यदि दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए तो हाथ में उगलियों को तब तब स्थान ही नहीं मिलता जब तक उनमें पोरुए नहीं होते। प्रत्येक उगठी पोरुओं हा के मिलने से बनती है। यदि पोरुए न हों तो उगली हाथ में हैं इसका ज्ञान ही नहीं होता। कार्य के सुभीते तथा आवश्यकता के अनुसार हरेक उगली में तीन पोरुए होते हैं जो कि अलग-अलग सतरज और तमादि गुणों के प्रतीक हैं। उगली के पोरुओं के क्रमानुसार ही इन तीनों का क्रमशः समावेश हो यह कोई आवश्यक बात नहीं है। फिर भी यहाँ इतना कह देना आवश्यक ही होगा कि किसी न किसी रूप में किसी न किसी पोरुए में किसी न किसी गुण का न्यूनाधिक भेद से अवश्य ही समावेश होता है। साधारणतया पोरुओं का आकार अथवा बनावट गुणानुसार तीन ही प्रकार की होती है।
(१) प्रथम चमसाकार (Spatulate)
(२) द्वितीय वर्गाकार (Square)
(३) तृतीय नौकोले (Pointed)
(१) चमसाकार-पोरुओं की बनावट एक विशेष प्रकार के कोण द्वारा इनकी आकृति को प्रदशित करती है। चमसाकार आकृति वाले पुरुष बड़े ही उद्यमी, कर्मठ, तुरन्त कार्य वाले उत्साही तथा लगन वाले होते है। ये लोग बड़े ही सभ्य, कायदे कानून को समझने वाले तथा उसका पालन करने वाले होते हैं। ये लोग उत्तम कोटि के खिलाड़ी तया देशाटन प्रिय होते है और साथ ही ऐतिहासिक अनुसन्धानकर्ता भी होते हैं। नियमित तथा अविरल कार्य के अभ्यासी होने के कारण सदैव किसी भी कार्य के परिणाम पर सफलता से पहुंचने वाले होते हैं। ये लोग प्रत्येक बात को तर्क दृष्टि से देखकर तथा उस पर पूर्ण रूप से विचार करके किसी भी कार्य को आरम्भ करते हैं। चमसाकार पोरूओं वाले व्यक्ति अच्छे वैज्ञानिक आविष्कर्ता तथा अच्छे लेखक भी होते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
(२) वर्गाकार-पोरुओं की बनावट वर्ग से मिलती है जिनकी लम्बाई चौड़ाई के समान ही होती है। ऐसे पोरुओं का प्रभाव विचारशकिन, कार्य-दाक्ति नियमित प्रबन्ध आज्ञा देने तथा आज्ञा पालन दोनों पर ही पड़ता है। इसलिये ये लोग शान्ति के साथ गम्भीर स्वर में बात करते हैं और चाहे जितना भी कार्य हो बिना शिकायत करते जाते हैं। इन्हें इनाम और प्रशंसा का लालच नहीं होता। पद लोलुपता इन्हें नहीं डिगा सकती फिर भी ये अपने परिश्रम को व्यर्थ होता हुआ नहीं देख सकते। ये बड़े ही शान्त, साफ तथा दयालु प्रकृति के होते हैं। आम तौर पर इनका स्वास्थ्य बड़ा ही सुन्दर होता है इसलिये प्रत्येक खेल में उत्साह से भाग लेते हैं किन्तु कुश्ती करना इन्हें विशेष रूप से -रुचिकर होता है। वर्गाकार पोरुए साधारणत: सभी प्रकार के अच्छे व्यवसायी, कलाकार, दस्तकार तथा अच्छे लेखकों के भी पाये जाते है।
(३) नोकोले-पोरुए अधिकतर लम्बे नाखून वाले पोरुए ही हो सकते हैं। इनकी बनावट नाखूनों की तरफ बहुत कुछ नोकदार गोलाई लिये हुए लम्बी प्रकार की होती है। जिन मनुष्यों के पोरुए पूर्ण रूप से एक विशेष प्रकार के न्यून कोण के समान नोकीले होते हैं वे अक्सर सौन्दर्य के उपामक, खुशामद पसन्द प्रेम के विवरण पढ़ने वाले, तथा बारीक उन्तकारी की प्रशंसा करने वाले होते हैं। जिन मनुष्यों के पोरुए विशेष रूप से मुन्दर नौकीले होते है वे लोग ख़ास तौर पर अपने भविष्य परिणाम को जानने वाले होते है। ये लोग कार्य की महानता तथा न्यूनता के अनुसार अपने को परिणित कर लेते हैं और अपन साथियों को चकित कर देते हैं। ये लोग बाहरी आडम्बरों से दूर रहकर हृदय की आवाज पर कार्य करने वाले होते हैं। कोमल करों में नोकीले पोरुए शुभ फल प्रद नहीं होते। ऐसे व्यक्ति काल्पनिक होते हैं और अदृश्य वस्तुओं के प्रभाव से भयभीत रहते हैं और परिश्रम से घबराते हैं। सदैव असम्भव कल्पित स्वप्नों को सत्य करने में लगे रहते हैं। कभी-कभी इच्छाओं की पूर्ति न होने पर प्राण तक दे देते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
