ज्योतिष शास्त्र में हाथ में दस प्रकार की भाग्य रेखा का विवरण | 10 Types Of Fate Line On Hand Palmistry
भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में प्रथम प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।
प्रथम भाग्य रेखाः—यह वह भाग्य रेखा है जो कि मणिबन्ध से निकलकर केतु क्षेत्र से होती हुई राहु क्षेत्र को काटकर मस्तक और हृदय रेखा को स्पर्श करती हुई शनि क्षेत्र को जाती है । यह स्वतन्त्र भाग्य रेखा कहलाती है। यह जितनी भी सुन्दर, साफ, स्पष्ट, गहरी तथा पतली होगी उतनी ही शुभ, अच्छी तथा भाग्यशाली समझी जायगी और जिस मनुष्य के हाथ में यह जितनी भी साफ-सुथरी तथा स्पष्ट होगी वह उतना ही भाग्यवान मनुष्य समझा जायगा।
भाग्य रेखा की सीरीज में हम इस पोस्ट में प्रथम प्रकार की भाग्य रेखा की बात करेंगे। आप बाकी की 1 से 10 तक की भाग्य रेखा का विवरण और उनका आपस में सम्बन्ध यहाँ पढ़ सकते है " हस्तरेखा " ।
प्रथम भाग्य रेखाः—यह वह भाग्य रेखा है जो कि मणिबन्ध से निकलकर केतु क्षेत्र से होती हुई राहु क्षेत्र को काटकर मस्तक और हृदय रेखा को स्पर्श करती हुई शनि क्षेत्र को जाती है । यह स्वतन्त्र भाग्य रेखा कहलाती है। यह जितनी भी सुन्दर, साफ, स्पष्ट, गहरी तथा पतली होगी उतनी ही शुभ, अच्छी तथा भाग्यशाली समझी जायगी और जिस मनुष्य के हाथ में यह जितनी भी साफ-सुथरी तथा स्पष्ट होगी वह उतना ही भाग्यवान मनुष्य समझा जायगा।
इस रेखा की पूरी-पूरी सार्थकता तभी तक सिद्ध होती है जब तक यह रेखा हृदय रेखा से निकलकर शनि क्षेत्र तक ही सीमित रहती है और यदि यह रेखा शनि क्षेत्र से आगे बढ़कर मध्यमा उगली को स्पर्श करे या और ऊपर को बढ़कर मध्यमा उगली के प्रथम द्वितीय या तृतीय पोरुए तक बढ़ जाये तो यह रेखा शनि क्षेत्र से आगे को जितनी भी बढ़ती जायगी उतनी ही दूषित, बुरे प्रभाव वाली तथा अशुभ समझी जायगी ।
यद्यपि इसकी लम्बाई दृष्टा की दृष्टि में अत्यन्त शुभ फलदायक होती है फिर भी अत्यन्त अशुभ फल मनुष्य को प्रदान करती है जिस कारण एक हस्त विशेषज्ञ के अतिरिक्त सभी दृष्टा और दिखाने वाले हाथ को देखकर दोखे ही में रह जाते हैं । इस प्रकार की बढ़ती हुई भाग्य रेखा मनुष्य की बनी बनाई आशा को और होते हुए कार्यों को, निराशा में परिवर्तित कर बिगाड़ देती है। सौभाग्य के स्थान पर दुर्भाग्यपूर्ण चित्र का प्रदर्शन करती है। शनि क्षेत्र पर इस प्रकार की भाग्य रेखा का द्विजिह्व हो जाना अत्यन्त शुभ लक्षण है किन्तु इन दोनों शाखाओं में से किसी एक का भी शनि क्षेत्र से बढ़कर मध्यमा उगली का स्पर्श करना या ऊपर को चढ़ना अशुभ फलदायक होता है।
