नक्षत्र या तारे के चिह्न का ग्रह क्षेत्रों तथा रेखाओं पर प्रभाव
यद्यपि देखने में अभी तक यही आया है कि नक्षत्र या तारे का स्पष्ट चिन्ह हाथ में देखकर, प्रत्येक हस्त सामुद्रिक शास्त्री प्रेक्षक या पामिस्ट एक दैवी प्रतिभा से दैदीप्यमान होने के समान उल्लास से फूल जाता है। जैसे न जाने सारी वसुधा की सम्पत्ति उसी के हाथ पर ही हो। इसमें कोई सन्देह वाली बात नहीं है कि यह चिन्ह सभी हाथों, सभी क्षेत्रों तथा सभी रेखाओं पर समान शुभ फलदायक होना चाहिये किन्तु स्थिति और समय के अनुकूल होने से किसी-किसी हाथ में जबकि यह अत्यन्त शुभ फलदायक प्रत्यक्ष रूप से प्रतीत होता है तो किसी किसी हाथ में परिस्थिति के बदल जाने पर अत्यन्त ही घातक तथा अशुभ फलदायक भी प्रतीत होता है । इसलिए प्रत्येक प्रेक्षक को हाथ देखते समय हाथ में तारे का चिन्ह देखकर बड़ी ही सावधानी तथा शान्ति से काम लेकर परिस्थिति के अनुसार किसी भी नक्षत्र चिन्ह का शुभाशुभ फल कहना चाहिये ।
एक दम इस चिन्ह से प्रभावित होकर आशातीत बातें करने से किसी भी प्रेक्षक को अपनी त्रुटिपूर्ण बातों के लिये अपमानित होना पड़ता है ऐसा प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है कि यह शुभ क्षेत्रों पर अत्यन्त शुभ फल प्रदान कर किसी भी मनुष्य को उन्नति शील बनाकर प्रत्येक प्रकार से समर्थ बना देता है और अशुभ हाथों के अशुभ क्षेत्रों में पड़कर मनुष्य का सर्वनाश की ओर ले जाकर घातक दुर्घटनाओं द्वारा मृत्यु भय तक प्रदान करता है। जो नक्षत्र छोटा, सुन्दर, साफ तथा स्पष्ट होकर शुभ क्षेत्र पर पड़ता हो अत्यन्त शुभ फलदायक होता है।
विपरीत इसके जो नक्षत्र, अस्पष्ट, बड़ा तथा सदोष होकर किसी भी अशुभ या शुभ क्षेत्र पर पड़ता है उतना ही अधिक अशुभ फलदायक होता है। कहने का तात्पर्य यही है कि यह नक्षत्र चिन्ह न शुभ ही है और न अशुभ ही है। क्योंकि इसका शुभाशुभ फल दूसरे ग्रह चिन्हों तथा रेखाओं की शुभाशुभ परिस्थिति पर ही निर्भर है तो फिर इसका अपना स्वतन्त्र स्वत्व हाथ में बहुत ही कम रह जाता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसकी स्वाधीनता दूसरों के अधीन है। इसलिए नक्षत्र को अच्छा या बुरा कहना कोई अर्थ नहीं रखता। यह सदैव तटस्थ व्यक्ति की भाँति जिधर शक्ति देखता है, उधर ही अपना प्रभाव बढ़ा देता है। शुभ ग्रह क्षेत्रों पर होने से उनके गुणों को बढ़ाता है और अशुभ क्षेत्रों पर होने से उनके गुणों को मलिन करता है। इसलिए प्रेक्षक को बड़ी ही सावधानी से नक्षत्र के तथा ग्रहों के तथा रेखाओं के शुभाशुभ प्रभाव पर दृष्टि रखते हुए अपने फलों की पुष्टि करनी चाहिए ।
नक्षत्र गुरु क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के शुभ गुरु क्षेत्र पर नक्षत्र का शुभ चिन्ह, सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष अवस्था में विद्यमान हो तो उसकी किसी बड़ी भारी उच्च अभिलाषा में सफलता प्राप्त करने का स्पष्ट लक्षण दिखाई देता है। जिसके अन्तर्गत उसकी शक्ति, अधिकार, पदवी, यश, कीति, बड़ाई, इच्छा, बड़प्पन तथा सफलता प्रत्यक्ष रूप से निहित रहती है। यदि यह शुभ चिन्ह उस मनुष्य के बाएँ हाथ में भी गुरु क्षेत्र पर शुभ फलदायक पड़ा हो तो वह मनुष्य निश्चयपूर्वक उच्चाधिकार प्राप्त कर अपनी सफलताओं द्वारा अपनी बलवती इच्छाओं की पूर्ति के लिये किसी शुभ कार्य को करके ही करेगा। ऐसा मनुष्य बड़ा ही धार्मिक, समाज सेवी, मिलनसार, विनम्र, विनीत तथा परोपकारी होता है । ऐसा मनुष्य किसी भी शुभ कार्य द्वारा अपने जीवन स्तर को इतना ऊँचा कर लेता है। कि वह अमर हो जाता है और यदि यह नक्षत्र क्रास के साथ हाथ पर हो तो उस मनुष्य का निश्चयपूर्वक भाग्योदय विवाह के पश्चात् होता है अर्थात् उसका प्रेम या विवाह सम्बन्ध किसी ऐसे बड़े घर होता है कि वहाँ के मिले सामान तथा प्रतिष्ठा से ही उसकी उन्नति हो जाती है।
