आपके प्यार, परिवार और दिल की दास्तान सुनाने वाली हृदय रेखा जीवन के सभी क्षेत्रों पर अपना असर दिखाती है। इसे भावनाओं का केन्द्र मानने वाले पॉमिस्ट (Palmist) हाथ की सबसे प्रमुख रेखा मानते हैं। उनके अनुसार जब तक दिल धडकता है तभी तक जीवन सरिता बहती रहती है। हृदय की कार्य प्रणाली दूसरे शब्दों में हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
गलाबी रंग की स्पष्ट गहरी और लम्बी हृदय रेखा एक स्वस्थ रेखा मानी जाती है। तंग, अस्पष्ट, टूटी हुई या जंजीरदार हृदय रेखा अशुभ होती है।
यह रेखा हथेली में निम्नलिखित स्थानों से प्रारम्भ हो सकती है। विद्वानों का मतभेद है कुछ विद्वान कनिष्का के नीचे से उद्गम मानते है और कुछ तर्जनी के नीचे से शुरुवात मानते है यहाँ हम तर्जनी से प्रारम्भ मान रहे है -
1. बृहस्पति पर्वत के ऊपर से
2. संकेतिका अँगुली (Index Finger) के प्रथम पोरे को स्पर्श करते हुए
3. बृहस्पति क्षेत्र (Mount of Jupiter) के मूल से ।
4. मध्यमा अँगुली (Middle Finger) के मूल से
5. शनि (Saturn) के क्षेत्र से
6. शनि क्षेत्र के मूल से
7. बृहस्पति और शनि के मध्य से।
हृदय रेखा किसी भी उपर्युक्त स्थान से निकले, यह प्यार और वफादारी के साथ ही जातक के हृदय सम्बन्धी स्वास्थ्य के बारे में भी बताती हैं।
हृदय रेखा बृहस्पति पर्वत के ऊपर से, संकेतिका अँगुली (Index Finger) के प्रथम पोरे का स्पर्श करते हुए अथवा बहस्पति क्षेत्र के मूल से निकलन की इन तीनों स्थितियों के फलों में थोड़ा ही अन्तर होता है। मुख्य फल समान रहता है और वह यह कि जिस स्त्री या पुरुष की हथेली में इन तीना। स्थितियों में से कोई भी स्थिति वाली हृदय रेखा होगी वह अपने प्यार में सार तर्क-वितर्क एक ओर फेंक कर अपने प्रिय को पाने के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देगा। वह अपने प्रिय की इस सीमा तक पूजा करने लगेगा कि उसके दवारा किये गये अपमान, उपेक्षा और यहाँ तक कि उसके दोष भी उसे दिखायी नहीं देगे। यदि हृदय रेखा गहरी हो और मस्तिष्क रेखा से अधिक बलवती तो ऐसे स्त्री या पुरुष को अपने इस गहन आदर्शवादी प्यार के लिए भारी कीमत, यहाँ तक कि अपनी जान भी गवानी पड़ सकती है। ऐसा विशेष रूप से बहस्पति के प्रथम पोरे का स्पर्श करने वाली रेखा बाले जातक के साथ हो सकता है। बृहस्पति पर्वत के ऊपर से निकलने वाली हृदय रेखा इससे हल्का-सा कम और बृहस्पति क्षेत्र की जड़ या मूल से निकलने वाली हृदय रेखा सबसे कम कुप्रभाव डालेगी पर यह भी जीवन में भारी हलचल मचा देने वाला हो सकता है।
दार्शनिक (Philosophic), अतीन्द्रिय (Psychic) और सूच्याकार (Conic) हाथ वाले लोग अधिकतर अपनी भावनाओं को अधिक महत्त्व देते हैं, उनसे ही गतिशील होते हैं। उनके विचारों के अनुसार एक झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाला व्यक्ति जिसके दिल में सारी मानवता के प्रति प्रेम और सेवा भाव है, वह उस सत्ताधारी मन्त्री से कहीं अधिक सुखी है जिसे हमेशा अपने सिर पर तलवार लटकती नजर आती है। प्रेम दीवानी मीरा, प्रभु भक्ति में मस्त कबीर या नेताजी सभाषचन्द्र बोस जैसे महान लोगो के लिए उनके अपने आदर्श तथा सिद्धान्त भौतिक संसार के सुखों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
