जन्मपत्री किसी निश्चित स्थान पर किसी निश्चित समय के लिए आकाश का नक्शा होती है उस समय जो भचक्र की राशि पूर्व क्षितिज पर उदय होती है उसका संकेत करती है जिसे लग्न की संज्ञा दी जाती है इसे प्रथम भाव के नाम से भी जाना जाता है।
जन्मपत्री के रूपः
भारत के विभिन्न भागों में जन्मपत्री को विभिन्न रूपों से चित्रित किया जाता है जिनमें उत्तर भारतीय दक्षीण भारतीय और बंगाल विधि अधिक प्रचलित है।
चित्र नं 1 भारत के उत्तरी भाग में इसका प्रयोग किया जाता है।
सबसे ऊपर मध्य भाग को लग्न अथवा प्रथम भाव की उदयीमान राशि माना जाता है और जन्म समय उदय होने वाली राशि की संख्या जैसे- उदाहरण कुण्डली में सिंह राशि के लिए 5 संख्या को लग्न में लिखा जाता है तदुपरान्त भावों की गिनती घड़ी की विपरित चाल से क्रमशः की जाती है। और राशियों के इसी क्रम में अगले भावों में क्रमशः लिखा जाता है जैसे- कि चित्र नं. 1 में दिखाया गया है।
भारत के दक्षिणी भाग में इस प्रचलित जन्मपत्री रूप चित्र नं. 2 के अनुसार है इस रूप में राशियों की स्थिति भावों में स्थिर रखी जाती हैं और जैसा कि चित्र में दिखाया गया है और ऊपर के बायें हाथ के वर्ग मीन राशि लिखी जाती है और घड़ी की चाल के क्रम में मेष वृष मिथुन आदि राशियों शेष वर्गों में लिख दी जाती है और जो लग्न स्पष्ट राशि की उस राशि वर्ग में शब्दो से लिखा जाता है और उस पर लग्न को निशान ◊ भी लगा दिया जाता है उसके पश्चात् जन्मसमय ग्रह स्पष्ट सारणी से ग्रहों की जो स्थिति होती उसके अनुसार सम्बन्धित राशि में बैठा दिया जाता है।
चित्र नं. 3 में जन्मपत्री के रूप प्रयोग बंगाल और उसके पड़ोसी क्षेत्र में सामान्यतया किया जाता है। इस रूप में ऊपरी कोष्ठ में मेष राशि लिखी जाती है। और तदुपरान्त घड़ी की विपरीत चाल अनुसार क्रमश: कोष्ठो में वृष, मिथुन राशि आदि लिख दी जाती है जन्मसमय जो लग्न स्पष्ट राशि होती है, उसे उस राशि वर्ग में शब्दों में लिखा जाता है और उस पर लग्न का // निशान् भी लगा दिया जाता है इसके पश्चात् जन्म समय ग्रह स्पष्ट सारणी से 6हीं की जो स्थिति होती है उसके अनुसार सम्बन्धित राशि में बैठा दिया जाता है।
ब्रह्माण्ड को, कालपुरुष को जिस प्रकार 12 राशियों में बांटा गया है उसी प्रकार काल पुरुष को 12 भावों में भी बांटा गया है। भाव स्थिर है। प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है।
जातक के जन्म के समय पूर्व में जो राशि उदित होती है उस राशि की संख्या को लग्न या प्रथम में लिखा जाता है। उसके बाद क्रमश: उदय होने वाली राशियों को द्वितीय, तृतीय भाव में लिखा जाता है। भाव पूर्व से उत्तर पश्चिम दिशा में चलते हैं, इसको विपरीत घड़ी गति भी कह सकते हैं।
वह ग्रह जो किसी भाव के कार्य को करता है उसे उस भाव का कारक ग्रह कहते हैं। भाव के कार्य को भाव का कारकत्व कहते है।
कारक ग्रह
1. प्रथम भाव - तनु भाव - सूर्य और चंद्र
2. द्वितीय भाव - धन भाव - बृहस्पति और बुध
3. तृतीय भाव - सहज भाव - मंगल और शनि
4. चतुर्थ भाव - सुख भाव - चन्द्रमा , बुध और शुक्र
5. पंचम भाव - पुत्र भाव - बृहस्पति
6. षष्ठ भाव -शत्रु भाव - मंगल , शनि और बुध
7. सप्तम भाव - कलत्र भाव - शुक्र
