यदि भविष्य में होने वाली घटनाओं का समय हस्त परीक्षण द्वारा निर्धारित किया जा सक, ता हस्त पठन का महत्व बहुत बढ़ जाएगा। पर यह एक जटिल और थोडी अनिश्चित प्रक्रिया है। कोई भी दो हाथ एक समान नहीं होते, इसलिए उन्हें मापने के लिए कोई भी पैमाना सर्वस्वीकृत होना कठिन है। इन्हीं तथा अन्य कई कारणों से, विभिन्न लेखकों ने समय निर्धारण के लिए अलग-अलग तरीके दिए हैं। ये विभिन्न तरीके भी आवश्यक रूप से, एक-दूसरे से, मेल नहीं खाते।
समय का निर्धारण सिर्फ कुछ मुख्य रेखाओं पर ही किया जाना चाहिए जैसे कि, जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा तथा भाग्य रेखा। कुछ लेखकों का मानना है कि हृदय रेखा को समय निर्धारण की प्रक्रिया से अलग रखना चाहिए। यहां तक कि इस रेखा पर हृदय संबंधी रोगों के समय का भी निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए। साथ-साथ, एक और बात भी ध्यान देने योग्य है कि हृदय रेखा के उद्गम स्थान को लेकर पश्चिमी और भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के लेखकों के बीच स्पष्ट मतभेद है। पश्चिम में हृदय रेखा का उद्गम स्थल गुरु पर्वत और उसके आसपास का क्षेत्र माना जाता है, जबकि पूर्वी लेखक इस रेखा का उद्गम स्थल हथेली के किनारे बुध पर्वत के नीचे मानते हैं। इस बात से खास फर्क नहीं पड़ता कि हृदय रेखा का उद्गम स्थल क्या है, पर समस्या तब आती है जब समय-निर्धारण का सवाल सामने खड़ा होता है।
कीरो और बेनहम, हस्तरेखा शास्त्र के दो सबसे सम्मानित लेखक, समय निर्धारण के सवाल पर एक-दूसरे से भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं। कीरो ने एक सप्तवर्षीय प्रणाली दी है - 7, 14, 21, 28, 35, 42, 49, 56, 63, 70, 77 आदि। अपने इस नियम की व्याख्या करते हुए उन्हाम लिखा है- "सबसे पहली बात. हम चिकित्सक और वैज्ञानिक दष्टिकोण से देखें तो सात का अंक गणना का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। हम देखते हैं कि पूरी व्यवस्था हर सात साल में पूरी तरह बदल जाती है; माता के गर्भ में बालक के अस्तित्व के सात चरण हैं; मानव मस्तिष्क अपने अनूठे चरित्र को अपनाने से पहले सात रूप लेता है। फिर, हमें यह भी पता है कि सभी युगों में संख्या 7 ने दुनिया के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । उदाहरण के लिए मानवता की सात जातियां, दुनिया के सात आश्चर्य, उसी प्रकार सात ग्रह और उनके सात देवता, एक सप्ताह के सात दिन, सात रंग, सात खनिज, सात इंद्रियों की परिकल्पना, शरीर के तीन भाग और हर भाग के सात खंड, दुनिया के सात भाग इत्यादि। पुनः, बाइबल में कहा गया है कि सात सबसे महत्वपूर्ण संख्या है, लेकिन यहां जरूरत से ज्यादा विवरण देने की आवश्यकता नहीं है।"
कीरो द्वारा दिए गए इस विवरण का कोई ठोस आधार नहीं दिखता क्योंकि जैसा कि चित्र 1 से स्पष्ट है 7-आधारित विभाजन असमान हैं। किसी भी छात्र के लिए यह आसान होगा कि विभाजन बराबर हो अंक चाहे कोई भी हो। फिर वे दी गई विभाजन पद्धति के अनुसार उम्र का आकलन कर सकते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि कीरो ने सात वर्षीय नियम सिर्फ भाग्य रेखा और जीवन रेखा पर बताया है। भाग्य रेखा पर यह पैमाना बहुत ही असमान है। जब भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा को काटती है तो आयु की गणना 35 वर्ष है, और जब भाग्य रेखा हृदय रेखा को काटती है तो आयु की गणना 56 रखी गई है। जीवन रेखा पर भी 50 वर्ष की गणना आधी से अधिक रेखा समाप्त होने पर की गई है। बाद के वर्षों को संकुचित कर बची रेखा पर संयोजित किया गया है। जब कि 50 वर्ष तक की प्रारंभिक आयु को रेखा पर अधिक फैलाकर स्थान दिया गया है। इसका मतलब है हम जैसे-जैसे बुढ़ापे की तरफ बढ़ते है यह पैमाना संकुचित होता जाता है। शायद यही कारण है कि बाद के वर्षों की तुलना में अधिकांश लोगों को बचपन की बातें ज्यादा स्पष्टता से याद रहती हैं। इस प्रकार, हम देखते हैं कि समय निर्धारण का यह पैमाना Linear नहीं है।
