भाग्य रेखा का उदय मंगल पर्वत से होना
हाथ में मंगल दो स्थानों पर होता है। अंगूठे के पास और बुध की उंगली के नीचे। कभी-कभी अंगूठे वाले मंगल से भाग्य रेखा निकलकर, शनि की ओर जाती हुई देखी जाती है। वैसे तो यह भाग्य रेखा ही होती है, परन्तु देखने में ऐसी नहीं लगती। अत: सूक्ष्म निरीक्षण करके, इसका निर्णय कर लेना चाहिए देखा गया है कि बुध के मंगल से निकल कर कोई भाग्य रेखा शनि पर नहीं जाती। (नितिन पामिस्ट)
इस प्रकार की भाग्य रेखा, श्रृहस्पति मुद्रिका का भी कार्य इसी स्थान पर करती है। यदि ऐसे व्यक्तियों को धर्म में विशेष रुचि हो तो ये इस विषय में अच्छी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें गुरूत्व शक्ति की प्राप्ति साधनावस्था में हो जाती है। यह लक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। साधारण साधकों के हाथों में ऐसे लक्षण नहीं मिलते। हाथ में दूसरे आध्यात्मिक लक्षणों को देखकर विशेषता व आयु का पता लगाया जा सकता है।
मंगल से भाग्य रेखा निकलने पर बड़ी आयु में संघर्ष के साथ जीवन बनता है, फिर भी ऐसे व्यक्ति अच्छी उन्नति कर जाते हैं। मंगल से निकली भाग्य रेखा, यदि शनि पर जाती हो तो व्यक्ति चलती सवारी या जानवर आदि से टकराकर चोट खाता है। ये किसी वृक्ष से भी गिरते हैं। सटटे के काम में इन्हें हमेशा हानि होती है। (नितिन पामिस्ट)
इन्हें जीवन में टायफाइड बुखार एक से अधिक बार होता है। मंगल से निकलकर भाग्य रेञ्जा, शनि पर गई हो और हाथ भी भारी हो, जीवन रेखा निर्दोष व मस्तिष्क रेखा उत्तम हो तो व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण या क्रय को पश्चात् उन्नति करता है। पगड़ी पर ली हुई, खरीदी हुई या बनाई हुई सम्पत्ति इन्हें यहीं फल देती है। गोद या बखशीश (दान) में प्राप्त हुई सम्पति का भी यही फल होता है।