हस्तरेखा ज्ञान क्या है ?
सर्वप्रथम ये बताना आवश्यक है की ये लेख हस्तरेखा पर लिखी पुस्तक "प्रैक्टिकल पामिस्ट्री" से लिया गया है।
हस्त लक्षणों का ज्ञान कितना पुराना है, अनुमान नहीं लगाया जा सकता। ज्योतिष का वर्णन उस सर्वशक्तिमान के नेत्रों के रूप में वेदों में पाया जाता है। हस्तरेखा द्वारा ही देवर्षि नारद ने भक्तों के भाग्योदय किए हैं। महाभारत में उंगलियों को अग्रभाग मोटा होना व्यक्ति के जीवन में अस्थिर होने का लक्षण दर्शाया गया है। संसार के प्रत्येक देश में किसी न किसी प्रकार से ज्योतिष ज्ञान पाया जाता है। व्यक्ति कहीं हाथ की रेखाओं, कहीं शरीर के लक्षणों या कैवले अंगूठे को देखकर जिज्ञासा को शान करता है। पुराणों, शास्त्रों व जनसंकुलन में अनेक शकुनों का पाया जाना भी व्यक्ति की निरन्तर १ अतीतकालीन भविष्य विषयक जिज्ञासा का चिन्ह है।
अत: पता नहीं कब से इस सम्बन्ध में विचार होता रहा है। इसी जिज्ञासा के शमा का परिणाम ही ज्योतिष है, जिसका आधार खगोल के आश्चर्यजनक प्रह, करतल, मस्तके व पादतले की रेखाएं रमले, शकुन व श्वास-क्रिया आदि हैं। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें ।
ज्योतिष का ध्येय मानव कल्याण है। अत: परमार्थ को सपर रखकर भविष्य बताना ही उत्तम है, क्योंकि इसके अभ्यास में अनेक रथल ऐसे आते हैं कि हस्तरेखाविद् को व्यक्ति का पूर्ण विश्वास प्राप्त होता है। जिसका अनेक प्रकार से दुरुपयोग भी किया जा सकता है जो कि इस ईश्यीय विद्या का ही दुरूपयोग है। अतः ज्योतिषी को चरित्र, व्यवहार, चाणी के तिपय में विशेष संयम व सतर्कता की आवश्यकता होती है।
इसी के अभाव में आज यह ज्ञान बाजारू बन गया है और अनेक अनर्गल पाते इस विषय में प्रचलित हैं। ज्योतिष का, सही मार्गदर्शन, कार्य को दिशानिर्धारण व भविष्य के विषय में सतर्कता ही केवल उपयोगी है, जिसके फलस्वरूप परिश्रम की बचत व रक्षा की सम्भावना रहती है। वैसे तो ज्योतिष का ध्येय ही मानव कल्याण है, तो भी यह कला व्यक्ति विशेष के जीवन का विश्लेषण करती है।
'एक फल, एक लक्षण' इस कहावत को ज्योतिष विद्या ने नकारते हुए सिद्ध किया है कि एक फल की पुष्टि अनेक लक्षणों से होती है।कई बार हाथ में रेखा या किसी लक्षण-विशेष की उपस्थिति के न होने के कारण, असमंजस का सामना करना पड़ता है। परन्तु एक ही लक्षण पर निर्भर न रहकर एक ओर तो अन्य लक्षणों द्वारा भी उसी फल की प्राप्ति हो जाती है, दूसरी ओर उसी लक्षण की निश्चितता का भी ज्ञान होता है।
इसी कथन को ध्यान में रखकर हाथ में जो कुछ भी देखा जाए, सावधानी से देखा जाना चाहिए ताकि हाथ के सभी गुण, दोष, अन्य लक्षण व रेखाओं में दोष आदि दुष्ट्रिगत हो सकें। हाथों में निम्न लक्षणों का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है आरम्भ में कई बार निराशाजनक फलों की प्राप्ति हो सकती है। इसमें हाथ दिखाने वाले का असहयोग या कोई अन्य कारण हो सकता है। परन्तु इससे हतोत्साहित न होकर पुन: प्रयत्न करना श्रेयष्कर होता है। हमें विश्वास है कि आपको सफलता ही नहीं पूर्ण सफलता हाथ लगेगी।
अन्त में यही कहा जा सकता है कि निरन्तर प्रयत्न व अनुभव से प्राप्त ज्ञान ही महत्वपूर्ण है। अतः निरन्तर प्रयत्न के क्रियात्मक अध्ययन ही ज्ञान की कुन्जी है।
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