विधाता की लेखनी से जो भाग्य लेख हमारी हथेली पर लिखा जाता है वह तो महत्त्वपूर्ण है ही पर उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं वे संकेत जिन्हें विधाता हमारे हाथ पर लिखकर अधूरा छोड़ देता है। प्रभु भक्त सच्चे देश प्रेमी या समाज सेवक की अटल भक्ति और समर्पण को हम हाथ के आकार-प्रकार, हृदय रेखा का बृहस्पति क्षेत्र से निकलना, हृदय रेखा का मस्तिष्क रेखा की ओर झुकाव, हाथ में रहस्यमय क्रॉस शुभ स्थान पर होना, बहस्पति मेखला (Ring of Solomon) आदि के संकेत से समझते हैं। दार्शनिक (Philosophic), अतीन्द्रिय (Psychic) और सूच्याकार (Conic) हाथों में अपने इष्टदेव, देवी या अपने आदर्शों के प्रति जो | हार्दिक प्रेम, भक्तिभाव या समर्पण होता है उसमें दु:खों व घोर कष्टों को भी सुखों में बदल देने की शक्ति होती है। प्रारम्भिक हाथ (Elementary Hand) में भी अच्छी हृदय रेखा जातक को ऐसी भाव-शक्ति दे सकती है।
मध्यमा अंगुली के मूल से, शनि क्षेत्र से अथवा शनि क्षेत्र के नीचे से निकलने वाली गहरी हृदय रेखा के फल समान होते हैं। जहाँ बृहस्पति पर्वत या उसके तीनों क्षेत्रों से निकलने वाली हृदय रेखा जातक के प्रबल प्रेम, उदारता तथा परोपकार की भावना को प्रकट करती है, वहीं शनि पर्वत और उसके क्षेत्र से निकलने वाली तीनों प्रकार की हृदय रेखाएँ जातक के आत्मकेन्द्रित होने, स्वार्थी तथा सनकी होने को दर्शाती हैं। ऐसे जातक अपना प्यार प्रकट करने में भी कोताही करते हैं। जिन व्यक्तियों की हथेली में ऐसी हृदय रेखाएँ देखी गयी हैं उनकी अपनी पत्नियों या प्रेमिकाओं से अधिक समय तक अच्छी नहीं पटती। लेकिन इस प्रकार के पुरुष बाहरी दुनिया के सामने आदर्श प्रेमी, पति का नाटक करते रहते हैं।
ऐसे जातक अडियल प्रेमी/प्रेमिका भी होते हैं। वे अपने प्रिय व्यक्ति को पाने के लिए भावनाओं में नहीं बहते वरन् पूरी योजना बनाकर पूरी लालसा से कार्य करते हैं। उनमें यथेष्ट कामवासना होती है। ऐसे मामलों में अगर शनि पर्वत अधिक उभरा हो तो शनि क्षेत्र से निकलने वाली हृदय रेखा जातक के जीवनसाथी के लिए और अधिक कष्टप्रद होती है। ऐसा जातक व्याय और ताने मार-मारकर अपने साथी की दुर्दशा कर देता है और घर में कलह रहती है।
हृदय रेखा सम्बन्धी ये फल स्त्री-पुरुष दोनों पर लागू होते हैं अर्थात् यदि पुरुष की हृदय रेखा की बजाय महिला की हृदय रेखा शनि पर्वत से निकल रही है तो वह भी उपर्युक्त तरीके से व्यवहार करेगी। यदि दोनों की हथेली में शनि पर्वत या क्षेत्र से निकलने वाली हृदय रेखा हो तो कलह की कोई सीमा नहीं। दोनों का अलग हो जाना ही बेहतर होगा।
शनि पर्वत के आधार के ठीक पास से शुरू होने वाली हृदय रेखा अगर छोटी हो तो उस जातक में प्राकृतिक प्रेम का अनुभव करने की भावुकता या काबिलियत नहीं होती है। उसका उद्देश्य केवल अपनी वासना पूरी करना होता है।
जब हृदय रेखा संकेतिका (Index Finger) और मध्यमा (Middle Finger) शुरू हो तो व्यक्ति के प्रेम में गहराई, सच्चाई और दृढ़ता होती है। संकेतिका या तर्जनी (Index Finger) को बृहस्पति तथा मध्यमा अँगुली (Middle Finger) को शनि की अँगुली भी कहते हैं। इनके नीच भी इसी नाम के पर्वत होते हैं। अतः इनके मध्य बिन्दु से प्रारम्भ होने वाली हृदय रेखा में इन दोनों ग्रहों के प्रभाव आ जाते हैं। ऐसा व्यक्ति (प्रेमी या प्रेमिका) अपने जीवनसाथी के सभी दोषों को क्षमा कर देता है। वह न अधिक दःखी होता न अधिक सुखी। अति के स्तर तक प्यार प्रकट करने वाली अत्यधिक लम्बी हृदय रेखा वाले व्यक्तियों की ईष्या घातक स्तर तक पहुँचने की शक्ति रखता है, अगर उनकी मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर मोड लेती है।
