विवाह-रेखा
हस्तरेखा विज्ञान से विवाह रेखा की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी गयी है।
सर्वप्रथम ये बताना आवश्यक है की ये लेख हस्तरेखा पर लिखी पुस्तक "प्रैक्टिकल पामिस्ट्री" से लिया गया है।
हमारे शरीर में सबसे कोमल और विचित्र-सा जो अवगव हैं उसका नाम दिल है। एक प्रकार से इसका शरीर में सबसे अधिक महत्व है। एक तरफ यह पूरे शरीर में खून पहुंचाने का कार्य करता है तो दूसरी तरफ यह अपने आप में इतना अधिक कोमल होता है कि कई भावनाओं को मन में संजोकर रखता है। कोमल विचार, विपरीत योनि के प्रति भावनाएं आदि कार्य इसी के माध्यम से सम्पन्न होते हैं ।
यह इतना अधिक कोमल होता है कि जरा-सी बिपरीत बात से इसको ठेस पहुंच जाती है और दूट जाता है । मानवीय कल्पनाओं का यह एक सुन्दर प्रतीक है। करुणा, दया, ममता, स्नेह, और प्रेम आदि भावनाएं इसी के द्वारा संचालित होती हैं।
एक हृदय चाहता है कि वह दूसरे हृदय से सम्पर्क स्थापित करे, आपस में दोनों का प्यार हो । दोनों हदय एक मधुर कल्पना से ओत-प्रोत हों और जब दोनों हदय एक सूत्र में बंध जाते हैं तब उसे समाज विवाह का नाम देता है। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।
वस्तुतः मानव जीवन की पूर्णता तभी कही जाती है कि जब उसका अङ्ग भी सुन्दर हो, समझदार हो, प्रेम की भावना से भरा हुआ हो तथा दोनों के हृदय एक दूसरे से मिल जाने की क्षमता रखते हौं । जिस व्यक्ति के घर में सुशील, सुन्दर, स्वस्थ और शिक्षित पत्नी होती है वह घर निश्चय ही इन्द्र भवन से ज्यादा सुखकर माना आता है। इसलिए इस्तरेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वह जीवन रेखा को जितना महत्व में लगभग उतना ही महत्त्व विवाह रेखा को भी दे, क्योंकि इस रेखा के अध्ययन से ही मानव जीवन की पूर्णता का ज्ञान हो सकता है।
मानव जीवन की यात्रा अत्यन्त कंटकमय होती है। इस पथ को भली प्रकार से पार करने के लिये एक ऐसे सहयोगी की जरूरत होती है जो दुख में सहायक हो परेशानियों में हिम्मत बंधाने वाला हो तथा जीवन में कंधे से कंधा मिलाकर चलने की क्षमता रखता हो ।
हथेली में विवाह रेखा या वासना रेखा अथवा प्रणय रेखा दिखने में छोटी होती है पर इसका महत्व सबसे अधिक होता है। यह रेखा कनिष्ठिका उंगली के नीचे, हृदय रेखा के ऊपर, सुध पर्वत के बगल में पेशी के बाहर निकलते समय जो आड़ी रेखाएं दिखाई देती हैं | रेखाएं ही विवाह रेखाएं कहलाती है।
हथेली में ऐसी रेखाएं दो-तीन या चार हो सकती हैं पर उन सभी रेखाओं में एक ऐसा मुक्या होती है। यदि ये रेखाएं य रेषा से कृपर हों तो वे विधवा जाएं कहलाती है और ऐसे व्यक्ति का विवाह निश्चय ही होता है। परन्तु ये रेखाएं हृदय रेखा से नीचे हों तो ऐसे व्यक्ति का विवाह जीवन में नहीं होता।
