प्राचीन भारत का अनमोल उपहार | सरल हस्तरेखा | Saral Hast Rekha
सरल हस्तरेखा के माध्यम से आपको हस्तरेखा सम्बन्धी जानकारी देने का प्रयास किया गया है। अतः यदि आपको ये प्रयास अच्छा लगे तो आप इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें।
परिचय
प्राचीन भारत का अनमोल उपहार भारतवर्ष के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने विश्व को जो अनमोल उपहार भेंट किये हैं उनमें से एक हस्तरेखा शास्त्र (Palmistry) भी है। इन महान ऋषियों में भृगु, कार्तिकेय, गर्ग, गौतम और वाल्मीकि के नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। महर्षि वाल्मीकि ने आज से लगभग 6-7 हजार वर्ष पूर्व पुरुष हस्तरेखा शास्त्र पर 567 श्लोकों का एक ग्रन्थ लिखा था। भारत से यह ज्ञान तिब्बत, चीन, मिस्र और यूनान पहुँचा। प्राचीन यूरोप में यह ज्ञान वहाँ की घुमन्तू जाति जिप्सियों द्वारा फैला। जिप्सी आर्यों के वंशज माने जाते हैं जो भारत के निवासी थे।
ऐसा उल्लेख मिलता है कि यूनान (ग्रीस) के प्रसिद्ध व्यक्ति हिजानुस (Hispanus) को हर्मज (Hermes) की वेदी पर हस्तरेखा शास्त्र की पुस्तक मिली थी जो उसने सिकन्दर को भेंट की थी। ऐलोपैथिक चिकित्सा के जन्मदाता हिप्पोक्रेटस् अपने रोगियों की बीमारियों के मूल कारणों को जानने के लिए उनके हाथों और रेखाओं का भी अध्ययन करते थे।
हस्तरेखा शास्त्र का सम्बन्ध भारतीय सामुद्रिक शास्त्र, हस्तसामुद्रिक और फलित ज्योतिष से भी है। सामुद्रिक शास्त्र में व्यक्ति के पूरे शरीर के आकार-प्रकार व उन पर पड़े चिह्नों द्वारा उसका भाग्य जाना जाता है। फलित ज्योतिष में ग्रहों की गतियों व्यक्ति के जन्म का समय व स्थान के आधार पर ग्रहों की स्थितियों के अनुसार उसका भविष्य जानते हैं। इन शास्त्रों के साथ सम्बन्ध होते हुए भी ‘हस्तरेखा शास्त्र' अपने आपमें एक स्वतन्त्र शास्त्र है।
आधुनिक काल में हस्तरेखा शास्त्र को लोकप्रिय बनाने का श्रेय सुप्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री (Palmist) कीरो (Cheiro) को जाता है। उनका जन्म आयरलैण्ड में हुआ था। उनका वास्तविक नाम जान वार्नर था। वह काउण्ट लुइस हेमन (Count Louis Hamon नाम से जाने जाते थे। कीरो ने अपनी पुस्तक ‘लैंग्विज ऑफ हैण्ड’ (Language of Hand) में स्वीकार किया है कि वह भारत आये थे और उन्होंने यहाँ के पण्डितों से हस्तरेखा शास्त्र का ज्ञान सीखा था। वह हिन्दुओं के दार्शनिक विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन विचारों को आगे बढ़ाया। वह हिन्दू सभ्यता तथा संस्कृति से बहुत प्रभावित थे और इसके लिए उन्हें चर्च तथा पादरियों की कटु आलोचनाओं तथा घोर विरोध का सामना करना पड़ा परन्तु वे अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। हस्त सामुद्रिक में से हस्तरेखा शास्त्र रूपी रत्न को बाहर निकालने तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार करने के लिए काउण्ट लुइस हेमन निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।
भारतीय पामिस्ट्री (Palmistry) या हस्तरेखा शास्त्र को हस्तसामुद्रिक दो कारणों से कहते थे। प्रथम यह सामुद्रिक-शास्त्र से निकाला गया है, दूसरे हमारे हाथों में ही ज्ञान का वह समुद्र स्थित है जिसे जानकर हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