यदि जीवन रेखा की कोई शाख इस नक्षत्र को गुरु क्षेत्र पर स्पर्श करती हो तो उस मनुष्य को लाट्री या अचानक पारितोषिक (इनाम) रेस, सट्टा आदि से प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त होता है और उसकी बुद्धिमत्ता की प्रखरता का यश दूर-दूर तक फैल जाता है। वास्तव में गुरु ग्रह क्षेत्र के मध्य में शुभ नक्षत्र चिन्ह मनुष्य की मान सम्पत्ति, यश, प्रतिष्ठा तथा अधिकारों को बढ़ाने वाला है। किन्तु यदि यही नक्षत्र चिन्ह ऊपर को बढ़कर तर्जनी के तृतीय पौरुए बन्द को स्पर्श करने वाला हो तो उस मनुष्य की इच्छाओं को पहले से दूना प्रोत्साहन देने वाला होता है, किन्तु उनकी पूर्ति नहीं होती। इस प्रकार इसके शुभ गुण अग में रति के अनुसार बदल जाते हैं।
नक्षत्र शनि क्षेत्र पर:- यदि शुभ शनि क्षेत्र पर नक्षत्र चिन्ह क्षेत्र के मध्य में पड़ा हो तो वह मनुष्य बड़ा ही भाग्यवान, गुणवान तथा प्रसिद्ध होता है। किन्तु ये सभी सुख उसे क्षणिक ही प्राप्त होते हैं। ऐसा मनुष्य चाहे जितना बड़ा व्यक्ति क्यों न हो जाय फिर भी उसका अन्त अच्छा नहीं होता। उसकी मृत्यु समय बड़ी ही दुर्गति होती है। यदि अशुभ शनि क्षेत्र पर नक्षत्र चिन्ह अंकित हो तो उस मनुष्य की मृत्यु किसी अस्त्रशस्त्र से होती है। ऐसे मनुष्य को अधरंग, लकुआ था फालिज आदि की बीमारी होती और व्याकुल होकर निस्सहाय मृत्यु को प्राप्त होता है। यदि यह चिन्ह मध्यमा के तृतीय पोरुए बन्द से स्पर्श करता हो तो ऐसे मनुष्य की मृत्यु किसी ऊँची जगह से गिरकर या फाँसी खाकर या क्रोधावेश में आत्महत्या करके होती है । यदि यह नक्षत्र शुभ हो और साथ ही गुरु क्षेत्र पर भी नक्षत्र हो तो उसका सहयोग किसी पुरातत्ववेत्ता, इतिहासकार अथवा किसी पुरा अनुसन्धानकर्ता से होता है । जिनसे लाभ होने में भी बड़ा खतरा रहता है।
नक्षत्र रवि क्षेत्र पर :-यदि शुभ रवि क्षेत्र पर नक्षत्र चिन्ह छोटा सुन्दर, साफ, स्पष्ट, तथा निर्दोष होकर क्षेत्र के मध्य में सुशोभित हो तो मनुष्य को सब प्रकार घन, जन, सम्पत्ति, जायदाद, यश, मान, बड़ाई, प्रसिद्धि अधिकार, व्यापार में सफलता, कलापूर्ण कार्यों में प्रतिष्ठा प्रदान करता है । जोकि उसको यथा समय प्राप्त न होकर काफी अवस्था व्यतीत हो जाने पर मिलती है। किन्तु फिर भी उसकी मानसिक शान्ति तथा आध्यात्मिक प्रसन्नता कभी भी प्राप्त नहीं होती। यदि अशुभ रवि क्षेत्र पर नक्षत्र चिन्ह अंकित हो तो उस मनुष्य को सफलता कम और अपनी इच्छाओं के विरुद्ध प्राप्त होती हैं। जब वह मनुष्य परिश्रम करते-करते थक जाता है और जब वह जीवन से ऊब जाता है और जब उसे किसी बस्तु की इच्छा या आवश्यकता नहीं रहती तब उसे चिन्तित शोकमग्रावस्था में घनादि सम्पत्ति प्राप्त होती है। यदि यह चिन्ह शुभ रवि क्षेत्र पर रवि रेखा पर स्थित हो तो उस मनुष्य को अत्यधिक प्रसिद्धि तथा घन, मस्तिष्क कलापूर्ण दस्तकारी के लिये प्राप्त होता है और साथ ही आदर भी पाता है।
नक्षत्र बुध क्षेत्र पर :-जिन मनुष्यों के शुभ बुध क्षेत्र पर मध्य में निर्दोष रूप से नक्षत्र चिन्ह स्पष्ट रूप से अंकित हो तो वह मनुष्य कुशाग्नबुद्धि, व्यापारिक सफलता प्राप्त करने वाला, वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक उन्नति आदि शुभ गुणों को लिये हुए उत्पन्न होता है। ऐसा मनुष्य समाजसेवी, प्रसिद्ध वक्ता, मिलनसार और उत्तम लेखक होता है और अपनी बुद्धिमानी से जन साधारण के मन को अपनी ओर आकर्षित करके प्रचुर मात्रा में धन कमाता रहता है। उसके द्वारा किये गये आविष्कार तथा रचा हुआ साहित्य मानव की उन्नति के लिये काफी सामग्री रखता है। यदि अशुभ बुध क्षेत्र पर यह चिन्ह अंकित हुआ तो मनुष्य को चंचल चित्त, धोखेबाज चौर कला में निपुण, तथा निन्द्य कर्म रत बनाकर अपयश प्रदान करता है, जिससे उसके अपने निकट सम्बन्धी पराये होकर साथ छोड़ देते हैं और वह अपमानित होता है।