यदि हथेली में दो या तीन विवाह रेखाएं हों तो जौ रेखा सबसे अधिक लम्बी पुष्ट और स्वस्थ हो उसे विवाह रेखा मानना चाहिए। बाकी की रेखाएं इस बात की सुक होती है कि या तो विवाह से पूर्वं उतने संबंध होकर छूट जायेंगे अथवा विवाह के बाद उतने अन्य स्त्रियों से सम्पर्क रहेंगे।
पर इसके साथ ही साथ जो छोटी-छोटी रेखाएं होती हैं वे रेखाएं प्रणय रेखाएं कहलाती हैं। ये जितनी रेखाएं होंगी व्यक्ति के जीवन में उतनी ही पर स्त्रियों का सम्पर्क रहेगा । यही बात स्त्रियों के हाथ में भी लागू होती हैं।
पर केवल ये रेखाएं देखकर ही अपना मत स्थिर नहीं कर लेना चाहिए, पर्वतों का अध्ययन भी इसके साथ-साथ आवश्यक है। यदि इस प्रकार की रेखाएं हों और गुरु पर्वत ज्यादा पुष्ट हो तो निश्चय ही ऐसा व्यक्ति प्रेम संबंध स्थापित करता है पर उसका प्रेम सात्विक और निर्दोष होता है। यदि शनि पर्बत बिशेष उभरा हुआ हो और ऐसी रेखाएं हों तो व्यक्ति अपनी आयु से बड़ी प्रायु की स्त्रियों से प्रेम संबंध स्थापित करता है।
यदि हथेली में सूर्य पर्वत पुष्ट हो और ऐसी रेखाएं हों तो व्यक्ति बहुत अधिक सोच विचार कर अन्य स्त्रियों से प्रेम सम्पर्क स्थापित करता है। यदि बुध पर्वत विकसित हो तथा प्रणय रेखाएं हाथ में दिखाई दें तो ऐसे व्यक्ति को भी प्रेमिकाओं से धन लाभ होता है। यदि मैली में प्रणय रेखाएं हों और चन्द्र पर्वत विकसित हो तो व्यक्ति काम लोलुप तथा सुन्दर स्त्रियों के पीछे फिरने वाला होता है।
यदि शुक्र पर्वत बहुत अधिक विकसित हो तथा प्रणय रेखाएं हों तो वह अपने जीवन में कई स्त्रियों से सम्बन्ध स्थापित करता है तथा उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त करता है ।
प्रणय रेखा का हृदय रेखा से गहरा सम्बन्ध होता है । ये प्रणय रेखाएं हृदय रेखा से जितनी अधिक नजदीक होंगी व्यक्ति उतनी ही कम उम्र में प्रेम सम्बन्ध स्थापित करेगा । और ये प्रणय रेखाएं हृदय रेखा से जितनी अधिक दूर होंगी जीवन में प्रेम सम्म उतना ही अधिक विलम्ब से होगा।
यदि हथेली में प्रणय रेखा न हो तो व्यक्ति अपने जीवन में संयमित रहते हैं या ये काम लोलुप नहीं होते।
परि प्रणय रेखा गहरी तथा स्पष्ट हो तो उस व्यक्ति के प्रणय संबंध भी गहरे बगे । परन्तु यदि वे प्रणय रेखाएं छोटी तथा कमजोर हों तो उस व्यक्ति के प्रणय संबर भी बहुत कम समय तक चल सकेंगे।
यदि दो प्रणय रेखाएं साथ-साथ मागे बढ़ रही हों तो इसके जीवन में एक साथ दो वियों से प्रेम सम्बन्ध चलेंगे ऐसा समझना चाहिए । यदि प्रणय रेखा पर व ( १५ ) का चिह्न है तो व्यक्ति का प्रेम बीच में ही टूट जाता है। यदि प्रथय रेखा पर दीप का चिह्न दिखाई दे तो उसे प्रेम के क्षेत्र में बदनामी सहन कली पाती है। अदि. अभय या सुर्य पर्वत की गौर जा ही हो तो उस व्यक्ति का प्रेम संबंध में बरानों से रहेगा । यदि प्रणय रेखा मागे जाकर दो भागों में बंट जाती हो तो उस व्यक्ति के प्रेम संबंध चल्दी ही समाप्त हो जाते हैं।