सरल हस्तरेखा पुस्तक की सभी पोस्ट यहाँ पढ़ें - सरल हस्तरेखा शास्त्र
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परिचय
प्राचीन भारत का अनमोल उपहार भारतवर्ष के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने विश्व को जो अनमोल उपहार भेंट किये हैं उनमें से एक हस्तरेखा शास्त्र (Palmistry) भी है। इन महान ऋषियों में भृगु, कार्तिकेय, गर्ग, गौतम और वाल्मीकि के नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। महर्षि वाल्मीकि ने आज से लगभग 6-7 हजार वर्ष पूर्व पुरुष हस्तरेखा शास्त्र पर 567 श्लोकों का एक ग्रन्थ लिखा था। भारत से यह ज्ञान तिब्बत, चीन, मिस्र और यूनान पहुँचा। प्राचीन यूरोप में यह ज्ञान वहाँ की घुमन्तू जाति जिप्सियों द्वारा फैला। जिप्सी आर्यों के वंशज माने जाते हैं जो भारत के निवासी थे।
ऐसा उल्लेख मिलता है कि यूनान (ग्रीस) के प्रसिद्ध व्यक्ति हिजानुस (Hispanus) को हर्मज (Hermes) की वेदी पर हस्तरेखा शास्त्र की पुस्तक मिली थी जो उसने सिकन्दर को भेंट की थी। ऐलोपैथिक चिकित्सा के जन्मदाता हिप्पोक्रेटस् अपने रोगियों की बीमारियों के मूल कारणों को जानने के लिए उनके हाथों और रेखाओं का भी अध्ययन करते थे।
हस्तरेखा शास्त्र का सम्बन्ध भारतीय सामुद्रिक शास्त्र, हस्तसामुद्रिक और फलित ज्योतिष से भी है। सामुद्रिक शास्त्र में व्यक्ति के पूरे शरीर के आकार-प्रकार व उन पर पड़े चिह्नों द्वारा उसका भाग्य जाना जाता है। फलित ज्योतिष में ग्रहों की गतियों व्यक्ति के जन्म का समय व स्थान के आधार पर ग्रहों की स्थितियों के अनुसार उसका भविष्य जानते हैं। इन शास्त्रों के साथ सम्बन्ध होते हुए भी ‘हस्तरेखा शास्त्र' अपने आपमें एक स्वतन्त्र शास्त्र है।
आधुनिक काल में हस्तरेखा शास्त्र को लोकप्रिय बनाने का श्रेय सुप्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री (Palmist) कीरो (Cheiro) को जाता है। उनका जन्म आयरलैण्ड में हुआ था। उनका वास्तविक नाम जान वार्नर था। वह काउण्ट लुइस हेमन (Count Louis Hamon नाम से जाने जाते थे। कीरो ने अपनी पुस्तक ‘लैंग्विज ऑफ हैण्ड’ (Language of Hand) में स्वीकार किया है कि वह भारत आये थे और उन्होंने यहाँ के पण्डितों से हस्तरेखा शास्त्र का ज्ञान सीखा था। वह हिन्दुओं के दार्शनिक विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन विचारों को आगे बढ़ाया। वह हिन्दू सभ्यता तथा संस्कृति से बहुत प्रभावित थे और इसके लिए उन्हें चर्च तथा पादरियों की कटु आलोचनाओं तथा घोर विरोध का सामना करना पड़ा परन्तु वे अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। हस्त सामुद्रिक में से हस्तरेखा शास्त्र रूपी रत्न को बाहर निकालने तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार करने के लिए काउण्ट लुइस हेमन निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।
भारतीय पामिस्ट्री (Palmistry) या हस्तरेखा शास्त्र को हस्तसामुद्रिक दो कारणों से कहते थे। प्रथम यह सामुद्रिक-शास्त्र से निकाला गया है, दूसरे हमारे हाथों में ही ज्ञान का वह समुद्र स्थित है जिसे जानकर हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
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