तर्जनी
(१) यदि तर्जनी उगली का प्रथम पोरुआ नोकीला और दूसरे पोरुए से बड़ा हो तो वह अपने प्रभाव से उस मनुष्य को धर्म के विरुद्ध, घमंडी और प्रबल इच्छाओं वाला बना देता है जिनका पूरा होना ससार में असम्भव ही रहता है। ऐसे व्यक्ति सदैव अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिये ही नहीं बल्कि नित्य-प्रति के कार्यों में भी अपने से धनवान आदमियों के खचों पर ही दृष्टि रखते हैं। उनकी दृष्टि निर्धन, गरीब आदमियों पर जाती ही नहीं कि वे किस मुसीबत से अपने दिन व्यतीत करते हैं। इसलिये जीवन में अधिकतर दुखी ही रहते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
(२) यदि तर्जनी उगली का दूसरा पोरुआ शेप दोनों पोरुओं से लम्बाई में अलग-अलग बड़ा हो तो वह व्यक्ति बड़ी ही विस्तृत तथाप्रबल इच्छाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति कार्य पर विश्वास न कर या परिश्रम को न चाहकर मस्तिष्क पर अधिक विश्वास करता है और वह सदैव ऐसे कार्य या व्यक्ति की खोज में रहता है जो कार्य न करने पर भी समय-समय पर आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रचुर मात्रा में धन दौलत प्रदान करता रहे।
(३) यदि तर्जनी उँगली का तृतीय पोरुआ शेष दोनों पोरुओं से अधिक लम्बा हो तो वह मनुष्य कायदे-कानून की परवाह से निश्चिन्त-सा ही रहता है और अनुशासन की कोई परवाह नहीं करता। उसमें स्वाभिमान प्रचुर मात्रा में होता है। यदि इस पोरुए की लम्बाई-चौड़ाई वर्गाकार हो तो ऐसा व्यक्ति सदव सचाई की खोज में प्राकृतिक सबूत चाहने वाला होता है। बाल की खाल निकालकर बात की तह में पहुँचने वाला होता है। यदि पोरुआ ढलवाँ तथा मोटा हो तो मनुष्य अनेक प्रकार के भोजन खाने का शौकीन होता है। उसे खाना खाते समय अनेक सब्जियाँ, दाज, चटनियाँ आदि चाहिये। यदि सर्प की भाँति ऊपर को पतला होता ज य तो घर्म विरुद्ध आचरण करने वाला निर्दयी तथा अन्यायी होता है। उसे किसी को व्यर्थ सताने में मजा मिलता है। यदि यह पोरुआ सभान रूप से लम्बा-चौड़ा तथा मोटा हो तो, गला, फेफड़ा, नाड़ी आदि में खराबी करता है। उसका स्वास्थ्य खराब रहता है। यदि यह अधिक मांस के कारण गुदगुदा हो तो पेट में वायु विकार करता है जिससे पेट फूलना, नजला, जुकाम आदि बीमारियाँ अधिक होती हैं।
मध्यमाः-
(१) यदि मध्यमा उ'गली का प्रथम पोरूआा लम्बा तथा चौकोर तरह का होता है तो मनुष्य बहुत ही समझदार तथा बातचीत में कुशल और व्यवहार में मृदुल होता है। वह सब के साथ सहानुभूति रखता है तथा सब के दुख दर्द में काम आने वाला होता है। अधिकतर ऐसे व्यक्ति कुशल राजनीतिज्ञ होते हैं। जो कि व्याख्यान करते समय सर्वसाधारण का हृदय अपनी ओर आकर्षित करके अपने लक्ष तक पहुँचने में सफल होते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
(२) यदि मध्यमा उगली का द्वितीय पोरुआ प्रथम पोरुए की अपेक्षा अधिक सुन्दर, सुडौल, लम्बा तथा विस्तृत हो तो ऐसा व्यक्ति बडा भारीअनुसन्धानकर्ता तथा बात की तह में पहुँचने वाला होता है। वह चाहे जो भी व्यवसाय करे किन्तु उसकी सफलता तथा भाग्योदय कृपि उद्योग, खेती या भूमिधर होकर ही हो सकता है। ऐसा व्यक्ति कृषि विज्ञान का जानने वाला तथा नई-नई खोजों द्वारा खेती को बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से करके लाभ उठाने वाला होता हैं। ऐतिहासिक तथा पुरातत्वविधान के अनुमन्धानों में भी काफी से ज्यादह दिलचस्पी लेने वाला होता है।
(३) यदि मध्यमा उगली का तीसरा पोरुआ दूसरे और पहले पोरुए की अपेक्षा बड़ा हो तो यह मनुष्य बड़ा ही मितव्ययी तथा चालाक होता है । पैसे को बड़ा ही देख-देखकर खर्च करता है। उसका बातों से ही उसके पैसे की गरिमा या घमण्ड प्रत्यक्ष प्रकट हो जाता है। वह घनलिप्सा से सदैव बेचैन रहता है। फटे पुराने तथा उतरे कपड़े पहनकर भी अपने लिये धन की एक विपुल राशि जोड़ लेता है। ऐसा व्यक्ति बड़ा हो या छोटा कभी भी एक रंग का सूट न पहनकर विभिन्न प्रकार के ही वस्त्र धारण करता है विवाह, शादी आदि में मिले कपड़ों को छोड़कर शेष अधूरे ही वस्त्र पहनता है।
