चित्र 105 |
हस्त-रेखा-विज्ञान मणिबन्ध से प्रारम्भ होने वाली यात्रा-रेखाएँ
दूसरी यात्रा-रेखाएं वे होती हैं जो मणिबन्ध (प्रथम रेखा) से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर चन्द्र-क्षेत्र पर जाती हैं। (देखिए चित्र नं० 105 रेखा A, B)
(१) यदि ऐसी रेखा के अन्त पर 'क्रॉस'-चिह्न हो (चित्र में रेखा A) तो यात्रा का परिणाम अच्छा नहीं होता। निराशा और असफलता होती है।
(२) यदि रेखा के अन्त में द्वीप-चिह्न हो तो भी द्रव्य-हानि या नुकसान वा असफलता का लक्षण है। (देखें चित्र में रेखा B)
(३) यदि मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर यात्रा-रेखा बृहस्पति के क्षेत्र पर जावे तो यात्रा लम्बी होगी और अधिकार तथा प्रभुत्व भी बढ़ेगा। यदि शनि-क्षेत्र पर जावे तो किसी गहरे घटना-चक्र से यात्रा सम्बन्धित होगी। यदि सूर्य-क्षेत्र पर जावे तो यश, धन, नाम की वृद्धि और बुध-क्षेत्र पर जावे तो सहसा आकस्मिक धन-प्राप्ति का लक्षण है।
जीवन-रेखा से निकलने वाली रेखाएँ
तीसरी रेखा जिससे यात्रा का विचार किया जाता है। जीवन-रेखा से निकलकर उसके सहारे सहारे चलती है (चित्र 105 C)। इस रेखा फल ये होता है की मनुष्य अपनी जन्मभूमि छोड़कर विदेश में कारोबार करता है या नौकरी करता है। लेकिन बहुत बार ऐसा भी देखा जाता है की व्यक्ति कोशिश तो बहुत करता है लेकिन विदेश जा नहीं पाता है क्युकी हाथ में दूसरे चिन्ह और योग अच्छे नहीं होते है।