हस्तरेखा विज्ञान से मणिबन्ध की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें | मणिबंध की गणना | मणिबन्ध पर चिह्न | मणिबन्ध से जाने वाली रेखायें
हस्तरेखा विज्ञान से मणिबन्ध की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी गयी है।सर्वप्रथम ये बताना आवश्यक है की ये लेख हस्तरेखा पर लिखी पुस्तक " सामुद्रिक शास्त्र" से लिया गया है।
हाथ जहाँ से आरम्भ होता है वहाँ कलाई पर भीतर की और (हथेली की तरफ़) जो रेखाएँ होती हैं उन्हें संस्कृत में मणिबन्ध कहते हैं । इस स्थान को सामुद्रिक शास्त्र में 'पाणिमूल' या हाथ की जड़ या प्रारम्भ भी कहा। गया है। यदि कलाई का यह भाग मांसल (माँसयुक्त–जिसमें हड्डी दिखाई न दे), पुष्ट, अच्छी सन्धि सहित (अच्छी तरह जुड़ा हुआ अर्थात् दृढ़) हो तो जातक भाग्यशाली होता है। यदि इसके विपरीत हो अर्थात् देखने से यह मालूम हो कि हाथ और बाहू का, जो कलाई के पास जोड़ है वह ढीला, लटकता मणिबन्ध हाथ (चित्र नं० ८) हुआ, असुन्दर कमजोर है और हाथ को हिलाने से वहाँ कुछ आवाज़ होती है (हड्डी का जोड़ पुष्ट न होने के कारण) तो मनुष्य निर्धन होता है और यदि अन्य अशुभ लक्षण हों तो राज-दण्ड का भागी हो या किसी दुर्घटना के कारण हाथ पर आघात लगे । ‘गरुड़ पुराण तथा वाराही संहिता' दोनों के अनुसार मणिबन्ध की हड्डियाँ दिखाई नहीं देनी चाहिए और वह जोड़ दृढ़ होना सौभाग्य का लक्षण है।
इसी स्थान पर हथेली के प्रारम्भ में ही रेखा होती है । ‘समुद्रतिलक' में लिखा है
रेखाभिः पूर्णाभिस्तिसृभिः कर मूलमंकितं यस्य । धन काञ्चन रत्नायुतं श्रीपतिमिव भजति लुब्धं च ।। त्रिपरिक्षेपा व्यक्ती यवमाला भवति यस्य मणिबन्धे । नियतं महार्थ सहितः स सार्वभौमो नराधिपतिः ।।
करमूले यवमाला द्विपरिक्षेपा मनोहरा यस्य ।। मनुजः स राजमंत्री विपुल मतिर्जायते स मतिमान् ।। सुभगैक परिक्षेपा यवमाला यस्य पाणितले स्यात् । भवति धनधान्य युतः श्रेष्ठो जनपूजितो मनुजः ।।
अर्थात् यदि तीन रेसा पूर्ण (कहीं से खण्डित न हों) कलाई के चारों ओर हों तो धन, सुवर्ण, रत्न का स्वामी होता है। यदि इन चारों ओर पूर्ण रहने वाली मणिबन्ध की तीनों रेखाओं में निरन्तर यवमाला (जौ के आकार की लड़ियाँ) स्पष्ट हों तो राजा होता है । यदि कलाई के चारों ओर दो रेखा हों और सुन्दर यवमाला उनमें निरन्तर हो तो ऐसा व्यक्ति अत्यन्त बुद्धिमान और राजा का मंत्री होता है । यदि एक सुन्दर यवमाला-युक्त रेखा कलाई के चारो ओर हो तो ऐसा व्यक्ति धन-धान्य पूर्ण होता है और उसकी लोग प्रतिष्ठा करते हैं। यहाँ तीन बातों पर जोर दिया गया है—प्रथम यह कि केवल रेखा होना पर्याप्त नहीं है, उन रेखाओं में यवमाला (एक जौ से दूसरा जौ जुड़ा हुआ) का चिह्न निरन्तर होना चाहिये ।
दूसरी बात यह कि यह यवमाला सुन्दर होनी चाहिये। अर्थात् जैसे सुन्दर (बराबर एक से) निरन्तर मोती की माला बहुमूल्य होती हैं, किन्तु छोटे-बड़े या कहीं नज़दीक कही दूर ऐसी माला अच्छी नहीं समझी जाती, इसी प्रकार ‘यवमाला' सुन्दर हो। तीसरी बात यह कि यवमाला कलाई के चारों ओर होकेवल हथेली की ओर नहीं । यदि हस्तपृष्ठ पर भी कलाई के स्थान पर यवमाला होगी तभी पूर्ण फल होगा। अन्यथा न्यून फल समझिए।
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‘विवेक विलास' में लिखा है -
मणिबन्धे यवश्रेण्यः तिस्रश्चेत् स नृपो भवेत् ।
यदि ताः पाणिपृष्ठेऽपि ततोऽधिकतरं फलम् ।।
स्त्रियों के मणिबन्ध के विषय में ‘भविष्यपुराण' में लिखा है। कि मणिबन्ध यदि तीन रेखायुत, सम्पूर्ण (बीच में टूटा नहीं) और सुन्दर हो तो ऐसी स्त्री भाग्यशालिनी होती है, और रत्न तथा सुवर्ण-जटित हाथ के आभूषण पहनने वाली होती है।
मणिबन्धोऽव्यवच्छिन्नो रेखात्रयविभूषितः । ददाति न चिरादेव मणिकाञ्चन मण्डनम् ॥
पाश्चात्य मत
मणिबन्ध से रेखाओ का निकलकर उंगलियों की ओर जाना अच्छा माना गया है किन्तु हथेली की कोई रेखा नीचे की ओर मणिबन्ध की ओर आवे तो यह अच्छा नहीं ।