नक्षत्र प्रजापति क्षेत्र पर :–यदि शुभ प्रजापति क्षेत्र के मध्य में सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष होकर छोटा-सा नक्षत्र अपनी दैदीप्य आभा के साथ सुशोमित हो तो मनुष्य शान्ति, त्याग, परोपकार, साहस तथा वैर्य द्वारा, मान, प्रतिष्ठा, बड़ाई तथा यश प्राप्त करता है और युद्धस्थल तथा वायु युद्ध में सर्वया विजयी होता है। ऐसा मनुष्य अपनी बात का पक्का तथा शब्दों को पूर्ण करने वाला होता है। यदि यही नक्षत्र कहीं अशुभ प्रजापति क्षेत्र पर विद्यमान हो तो अशुभ फल प्रदान करता है। ऐसा मनुष्य सदा ही घरेलू झगड़ों में फैला रहता है और क्रोधावेश में कभी अपना अन्त भी कर लेता है अथवा किसी युद्ध में चोट खाकर मृत्यु को भी प्राप्त हो जाता है।
नक्षत्र वरुण क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के वरुण क्षेत्र पर सुन्दर, साफ, स्पष्ट नक्षत्र का चिन्ह सुशोभित होता है। वह मनुष्य अपनी विद्वता तथा मस्तिष्क कौशल से बहुत बड़ा आदमी होता है और जहाँ-तहाँ से पारितोषिक पाकर सुयश प्राप्त करता है। उसका जीवन परोपकार तथा धर्म के लिये होता है। ऐसा व्यक्ति समाज में आदर पाता है और अपनी अचलवक्ता के प्रभाव से वह अनेक मनुष्यों के हृदयों को अपनी ओर आकर्षित करके सभी का नेता तथा प्रधान बनकर अपनी योग्यता के अनुसार उनको नव मार्ग-दर्शन कराता है। लोग उसको बात तथा योग्यता पर विश्वास करते हैं और वह भी अपनी बात को पूर्ण रूप से पूरा करने में तत्पर रहता है और यदि यह चिन्ह अशुभ क्षेत्र पर हो तो उसके गुणों को अवगुणों में बदलकर सुयश, कीर्ति, लाभ से वंचित रखता है और वह जीवन में तर्क वितर्क करने वाला हो जाता है।
नक्षत्र चन्द्र क्षेत्र पर :--यदि किसी मनुष्य के शुभ चन्द्र क्षेत्र पर नक्षत्र चिन्ह सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष रूप से विद्यमान हो तो वह मनुष्य को काल्पनिक साहित्य के प्राकृतिक वर्णन करने में अत्यन्त सफलता प्रदान करता है । ऐसा मनुष्य बड़ा ही सरस, कलापूर्ण, भावुक तथा नैसर्गिक छटा का अद्वितीय वर्णन करने वाला एक उत्तम कोटि का सर्वप्रिय कवि, लेखक या साहित्यकार होता है। उसकी नवीन शैली मानव समाज में अत्यन्त आदरणीय समझी जाती है और वह मनुष्य अपने कलापूर्ण कार्यों के लिये यश, कीर्ति के साथ-साथ धन लाभ भी करता है। यदि चन्द्र क्षेत्र बड़ा हो और उस पर नक्षत्र का चिन्ह भी विद्यमान हो और अभाग्यवश यदि शीष रेखा इस चिन्ह पर समाप्त होती हो तो उस मनुष्य में मिथ्याभिमान्, अश्लील तथा निन्द्यकोटि की कविता करने का केवल शृंगारिक ढंग रह जाता है। ऐसा मनुष्य नजला जकाम से सदैव पीडित रहता है। इसके अतिरिक्त उन्माद, पागलपन तथा चन्द्र दर्शन से बेहोशी आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं और जिस कारण वे अपनी आत्महत्या तक कर लेते हैं जोकि पानी में डूब कर, नाव उलट जाने पर, विष द्वारा अथवा हस्पताल में किसी शल्यचिकित्सा के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
नक्षत्र केतु क्षेत्र पर :--यदि शुभ केतु क्षेत्र पर स्पष्ट रूप से नक्षत्र का चिन्ह दिखाई देता हो तो उस मनुष्य का लालन-पालन उचित रूप से होता है और उसको धनादि किसी वस्तु की कभी-कमी नहीं होती। ऐसा मनुष्य धार्मिक प्रकृति का सुखमय जीवन व्यतीत करने वाला होता है। और यदि यह नक्षत्र अशुभ केतु क्षेत्र पर पड़ा हो तो ऐसा मनुष्य शोकमग्न, चिन्तित तथा उदास रहता है । वह बड़ा ही धनहीन तथा कर्महीन होता है और अचानक सवारी की दुर्घटना से मृत्यु को प्राप्त होता है ।
