शुक्र पर्वत से प्रारम्भ प्रभाव रेखाय - हस्त-रेखा-विज्ञान | Influence Lines From Mount Of Venus Indian Palmistry
(१) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ होकर कोई रेखा बृहस्पति के क्षेत्र वे और इस प्रभाव-रेखा के अन्त पर तारे का चिह्न हो तो महत्वाकांक्षा की सफलता का लक्षण है।
(२) यदि उपर्युक्त रेखा के अन्त पर तारे का चिह्न न हो किन्तु टीप-चिह्न हो तो फेफड़े की बीमारी होती है।
(३) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ हो प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा था भाग्य-रेखा को काटे और स्वास्थ्य-रेखा तक न पहुंचे तथा इस प्रभाव-रेखा के अन्त में तारे का चिह्न हो तो बहुत बड़ा धन का घाटा होता है।
(४) यदि उपर्युक्त (३) रेखा का जहाँ अन्त हो वहाँ तारे की बजाय 'वर्ग'-चिह्न हो और वर्ग के बीच में प्रभाव-रेखा समाप्त हो जावे तो जातक का किसी से गुप्त प्रेम हो जाता है इस कारण भविष्य में होने वाली किसी विपत्ति से रक्षा होती है (उदाहरण के लिये यदि यह गुप्त प्रेम न होता तो किसी अनुपयुक्त स्थान में विवाह हो जाता और उस कारण बदनामी या संताप होता)।
(५) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ होकर कोई रेखा जीवन-रेखा को काटे तथा वहाँ पर इस रेखा की लम्बी द्वीपाकृति हो जावे जिससे शीर्ष-रेखा कटे और शनि-क्षेत्र के नीचे-जहाँ हृदय-रेखा तथा भाग्यरेखा का योग होता है-वहाँ तक द्वीप-चिह्न जावे और यदि ऐसी रेखा पुरुष के हाथ में हो, तो किसी विवाहिता स्त्री से प्रेम । यदि स्त्री के हाथ में हो तो किसी शादीशुदा आदमी से प्रेम।
(६) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ हई प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा को काटती हुई शीर्ष-रेखा पर आकर समाप्त हो जाये और जहाँ समाप्त हो वहाँ तारे का चिह्न हो तो सम्बन्धियों तथा मित्रों के कारण चिन्ता-दिमागी परेशानी-मस्तिष्क-विकार का लक्षण है।
(७) यदि दो प्रभाव-रेखाएँ शुक-क्षेत्र से प्रारम्भ हो-एक ही स्थान पर-भाग्य-रेखा पर योग करें और वहाँ तारे का चिह्न हो तो जातक का दो व्यक्तियों से एक साथ प्रेम-सम्बन्ध होता है। इस कारण दोनों-प्रेम सम्बन्धों में हानि और परेशानी होती है या दो बार प्रेम-सम्बन्ध और परिणाम में परेशानी उठानी पड़ती है।
(८) यदि प्रभाव-रेखा शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ होकर शीर्ष-रेखा और सूर्य-रेखा का जहाँ योग होता है वहाँ आकर समाप्त हो जावे और उस स्थान पर 'दाग' का चिह्न हो तो नेत्र-विकार, आँखों की रोशनी में कमी व अन्धेपन का भय।
(8) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ कर प्रभाव-रेखा हृदय-रेखा पर आकर समाप्त हो और समाप्ति पर तारे का चिह्न हो तो सम्बन्धियों या मित्रों द्वारा इतना तंग और परेशान किया जाता है कि जातक को हृदय-रोग हो जाता है।
(१०) यदि प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा को काटती हुई आकर सूर्य-रेखा को काटे और इसके अन्त में द्वीप-चिह्न हो तो जातक का किसी से अनुचित प्रेम होता है और इस कारण काफ़ी बदनामी और अप्रतिष्ठा होती है।
(११) यदि प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा चित्र नं०६६ तथा उससे निकली किसी छोटी ऊर्ध्वगामी रेखा को काटती हुई सूर्य-रेखा पर आकर समाप्त हो जावे और वहाँ समाप्ति पर तारे का चिह्न हो तो या तो किसी बड़े मुकदमे में हार होती है या बहुत अधिक बदनामी और अप्रतिष्ठा।