(१) यदि मणिबन्ध पर एक ही रेखा हो और टूटी न हो तो २३-२८ वर्ष तक की आयु जातक की होगी ।
(२) यदि दो रेखा हों तो आयु ४६ से ५६ तक ।
(३) यदि तीन रेखा सम्पूर्ण हों तो ६९ से ८४ वर्ष तक जातक को जीव-योग समझना चाहिये ।
यदि मणिबन्ध की रेखा अच्छी हों किन्तु जीवन-रेखा अच्छी न हो तो भाग्य अच्छा किन्तु स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा। | यदि स्त्रियों के हाथ में मणिबन्ध की प्रथम रेखा हथेली की ओर बढ़ी हुई हो और उसी ओर गोलाई लिये हुए हो तो प्रसव कठिनता से होता है ।
यदि मणिबन्ध की तीनों रेखायें सुस्पष्ट, सुन्दर और अच्छे | वर्ण की हों तो जातक दीर्घायु, स्वस्थ और भाग्यशाली होता है ।
यदि सुस्पष्ट न हों तो जातक अपव्ययी होने के कारण धन का संग्रह नहीं कर पाता और यदि अन्य लक्षण भी पाये जायें तो विषय-भोग के कारण स्वास्थ्य-हानि भी करता है ।
यदि प्रथम रेखा (हाथ की ओर से गिनना चाहिये) श्रृंखलाकार हो तो परिश्रम और चिन्तायुक्त जीवन रहता है किन्तु परिणाम में सफलता प्राप्त होती है ।
मणिबन्ध से जाने वाली रेखायें
यदि मणिबन्ध से कोई रेखा निकलकर शुक्रक्षेत्र पर होती हुई बृहस्पति के क्षेत्र पर जावे तो किसी लम्बी यात्रा द्वारा सफलता प्राप्त होती है।
यदि मणिबन्ध से निकलकर दो रेखा शनिक्षेत्र को जावें और यदि ये दोनों रेखा एक-दूसरे को काटें तो दुर्भाग्य प्रकट करती हैं। संभवतः जातक दूर देश को जाकर वापस न आवे ।
यदि मणिबन्ध से निकलकर कोई रेखा सूर्य के क्षेत्र पर जावे तो यात्रा के फलस्वरूप विशिष्ट व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से मनुष्य को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। यदि सूर्यक्षेत्र की बजाय यह रेखा बुधक्षेत्र पर आवे तो अकस्मात् धन-प्राप्ति होती है। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य-रेखा के पास ही यह दिखाई देगी।
मणिबन्ध से निकलकर यदि रेखा चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो जलयात्रा अर्थात् समुद्र-पार देशों को मनुष्य जाता है। जितनी रेखा हों उतनी ही यात्रायें समझनी चाहिये । लम्बी रेखा हो तो लम्बी यात्रा, छोटी हो तो छोटी । किन्तु यदि दो रेखा बिलकुल समानान्तर रूप से चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो लाभयुक्त होने के साथ-साथ यात्रा में भय भी रहता है ।
यदि मणिबन्ध की तीनों रेखा एक के ऊपर एक-एक ही स्थान पर खंडित हों तो असत्य-भाषण तथा वृथा अभिमान के कारण कष्ट पाता है ।
यदि मणिबन्ध से कोई रेखा निकलकर जीवन-रेखा पर आकर समाप्त हो जावे तो यह प्रकट करता है कि किसी यात्रा में ही जातक की मृत्यु होगी। यदि मणिबन्ध से अस्पष्ट, लहरदार रेखा निकलकर स्वास्थ्य-रेखा को काटे तो जातक आजीवन मन्दभागी रहता है ।
मणिबन्ध पर चिह्न
(१) यदि मणिबन्ध की रेखा सुन्दर हों और प्रथम रेखा के मध्य में ‘क्रॉस' का चिह्न हो तो जीवन के प्रथम भाग में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा किन्तु बाद का जीवन सुख और शान्ति से व्यतीत होगा।
(२) यदि मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर कोई रेखा बृहस्पति के क्षेत्र पर जावे और मणिबन्ध की प्रथम रेखा पर ‘क्रॉस' या कोण का चिह्न हो तो किसी विशेष सफल यात्रा से धन-लाभ प्रकट करता है ।
(३) यदि मणिबन्ध की प्रथम रेखा के मध्य में कोण-चिह्न हो तो वृद्धावस्था में किसी की विरासत पाने से भाग्योदय होता है। यह त्रिकोण चिह्न हो और त्रिकोण के अन्दर ‘क्रॉस' हो तो उत्तराधिकार द्वारा धन-प्राप्ति होती है।
(४) यदि हाथ में अन्य लक्षण उत्तम हों और प्रथम मणिबन्ध रेखा के मध्य में 'तारे' का चिह्न हो तो विरासत से धन-प्राप्ति । यदि यही चिह्न ऐसे हाथ में हो जिसमें असंयम और दुराचार प्रकट होता हो तो यह व्यभिचारी प्रवृत्ति का द्योतक है ।