नक्षत्र शुक्र क्षेत्र पर :–यदि शुभ शुक्र क्षेत्र पर नक्षत्र का चिन्ह सुन्दर, साफ, पष्ट तथा निर्दोष रूप से उपस्थित हो तो उस मनुष्य को जिसके हाथ में यह चिन्ह होता है, किसी के प्रेम सम्बन्ध में आने पर अथवा विवाह हो जाने पर उसको वासना तथा कामासक्त सम्बन्धी भावनाओं को पूर्ण करने में पूर्ण रूप से सफलता प्रदान करता है। उस मनुष्य में स्त्रियों का और स्त्री हाथ में होने से पुरुषों को आकर्षित करने का विशेष गुण प्रदान करता है। ऐसे मनुष्य अपनी विषय-वासना की तृप्ति के साधनों को इस्तेमाल करने में विशेष रूप से प्रवीण होते हैं। उनका प्रेम पात्र स्वयं उन्हें प्यार करता है। इसलिए बिना अड़चन, वे अपने कृत्यों में सफल हो जाते हैं और किसी प्रकार की ईर्षा, द्वेष को उनको सामना नहीं करना पड़ता। किन्तु कोई-कोई सफल शृंगारिक कवि तथा कहानी लेखक के रूप में भी पाया जाता है। यदि शुक्र क्षेत्र अशुभ हो तो उस पर नक्षत्र का चिन्ह मनुष्य या स्त्री के विवाह या प्रेम सम्बन्ध में अनेक अड़चनें तथा रुकावटें डालता है और अनेक इष्ट मित्रों तथा सम्बन्धियों का विरोध सहना पड़ता है। यदि यही नक्षत्र जीवन रेखा से स्पर्श भी करता हो तो उस मनुष्य को खुशी के साथ-साथ किसी सम्बन्धी की मृत्यु तथा वियोग का दुःख भी उठाना पड़ता है। या किसी मुकदमें या राज अभियोग में राजदण्ड भी भोगना पड़ता है अथवा किसी पागल, उन्मादनी, कलहकारी स्त्री से विवाह हो जाने पर जन्म भर दुःख भोगना पड़ता है। ऐसे मनुष्य कभीकभी अश्लील शृंगारिक कवि के रूप में भी दिखाई पड़ते हैं जोकि बनावटी या कृत्रिमता पर स्वयं मुग्ध होकर सदैव चिन्तित कल्पना के संसार में विचरण कर अपने जीवन को भार बना लेते हैं ।
नक्षत्र मंगल क्षेत्र पर :–यदि किसी मनुष्य के शुभ मंगल क्षेत्र पर नक्षत्र का चिन्ह सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष रूप से सुशोभित हो तो वह मनुष्य बड़ा ही धैर्यवान, साहसी, सूरवीर, सत्य पथ पर आरूढ़ रहने वाला बड़ा ही बहादुर होता है। ऐसे मनुष्य विशेषकर उच्च सनिक शिक्षा प्राप्त कर सेना में बड़े-बड़े औहदे तथा उच्चाधिकार प्राप्त करते हैं और अपनी हिम्मत के सहारे सर्वत्र विजयी होते हैं। ऐसे मनुष्य सफल व्यापारी तथा नौकर पेशा भी होते हैं जोकि प्रेम के सम्बन्ध में बड़े ही सतर्क तथा अपनी प्रिये या प्रेम पात्र को न झुकने वाली इच्छा से प्रेम करते हैं और सदैव अपनी प्रेम मंत्रणा को गुप्त रखते हैं । वे चाहते हैं कि उनका प्रेम पात्र उन्हें सदैव झुकता रहे। ऐसे मनुष्यों की आदर्श हृदय रेखा होती है। मैंने अपने मित्र के हाथ में यह चिन्ह उपयुक्त गुणों से पूर्ण देखा है और यदि अशुभ मंगल क्षेत्र पर यह चिन्ह हो तो किसी प्रकार भी सफलता प्राप्त नहीं होती। इस नक्षत्र की यदि कोई शाख जीवन रेखा को स्पर्श करती हो तो उस मनुष्य को किसी अपने निकटवर्ती सम्बन्धी की मृत्यु का समाचार किसी विशेष प्रसन्नता के पश्चात् तुरन्त ही प्राप्त होता है।
नक्षत्र राहु क्षेत्र पर :-शुभ राहु क्षेत्र पर नक्षत्र का चिन्ह स्पष्ट तथा निर्दोष रूप से विद्यमान् हो तो वह मनुष्य अत्यन्त शुभ लक्षणों से युक्त होता है। उसे घर बाहर कहीं भी धन-जन की कमी नहीं होती। वह अपने भाग्य की बदौलत सदा सर्वत्र शुभ दिन व्यतीत करता है। ऐसा मनुष्य धर्म-कर्मरत, तीर्थ यात्रा करने वाला, स्वाध्यायप्रिय तथा परोपकारी समाजसेवक होता है, जोकि दुःख दर्द में सहायक होकर सदा ही प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। यदि यही नक्षत्र अशुभ राहु क्षेत्र पर विद्यमान् हो तो वह मनुष्य मातृ पक्ष से दुःख उठाने वाला, किसी मित्र के वियोग में सदैव दुखी रहने वाला, विकल तथा दीर्घ सूत्री या आलसी होता है। उसको अपने यौवन काल में विशेष रूप से धन की कमी रहती है और वह अत्यन्त शोचनीय दशा को प्राप्त होकर उसके निवारणार्थ चिन्ता में सदा तल्लीन रहता है और दुःख को प्राप्त होता है।
