह सकते हैं।
यदि किसी हाथ में मणिबन्ध से आने वाली भाग्य रेखा सीधी, साफ, सुन्दर, निर्दोष, स्पष्ट रूप से शनि क्षेत्र को जाती हो और कोई रेखा चन्द्र क्षेत्र से आकर उसमें शीर्ष रेखा के समीप ही मिलती या शीर्ष रेखा पर ही मिलती हो या भाग्य रेखा को स्पर्श कर या काटकर शीर्ष रेखा पर ही मिलती हो तो ऐसे लक्षणों से युक्त हाथ वाले मनुष्य को अत्यन्त शुभ फल प्रदान करती है।
जिसका वर्णन इस प्रकार से है-
प्रथम प्रकार की चन्द्र रेखा जोकि चन्द्र क्षेत्र से निकलकर मणिबंध से आने वाली भाग्य रेखा में विलीन होकर ऊपर को चढ़ती है और ये दोनों मिलकर गंगा-यमुना के समान त्रिवेणी रूप से एक होकर शनि क्षेत्र को जाती हैं । यह रेखा उस मनुष्य के, जिसके हाथ में होती है बहुत से गुणों को विकसित करती है। उसके स्वभाव को कोमल तथा निर्मल बनाती है। तथा उसे दयावान, धार्मिक, दानी, तपस्वी, विद्वान्, दार्शनिक कलाकार, दार्शनिक विशारद, चित्रकार, मूत बनाने वाला, संगीत प्रिय, कवि, स्पष्टवक्ता, वैज्ञानिक, आविष्कारक, अनुसन्धानकर्ता तथा ऐतिहासिक पुरातत्वविघान के लिये उद्योगी आदि-आदि बनाकर उसको यश, कीति, धन, सम्पति परिस्थिति के अनुसार प्रदान करती है।
प्रथम प्रकार की चन्द्र रेखा जोकि चन्द्र क्षेत्र से निकलकर मणिबंध से आने वाली भाग्य रेखा में विलीन होकर ऊपर को चढ़ती है और ये दोनों मिलकर गंगा-यमुना के समान त्रिवेणी रूप से एक होकर शनि क्षेत्र को जाती हैं । यह रेखा उस मनुष्य के, जिसके हाथ में होती है बहुत से गुणों को विकसित करती है। उसके स्वभाव को कोमल तथा निर्मल बनाती है। तथा उसे दयावान, धार्मिक, दानी, तपस्वी, विद्वान्, दार्शनिक कलाकार, दार्शनिक विशारद, चित्रकार, मूत बनाने वाला, संगीत प्रिय, कवि, स्पष्टवक्ता, वैज्ञानिक, आविष्कारक, अनुसन्धानकर्ता तथा ऐतिहासिक पुरातत्वविघान के लिये उद्योगी आदि-आदि बनाकर उसको यश, कीति, धन, सम्पति परिस्थिति के अनुसार प्रदान करती है।
ऐसा मनुष्य यदि कुशाग्र बुद्धि न भी हो तो भी वह विद्या व्यसनी अवश्य होता है । वह हर समय किसी न किसी प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने के लिये तत्पर रहता है और अपने से अधिक ज्ञान वालों का आदर सत्कार सदा ही करता रहता है। उसमें स्वाभिमान की मात्रा अधिक होती है फिर भी उसका जीवन परोपकार तथा दीन दुखियों की भलाई के लिये ही होता है। वह अपने जीवन को दूसरों की भलाई के लिये न्यौछावर कर देने में ही अपने जीवन की सार्थकता मानता है और अपनी बात को निभाने के लिये असम्भव कार्यों को करने की सामर्थ दिखाता है और कभी-कभी अपनी शक्ति 'सामर्थ से कहीं अधिक कार्य कर बैठता है, दान दे बैठता है।
वह विद्यानरोगी होने के साथ-साथ, शास्त्रारागी भी होता है। इन दोनों रेखाओ को एक साथ मिलकर ऊपर को चढ़ना यह बतलाता है कि उसकी कलाकृतियाँ, विद्वता या और अनेक गुण उसके भाग्यानुसार ही आगे को बढ़ रहे हैं और उसका भाग्य उसके गुणों का साथ निबाह रहा है। इसीलिये उसके भाग्य और कार्यों का घनिष्ठ सम्बन्ध हो जाता है जो कि एक दूसरे की सहायता पाकर उत्तरोत्तर विकास को प्राप्त होता है। उसका जीवन सुखमय व्यतीत होता है। समाज के लिये ऐसे व्यक्ति बहुत ही हितकर होते हैं ।
