उगलियों के बीच का अन्तर :--यदि हाथ की उंगलियों को सीधा मिलाकर देखने से आर-पार उगलियों के मध्य, छिद्रों में से दिखाई दे तो समझना चाहिये कि ऐसा व्यक्ति कभी-कभी आय से भी अधिक खर्च करने वाला होता है और यदि उगलियाँ एक दूसरे से चिपककर बन्द हो जाएँ जिसमें दूसरी ओर का कुछ भी दिखाई न दे तो वह मनुष्य कृपण तथा धनवान होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । तर्जनी और अँगूठे के बीच सभी हाथों में अन्तर पाया जाता है । यह फासला जितना अधिक होगा मनुष्य उतना ही स्वछन्द विचारों वाला होगा और यह फासला जितना न्यून या थोड़ा होगा वह मनुष्य उतना ही अधिक संकुचित विचारों वाला होगा।
उसके प्रत्येक कार्य में संकोच पाया जायगा और यह फासला शनैः-शनै समकोण होने तक जैसे-जैसे बढ़ता जायगा वैसे ही वैसे वह मनुष्य दयालु, स्वतन्त्र विचारों तथा आचरण वाला होता जायगा । इसलिये तर्जनी और अँगूठे के बीच का अन्तर न तो अत्यधिक और न न्यूनतम ही उचित होता है । बल्कि समकोण बनाने वाला अन्तर शुभ होता है। अत्यधिक और न्यूनतम, ये दोनों ही प्रकार के अन्तर सामाजिक तथा साँसारिक व्यक्तियों के लिये कुछ फलदायक सिद्ध नहीं होते।
तर्जनी और मध्यमा के बीच तीसरे पोरुए का छिद्र दयावान तथा दानी होने का लक्षण है। दूसरे और पहले पोरुओं का अलग-अलग होना या छिद्र दिखाई देना विचारों की पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रतीक है।
मध्यमा और अनामिका के तीसरे पोरुए में अन्तर होना भक्त देवाराधक तथा धार्मिक प्रवृत्ति होने का लक्षण है । ऐसा व्यक्ति अपनी प्रशंसा आप स्वयं करने वाला होता है। प्रथम और द्वितीय पोरुओं का पृथक होना या छिद्र दिखाई देना मनुष्य के दृढ विचारो को स्थिर बनाता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ऐसे व्यक्ति तेजवसी तथा घमंडी होता है। किन्तु फिर भी सफल मानव जीवन व्यतीत करने के लिए इन दोनों उंगलियों के बीच अन्तर रहना आवश्यक है। इससे उस व्यक्ति को धन और यह की प्राप्ति होती है ।
कनिष्टिका और अनामिका के तीसरे पारुए का अलग रहना के यौवन तथा प्रौढ़ावस्था में भी बचपन का भाव भरता है। ऐसा का हास्यास्पद गत्प, कहानी, कविता आदि लिखने में अपने स्वतन्त्र विचा को प्रकट करता है। प्रथम और द्वितीय पोरुए के बीच अन्तर होने के किसी भी कार्य में सफलता कम मिलती है और मिले रहने से सफलता खत मिलती है।
यदि कोमल हाथों की उगलियों में अन्तर हो तो मनुष्य के विचारों को स्वतन्त्र और आचरण को स्वच्छन्द बना देता है और ऐसे व्यक्ति सामाजिक बन्धनों से दूर अपना निराला पंथ चलाकर चला करते हैं। वे किमी का व्यर्थ दबाव नहीं सहते और निन्दादि की परवाह न करके अपने कार्य को पूर्ण करके ही छोड़ते हैं। विपरीत इसके जिन हाथों में गलियाँ एक दूसरे से सटी तथा मिली हुई होती हैं वे लोग धर्मभीरू, समाजभीरू होते हैं और रूढ़ियों पर चलकर निन्दा, अपयश से अपनी रक्षा करते हैं। वे लोग दुनिया की कानाफूसी या जगती जनरब से घबराते हैं। जिस कारण कई लाभप्रद कार्य भी छोड़ देते हैं। उन्हें जग की भलाई तथा परोपकार का विशेष ध्यान रहता है। समय-समय पर वे लोग गरीब श्रा दोनों की मदद करते देखे जाते हैं।
तर्जनी और मध्यमा के बीच तीसरे पोरुए का छिद्र दयावान तथा दानी होने का लक्षण है। दूसरे और पहले पोरुओं का अलग-अलग होना या छिद्र दिखाई देना विचारों की पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रतीक है।
मध्यमा और अनामिका के तीसरे पोरुए में अन्तर होना भक्त देवाराधक तथा धार्मिक प्रवृत्ति होने का लक्षण है । ऐसा व्यक्ति अपनी प्रशंसा आप स्वयं करने वाला होता है। प्रथम और द्वितीय पोरुओं का पृथक होना या छिद्र दिखाई देना मनुष्य के दृढ विचारो को स्थिर बनाता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ऐसे व्यक्ति तेजवसी तथा घमंडी होता है। किन्तु फिर भी सफल मानव जीवन व्यतीत करने के लिए इन दोनों उंगलियों के बीच अन्तर रहना आवश्यक है। इससे उस व्यक्ति को धन और यह की प्राप्ति होती है ।
कनिष्टिका और अनामिका के तीसरे पारुए का अलग रहना के यौवन तथा प्रौढ़ावस्था में भी बचपन का भाव भरता है। ऐसा का हास्यास्पद गत्प, कहानी, कविता आदि लिखने में अपने स्वतन्त्र विचा को प्रकट करता है। प्रथम और द्वितीय पोरुए के बीच अन्तर होने के किसी भी कार्य में सफलता कम मिलती है और मिले रहने से सफलता खत मिलती है।
यदि कोमल हाथों की उगलियों में अन्तर हो तो मनुष्य के विचारों को स्वतन्त्र और आचरण को स्वच्छन्द बना देता है और ऐसे व्यक्ति सामाजिक बन्धनों से दूर अपना निराला पंथ चलाकर चला करते हैं। वे किमी का व्यर्थ दबाव नहीं सहते और निन्दादि की परवाह न करके अपने कार्य को पूर्ण करके ही छोड़ते हैं। विपरीत इसके जिन हाथों में गलियाँ एक दूसरे से सटी तथा मिली हुई होती हैं वे लोग धर्मभीरू, समाजभीरू होते हैं और रूढ़ियों पर चलकर निन्दा, अपयश से अपनी रक्षा करते हैं। वे लोग दुनिया की कानाफूसी या जगती जनरब से घबराते हैं। जिस कारण कई लाभप्रद कार्य भी छोड़ देते हैं। उन्हें जग की भलाई तथा परोपकार का विशेष ध्यान रहता है। समय-समय पर वे लोग गरीब श्रा दोनों की मदद करते देखे जाते हैं।
हाथ की सभी उँगलियों के बीच अंतर होना हस्त रेखा | Gap Between All Fingers On Hand Palmistry