नक्षत्र इन्द्र क्षेत्र पर :-जिस मनुष्य के शुभ इन्द्र क्षेत्र पर शीष रेखा से पृथक् यदि स्पष्ट तथा निर्दोष अवस्था में नक्षत्र चिन्ह अंकित हो तो वह मनुष्य बड़ा ही विद्वान् शुभ कर्मरत तथा परोपकारी होता है। यदि इन्द्र क्षेत्र अशुभ हो तो उस मनुष्य को अनेक मानसिक चिन्ताएँ बहुत दबा लेती हैं और वह अपनी प्रौढावस्था में दीनहीन-मलिन कृश ग.त होकर अपनी दुर्दशा को प्राप्त होता है। और धनाभाव के कारण सर्द व दूसरों के आश्रित दिन काटता है । उसकी अपने इष्ट मित्रों से नहीं बनती। इसकी कोई शाख शीष रेखा को स्पर्श करती हो तो उसकी माता की मृत्यु उसकी बाल्यावस्था में ही हो जाती है।
अंगूठे पर नक्षत्र चिन्ह :-यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ के अंगूठे, इच्छा शक्ति वाले प्रथम पौरुए पर नक्षत्र का चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो वह उस मनुष्य की इच्छा शक्ति को प्रबलता प्रदान करके मानसिक तथा आध्यात्म शक्ति को बढ़ाता है और उस मनुष्य को सहनशील, क्रियाशील होने के साथ-साथ दार्शनिकता की भावना पूर्ण रूप से भरता है। ऐसा मनुष्य इच्छा शक्ति के बल पर अनेक ऐसे कार्य कर लेता है जो कि सर्वसाधारण को असम्भव से प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार तर्क शक्ति वाले पोरुए पर होने से तर्क शक्ति को प्रखर बनाता है। ऐसा मनुष्य अचल वक्ता तथा प्रवीण शास्त्रार्थ करने वाला मनुष्यों में श्रेष्ठ माना जाता है।
नक्षत्र उगली पौरुओं पर :-किसी भी उँगली के प्रथम पौरुए पर नक्षत्र चिन्ह एक सौभाग्यपूर्ण लक्षण है जो कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य में सफलता प्रदान करता है। उसे धन, मान, मर्यादा आदि की कोई कमी नहीं रहती। मध्यमा के तृतीय पौरुए पर नक्षत्र चिन्ह प्रचण्ड प्रकार की मृत्यु प्रदान करता है। किसी भी एक पौरुए पर एक से अधिक दो या तीन नक्षत्रों का होना मनुष्य के लिए घातक चिन्ह है जो कि सदैव दुखी रखता है।
नक्षत्र आयु रेखा पर :-जब किसी मनुष्य के हाथ में नक्षत्र' चिन्ह जीवन रेखा के प्रारम्भ में स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो प्रेक्षक को समझना चाहिए कि उस मनुष्य का प्रारम्भिक जीवन दुर्घटनाओं से पूर्ण रहा होगा और आयु रेखा के टूटने वाले स्थल, वर्षों में सम्भव है उसकी मृत्यु भी हो जाय। इसके साथ यदि मंगल रेखा जीवन या आयु रेखा की पूर्ण रूप से सहायक हो तो वह मनुष्य मृत्यु मुख से अवश्य ही बच जायगा किन्तु फिर भी उसको किसी देवी दुर्घटना का सामना अवश्य ही करना पड़ेगा। वेश्या पुत्र के हाथ में यह चिन्ह अधिकतर देखने को मिलता है। यदि यह नक्षत्र आयु रेखा के मध्य में अंकित हो तो किसी लम्बी बीमारी की सूचना देता है। सम्भव है वह कोई पैत्रिक बीमारी हो अथवा ईश्वरीय प्रकोप से कोई घातक आघात उसको हो जाय । जीवन रेखान्त में यह नक्षत्र चिन्ह किसी विशेष लम्बे रोग के पश्चात् अचानक हृदय के बैठ जाने पर (हार्ट फेल) या कहीं ऊपर से गिरकर अथवा बिजली पानी आदि की दुर्घटना से मृत्यु प्रदर्शित करता है।
इसके अतिरिक्त यह चिन्ह यदि जीवन रेखा पर शुक्र क्षेत्र की ओर को अधिक हो तो वह मनुष्य अपमानित किये जाने पर राज्य दण्ड पाता है। ऐसा अभी तक देखने में आया है जीवन रेखा पर नक्षत्र चिन्ह होना एक अत्यन्त अशुभ लक्षण है । जो कि जीवन रेखा के आद्यान्त किसी भी स्थान पर चिन्हित होकर किसी भी मनुष्य को शुभ फल प्रदान करता हो ऐसा अभी तक हमारे देखने में नहीं आया । इसलिए प्रेक्षक को आयु रेखा पर नक्षत्र चिन्ह देखकर बड़ी ही सावधानी से निश्चित करके अपने फलादेश की पुष्टि करनी चाहिए ।