कीरो के प्रशंसक और अनुयायी सप्त-वर्षीय वर्गीकरण को सही मानते हैं पर यह लेखक इस वर्गीकरण से पूर्णतः संतुष्ट नहीं है। यदि एक सामान्य व्यक्ति के हाथ के प्रिंट पर इस प्रणाली को बैठाने की कोशिश की जाए तो यह अच्छे से फिट नहीं होती। फिर भी मोटा-मोटी यह मानकर चला जा सकता है कि 1 मि.मी. एक वर्ष के बराबर है। इस 1 मि.मी. के चिन्ह को भी छोटी और बड़ी हथेली या बच्चे-बूढ़े की हथेली के अनुसार समायोजित करना पड़ता है। एक मेहनती और सचेत छात्र लगभग 10 अलग-अलग लम्बाई के पैमाने (Scale) बना सकता है। और उसके प्रश्नकर्ता पर जो भी पैमाना ठीक बैठे, उसका प्रयोग कर सकता है। यह तरीका निश्चित रूप से समय के निर्धारण में बेहतर सटीकता ला सकता है। यहां तक कि बहुत अनुभवी हस्त परीक्षक (Palmist) भी घटना के समय के निर्धारण में +2 साल का समय मानकर चलते हैं। समय निर्धारण की इसी अनिश्चितता के कारण कई हस्त परीक्षक ज्योतिष और अंक ज्योतिष से मदद लेते हैं, जहां घटना के समय का निर्धारण ज्यादा नजदीकी से किया जा सकता है।
कीरो के विपरीत, बेनहम काफी अलग व्यवस्था देते हैं। उनका विभाजन शुरू में 6-6 साल के अंतराल का है। और 36 वर्ष के बाद के हिस्से में क्रमिक रूप से 7, 8, 9 और 10 साल के अन्तराल निर्धारित किए हैं। विभाजन इस प्रकार है- 6, 12, 18, 24, 30, 36, 43, 51, 60 तथा 70 वर्ष।
इस प्रणाली की अधोलिखित विशेषताएं हैं- (1) जीवन रेखा के मध्य भाग को 36 वर्ष का माना गया है, इसके विपरीत कीरो जीवन रेखा के मध्य भाग को 49 वर्ष लेते हैं (13 साल की विसंगति बहुत ज्यादा है); (2) एक औसत हाथ पर भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा को 30 वर्ष की आयु पर काटती है (कीरो के अनुसार 35 वर्ष पर) तथा हृदय रेखा को 45 वर्ष की आयु पर (कीरो के अनुसार 56 वर्ष पर)।
बेनहम का सुझाव है कि समय का निर्धारण सभी मुख्य रेखाओं पर करना चाहिए यानि जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा और बुध रेखा। विभाजन बराबर (Linear) होगा लेकिन बेनहम के मानक पद्धति के अनुसार यानि 6, 12, 18, 24, 30, 36, 41, 51, 60 और 70 वर्ष। इस काल्पनिक रेखा द्वारा यह समझना आसान होना चाहिए कि कोई भी घटना कब और कितनी अवधि तक घटित होगी। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसके आधार पर घटना को हृदय या मस्तिष्क रेखा पर समयानुसार चिन्हित किया जा सकता है। घटना के समय का निर्धारण सूर्य रेखा और बुध रेखा पर भी भाग्य रेखा के समरूप ही होगा, सिवाए इसके कि विभाजन का अनुपात सूर्य और भाग्य रेखा की अपेक्षा बुध रेखा पर छोटा होगा।
मीर बशीर ने अपनी पुस्तक “द आर्ट ऑफ हैंड एनालियासीस " - में एक अन्य प्रणाली का सुझाव दिया है। कलाई के पास पहले मणिबंध से शनि की उंगली तक एक रेखा खींचें। इसके मध्य बिंदु को 40 वर्ष चिन्हित को (कुछ लेखकों ने इस बिंदु को 35 वर्ष लिया है)। लगभग, आधा इंच दूरी, इस रेखा पर 10 वर्ष
का समय दिखाएगी। इस भाग्य रेखा के मद्य बिंद को जीवन रेखा पर 40 वर्ष पर ट्रांसपोज़ कर लें। अब हर 10 वर्ष की अवधि को 10 बराबर भागों में विभाजित करें। हर एक विभाजित भाग एक साल को दिखाएगा। एक अन्य पद्धति जो कमोवेश कीरो जैसा ही परिणाम देती है, एस. के. दास द्वारा उनकी पुस्तक “एवरीबॉडीज गाइड
