हाथों का विकास | सरल हस्तरेखा | Saral Hast Rekha



हाथों का विकास | सरल हस्तरेखा | Saral Hast Rekha


सरल हस्तरेखा के माध्यम से आपको हस्तरेखा सम्बन्धी जानकारी देने का प्रयास किया गया है।  अतः यदि आपको ये प्रयास अच्छा लगे तो आप इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें।

हाथों का विकास | सरल हस्तरेखा | Saral Hast Rekha



हाथों का विकास

हाथों का विकास मनुष्य की अन्य सभी जीवों से उच्चता उसके हाथों के कारण है। एक स्तनपायी जीव होते हुए भी केवल वही पैरों के बल चलता और प्राय: सभी कार्य हाथों से करता है। मनुष्य का यह विकास होने में लाखों-करोड़ों वर्ष लग गये। उसके पूर्वजों ने जब दो पैरों से चलना शुरू किया तो उनके आकार में सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन मेरुदण्ड का सीधा होना तथा हाथों से अधिकाधिक कार्य करना था। 

सोच-विचार कर किये जाने वाले कार्यों के चेतना केन्द्र हमारे सिर (मस्तिष्क) में तथा अपने-आप होने वाले कार्यों के चेतना केन्द्र मेरुदण्ड में स्थित हैं। हाथों से सभी कार्य करने के कारण मस्तिष्क तथा मेरुदण्ड के स्नायुकेन्द्रों का हाथों के स्नायुकेन्द्रों से जुड़ना और बनना शुरू हुआ। इसके फलस्वरूप हाथों के स्नायुओं और मानव मनो-मस्तिष्क के चेतन, उपचेतन एवं अचेतन केन्द्रों के बीच सम्बन्ध स्थापित हुआ। स्नायुओं का यह सम्बन्ध इतना सूक्ष्म है। कि मस्तिष्क में आने वाले छोटे-छोटे विचारों का प्रभाव भी तत्काल हाथ पर प्रकट होने लगता है। इन प्रभावों तथा हाथ द्वारा किये जाने वाले कार्यों से ही हाथ की रेखाओं आदि का विकास हुआ यही नहीं वरन् हमारे आन्तरिक अंगों की क्रियाओं के प्रभाव हाथों व हस्तरेखाओं पर पड़ते है। 

हाथ में जितने स्नायुकेन्द्र हैं उतने किसी अन्य अंग में नहीं, जिस प्रकार प्रत्येक शिशु अपने माता-पिता से अपने जीन्स (वंशागत विशेषताओं के सूक्ष्म अंश) लेकर आता है, उसी प्रकार उनकी हस्तरेखाओं का प्रभाव भी उसकी हस्तरेखाओं पर पड़ता है। ये सभी तथ्य आज विज्ञान की कसौटी पर खरे उतर चुके हैं। अत: इन तथ्यों का सूक्ष्म अध्ययन और विश्लेषण करके उसका वर्तमान और भूतकाल ही नहीं वरन् भविष्य भी बताया जा सकता है क्योकि भविष्य व्यक्ति के भूतकाल में ही छिपा होता है।

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