सूर्य रेखा और भाग्य रेखा की हथेली में महत्वता और दोनों में अंतर जाने
जिस प्रकार भाग्य रेखा मणिबन्ध या चन्द्र-क्षेत्र या हथेली के मध्य से, या जीवन- रेखा से निकल कर शनि पर्वत या गुरु पर्वत को जाती है इसे भाग्य रेखा कहते हैं । उसी प्रकार सूर्य रेखा भी मणिबन्ध या जीवन रेखा से या चन्द्र पर्वत या उच्च मंगल पर्वत से या अनामिका उंगली और मणिबन्ध के बीच के किसी स्थान से निकलकर सूर्य पर्वत को जाती है इसे सूर्य रेखा कहते हैं ।
बहुत से हाथों में ये दोनों रेखा होती ही नहीं; बहुत से हाथों में होती है किन्तु अस्पष्ट और छोटी । एक प्रकार से सूर्य रेखा भाग्य रेखा की सहायिक रेखा है ।
यदि भाग्य रेखा टूटी हो और सूर्य रेखा पुष्ट हो तो भाग्य-रेखा के दोष को कम करती है । जिस अवस्था में भाग्य रेखा टूटी हो उसी अवस्था में सूर्य-रेखा पुष्ट और सुन्दर हो तो निश्चयपूर्वक यह कहा जा सकता है कि जातक का वह जीवन काल भाग्य रेखा के टूटे रहने पर भी यश और मान से पूर्ण होगा ।
भाग्य रेखा के खण्डित होने पर, उसके पास कोई सहायिका समानान्तर रेखा थोड़ी दूर तक चलकर भाग्य रेखा के खण्डित होने के दोष को जो दूर करती है, उसकी अपेक्षा स्वतन्त्र सूर्य रेखा का कहीं अधिक महत्व है ।
उदाहरण के लिए एक जातक के हाथ में 40 से 43 वर्ष तक की अवस्था में भाग्य रेखा टूटी है और उसके बिलकुल पास एक छोटी-सी समानान्तर रेखा इसी टूटे हुए भाग के पास है तो टूटी हुई भाग्य रेखा की त्रुटि पूर्तिकारक यह छोटी रेखा है ।
यदि यह छोटी रेखा न हो किन्तु 40 से 50 वर्ष तक की अवस्था में सूर्य रेखा सुस्पष्ट और पुष्ट हो तो भाग्य रेखा के खण्डित होने के दोष भाग्य रेखा की ही निवृत्ति नहीं होती किन्तु निश्चयपूर्वक इस काल में यश, मान, प्रतिष्ठा की वृद्धि होगी यह कहा जा सकता है ।
जिस व्यक्ति के हाथ में भाग्य रेखा तथा सूर्य रेखा दोनों लम्बी और सुन्दर हों उसके विषय में तो कहना ही क्या है— निश्चय ही वह समाज में अग्रगण्य होगा । किन्तु यदि एक भी रेखा पूर्ण और सुन्दर हो तो वह अन्य साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा विशेष महत्वशाली जीवन व्यतीत करेगा। भाग्य-रेखा तथा सूर्य रेखा दोनों जीवन में महत्व और उत्कर्ष, भाग्य वृद्धि और प्रतिष्ठा प्रकट करती हैं किन्तु दोनों में अन्तर यह है कि-
(१) भाग्य रेखा - प्रार्थिक उन्नति, धन-वृद्धि, ज़मीन-जायदाद श्रादि का उपार्जन तथा जीवन में किसी वस्तु की कमी न हो, सुख से जीवन व्यतीत हो इसको विशेष रूप से प्रकट करती है ।
(२) सूर्य-रेखा-यह बताती है कि चाहे आर्थिक दृष्टि से जातक धनी न समझा जावे किन्तु मान तथा प्रतिष्ठा में कमी न रहेगी। यदि जातक का हाथ कला, साहित्य, संगीत आदि की ओर झुकाव प्रकट करता है तो उसे इन क्षेत्रों में सफलता या मान-प्राप्ति होगी। यदि इस ओर झुकाव नहीं है तो उच्च पद तथा ख्याति और व्यापार आदि में जातक सफल होगा । सूर्य रेखा से महत्व, मान, प्रतिष्ठा, यश आदि विशेष प्रकट होता है। धन-संचय की विशेष परिचायिका यह रेखा नहीं है । चाहे कहीं से भी प्रारम्भ हो । इस रेखा का अन्त सूर्य-क्षेत्र पर होना चाहिए। तभी इसका नाम सूर्य रेखा सार्थक होगा ।
यदि अनामिका उंगली के बिलकुल सीध में मणिबन्ध से या इस बीच में कहीं से प्रारम्भ हो और सूर्य क्षेत्र तक न पहुँचे, बीच में कहीं रुक जावे तो भी सूर्य-क्षेत्र के बिलकुल नीचे खड़ी रेखा होने से यह कहलावेगी तो सूर्य-रेखा ही किन्तु सूर्य-क्षेत्र पर न पहुँच पाने के कारण सूर्य-क्षेत्र के सब गुण पूर्ण मात्रा में ऐसी रेखा में नहीं मिलेंगे ।