गौण रेखाएं
हस्तरेखा विज्ञान से गौण रेखाएं की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी गयी है।
सर्वप्रथम ये बताना आवश्यक है की ये लेख हस्तरेखा पर लिखी पुस्तक "प्रैक्टिकल पामिस्ट्री" से लिया गया है।
हथेली में कई रेखाएं ऐसी होती हैं जिन्हें हम मुख्य रेखाएं तो नहीं कहते, परन्तु उनको भहत्त्व किसी भी प्रकार से कम नहीं कहा जा सकता। इन रेखाओं का अध्ययन भी अपने आप में अत्यन्त जरूरी है।
हाथ मैं रेखाएं स्वतंत्र रूप से या किसी रेखा की सहायक बनकर अपना निश्चित प्रभाव मानव जीवन पर डालती हैं। आगे के पृष्ठों में मैं इन रेखायों का संक्षेप में परिचय स्पष्ट कर रहा हूं :
१. मंगल रेखा :-ये रेखाएं हथेली में निम्न मंचल क्षेत्र से या जीवन रेखा के प्रारंभिक माग से निकलती हैं और शुक्र पर्वत की ओर बढ़त हैं। ऐसी रेखाएं एक या एक से अधिक हो सकती हैं। ये सभी रेखाएं पतली, मोटी, गहरी या कमजोर हो सकती हैं। परन्तु यह स्पष्ट है कि इन रेखाओं का उद्गम मंगल पर्वत ही होता है। इसीलिये इन्हें मंगल रेखाएं कहा जाता है।
इनमें दो भेद हैं। एक तो ऐसी रेखाएं जीवन रेखा के साथ-साय यागे बढ़ती है। अतः उन्हें जीवन रेखा की सहायक रेखा भी कह सकते हैं।
कई बार ऐसी रेखा जीवन रेखा की समाप्ति तक उसके साथ-साथ चलती है। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।
जिनके हाथ में ऐसी रेखा होती है वे व्यक्ति अत्यन्त मैगल रेखा प्रतिभाशाली एवं तीव्र बुद्धि के होते हैं। सोचने और समझने की शक्ति इनमें विशेष रूप से होती है । जीवन में ये जो निर्णय एक बार कर लेते हैं उसे अन्त तक निभाने की सामर्थ्य रखते हैं। ऐसे व्यक्ति पूर्णतः विश्वासपात्र कहे जाते हैं।
इस प्रकार के व्यक्ति जीवन में कोई एक उद्देश्य लेकर आगे बढ़ते हैं और जब तक इस उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक ये विश्राम नहीं लेते। शारीरिक दृष्टि से ये हृष्टपुष्ट होते हैं तथा इनका व्यक्तित्व अपने आप में अत्यन्त प्रभावशाली होता है । क्रोध इनके जीवन में बहुत ही कम रहता है।
दूसरे प्रकार की मंगल रेखाएं वे होती हैं जो जीवन रेखा का साथ छोड़कर सीधे ही शुक्र पर्वत पर पहुंच जाती हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में लापरवाह होते हैं। उनका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। आवेश में ये व्यक्ति सब कुछ करने के लिये तैयार होते हैं। इनका साथ अत्यन्त निम्न स्तर के व्यक्तियों से होता है।
( १ ) मंगल रेखा :
यदि मंगल रेखा से कुछ रसाए निकल कर ऊपर की ओर से हैं। उनके जीवन में बहुत अधिक माएं होती है और इन छात्रों को पूरा करने का । भगीरथ प्रयत्न करते हैं। यदि ऐसी रेखाएं भाग्य रेखा से मिल जाती है तो यक्ति का शीघ्र ही भाग्योदय होता है। हृदय रेखा से मिलने पर व्यक्ति जरूरत से ज्यादा मा तथा सहृदय बन जाता है।
यदि इस प्रकार की मंगल रेखाएं भागे चलकर भाग्य रेखा अषया सूर्य या को काटती हैं तो उसके जीवन में जरूरत से ज्यादा बाधाएं एवं परेशानियां रहती है यदि इन रेखाओं का सम्पर्क भाग्य रेखा से हो जाता है तो वह भाग्यहीन व्यक्ति कहलाता है। तथा यदि ये मंगल रेखाएं विवाह रेखा को छू लेती हैं तो उनका हाल जीवन बर्बाद हो जाता है।