अनामिका:-अनामिका उगली का यदि प्रथम पोरुआ लम्बा, चाकार तथा मुडौल हो तो वह मनुष्य बड़ा ही भारी कलाकार, चित्रकार होता है। उसमें अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों के अनुसन्धानों की खोज करने की शक्ति होती है। ऐसे व्यक्ति सदैव प्रत्येक कार्य को अपने ही ढंग से नया रूप देकर करते हैं जिनकी कला-कृतियाँ बड़ी ही उपयोगी होती हैं।
(२) अनामिका उगली का यदि द्वितीय पोरुआ पहले पोरूए की अपेक्षा बड़ा तथा सुडौल हो तो मनुष्य में प्रत्येक व्यापारी सफलता पाने का शुभ गुण विद्यमान रहता है। वह धन कमाना तथा उसका व्यय करना दोनों ही बातें भली प्रकार जानता है। लोग उसे आदर की दृष्टि से देखते हैं। ये लोग नई-नई व्यापारिक खोजें करते रहते हैं। बुद्धि के तीव्र होते हैं, पढ़ने-लिखने में चतुर होते हैं। इसलिये सर्विस या नौकरी से ही सफल जीवन व्यतीत करते हैं।
(३) अनामिका उगली का यदि तीसरा पोरुआ दूसरे या तीसरे पोरए से लम्बाई में बड़ा हो तो मनुष्य बनावटी बातों से केवल दिखावा करने वाला होता है। चाहे घर में कुछ भी न हो फिर भी सुन्दर वस्त्र धारण करके तथा दूसरे शौकीनी के सामान अपने पास रखकर बड़े ही टाट वाट मे राजा बाबुओं की तरह रहते हैं। नितिन कुमार पामिस्ट
कनिष्टिका :-(१) यदि कनिटिका उगली का प्रथम पोरुआ दूसरे पोरुए की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा हो तो मनुष्य सफल व्याख्यानकर्ता होता है। उसकी वाक शक्ति उत्तम तथा बयान शैली बड़ी ही आकर्पित होती है। ऐसे व्यक्ति अधिकतर वकील, न्यायाधीश, सफल इतिहास लेखक, कवि गल्पादि नाटक तथा अच्छे उपन्यासकार होते हैं जिनकी पुस्तकें जन साधारण में बहुत ही प्रचलित होती हैं। ऐसे व्यक्ति घन और यश दोनों से सम्मानित होते हैं ।
(२) कनिष्टिका उगली का यदि दूसरा पोरुआ पहले पोरुए की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा हो तो वे व्यक्ति चीरफाड़ करने में अच्छा सर्जन, दवाई देने में अच्छा फिजीशियन, बहस करने में अच्छा वकील या बैरिस्टर तथा अच्छा न्यायाधीश होता है। और बहुत से व्यक्ति नवीन अनुसन्धानों द्वारा अनेक प्रकार के वैज्ञानिक अविष्कार करने वाले होते हैं। जोकि मनुष्यों के लिये बड़े ही हितकारी होते हैं। सफलता उनके आधीन ही रहती है ।
(३) कनिष्टिका उगली का यदि तीसरा पोरुआ दूसरे तथा प्रथम पारुए की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा हो तो वह मनुष्य प्रत्येक कार्य करने की शक्ति रखता है। किन्तु उसे विशेष लाभ व्यापर से ही होता है। उसमें क्रय-विक्रय की स्वाभाविक विचार शक्ति दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। यदि रवि रेखा हाथ में शुभ फलदायक हो तो ऐसा मनुष्य चाहे जैसे घर में भी उत्पन्न क्यों न हुआ हो व्यापार करने पर अवश्य ही घनवान होकर एक दिन बड़ा आदमी होगा और समाज में जादर पायेगा ।
नितिन कुमार पामिस्ट
(३) कनिष्टिका उगली का यदि तीसरा पोरुआ दूसरे तथा प्रथम पारुए की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा हो तो वह मनुष्य प्रत्येक कार्य करने की शक्ति रखता है। किन्तु उसे विशेष लाभ व्यापर से ही होता है। उसमें क्रय-विक्रय की स्वाभाविक विचार शक्ति दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। यदि रवि रेखा हाथ में शुभ फलदायक हो तो ऐसा मनुष्य चाहे जैसे घर में भी उत्पन्न क्यों न हुआ हो व्यापार करने पर अवश्य ही घनवान होकर एक दिन बड़ा आदमी होगा और समाज में जादर पायेगा ।
नितिन कुमार पामिस्ट