नक्षत्र शीष रेखा पर:- यदि किसी मनुष्य के दाहिने हाथ की शीष या मस्तक रेखा के उद्गम स्थान पर नक्षत्र चिन्ह चित्रित हो तो वह मनुष्य अपने बाल्यकाल से ही किसी न किसी मस्तिष्क सम्बन्धी रोग से पीड़ित रहता है। उसकी बुद्धि दुर्बल तथा स्मरण शक्ति अत्यन्त क्षीण या याददाश्त बहुत ही कमजोर होती है। मध्य में यदि नक्षत्र अंकित हो तो मनुष्य लड़ाई, झगड़े तथा चोरों द्वारा सिर में चोट खाता है या कोई दैवी घटना ऐसी घटित होती है कि मनुष्य जिसके प्रभाव से बेहोश या पागल हो जाता है । अभाग्यवश जो कहीं यह नक्षत्र चिन्ह मस्तक रेखा के अन्त में स्वास्थ्य रेखा के मिलते समय शीष रेखा पर बन रहा हो तो उस मनुष्य के अन्तर में विषय वासना से नफरत हो जाती है और शारीरिक दुर्बलता के कारण वह मनुष्य विवाह सम्बन्ध से घबराता है। और जो कहीं यह चिन्ह किसी स्त्री के हाथ में अंकित हुआ तो उस स्त्री के बच्चे नहीं होते और येन-केन प्रकारेण हो भी गये तो जीवित नहीं रहते ।
नक्षत्र हृदय रेखा पर :-हृदय रेखा के आरम्भिक काल में बुध क्षेत्र के नीचे यदि नक्षत्र का चिन्ह स्पष्ट रूप से उपस्थित हो तो उसका हृदय कमजोर तथा कोई न कोई रोग उसे अवश्य लगा रहता है और वह किशोरावस्था से ही चरित्रहीन हो जाता है और यदि यह नक्षत्र रवि क्षेत्र के नीचे हो तो वह मनुष्य प्रसिद्ध प्रेमी तथा प्रेम के विशुद्ध तथ्य को जानने वाला आदर्श प्रेमी होता है और यदि यह नक्षत्र चिन्ह शनि क्षेत्र के नीचे हो तो वह मनुष्य निकृष्ट प्रकार का प्रेमी होता है। वह अपने प्रेम पात्र को धोखा देकर अपना कार्य बना लेता है और उसका धन भी हरण कर लेता है। और यदि यह नक्षत्र चिन्ह यदि गुरु क्षेत्र के नीचे हृदय रेखा पर उपस्थित हो तो वह मनुष्य प्रेम के सम्बन्ध में अधीर तथा व्याकुल रहने वाला होता है और अपने सुयश को खोकर अपयश का भागी होता है। नक्षत्र चिन्ह हृदय रेखा पर चाहे जहाँ भी हो, हृदय रोग, रक्त विकार, रक्तचाप तथा इसी प्रकार धातु सम्बन्धी रोग उत्पन्न करता है।
नक्षत्र रवि रेखा पर :—यह सभी भली भाँति जानते हैं कि रवि रेखा का दूसरा नाम सफलता रेखा भी है। यदि इसरे खा पर नक्षत्र चिन्ह सुन्दर, साफ, स्पष्ट तथा निर्दोष रूप से उपस्थित हो तो उस मनुष्य को प्रत्येक कार्य में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त होती है। उसे लाट्री, सट्टा, रेस या कहीं पड़ा हुआ अचानक धन प्राप्त होता है। ऐसे मनुष्य धार्मिक तथा परोपकारी प्रकृति के होने के कारण समाज में इष्टमित्रों तथा बन्धु बान्धवों में विशेष आदर पाते हैं। ऐसे मनुष्य अपनी कलापूर्ण कृतियों, देस्तकारी ओजस्वनी कविता तथा वरिष्ठ भाषणों के लिए धन, नाम, यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा आदि सर्वत्र पाते हैं और आग्रह पूर्वक बुलाये जाते हैं। उनको बड़े-बड़े व्यक्तियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त सदैव सर्वत्र होता रहता है। ऐसे मनुष्य एक बार जिससे मिल लेते हैं वह व्यक्ति बार-बार उससे मिलने के लिए आता है या मिलने का इच्छुक बना रहता है। बस यही एक विशेषता उस मनुष्य में पाई जाती है।