यदि मंगल रेखा प्रबल पुष्ट हुनेली में पंसी हु तथा दोहरी हो तो ऐसा व्यक्ति निश्चय ही हत्यारा अथवा शक होता है। परन्तु यदि यह रेखा दोहरी नहीं होती तो ऐसा व्यक्ति मिलिट्री मैं ऊंचे पद पर पहुंचने में सक्षम होता है।
२ . गुरुवलय :
तर्जनी उंगली को घेरने वाली अर्थात् यो रेक्षा अर्ववृत्ताकार बनती हुई गुरु पर्वत को घेरती है जिसका एक सिरा इमेली के बाहर की ओर तथा दूसरा सिरा तर्जनी और मध्यमा के बीच में आता है तो ऐसे वलय को गुरु वलय कहते हैं। ऐसी रेषा बहुत ही कम हाथों में देखने को मिलती है।
जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी रेखा होती है वे व्यक्ति जीवन में गम्भीर तथा सहृदय होते हैं। उनकी इच्छाएं जरूरत से ज्यादा बड़ी-चढ़ी होती हैं विद्या के क्षेत्र में अत्यन्त सफलता प्राप्त करते हैं । परन्तु इन लोगों में यह कमी होती है कि ये अपने चारों ओर घन पूर्ण वातावरण बनाये रखते हैं तथा शान-शौकत का प्रदर्शन करते रहते हैं। ये जीवन में कम मेहनत से ज्यादा लाभ उठाने की कोशिश में रहते हैं। परन्तु उनके प्रयत्न ज्यादा सफल नहीं होते जिसकी वजह से आगे चलकर इनके जीवन में निराशा आ जाती है।
३. शनिवलय :
जब कोई अंगूठी के समान रेखा शनि के पर्वत को घरतीं है और जिसका एक सिरा तर्जनी और मध्यमा के बीच में तथा दूसरा सिरा मध्यमा और अनामिका के बीच में जाता हो तो उसे शनि वलय या शनि मुद्रा कहते हैं। सामाजिक दृष्टि से ऐसा बलम शुभ नहीं कहा जा सकता, क्योकि जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी मुद्रा होती है, वह व्यक्ति वीतरामी सन्यासी या एकान्त प्रिय होता है। ऐसा व्यक्ति इस संसार का मोह तथा सुख को छोड़कर परलोक को सुधारने की कोशिश में रहता है।
ऐसे व्यक्ति तंत्र साधना तथा मंत्र साधना के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते देखे गये हैं। यदि शनि वलय की कोई रेखा भाग्य रेखा को स्पर्श नहीं करती तो वह व्यक्ति शनिवलय अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त कर लेता है। परन्तु यदि शनि वलय की कोई रेखा भाग्य रेखा को स्पर्श करती हो तो वह व्यक्ति जीवन में कई बार गृहस्थ बनता है, और कई बार पुनः घर बार छोड़कर सन्यासी बन जाता है।
ऐसा व्यक्ति अपने किसी भी उद्देश्य में सफलता प्राप्त नहीं करता। ऐसे व्यक्ति के सभी कार्य अधूरे तथा अव्यवस्थित होते है । तथा एक प्रकार से इन्द्रियों के दास होते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति अपनी ही कुण्ठाओं के कारण आत्म-हत्या कर डालते हैं।
जिनके हाथों में इस प्रकार का बलय होता है वे निराशा प्रधान व्यक्ति होते हैं। उनको जीवन में किसी प्रकार का कोई आनन्द नहीं मिलता। वे व्यक्ति चिन्तनशील एकान्तप्रिय तथा वीतरागी होते हैं।
४. रबिवलय :
यदि कोई रेखा मध्यमा और अनामिका के बीच में से निकलकर सूर्य पर्बत को घेरती हुई अनामिका और कनिष्ठिका के बीच में जाकर समाप्त होती हो तो ऐसो रेखा को रविवलय या रवि मुद्रा कहते हैं ।
