Mount Of Moon In Palmistry In Hindi | Hastrekha


चंद्र पर्वत या चंद्र क्षेत्र शुक्र पर्वत के विपरीत भाग में, हथेली के मूल स्थान पर , मस्तिष्क रेखा के अंतिम सिरे से नीचे माना गया है।


चंद्र (Moon) क्षेत्र - Hastrekha Shastra



चंद्र पर्वत या चंद्र क्षेत्र शुक्र पर्वत के विपरीत भाग में, हथेली के मूल स्थान पर , मस्तिष्क रेखा के अंतिम सिरे से नीचे माना गया है। यह क्षेत्र जिनमें (जिनके हथेली पर) विकसित होते हैं उनमें कल्पना शक्ति, आवेशपूर्ण कलात्मक प्रकृति, इनमें कल्पना बहुत अधिक होती है। जो कुछ भी बोलते हैं या करते हैं उनमें कल्पना का आधार होता है।


ये रोमांटिक स्वभाव के तो होते हैं पर वहाँ आदर्शवादी सिद्धांत को ध्यान में रखते हैं। वासना के शिकार नहीं होते। किसी भी काम में इन्हें पिटेपिटाए सिद्धांतों का प्रयोग पसंद नही होता।

ये अपने कल्पना से रचेरचाए तर्क से युक्त बुद्धि का प्रयोग कर आमूल परिवर्तन चाहते हैं जो कि वस्तुत: प्रशंसनीय भी प्रमाणित होता है।

ये आविष्कार, कला एवं संगीत के क्षेत्र में भी रुचि तो रखते हैं पर गुप्त विद्याओं एवं किसी भी तरह के रहस्यों के प्रति इनका आकर्षण अपेक्षाकृत अधिक होता है। जानेमाने हस्तरेखाविदों के अनुसार चंद्र क्षेत्रप्रधान व्यक्ति में चंद्र के समान आकर्षण शक्ति होती है। जैसे चंद्रमा के चारों ओर तारे बिखरे हुए चंद्रमा की शोभा बढ़ाते हैं ठीक वैसे ही अन्य व्यक्ति इस चंद्रप्रधान व्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं।

ऐसे जातक में यह आकर्षण शक्ति तब और अधिक बढ़ जाती है जब चंद्रमा आकाश में अपने पूर्ण कलाओं से देदीप्यमान होता है। ये विचार से उच्च होते हैं।

दूसरों की भलाई से कभी नहीं हिचकते। किसी व्यक्तिगत की अपेक्षा सार्वजनिक कार्यों की ओर अधिक रुचि होती है। स्वभाव से दयालु एवं भावनाप्रधान होने से लोगों की भलाई तो करते हैं, पर कभी-कभी यह भलाई भी इन्हें कलंकित कर बदनामी का रास्ता प्रशस्त कर देती है।

फिर भी ये भलाई करने से बाज नहीं आते, क्योंकि ये स्वभाव से धार्मिक भी होते हैं। यदि चंद्र क्षेत्र अति विकसित हो तो फिर कलकित होते हैं।

जातक कल्पना की दुनियाँ में इस तरह विचरण करने लगते हैं कि पागलपन तक की संज्ञा दे दी जाती है। रोमांस के क्षेत्र में आदर्श के सिद्धांत वासना के शिकार हो जाते हैं। अपने-पराए का विचार भी नहीं रह जाता। नितिन कुमार पामिस्ट

आस्तिकता धर्म में विश्वास के बदले धमाँधता या धमौमतता का रूप ले लेती है। इन्हें जलभय रहता है, अत: जलयात्रादि से यथासाध्य बचने का प्रयास करना चाहिए।

स्नायविक शिथिलता, हृदय की धड़कन, हृदय की दुर्बलता, पक्षाघात जैसे रोगों के अतिरिक्त गठिया, पाचनसंस्थान के रोग, यकृत आदि की खराबी की भी संभावना रहती है।

नितिन कुमार पामिस्ट