इसके प्रतिकूल यदि इन दोनों शाखाओं में से एक शाखा शुभ शनि क्षेत्र को घेरती हो और दूसरी शाखा गुरु या बृहस्पति क्षेत्र को बिना अवरोव जाती हो तो ऐसा लक्षण अत्यन्त शुभ फलदायक होता है और ऐसे लक्षणों से युक्त मनुष्य जन साधारण में अत्यन्त ही भाग्यवान तथा आदरणीय समझा जाता है। ऐसा मनुष्य परिस्थिति के अनुसार अपने देश, जाति, वंश तथा समाज की उन्नति करने वाला, सब का प्रिय, स्वाभिमानी, आश्रितों का पालक, वचनबद्ध, ठोस कार्य करने वाला, दोनों का प्रतिपालक, अग्रसर, दानी, मुलाकाती, छोटे-बड़े के भेदभाव से दूर, उच्चदिचार, सर्वदा पर हित का विचार करने वाला, मानी, ज्ञानी ध्यानी, कवि, लेखक, गायक, कलापूर्ण कार्यों की प्रशंसा करने वाला, या स्वयं कलाकार होता है।
इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर विद्वतापूर्ण टीका-टिप्पणी करने वाला, महानुभाव होता है। शेर की तरह निर्भय और अपनी बात के पक्ष को निभाने वाला होता है जिसके लिये उसे देश विदेश सब ही जगह स्वतः ही आदर प्राप्त हो जाता है।
प्रतिकूल इसके यदि एक या अनेक अवरोध रेखाएँ इस सुन्दर भाग्य रेखा को काटती हों या किसी प्रकार से विरोध करती हों तो निश्चय ही उसके कार्यों में रुकावट आयेगी और वह निर्वाध रूप से अपनी जीवन तरणि को संसार सागर से पार लगाने में पूर्ण रूप से समथ न हो सकेगा। ऐसा व्यक्ति जिस कार्य पथ पर अग्रसर होगा अन्त में सफल अवश्य ही होगा किन्तु मार्ग बाधाएँ उसे, उस मार्ग से विचलित करने के लिये अनेक अड़चनें उत्पन्न करती ही रहेंगी। ये अवरोध रेखाएँ जितनी कम होंगी उतनी ही सफलता मनुष्य को अधिक तथा शीघ्र होगी और जितनी अधिक अवरोध रेखाएँ इस शुभ भाग्य रेखा का विरोध करेंगी उतनी ही देर से अड़चनों के बाद कष्टमय सफलता प्राप्त होंगी अर्थात् उन्नति के मार्ग में उतनी ही अधिक बाधाये उपस्थित होंगी ।
किन्तु ऐसा व्यक्ति हताश न होकर विघ्न वाधाओं से निश्चिन्त उच्चाधिकार की चेष्टा करता है और विजयी होता है यदि साथ ही इसके शुभ सफलता (रवि-रेखा) रेखा, इस भाग्य रेखा की पूर्ण रूप से सहायक हो तो मनुष्य के भाग्य में चार चाँद लगे बिना रह ही नहीं सकते । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । अर्थात् ऐसा व्यक्ति अपनी अभिलाषा को पूर्ण कर अपने जीवन को धन्य बना लेता है। उसके इष्ट-मित्र ही नहीं बल्कि शत्रु भी उसके मित्र होकर प्रशंसा करते हैं । गृह परिस्थिति के अनुसार, ऐसा व्यक्ति, वंश, जाति समाज तथा देश में आदर पाता है। और विद्वतापूर्ण धर्म कर्म में आस्था रखकर वह सदैव उन्नति ही करता रहता है।
यदि किसी मनुष्य के हाथ की बनावट अशुभ हो और भाग्य रेखा शनि क्षेत्र से आगे को निकलकर मध्यमा उगली के पोरुए पर चढ़ने लगे तो उस मनुष्य की प्रकृति में बहुत कुछ अन्तर आ जाता है। ऐसा मनुष्य अज्ञात की उपासना में रत, उदासीन, चिन्तामग्न तथा असम्भव को सम्भव बनाने की चिन्ता में लग जाता है। उसकी एकान्तप्रियता में यदि किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित हुआ तो वह एक दम आवेश में आ जाता है।