जिस व्यक्ति के हाथ में रवि मुद्रा होती है वह जीवन में बहुत ही सामान्य स्तर का व्यक्ति होता है उसे अपने जीवन मैं बार-बार असफलता का सामना करना पड़ता है। जरूरत से ज्यादा परिश्रम करने पर भी उसे किसी प्रकार का कोई यश नहीं मिलता अपितु यह देखा गया है कि जिनकी भी वह मलाई करता है या जिनको भी वह सहयोग देता है उसी की तरफ से उसको अपयश मिलता है। ऐसा वलय होने पर रवि पर्वत से संबंधित सभी फल विपरीतता में बदल जाते हैं।
ऐसा व्यक्ति समझदार तया सन्चरित्र होने पर भी उसको अपयश का सामना करना पड़ता है, और सामाजिक जीवन में उसे कलंकित होना पड़ता है। ऐसे अक्ति अपने जीवन से निराश ही रह्ते हैं।
५. शुकवलय :
यदि कोई रेखा तर्जनी और मध्यमा से निकलकर शनि और सूर्य के पर्वतों को घेरती हुई अनामिका और कनिष्ठिका अंगुली के बीच में समाप्त होती हो तो ऐसी मुद्रा शुक्र मुद्रा या शुक्र घलय कहलाती है। जिनके हाथों में यह बाय होता हैं उन्हें जीवन में कमजोर और परेशान ही देखा है। जिनके हाथों में ऐसी मुद्रा होती है, वे स्नायु संबंधी रोगों से पीड़ित तथा अधिक से अधिक भौतिकवादी होते हैं। इनको जीवन में बराबर मानसिक चिन्ताएं बनी रहती हैं, और इनको जीवन में सुख या शान्ति नहीं मिल पाती ।
यदि यह मुद्रा जरूरत से ज्यादा चौड़ी हो तो ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों का संचित धन समाप्त कर डालता है।
ऐसा व्यक्ति प्रेम में उतावली करने वाला तथा परस्त्री-गामी थे । होता है । जीवन में इसको कई बार बदनामियों का सामना करना पड़ता है।
यदि शुक्र वलय की रेखा पतली और स्पष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति समझदार एवं परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालने वाला होता है। ये व्यक्ति बातचीत में माहिर होते हैं और बातचीत के माध्यम से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेते हैं।
यदि किसी के हाथ में एक से अधिक शुक वलय हों तो वह कई स्त्रियों से शारीरिक संबंध रखने वाला होता है । इसी प्रकार यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसा वलय हो तो वह कई पुरुषों से सम्पर्क रखती है ।
यदि शुक्र मुद्रा मार्ग में टूटी हुई हो तो वह अपने जीवन में निम्न जाति की स्त्रियों से यौन संबंध रखता है। परन्तु साथ ही साथ ऐसा व्यक्ति जीवन में अपने दुष्कर्मों के कारण पछताता भी है।
यदि शुक मुद्रा से कोई रेखा निकलकर विवाह रेखा को काटती हो तो उसे जीवन में वैवाहिक सुख नहीं के बराबर मिलता है। कई बार ऐसे व्यक्तियों का विवाह होता ही नहीं।
यदि शुक्र मुद्रा की रेखा आगे बढ़कर भाग्य रेखा को काटती हो तो वह व्यक्ति दुर्भाग्यशाली होता है, तथा उसे जीवन में किसी प्रकार का कोई सुख प्राप्त नहीं होता।
Hath m machhli nisan ka fal, Hath m til, Hath me jivan rekha,
Hath me m ka matlab, Hath me machhli hona, Hath me shadi ki lakeer, Hath me
tribhuj ka banna
Hath me x rekha, Hath rakha, Hatheli ki bhagya rekha, Hatheli
par m, Hatheli par til hona in urdu