ज्योतिष शास्त्र में हाथ में विवाह रेखा होने पर भी शादी नहीं होना का कारण | Marriage Line On Hand But Still Unmarried Palmistry
यह बात एक अच्छे प्रेक्षक के मस्तिष्क में उथल-पुथल मचा देती है । जिस कारण उसे रातों नींद नहीं आती । किन्तु विवश है मनुष्य विधि के विधान से, और वहाँ तक पहुँचने की विवशता से अन्त में किसी न किसी गतिविधि द्वारा उसे सन्तोष ही करना पड़ता है फिर भी यह बात उसके हृदय में काँटे के समान हर समय खटकती रहती है और वह अभ्यासगत उस अपनी पराजय के अन्वेषण में लगा रहता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । किन्तु अब देखना यही है कि ऐसा क्यों होता है । इसके लिये हस्त प्रेक्षक स्वयं उत्तरदायी है । क्योंकि संसार में कुछ मनुष्य ऐसे भी हैं जोकि किसी प्रकार का प्रेम सम्बन्ध अथवा विवाह किसी से भी करना ही नहीं चाहते और अपनी प्रबल इच्छा शक्ति की प्रखरता से विवाह का समय टाल देते हैं।
समय के टल जाने पर अथवा आयु के बढ़ जाने पर या अपने योग्य वर-वधु के न मिलने पर कोई भी स्त्री या पुरुष अविवाहित ही रह सकता है। इसमें कोई विशेष परेशानी की बात नहीं है। यहाँ आत्मशक्ति की प्रखरता ही प्रबल मानी जायगी जिसके कारण मनुष्य ने प्राकृतिक नियम का उल्लंघन कर दिया है। भारतीय दार्शनिकता में यह बात प्रत्यक्ष रूप से प्रकट कर दी गई है कि समस्त संसार ही नहीं बल्कि यह तमाम सृष्टि चक्र ही किसी की इच्छा शक्ति या आत्म-शक्ति के बल पर चल रहा है । यदि यह इच्छा शक्ति । योग द्वारा ब्रह्ममय विलीन कर दी जाय तो प्रत्येक मनुष्य इस सृष्टि चक्र का संचालन करने में यथेष्ट रूप से समर्थ हो सकता है क्योंकि ब्रह्म से दूसरी वस्तु या ब्रह्म के अतिरिक्त संसार में कुछ भी नहीं है। इसलिये इस ब्रह्ममय इच्छाशक्ति के द्वारा प्रत्येक कार्य कर लेना सम्भव है इसीलिये प्राकृतिक नियम का उल्लंघन करने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता क्योंकि कर्ता और क्रिया एक ही वस्तु प्रतीत होती है।
अब तो प्रश्न केवल यही रह जाता है कि मनुष्य के हाथ में सुन्दर, साफ और स्पष्ट विवाह रेखा के होते हुए, और विवाह की इच्छा रखते हुए भी, क्यों अविवाहित रह जाता है या फिर यों कहिये कि सुन्दर, साफ, स्पष्ट रेखा के होते हुए भी उसे विवाह की इच्छा ही उत्पन्न क्यों नहीं होती। मेरी समझ में इसके दो ही कारण आते हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । प्रथम तो विवाह कोई ऐसी वस्तु नहीं कि जिसका उपचार किसी के प्रेम द्वारा न हो सके अर्थात् वह मनुष्य अपने विवाह के समय को किसी प्रेयसी के प्रेम पाश में अपने को बाँधकर अपनी हार्दिक इच्छाओं तथा वासनाओं की तृप्ति करके टाल रहा हो यदि वासना तृप्ति का प्रत्यक्ष रूप न भी हो तो भी कोई न कोई और कुछ न कुछ बात अवश्य ही हृदय को आकर्षित करने के लिये प्रेममय अवश्य ही पाई जायगी।