(१२ ) यदि शुक्र-क्षेत्र पर तारे का चिह्न हो-वहाँ से प्रारम्भ होकर प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा को काटती हई-स्वास्थ्य-रेखा तक पहुँचने के पूर्व ही समाप्त हो जावे और इस समाप्ति-स्थान पर भी तारे का चिह्न हो तो किसी सगे-सम्बन्धी या परम मित्र की मृत्यु के कारण घोर सर्वनाश (धन-हानि) होता है।
(१३) यदि शुक्र-क्षेत्र पर, जहाँ से प्रभाव-रेखा प्रारम्भ होती है। तारे का चिह्न हो और प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा को काटती हुई भाग्य-रेखा पर समाप्त हो जावे और इस समाप्ति-स्थान पर बिन्दु-चिह्न हो तो किसी सगे-सम्बन्धी की मृत्यु से जातक के भाग्य को कुछ समय के लिये गहरा धक्का लगता है।
(१४) यदि शुक्र-क्षेत्र पर तारे का चिह्न हो-वहाँ से प्रभाव-रेखा प्रारम्भ होकर जीवन-रेखा को काटती हुई शीर्ष-रेखा तक आवे और प्रभाव-रेखा की समाप्ति-स्थान पर-बिन्दु-चिह्न हो तो सगे-सम्बन्धी की मृत्यु से घोर संताप उठाना पड़ता है।
(१५) यदि उपर्युक्त (३) प्रकार की रेखा हो किन्तु शीर्ष-रेखा पर जहाँ प्रभाव-रेखा समाप्त होती है बिन्दु-चिह्न न हो बल्कि तारे का ही चिह्न हो तो किसी सगे-सम्बन्धी की मस्तिष्क-विकार, रक्तचाप या पागलपन के कारण मृत्यु होती है।
(१६) यदि उपर्युक्त (४) प्रकार की प्रभाव-रेखा हो किन्तु जहाँ प्रभाव-रेखा शीर्ष-रेखा पर समाप्त होती है वहाँ शीर्ष-रेखा स्वयं द्वीपयुक्त हो तो जातक के किसी सगे-सम्बन्धी को मस्तिष्क-विकार या राजयक्ष्मा आदि से मृत्यु होती है।
(१७) यदि प्रभाव-रेखा शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ हो जीवन-रेखा को काटती हुई भाग्य-रेखा पर आकर समाप्त हो जावे और प्रभावरेखा के आदि तथा अन्त दोनों स्थानों पर तारे का चिह्न हो तो किसी सगे-सम्बन्धी या मित्र की मृत्यु के कारण भाग्य को गहरा धक्का लगता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । किस अवस्था में ? यह जीवन-रेखा जहाँ कटती हो उससे अनुमान लगाना चाहिये।
(१८) यदि उपर्युक्त (६) प्रकार की रेखा हो किन्तु जो बात भाग्य-रेखा पर बताई गई है, वह भाग्य-रेखा पर न होकर सब लक्षण सूर्य-रेखा पर समाप्त हों तो सगे-सम्बन्धी की मृत्यु से गहरा आर्थिक धक्का लगता है।
(१९) यदि उपर्युक्त (७) प्रकार की रेखा हो, पर सूर्य-रेखा पर जहाँ प्रभाव-रेखा समाप्त हो वहाँ सूर्य-रेखा स्वयं द्वीपयुक्त हो तो ऊपर (७) जो में फल बताया गया है-वही इसका भी फल है।
(२०) शुक्र-क्षेत्र पर द्वीप का चिह्न हो–उस द्वीप से प्रारम्भ होकर कोई प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा को काटती हुई भाग्य-रेखा पर समाप्त हो जावे-और इसकी समाप्ति पर-भाग्यरेखा पर तारे का चिह्न हो तो जातक का किसी से अनुचित प्रेम होता है इस कारण कुछ काल तक भाग्य में हानि तथा बाधा होती है।
(२१) यदि शुक्र-क्षेत्र पर द्वीप-चिह्न हो और वहाँ से प्रारम्भ होकर प्रभाव-रेखा, जीवन-रेखा को काटती हुई शीर्ष-रेखा पर समाप्त हो और इस समाप्ति-स्थान पर बिन्दु-चिह्न हो तो जातक के अनुचित गुप्त-प्रेम के कारण दुश्चिन्ता या मस्तिष्क-विकार का लक्षण है।
(२२) यदि प्रभाव-रेखा जीवन-रेखा से ही प्रारम्भ होप्रारम्भिक स्थान पर जीवन-रेखा पर बिन्दु हो और जीवन-रेखा से तिरछी निकल कर शीर्ष-रेखा को काटती हुई प्रभाव-रेखा मंगल के प्रथम क्षेत्र पर समाप्त हो तथा समाप्ति-स्थान पर तारे का चिह्न हो तो खूनी बवासीर का रोग होता है।
(२३) यदि शुक्र-क्षेत्र से प्रारम्भ हुई प्रभाव-रेखा चन्द्र-क्षेत्र पर प्रावे और इस रेखा के आदि तथा अन्त दोनों स्थानों पर तारे का चिह्न हो तो किसी सगे-सम्बन्धी की मृत्यु से जातक के मस्तिष्क को इतना सदमा पहुँचता है कि वह पागल हो जाता है ।
नितिन कुमार पामिस्ट