यदि हृदय रेखा जंजीर की तरह हो तो प्रेम सम्बन्धों में स्थायीपन नहीं होता। प्रायः ऐसे व्यक्तियों के प्रेम सम्बन्ध पूरणता को कम प्राप्त होते है।
हृदय रेखा शनि पर्वत से शुरू हो रही हो, वह जंजीरों या गडढों की तरह जुड़ी हो तथा चौड़ी हो, ऐसे व्यक्तियों के मन में अपने विपरीत लिगी साथी के लिए तिरस्कार की भावना पायी जाती है।
हृदय रेखा का हल्की पर चौड़ी होना या छिछला होना, ऐसे जातक के प्रणय सम्बन्ध (Sexual Relations) भी छिछले होते हैं। वे इन सम्बन्धों को हृदय की कोमल तथा उच्च भावनाओं (जैसे पारस्परिक आदर, सुख-दु:ख साथ में अनुभव करना) से नहीं जोड़ते, उनमें दिखावा अधिक होता है। ये प्रणय में शीघ्र ही तृप्त और सन्तुष्ट हो जाते हैं।
जब यह रेखा हथेली में काफी नीचे झुककर मस्तिष्क रेखा को स्पर्श कर लेती है तो ऐसे व्यक्ति मस्तिष्क से किये जाने वाले कार्यों में भी हृदय से काम लेते है। मैं जब हृदय रेखा हथेली में बहुत ऊपर स्थित हो तथा मस्तिष्क रेखा उसके समीप स्थित हो, ऐसे व्यक्ति दिल के बजाय दिमाग से प्यार करते हैं। वे अपने प्रेम सम्बन्धों को आगे बढ़ाने में बड़ी नाप-तौल और योजना बनाकर काम करते हैं।
यदि जातक की हथेली में हृदय तथा मस्तिष्क रेखाएँ मिलकर एक ही रेखा-सी दिखायी देती हो तो वह दिल के मामले में दिल के साथ पूरा दिमाग और दिमाग के मामलों में पूरा दिल और पूरी आत्मिक शक्ति लगा देगा। ऐसे व्यक्ति अत्यधिक साहसी और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं। वे उग्र स्वभाव वाले प्रेमी और पति सिद्ध होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने आपको नुकसान पहुँचाने वाले भी होते हैं। बिना सोचे-समझे खतरे मोल लेते हैं और फलस्वरूप चोटें खाते हैं जो कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो जाती हैं।
प्रारम्भ में जब हृदय रेखा काँटेनुमा हो और इसकी एक शाखा बृहस्पति पर्वत, दूसरी तर्जनी और मध्यमा अँगुली के बीच से शुरू हो रही हो तो ऐसा व्यक्ति आदर्श प्रेमवृत्ति वाला होता है। वह अपने जीवनसंगी/संगिनी की आवश्यकता तथा परिस्थितियों के अनुकूल आचरण करता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम सम्बन्धों के मामलों में अत्यधिक सुखी तथा सन्तुष्ट होते हैं।
हृदय रेखा शाखाहीन तथा बारीक हो तो ऐसे लोग छोटे दिल के और प्यार के रिश्तों में उसकी भावुक गर्माहट को अनुभव नहीं कर पाते।
हृदय रेखा का खण्डित या टूटा होना प्रेम सम्बन्धों की दुखान्त कथा कहता है जिसका दु:खद प्रभाव जातक के दिल पर जिन्दा बना रह सकता है। लेकिन आधुनिक युग की युवा पीढी द:खद नहीं होता जितना कि अभिनेता गुरुदत्त के जमाने में होता था।
जब हृदय रेखा बृहस्पति पर्वत के आधार के स्थान में मुडती हो तो जातक प्रेम में गहरी निराशा, दु:ख और सन्त करता है। उसे अपने सच्चे प्यार के बदले में विश्वासघात तथा निष्ठुरता सहनी होती है।