और कभी-कभी अकारण ही बैठे-बैठे अपने प्रति तथा दूसरों के प्रति, कभी भाग्य के प्रति तो कभी ईश्वर के प्रति अपशब्द कहकर एकाकी आवेश को ठंडा करता है जिस कारण उसके इष्ट-मित्र, बन्धु-बान्धव तथा छोटे-बड़े सभी उससे बचकर रहना पसन्द करते हैं। वह अपने चिड़चिड़े स्वभाव के कारण अपने मुयश को खोकर बुराइयों की ओर बढ़ने लगता है और अपने पतन का कारण वह अपने आप बनने लगता है।
हस्त परीक्षक को पूर्वोक्त रेखाओं की परीक्षा करने के साथ-साथ उसके हाथ की हृदय, मस्तिष्क तथा स्वास्थ्य आदि रेखाओं का भी विचारपूर्वक मनन करना चाहिये । उसके हृदय तथा मस्तिष्क रेखा गति से उसके चरित्र का निश्चयात्मक चित्रण कर उसके गुण-दोषों का विवेचन करना चाहिये।
भाग्य रेखा का शनि क्षेत्र से बढ़कर मध्यमा उगली के ऊपर के पोरुए पर चढ़कर जाना जितना दोषपूर्ण तथा अभाग्य सूचक है, मणिबन्ध को काटकर नीचे कलाई पर किसी भी भाग्य रेखा का उतर जाना भी उपयुक्त दोपों तथा दुर्भाग्यपूर्ण सूचनाओं से किसी प्रकार भी कम नहीं है। इसलिये भाग्य रेखा का फलादेश कहते समय अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिये ताकि किसी प्रकार की त्रुटि शेष न रह जाय । यही हस्त परीक्षक के हस्तावलोकन की विशेषता है । भाग्य रेखा का स्वतन्त्र होना मनुष्य के स्वाभिमान तथा स्वपरिश्रम से उन्नति करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है । स्वतन्त्र भाग्य रेखा वाले मनुष्य को अपने जीवन काल में किसी भी सम्बन्धी इष्ट-मित्र की पूर्ण रूप से सहायता नहीं मिल पाती जिस कारण बेचारा अनेक बार, कार्यकुशल होने पर भी अपने लाभान्वित पद, धन, आदर तथा कीति-यशादि से वंचित रह जाता है।
भाग्य रेखा का शनि क्षेत्र से बढ़कर मध्यमा उगली के ऊपर के पोरुए पर चढ़कर जाना जितना दोषपूर्ण तथा अभाग्य सूचक है, मणिबन्ध को काटकर नीचे कलाई पर किसी भी भाग्य रेखा का उतर जाना भी उपयुक्त दोपों तथा दुर्भाग्यपूर्ण सूचनाओं से किसी प्रकार भी कम नहीं है। इसलिये भाग्य रेखा का फलादेश कहते समय अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिये ताकि किसी प्रकार की त्रुटि शेष न रह जाय । यही हस्त परीक्षक के हस्तावलोकन की विशेषता है । भाग्य रेखा का स्वतन्त्र होना मनुष्य के स्वाभिमान तथा स्वपरिश्रम से उन्नति करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है । स्वतन्त्र भाग्य रेखा वाले मनुष्य को अपने जीवन काल में किसी भी सम्बन्धी इष्ट-मित्र की पूर्ण रूप से सहायता नहीं मिल पाती जिस कारण बेचारा अनेक बार, कार्यकुशल होने पर भी अपने लाभान्वित पद, धन, आदर तथा कीति-यशादि से वंचित रह जाता है।
स्वतन्त्र विचारों के कारण वह किसी की विनय (खुशामद) करने में असमर्थ ही रहता है और समय पड़ने पर पीछे रह जाता है। भाग्य और पुरुषार्थ पर पूर्ण विश्वास रखते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता और दुखी जीवन बिताता है। भाग्य और ईश्वर को कोसता है और बैठ जाता है।