यदि प्रणय रेखा से कोई सहायक रेखा हथेली में नीचे की ओर जा रही हो तो वह इस क्षेत्र में बदनामी सहन करता है। यदि प्रणय रेखा से कोई सहायक रेखा हथेली में ऊपर की और बढ़ रही हो तो उसका प्रणय संबंध टिकाऊ रहता है तथा जीवन भर आनन्द उपभोग करता है। यदि प्रणय रेखा बीच में ही टूटी हुई हो तो उससे प्रेम संबंध बीच में ही टूट जायेंगे।
अब में विवाह रेखा से संबंधित कुछ तथ्य पाठकों के सामने स्पष्ट कर रहा हूं। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।
१. यदि विवाह रेखा स्पष्ट निर्दोष तथा लालिमा लिये हुए हो तो उस व्यक्ति का वैवाहिक जीवन अत्यन्त सुखमय होता है।
२. यदि दोनों हाथों में विवाह रेखाएं पुष्ट हों तो व्यक्ति दाम्पत्य जीवन में पूर्णं सफलता प्राप्त करता है।
३. यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका उंगली के दूसरे पोर तक चढ़ जाय तो यह व्यक्ति आजीवन अविवाहित रहता है।
४. यदि विवाह रेखा नीचे की ओर झुककर हृदय रेखा को स्पर्श करने सबै तो उसकी पत्नी की मृत्यु समझनी चाहिए।
५. यदि विवाह रेखा टूटी हुई हो तो जीवन के मध्यकाल में या तो पली की मृत्यु हो जायगी अथवा तलाक हो जायगा ऐसा समझना चाहिए।
६. यदि शुक्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर विवाह रेखा से सम्पर्क स्थापित करती है तो उसका वैवाहिक जीवन अत्यन्त दुखमय होता है ।
७. यदि विवाह रेखा आगे चलकर दो मुंह वाली बन जाती है तो इस प्रकार के व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं कहा जा सकता तथा उसका वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण बना रहता है।
६. यदि विवाह रेखा से कोई पतली रेखा निकल कर हृदय रेखा की ओर जा रही हो तो उसकी पत्नी से जीवन भर बनी रहती है ।
६. यदि विवाह रेखा चौड़ी हो तो विवाह के प्रति उसके मन में कोई उत्साह नहीं रहता।
१०. यदि विवाह रेखा आगे जाकर दो भागों में बंट जाती हो और उसकी एक शाखा हृदय रेखा को छू रही हो तो वह व्यक्ति पत्नी के अलावा अपनी साली से भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेगा।
११. यदि विवाह रेखा आगे जाकर कई भागों में बंट आया तो उसका वैवाहिक जीवन अत्यन्त दुखमय होता है।
१२. यदि विवाह रेखा मस्तिष्क रेखा को छु ले तो वह व्यक्ति अपनी पली की हत्या करता है । यदि बुध पर्वत पर विवाह रेखा कई भागों में बंट जाय तो वार बार सगाई दृटने का योग बनता है।
१३. मदि विवाह रेखा सूर्य रेखा को स्पर्श कर नीचे की ओर बढ़ती हो तो ऐसा किया अनमेल विवाह कहलाता है।
१४. यदि विवाह रेखा की एक शाखा नीचे झुककर शुक्र पर्वत तक पहुंच जाय तो उसकी पत्नी व्यभिचारिणी होती है।
१५. यदि विवाह रेखा पर काला धब्बा हो तो उसे अपनी पत्नी का सुख नहीं मिलता।
१६. यदि विवाह रेखा आगे चलकर आयु रेखा को काटती हो तो उसका वैवाहिक जीवन कला पूर्ण रहता है।
