हस्तरेखा में दोषी रेखाओं के उपाय
कभी.कभी कुछ हाथों में पर्वत व रेखाएं दोषी होती हैं या किसी कारणवश उसका विपरीत फल मिलने की आशंका होती है। उन दोषों से मुक्त होने के उपाय भी जानना आवश्यक हैए अन्यथा हस्त परीक्षा का कोई लाभ नहीं होगा। इसी क्रम में अंगुलियों की मुद्रा द्वारा अनेक दोषी रेखाओं से लाभ हासिल किया जा सकता है। तपस्वी लोग तपस्या के अवस्था में अपने अंगुलियों को विशेष स्थिति में रखते हैं जिसे हम मुद्रा कहते हैं। मुद्राओ का उद्देश्य मस्तिष्क के कुछ केन्दों की अतिरिक्त शक्ति को दुसरे केन्द तक पहुंचा कर लाभ देना होता है।
ह्रदय रेखा का दोष निवारण
यदि ह्रदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और ह्रदय रोग की बिमारी होती है। ऐसी अवस्था में जातक अनेक प्रकार के औषधि उपाय भी करता है परन्तु उसे लाभ नहीं होता ऐसी स्थिति में ह्रदय रेखा के दोष को समाप्त करने के लिए कनिष्ठा अंगुली को छोड़कर अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो यह मुद्रा बनती है।
इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रातरूकाल करने से अधिक लाभ मिलता है।
मस्तिष्क रेखा का दोष निवारण
यदि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक बिमारी उत्पन्न करती है। ऐसी स्थिति में परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायेंए इसे चिन्मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा करने से गुरु पर्वत का दोष भी नष्ट हो जाता है। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रातरूकाल एवं सायंकाल में 15 मिनट करना चाहिए।
जीवन रेखा का दोष निवारण
यदि जीवन रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक के जीवन में अनेक दुर्घटना एवं शारिरीक बिमारी उत्पन्न करती है। ऐसी स्थिति में कनिष्ठा और अनामिका को अंगूठे से मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा को करने से शुक्र पर्वतए मंगल पर्वतए जीवनरेखाए बुधरेखा आदि का दोष नष्ट होता है तथा जातक को अच्छा फल मिलता हैं ।
शनि दोष निवारण
यदि शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोड़कर उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। शेष सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुर्दा शनि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक बिमारियों से रक्षा करती है।
बुध दोष निवारण
यदि बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसके निवारण हेतु बायें हाथ की तर्जनी का शिरा दांयें हाथ के तर्जनी और मध्यमा से जोड़े । यह मुद्रा करने से बुध दोष नष्ट होता है। पेट अथवा शरीर के किसी भाग में गैस इकठी होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है।
प्रस्तुत मुद्राय बारी-बारी से दोनों हाथों द्वारा करना चाहिए। यदि रेखाओं में दोष न हो तो भी इन मुद्राओं को दो.चार मिनट अभ्यास करने से इसका लाभ शरीर में अनेक बिमारियों का शमन करके शक्ति प्रदान करता है।
नितिन कुमार पामिस्ट