ऐसे मनुष्य का क्रोध अस्थाई होता है और जब इन्हें किसी के प्रति स्थाई क्रोध हो जाता है तो ये लोग उसका सर्वनाश ही देखकर जीवित रहना चाहते हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ऐसे लक्षणों से पूर्ण मनुष्य, न तो किसी की बुराई श्रवण ही करना पसन्द करते हैं और न किसी की अधिक बुराई ही करते हैं।
इनमें शत्रु के प्रति प्रतिशोष की भावना उतनी ही प्रबल होती है जितनी कि दीन-दुखियों, इष्ट-मित्रों, भाई-बन्धुओं के प्रति परोपकार की। ऐसे मनुष्य छोटे काम आदि पर विश्वास न करके स्थाई ठोस कार्य द्वारा स्थाई कीति को चाहते हैं। इस प्रकार की इच्छा पूर्ति न होते देखकर ये लोग अज्ञात स्थान पर गुमनाम रहकर मर जाना कहीं पसन्द करते हैं किन्तु आन को बान नहीं लगने देना चाहते । यही इनके जीवन का लक्ष या ध्येय सर्वोपरि समझना चाहिये।
नोट-शायद पाठक स्वतन्त्र भाग्य रेखा का नाम सुनकर यह
अनुमान लगाकर सन्तोष लाभ करें कि स्वतन्त्र भाग्य रेखा स्वतन्त्र पेशे या स्वतन्त्र व्यवसाय का ही प्रतीक है पर बात सर्वत्र ऐसी नहीं है। यह स्वतन्त्र भाग्य रेखा, व्यापारियों, डाक्टरों, वकीलों, दजियों, फ़कीरों तथा और भी बहुत से स्वतन्त्र व्यवसाय करने वालों के अतिरिक्त सरकारी नौकरों के हाथ में बहुतायत से पाई जाती है किन्तु ये सरकारी नौकर विशेष सिफारिश न मिलने के कारण कोई विशेष पदोन्नति नहीं कर पाते । जिन लोगों को सहायता साधन प्राप्त हो जाते हैं, वे सभी उन्नति करके कहीं से कहीं चढ़ जाते हैं और ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते हैं और अभिमानपूर्ण बातें करते हैं।
अनुमान लगाकर सन्तोष लाभ करें कि स्वतन्त्र भाग्य रेखा स्वतन्त्र पेशे या स्वतन्त्र व्यवसाय का ही प्रतीक है पर बात सर्वत्र ऐसी नहीं है। यह स्वतन्त्र भाग्य रेखा, व्यापारियों, डाक्टरों, वकीलों, दजियों, फ़कीरों तथा और भी बहुत से स्वतन्त्र व्यवसाय करने वालों के अतिरिक्त सरकारी नौकरों के हाथ में बहुतायत से पाई जाती है किन्तु ये सरकारी नौकर विशेष सिफारिश न मिलने के कारण कोई विशेष पदोन्नति नहीं कर पाते । जिन लोगों को सहायता साधन प्राप्त हो जाते हैं, वे सभी उन्नति करके कहीं से कहीं चढ़ जाते हैं और ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते हैं और अभिमानपूर्ण बातें करते हैं।
उनमें घमंड की मात्रा दूसरे मनुष्यों से अधिक हो जाती है। इस स्वतन्त्र भाग्य रेखा वाले मनुष्य में स्वाभिमान की मात्रा अधिक होती हैं। इस रेखा को यही एक खास विशेषता है। साथ ही यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि भाग्य रेखा ही नहीं बल्कि कोई भी रेखा जो कि लहरदार है, द्वीपदार है, शृंखलाबद्ध टूटी है या किसी और दोष से दूषित है तो वह शुभ रेखा के अच्छे फलों को भी दूषित बना देती है। किसी भी रेखा पर वर्ग का होना उसके अस्तित्व को स्थिर रखने का प्रत्यक्ष लक्षण है। जोकि हस्त परीक्षक को सदा ही स्मृत रखना चाहिये। यही एक कुशल हस्त निरीक्षक की विशेषता है।