टु पामिस्ट्री” में दी गई है (चित्र 8)। यह किसी नौसिखिए के लिए भी सरल पद्धति है। एक ऐसे बिंदु की कल्पना करें, जो शुक्र पर्वत के मध्य में स्थित है। इस बिंदु से एक रेखा बुध पर्वत तक खींचें और दूसरी रेखा इस मध्य बिंदु से चंद्र पर्वत के निचले हिस्से तक खींचें। बुध पर्वत पर जाने वाली रेखा जहां पर जीवन रेखा को काटेगी उसे 35 वर्ष मानें। चंद्र पर्वत को जाने वाली रेखा जिस स्थान पर जीवन रेखा को काटे उसे 65 वर्ष मानें। इन दोनों बिंदु के मध्य बिंदु को 50 वर्ष मानें। इन्हीं बिंदुओं को आधार मानकर अन्य वर्षों को निकाला जा सकता है। एक तीसरी रेखा शुक्र पर्वत के मध्य भाग से निक कर 50 वर्ष के बिंदु को काटती हुई भाग्य रेखा को जहां काटे, उसे भाग्य रेखा पर 25 वर्ष की आयु मानें।
दिल्ली के प्रसिद्ध हस्तरेखा परीक्षक दिवंगत श्री प्रताप सिंह चौहान ने अपनी पुस्तक 'करतल रहस्य' में एक अन्य प्रणाली दी है जिसमें उंगलियों और मस्तिष्क रेखा को आधार मान लिया गया है।
मस्तिष्क रेखा से निर्देश
यदि एक सीधी रेखा खींचें जहां
1. गुरु उंगली का हथेली से मिलने का मध्य बिंदु हो, इसे मस्तिष्क रेखा पर 19 वर्ष
चिन्हित करें।
2. गुरु और शनि उंगली के मध्य बिंदु पर 30 वर्ष
3. शनि उंगली के मध्य बिंदु पर 35 वर्ष
4. शनि उंगली और सूर्य उंगली के बीच का भाग 40 वर्ष
5. सूर्य उंगली का मध्य भाग 45 वर्ष
6. सूर्य उंगली और बुध उंगली का मध्य बिंदु 50 वर्ष
इस बात को याद रखें कि जहां बुध रेखा, मस्तिष्क रेखा से मिले वहां 58 वर्ष की आय होगी। साथ ही यदि मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत की ओर ज्यादा झुकी हो, तो इसे समय के निर्धारण के लिए काल्पनिक रूप से सीधी हथेली के छोर की ओर जाती हुई मानें।
जीवन रेखा से निर्देश
मस्तिष्क रेखा पर अंकित चिन्हों को जीवन रेखा से चित्र के अनुसार मिलाया जाता है। यह कम्पास के उपयोग जैसा है। (चित्र देखें)।
भाग्य रेखा पर समय निर्धारण
1. पहले मणिबंध से 1 इंच ऊपर - 21 वर्ष
2. एक क्षैतिज रेखा अंगूठे के दूसरे जोड़ से - 24 वर्ष
3. जहां भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा को काटे - 35 वर्ष
4. जहां भाग्य रेखा हृदय रेखा से मिले - 50 वर्ष
5. शनि उंगली के आधार पर - 100 वर्ष
उंगलियों के पोर से समय निर्धारण: एक अन्य प्रणाली है जिससे अच्छे और बुरे समय का निर्धारण किया जा सकता है। इसमें उंगलियों के पोरों की मदद ली जाती है। गिनती की शुरूआत दाहिने हाथ की बुध उंगली के तीसरे पोर से करें (एस. के. दास ने पहला पोर लिया है जैसा कि चित्र 8 में दिखाया गया है) और अंत अंगूठे पर करें, जैसा कि चित्र 9 में दिखाया गया है। यह 1 से 15 वर्ष तक का फासला तय करेगा। 15 से 30 वर्ष की गिनती बाएं हाथ पर उसी क्रम से करें। वर्ष 30 से 60 इसी क्रम को दुबारा (दाहिने एवं बाएं हाथ पर) दुहराते हुए करें। कुछ लेखकों का मानना है कि महिलाओं में यह गिनती बाएं हाथ से शुरू की जानी चाहिए। उम्र गिनने की प्रक्रिया वही रहेगी।
जिस भी पोर पर कोई पड़ी रेखा, क्रॉस, बिंदु, जाल या अन्य कोई बुरा चिन्ह होगा वह बुरा फल देगा। कोई भी अच्छा चिन्ह जैसे कि खड़ी रेखा पोरों पर अच्छा फल दिखाएगी।
निम्नलिखित वर्ष सभी के लिए अशुभ कहे गए हैं: 29, 30, 34, 35, 37, 39, 40, 44, 45, 49 एवं 50। यदि पड़ी रेखाएं इन वर्षों में पोर पर पाई जाएं तो, वह साल ज्यादा अशुभ होता है। है चूंकि, हथेली पर घटना के समय के निर्धारण की कोई सटीक पद्धति नहीं है, लेखक को ये सलाह है कि परीक्षण करते समय प्रश्नकर्ता से ही किसी घटना विशेष का वर्ष पूछ लें जो उसके जीवन में घटित हो चुकी है। फिर उसे ही आधार बनाकर अन्य घटनाओं के समय का अनुमान करें।