चमकीली रक्ताभ या लाल रंग की हृदय रेखा प्रेम की अभियान हिंसा के उपयोग को प्रकट करती है। पीली और चौड़ी हृदय रेख जाला को प्यार के प्रति ठण्डा तथा उदासीन बताती है।
इस रेखा में शनि के नीचे हल्की टूटन (Break) प्रेम में निराश प्रकट करती है, सूर्य क्षेत्र में टन गर्व के कारण, शनि क्षेत्र में भाग्यवश, बध क्षेत्र में मूर्खता तथा जल्दबाजी के कारण प्रेम में निराशा मिलती है। यहाँ इस वैज्ञानिक तथ्य का ध्यान रखें कि आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भावनात्मक निराशा रोगों को जन्म देती है। हमारे 70% से अधिक रोग भावनात्मक आवेगों और दु:खों के कारण होते हैं।
हृदय रेखा की शुरुआत क्रॉस से होना जो बृहस्पति क्षेत्र में हो सच्चे प्रेम को पाने का संकेत होता है। लेकिन अगर क्रॉस की एक रेखा शनि पर जाये और दूसरी बृहस्पति पर तो इससे यह प्रकट होता है कि जातक का प्यार स्थिर नहीं रहेगा, कभी बहुत अधिक. कभी कम होता रहेगा और वैवाहिक जीवन में अशान्ति लायेगा।
मस्तिष्क रेखा से निकलकर हृदय रेखा की ओर आने वाली पतली नन्हीं रेखाएँ उन प्रेम सम्बन्धों को प्रकट करती है जो हमें प्रभावित करते हैं। यदि ऐसी रेखाएँ हृदय रेखा को काट दें तो प्रेम सम्बन्ध का अन्त दु:खद
होता है और यदि नहीं काटे तो सुखद।
हृदय रेखा का नहीं होना या केवल नाम मात्र होना. यह बताता है कि जातक में भावुकता बिलकुल नहीं हैं। वह प्रेम, प्यार, स्नेह जैसी भावनाओं को अनुभव बहुत कम करता है या बिलकुल नहीं करता। हाथ के कोमल होने पर वह कामुक तो बहुत हो सकता है पर रिली प्यार नहीं कर सकता। हाथ कठोर होने पर वह किसी भी एक
प्यार का भाव नहीं रखता।
हृदय रेखा का धुंधला पड़ जाना और फिर स्पष्ट होना, यह बताता है जातक को पहले प्रम में घोर निराशा और दु:ख का सामना करना पदा पर बाद में उसने अपने को सन्तुलित कर लिया।
खा पर गहरे नन्हे लाल बिन्दुओं का होना खास तौर से शनि क्षेत्र पर हृदय के रोग होने को दर्शाता है। उदय रेखा पर अनेक क्रॉस बार (Cross Bar) यह बताते हैं कि जातक को प्यार में कई बार हताशा का सामना करना होगा। यदि इस रेखा को बुध क्षेत्र में क्रॉस की कोई शाखा काटे, इससे प्रकट होता है कि व्यक्ति को उस काल में व्यापार से हानि होगी।
हस्तरेखा के सामान्य नियम के अनुसार हृदय रेखा पर शुभ चिह्न (जैसे चतुष्कोण, त्रिकोण आदि) रोग तथा प्रेम में असफलता होने को रोकते हैं, और अशुभ प्यार में दु:ख, नाकामयाबी, रोग आदि का कारण बनते हैं।
हृदय रेखा जहाँ भाग्य रेखा से कटती है, उस स्थान पर किसी भी अशुभ चिह्न का होना जातक को प्यार के कारण आर्थिक संकट में पड़ना प्रकट करता है।
हृदय रेखा जब बध क्षेत्र में जाकर उसे अपनी गोलाई में ले और वही उसका (कनिष्ठिका अँगुली के नीचे) अन्त हो जाये, साथ ही मस्तिष्क रेखा अच्छी हो तो ऐसा व्यक्ति परामनोविज्ञान, मन्त्रशक्ति आदि में पारंगत
होता है।
हृदय रेखा से निकलकर एक रेखा बुध क्षेत्र तक जाये, मुख्य रेखा अपनी राह पर अग्रसर रहे, इससे गुप्त प्रणय सम्बन्ध तथा फिर उनकी समाप्ति पता चलता है।
हथेली के दूसरी ओर, कनिष्ठिका अँगुली के नीचे हृदय रेखा समाप्त हो रही हो, कोई अंकुश पतली रेखाएँ, शाखाएँ आदि नहीं निकलती हों. ऐसी स्थिति में जातक सन्तानहीन रहता है या उसकी नसबन्दी/नलबन्दी
हो चुकी होती है।