नक्षत्र भाग्य रेखा पर:- यद्यपि भाग्य रेखा पर नक्षत्र चिन्ह शुभ | फलदायक होना चाहिए किन्तु किसी प्रकार से भी नहीं होता क्योंकि देखने में आया है कि जिस मनुष्य की भाग्य रेखा पर यह चिन्ह अंकित होता है वह मनुष्य सदा ही निर्धनता के कारण दुर्भाग्यपूर्ण आपत्तियों में फंसा रहता है । जिनसे छुटकारा पाने के लिये मनुष्य आवेश पूर्ण मृत्यु को भी प्राप्त हो जाता है। यदि यह नक्षत्र चिन्ह भाग्य रेखा पर शुक मुद्रा के अन्तर्गत पड़ जाय तो उस मनुष्य को भयंकर प्रकार की बीमारी जैसे पथरी, कैन्सर आदि के साथ-साथ पेशाब में शुगर जाना अथवा धातु क्षीण आदि की बीमारी से मृत्यु होती है। भाग्य रेखा पर नक्षत्र चिन्ह केवल आत्म-हत्या ही नहीं बल्कि दूसरों को भी मार देने की ओर संकेत करता है जिससे वह स्वयं लाठी, चाकू, गोली आदि से स्वयं भी मारा जाता है।
नक्षत्र स्वास्थ्य रेखा पर :–स्वास्थ्य रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह होना किसी भी मनुष्य के लिए अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण एक घातक चिन्ह है । जिस मनुष्य के हाथ में यह घातक चिन्ह होता है उस मनुष्य का स्वास्थ्य कभी भी ठीक नहीं रहता और वह सदैव किसी न किसी रोग से पीड़ित रहता है। यदि स्वास्थ्य रेखा पर नक्षत्र चिन्ह हृदय रेखा से मिलकर बने तो हृदय रोग उत्पन्न होते हैं। उसका हृदय कमजोर तथा सहसा धड़कने वाला, तनिक से कार्य की परेशानी से घबराकर बेहोश हो जाना, हृदय स्पन्दन बढ़ने से अथवा घटने से हृदय गति का सहसा रुक जाना यानी कि दिल के दौरे से मृत्यु तक हो जाती है। यदि यह चिन्ह शीष तथा स्वास्थ्य रेखा के मिलने से बना हो तो मनुष्य को मस्तिष्क सम्बन्धी अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिस कारण वह बुद्धिहीन होकर पागल की तरह इधर-उधर दौड़ता फिरता है। उसकी बुद्धि अस्थिर तथा चित्त चल विचल हो जाता है और यदि ।
भाग्य रेखा से मिलकर नक्षत्र चिन्ह स्वास्थ्य रेखा पर बना स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो उस मनुष्य को स्वास्थ्य सम्बन्धी आपत्तियों के साथ-साथ भाग्य सम्बन्धी आपत्तियाँ भी देता है। ऐसा मनुष्य अपने बिगड़े हुए स्वास्थ्य पर धन-जन सम्बन्धी कमी पाकर जीवन से लाचार होकर आत्महत्या तक कर लेता है। यदि सफलता रेखा से मिलकर स्वास्थ्य रेखा पर बना हुआ नक्षत्र का चिन्ह स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के कारण किसी भी कार्य में सफल नहीं होने देता और उसका जीवन उसके जीते जी ही भार हो जाता है। यदि स्वास्थ्य रेखा पर नक्षत्र चिन्ह जीवन रेखा से मिलकर बनता हुआ दिखाई देता हो तो उस मनुष्य की किसी पैत्रिक लम्बी बीमारी के कारण शीघ्र मृत्यु होने का प्रत्यक्ष लक्षण दिखाई देता है। स्वास्थ्य रेखा पर नक्षत्र चिन्ह चाहे जहाँ भी हो उसकी जिगरतिल्ली में खराबी रखता है। उसे मन्दाग्नि होकर बुखार तथा राजयक्ष्मा आदि रोग सदैव घेरे रहते हैं।
नक्षत्र विवाह रेखा पर :-विवाह रेखा पर भी नक्षत्र चिन्ह अपना अशुभ प्रभाव दिखाये बिना नहीं रहता। जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में विवाह रेखा पर यह चिन्ह अंकित होता है उसके विवाह सम्बन्ध में बहुत ही परेशानी होती है अर्थात् एक लम्बी आयु व्यतीत हो जाने के पश्चात् उसका विवाह होता है । किसी-किसी हाथ में विवाह रेखा पर एक, दो, तीन तक नक्षत्र देखने को मिलते हैं। जिस मनुष्य के हाथ में विवाह रेखा के आदि मध्य तथा अवसान पर नक्षत्र का चिन्ह विद्यमान् रहता है उसका किसी भी सूरत से प्रथम तो विवाह नहीं होता और यदि कुछ दे लेकर उसका विवाह हो भी जाय तो स्त्री-पुरुष का विचार विनिमय न हो सकने के कारण सदैव झगड़ा रहता है।