१७. यदि विवाह रेखा, भाग्य रेखा तथा मस्तिष्क रेखा परस्पर मिलती हो तो उसका वैवाहिक जीवन अत्यन्त दुखदायी समझना चाहिए ।
१८. यदि विवाह रेखा को कोई अड़ी रेखा काटती हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन बाधाकारक होता है ।
१६. यदि कोई अन्य रेखा विवाह रेखा में आकर या विवाह रखा स्थल पर आकर मिल रही हो तो प्रेमिका के कारण उसका गृहस्थ जीवन नष्ट हो जाता है।
२०. यदि विवाह रेखा के प्रारंभ में द्वीप का चिह्न हो तो काफी बाधाओं के बाद उसका विवाह होता है ।
२१. यदि विवाह रेखा जहां से झुक रही हो उस जगहू क्रॉस का चिह्न हो तो उसकी पत्नी की मृत्यु अकस्मात होती है।
२२. यदि विवाह रेखा को सन्तान रेखा काटती हो तो उसका विवाह अत्यन्त कठिनाई के बाद होता है।
२३. यदि विवाह रेखा पर एक से अधिक दीप हों तो व्यक्ति जीवन भर कुरा रहता है।
२४, यदि बुध क्षेत्र के आस-पास विवाह रेखा के साथ-साथ दो तीन रेखाएं चल रही हों तो जीवन में पत्नी के अलावा उसके संबंध दो-तीन स्त्रियों से रहते हैं।
२५. यदि विवाह रेखा बढ़कर कनिष्ठिका की ओर झुक जाय तो उसके जीवन साथी की मृत्यु उसके पूर्व होतो है।
२६. बिवाह रेखा का अचानक टूट जाना गृहस्थ जीवन में बाबा स्वरूप समझना चाहिए ।
२७. अदि बुध क्षेत्र पर दो समानान्तर रेखाएं हों तो उसके दो विवाह होते है ऐसा समझना चाहिए ।
२८. यदि विवाह रेखा मागे चलकर सूर्य रेखा से मिलती हो तो उसकी पत्नी उन्ध पद पर नौकरी करने वाली होती है।
२६. दो हृदय रेखाएं हों तो व्यक्ति का विवाह अत्यन्त कठिनाई से होता है।
३०, यदि चन्द्र पर्वत से रेखा आकर विवाह रेखा से मिले तो ऐसा व्यक्ति भोगी कामुक तथा गुप्त प्रेम रखने वाला होता है।
३१. यदि मंगल रेखा से कोई रेखा आकर विवाह रेखा से नै तो उसके विवाह में बराबर बाधाएं बनी रती हैं।
३२. विवाह रेखा पर जो खड़ी लकीरें होती है वे सन्तान रेखाएं कहलाती हैं।
३३. सन्तान रेखाएं अत्यन्त महीन होती हैं जिन्हें नंगी आंखों से देखा जाना सम्भव नहीं होता।
३४. इन सन्तान रेखाओं में जो लम्बी और पुष्ट होती पुत्र रेखाएं होती हैं तथा जो महीन और कमजोर होती हैं उन्हें कन्या रेखा समझना चाहिए।
३५. यदि इनमें से कोई रेखा टूटी हुई हो तो उस बालक की मृत्यु समझनी चाहिए ।
३६. यदि मणिबन्ध कमजोर हो तथा शुक्र पर्वत अविकसित हो तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में सन्तान सुख नहीं रहता।
३७. यदि स्पष्ट और सीधी रेखाएं होती हैं तो सन्तान स्वस्थ होती है परन्तु यदि कमजोर रेखाएं होती हैं तो सन्तान भी कमजोर समझनी चाहिए ।
३६. विवाह रेखा को ६० वर्ष का समझ कर इस रेखा पर वहां पर भी गहरा पन दिखाई दे आयु के उस भाग में विवाह समझना चाहिए।
वस्तुतः विवाह रेखा का अपने भाप में महत्व है। और इस रेखा का अध्ययन पूर्णतः सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।