अब तो प्रश्न केवल यही रह जाता है कि मनुष्य के हाथ में सुन्दर, साफ और स्पष्ट विवाह रेखा के होते हुए, और विवाह की इच्छा रखते हुए भी, क्यों अविवाहित रह जाता है या फिर यों कहिये कि सुन्दर, साफ, स्पष्ट रेखा के होते हुए भी उसे विवाह की इच्छा ही उत्पन्न क्यों नहीं होती। मेरी समझ में इसके दो ही कारण आते हैं। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । प्रथम तो विवाह कोई ऐसी वस्तु नहीं कि जिसका उपचार किसी के प्रेम द्वारा न हो सके अर्थात् वह मनुष्य अपने विवाह के समय को किसी प्रेयसी के प्रेम पाश में अपने को बाँधकर अपनी हार्दिक इच्छाओं तथा वासनाओं की तृप्ति करके टाल रहा हो यदि वासना तृप्ति का प्रत्यक्ष रूप न भी हो तो भी कोई न कोई और कुछ न कुछ बात अवश्य ही हृदय को आकर्षित करने के लिये प्रेममय अवश्य ही पाई जायगी।
इस प्रकार कोई भी मनुष्य अपने अभीष्ट की सिद्धि को प्राप्त कर अपने मनोवांछित फल को पा लेता है अथवा हृदय रेखा के टूट जाने पर या किसी और दोष के उत्पन्न हो जाने पर कोई भी व्यक्ति किसी प्रतिज्ञा के अन्र्तगत अपनी प्रेयसी या प्रियतम से धोखा खाकर दूरस्थल पर उस समय की बाट में जबकि प्रेम ने परिचय देना है याद कर-करके उसके विचारों में प्रतिच्छाया को सजीव प्रतिमा का आभास लेकर वास्तविक विवाह के समय को टाल देता है और दोनों दीन से गये पाण्डे, हलुआ रहे न भाण्डे' की कहावत को चरितार्थ कर-करके पछताता है ।
दूसरी बात साथ में विशेष रूप से ध्यान देने योग्य यह है। कि प्रेक्षक विवाह रेखा पर जिन खड़ी रेखाओं को सन्तान रेखा समझकर सन्तान होना निश्चित करता है कभी-कभी अवरोध रेखाओं के रूप में प्रकट होकर विवाह रेखा का विरोध करती हैं । विवाह रेखा की बढ़ती हुई अग्रगति को रोकने वाली रेखा तथा ऊपर से नीचे तक काटने वाली रेखाएँ विवाह या प्रेम सम्बन्ध का विरोध करती हैं। ऐसी दशा में मनुष्य न प्रेम कर पाता है और न विवाह ही कर पाता है।
दूसरी बात साथ में विशेष रूप से ध्यान देने योग्य यह है। कि प्रेक्षक विवाह रेखा पर जिन खड़ी रेखाओं को सन्तान रेखा समझकर सन्तान होना निश्चित करता है कभी-कभी अवरोध रेखाओं के रूप में प्रकट होकर विवाह रेखा का विरोध करती हैं । विवाह रेखा की बढ़ती हुई अग्रगति को रोकने वाली रेखा तथा ऊपर से नीचे तक काटने वाली रेखाएँ विवाह या प्रेम सम्बन्ध का विरोध करती हैं। ऐसी दशा में मनुष्य न प्रेम कर पाता है और न विवाह ही कर पाता है।
इस प्रकार की अवरोध रेखाओं वाले हाथों को देखने से कितने ही हाथों से यह पता चला है कि उनमें से बहुत-सों के न तो प्रेम सम्बन्ध हुए और न विवाह ही हुए और कितने ही हाथों में इन रेखाओं के प्रभाव से विवाह तो न हुए किन्तु प्रेम सम्बन्ध हुए जिनमें कई सफल रहे और कई विफल भी रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक रेखा की गतिविधि देखकर ही प्रेक्षक से बात करनी चाहिये।