ये लोग पूर्ण रूप से स्वतन्त्र प्रकृति के होते हैं और अपने स्वतन्त्र विचारों को स्थिर रखने के लिये किसी घनिष्ठ प्रेमी या सम्बन्धी का भी आश्रय स्वीकार नहीं करते जिसके लिये आजन्म अविवाहित रहना पसन्द करते हैं। बन्धनयुक्त प्रेम सम्बन्ध भी नहीं रखते और बन्धनमुक्त प्रेम सम्बन्ध में पुर्ण आस्था रखते हैं फिर भी यदि उनकी स्वतन्त्रता में अड़चन आती है तो अपवाद के भय से अपनी वर्षों की मित्रता को तिनके की तरह तजकर क्षणभर में अपना सम्बन्ध समाप्त कर देते हैं। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी विशेषताएँ ऐसे मनुष्यों के जीवन में पाई जाती हैं जोकि पाठक अपने अनुभव जन्मजात ज्ञान से यथा-समय प्राप्त कर सकते हैं।
दूसरे प्रकार की भाग्य रेखा वह होती है जो कि चन्द्र रेखा से चलकर भाग्य रेखा के समीप से होती हुई या उसे स्पर्श करती हुई मस्तक रेखा पर ठहर जाती है। इस प्रकार की ये दोनों रेखाएँ एक दूसरे का साथ बहुत काल तक निभाती रहती है किन्तु अचानक मस्तक रेखा पर इस रेखा का रुक जाना यह प्रदर्शित करता है कि वह मनुष्य जिसके हाथ में ये रेखाएँ हैं अपने पूर्वोक्त गुणों को तब तक सकुशल विकसित करता रहेगा जब तक उसकी अवस्था ३६ वर्ष की नहीं हो जाती ।
दूसरे प्रकार की भाग्य रेखा वह होती है जो कि चन्द्र रेखा से चलकर भाग्य रेखा के समीप से होती हुई या उसे स्पर्श करती हुई मस्तक रेखा पर ठहर जाती है। इस प्रकार की ये दोनों रेखाएँ एक दूसरे का साथ बहुत काल तक निभाती रहती है किन्तु अचानक मस्तक रेखा पर इस रेखा का रुक जाना यह प्रदर्शित करता है कि वह मनुष्य जिसके हाथ में ये रेखाएँ हैं अपने पूर्वोक्त गुणों को तब तक सकुशल विकसित करता रहेगा जब तक उसकी अवस्था ३६ वर्ष की नहीं हो जाती ।
तत्पश्चात् उसके मस्तिष्क की किसी न्यूनता के कारण उसका गुण विकास शिथिल हो जायगा और वह अपने गुणों के कारण अभिवृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकेगा फिर भी यदि उसको भाग्य रेखा बिना अवरोध यदि शनि क्षेत्र को जाती होगी तो उसके भाग्य में किसी प्रकार की कमी नहीं आयेगी यदि ये दोनों ही रेखाये शीष रेखा पर रूक गई हैं तो निश्चय ही ३६ वर्ष में भाग्यास्त हो जायेगा।
तीसरे प्रकार की चन्द्र-भाग्य रेखा वह होती है जो कि भाग्य रेखा को काटकर सीधी शनि क्षेत्र को चली जाती है या फिर मस्तक रेखा पर ठहर जाती है। जो रेखा भाग्य रेखा को काटकर शनि क्षेत्र को जाती है वह बतलाती है कि इस मनुष्य के गुण भाग्य को धक्का देकर आगे बढ़ रहे हैं। और दोनों ही गुण तथा भाग्य स्वतन्त्र रूप से अलग-अलग भाग्य को बनाने वाले हैं जो कि उस धक्के के पश्चात सदा उसकी उन्नति ही करती रहेंगी और दूसरी चन्द्र रेखा जोकि भाग्य रेखा को काटकर मस्तक रेखा पर ठहर जाती है यह बतलाती है कि उस धक्के के पश्चात् अपनी ही बुद्धि की भूल के कारण गुणों की वृद्धि ठहर जायगी और ह्रास हो जायगा और वह मनुष्य जीवन में ३६ वर्ष के बाद कोई विशेष उन्नति नहीं कर सकेगा।
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हस्तरेखा शास्त्र में 9वी तरह की भाग्य रेखा | Bhagya Rekha Jyotish Hast Rekha Shastra
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