सूर्य पर्वत के गुण और दोष - हस्तरेखा
सूर्य क्षेत्र या सूर्य पर्वत - यह अनामिका उंगली के नीचे होता है । यह उन्नत होने से मनुष्य में उत्साह और सौदर्यप्रियता होती है। चाहे मनुष्य कलाकार या संगीतज्ञ न हो किन्तु काव्य-कला और संगीत में उसकी रुचि अवश्य रहती है। ये इस ग्रह-क्षेत्र के साधारण गुण हैं। अब निम्न, साधारण, उच्च या अति उच्च इन तीनों लक्षणों के अलग-अलग फल बताये जाते हैं-
यदि यह क्षेत्र बिलकुल धंसा हुआ हो तो उत्साह-शक्ति कम होती है । कला, काव्य प्रादि की ओर मन बिलकुल नहीं जाता। न अध्ययन की ओर रुचि होती है। तमाशा देखना, खाना-पीनाबस यही जीवन का ध्येय होता है । बुद्धि प्रखर नहीं होती।
यदि साधारण उच्च हो तो जो गुण प्रारम्भ में बताये गये हैं वही होते हैं । कला, काव्य, सौन्दर्यप्रियता आदि की ओर प्रवृत्ति रहते हुए भी सृजन-शक्ति नहीं होती।
यदि अच्छी प्रकार उच्च हो तो यश, मान, प्रतिष्ठा, धन-संग्रह आदि में सफलता होती है। सौन्दर्यप्रियता विशेष होती है, विवाह की ओर रुचि होते हुए भी या विवाह कर लेने पर भी इन्हें पूर्ण वैवाहिक सुख प्राप्त नहीं होता, क्योंकि इनका आदर्श बहुत ऊंचा होता है । ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । ये लोग प्राभूषण-प्रेमी होते हैं। धार्मिकता की ओर भा इनकी रुचि होती है। यदि उंगलियों का प्रथम पर्व लम्बा हो तो काव्य या साहित्यकर्ता या कलाकार होते हैं।
यदि बहुत अधिक उच्च हो तो 'अति' मात्रा में गुण भी अवगुण हो जाते हैं । 'अहं' भाव या अभिमान बहुत बढ़ जाता है। इनमें ईर्ष्या, खुशामदप्रियता आदि दुर्गुण होते है। यदि साथ ही अँगूठे का प्रथम पर्व अधिक लम्बा और द्वितीय पर्व छोट। हो, उंगलियाँ टेढ़ी हों तो ये दुर्गुण विशेष मात्रा में होते हैं।
स्वास्थ्य की दृष्टि से नेत्र-विकार, कम दिखाई देना, हृदय-रोग आदि का सूर्य-क्षेत्र से विशेष सम्बन्ध है। यदि शीर्ष-रेखा पर सूर्यक्षेत्र के नीचे बिन्दु-चिह्न हो तो अन्धापन, यदि हृदय-रेखा द्वीपयुक्त या अन्य दोषयुक्त हो तो हृदय-रोग होता है । यह सब आगे विस्तारपूर्वक बताया गया है।
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