उनका घर जीते जी ही नर्क के समान हो जाता है। कलह इतनी बढ़ जाती है कि किसी न किसी को दोनों में से आत्महत्या तक करनी पड़ जाती है और अविवाहित रहने के समान विवाहित होकर भी वियोग दुख सहना पड़ता है। यदि भाग्य और रवि रेखाएँ भी हाथ में अशुभ फलदायक पड़ी हों तो उन दोनों पति-पत्नी में से किसी एक की कोई न कोई अमूल्य वस्तु यात्रा के समय अवश्य ही खो जाती है और उनको अत्यन्त दुख होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस अशुभ लक्षण से युक्त होने पर कोई भी मनुष्य या स्त्री सुख और शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता क्योंकि वे सदैव एक न एक आपत्ति में फंसे रहते हैं। । नक्षत्र मंगल रेखा परः–मंगल रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह अत्यन्त घातक तथा अशुभ लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। ऐसे मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक शक्तियाँ नित्यप्रति दुर्बल ही होती जाती हैं। ऐसा मनुष्य, बड़ा ही कमजोर, बुजदिल तथा दूसरे मनुष्यों के आश्रय में रहने वाला हो जाता है। ऐसा मनुष्य आवश्यकता के समय भी कोई शुभ कार्य नहीं कर पाता।
उसके विचार गिर जाते हैं और वह निन्द्य कर्मरत होकर अपयश को प्राप्त होता है। उसमें ईर्षा तथा द्वेष की मात्रा अधिक बढ़ जाने के कारण वह सदैव दूसरों की हानि करने की ही सोचता है। चाहे उसमें उस मनुष्य को किसी प्रकार का भी लाभ न होता हो। । नक्षत्र चन्द्र रेखा परः—जिस मनुष्य के चन्द्र रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो तो उस मनुष्य की विशेष उन्नति में बाधा डालता है। ऐसा मनुष्य नजला जुकाम से पीड़ित रहता है। उसको तैरते समय, जल विहार या नौका विहार के समय अथवा समुद्री सफर या किसी और प्रकार की जल यात्रा के समय प्राणों का भय रहता है। एसे मनुष्य की मृत्यु पानी से होती है ।
नक्षत्र प्रभाविक रेखा परः—किसी भी प्रभाविक रेखा पर नक्षत्र चिन्ह उसके स्वाभाविक गुणों में न्यूनत। ला देता है और वह मनुष्य अपने प्रभाव को खोकर अपयश का भागी होता है। यदि यह प्रभाविक रेखा
वरुण क्षेत्र से आती है तो मनुष्य मूर्ख तथा प्रभावहीन होता है । चन्द्र क्षेत्र से आने वाली रेखा पर या शुक्र क्षेत्र से आने वाली प्रभाविक रेखा पर नक्षत्र चिन्ह हो तो मनुष्य को प्रेम सम्बन्ध में निराश तथा पानी से भय प्रदान करता है।
नक्षत्र यात्रा रेखा पर :—यह बात सभी मनुष्यों को भली भाँति विदित है कि आधुनिक यात्रा तीन ही प्रकार से होती है । प्रथम स्थल से जिसमें रेल, मोटर, बाइक बैलगाड़ी आते हैं। दूसरी यात्रा जल में या समुद्र में, नाव जलयान द्वारा होती है। तीसरी यात्रा वायु में वायुयान या नभयान द्वारा होती है। यदि स्थल यात्रा रेखाओं पर नक्षत्र चिन्ह विद्यमान हो तो रेलादि' की दुर्घटना से मनुष्य को प्राण संकट उपस्थित होता है। मैंने एक कालेज स्टूडेंट (विद्यार्थी) को हाथ देखकर कहा था कि तुम्हारा प्राणान्त रेल दुर्घटना से होगा, अब सफर न करना।
मेरे साथी हंस पड़े और बोले कि हाथ में कोई रेल की पटरी पड़ी है जो आपने कह दिया कि रेल की यात्रा मत करना किन्तु दुख है कि इस बात के ग्यारह माह बाद लखनऊ ऐक्सप्रेस के लड़ जाने पर उस लड़के की मृत्यु हो गई। हमारे साथी जब मिले तो हैरान हो गये । इसी प्रकार जल यात्रा रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह समुद्री तूफान या आँधी से प्राण संकट उपस्थित करता है । ऐसा कोई हाथ यद्यपि अभी तक देखने में नही आया किन्तु वायु यात्रा रेखा पर नक्षत्र चिन्ह देखकर मैंने देहली' में एक व्यक्ति को कहा था कि यदि आपने वायु यात्रा की हो तो अवश्य ही प्राण संकट उपस्थित हुआ होगा। उस नवयुवक ने कहा कि मुझे सैनिक क्षेत्र से कहीं एक लम्बी यात्रा पर अपने प्राणों से संकट का बांड भरना पड़ा था। जहाज पर सवार होते ही मौसम खराब हो गया। एक बड़ा भारी वायुबवंडर या तूफान आया जिसकी तीव्र वायु के तूफानी झोंकों ने हमारे नभयान की दिशा ही बदल दी और हम मुश्किल से बचे । इस प्रकार की दुर्घटनाएँ घटती रहती हैं।
नितिन कुमार पामिस्ट