8. अष्टम भाव - आयु भाव - शनि
9. नवम भाव - धर्म, भाग्य, पितृ भाव - बृहस्पति और सूर्य
10. दशम भव - कर्म भाव - बुध, सूर्य, और बुध
11. एकादश भाव - लाभ भाव - बृहस्पति
12. द्वादशा भाव - व्यय भाव - शनि और शुक्र
अन्य ज्योतिष विद्वानों ने मत के अन्य कारक भी माने हैं जैसे- प्रथम भाव का कारक सूर्य के साथ चन्द्रमा भी है। द्वितीय भाव का कारक बुध वर्णा पटुता के कारण, तृतीय भाव का शनि-आयु कारक, चतुर्थ भाव का शुक्र-वाहन का कारक, षष्ठ भाव का बुध- मामा का कारक, दशम भाव का मंगल- पराक्रम, तकनीकी शिक्षा, प्रतियोगता का कारक तथा द्वादश भाव का शुक्र सम्भोग का कारक ग्रह भी माना है।
ग्रहों के कारकत्व ग्रहों को भी नैसर्गिक कुछ काम सौंपे गये हैं। उनका भी विचार करना आवश्यक है।
सूर्य - राजा, राजनीति, चिकित्सा विज्ञान गौरव, पराक्रम का कारण है।
चंद्र - मन, रुचि, सम्मान, निद्रा, प्रासन्नता, माता, सत्ता, धन, यात्रा, जल का कारक है।
मंगल- शक्ति, साहस, पराक्रम, प्रतियोगता, क्रोध, उत्तेजना, षडयन्त्र, शत्रु विपक्ष विवाद, शस्त्र, सेनाध्यक्ष, युद्ध दुर्घटना जलना, घाव, भूमि, अचल सम्पत्ति छोटा भाई , चाचा का लड़का, नेता, पुलिस , सर्जन, मकेनिकल इंजीनियर का कारक है ।
बुध - बुद्धिमत्ता वाणी पटुता तर्क अभिव्यक्ति शिक्षा गणित डाकिया , ज्योतिष, लेखाकार, व्यापार, कमीशन एजेंट, प्रकाशन राजनीति में मध्यवर्ती व्यक्ति (विचोला नृत्य, नाटक, वस्तुओं का मिश्रण पत्तेवाले पेड़, मूल्यवान पत्थरों की परीक्षा मामा, मित्र सम्बन्धि आदि ।
बृहस्पति - विवेक, बुद्धिमता, शिक्षण, शरीर की मांसलता, धार्मिक कार्य ईश्वर के प्रति निष्ठा बड़ा भाई पवित्र स्थान , दार्शनिकता , धार्मिक गर्न्थो का गठन , पाठन , गुरु , अध्यापक , धन बैंक , दान देना आदि ।
शुक्र - पति/पत्नी, विवाह, रतिक्रिया, प्रम सम्बन्ध, संगीत, काव्य, इत्र सुगन्ध, घर की सजावट ऐश्वर्य, दूसरों के साथ सहयोग, फूल फूलदार वृक्ष, पौधे सौंदर्य, आखों कक्ष आदि सुख सामग्री आदि।
शानि -अधार्मिक कार्य विदेशी भाषा, विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा मेहनत वाले कार्य, क्रूर कार्य, वृद्ध मन्ति, पंगुता, अंग-भंग, लोभ, लालच बिस्तरे पर पड़े रहना, चार दिवाने में बन्द रहना, जेल, हास्पीटल में पड़े रहना, वायु जोड़ों के दर्द कठोर वाणी आदि।
राहु - दादा का कारक ग्रह है। कठोर वाणी, जुआ, भ्रामक तर्क गतिशीलता, यात्राएं विजातीय लोग , विदेशी लोग , विष , चोरी , धार्मिक यात्राएं आदि।
केतु - नाना का कारक ग्रह है। दर्द, ज्वर, घाव, शत्रुओं को नुकसान पहुंचाना, तांत्रिक तन्त्र, जादू-टोना, कुत्ता, सींग वाले पशु बहुरंगी पक्षी, मोक्ष का कारक ग्रह है।
अब तक हमने इस अध्याय में भाव, भावों कारक तथा ग्रहों के कारकत्व पढ़े। इनका क्या लाभ है मानो हम चतुर्थ भाव का विश्लेषण कर रहे हैं। चतुर्थ भाव तथा चतुर्थश पीड़ित है। चतुर्थ भाव वाहन, सुख, अचल सम्पति, भूमि, शिक्षा तथा माता को दर्शाता है, किसको कष्ट होगा या किसके द्वारा कष्ट प्राप्त होगा? इसका निर्णय कारक ग्रह करता है। यदि चतुर्थ भाव तथा भावेश के साथ चन्द्रमा पीड़ित है तो माता को कष्ट, शुक्र पीड़ित है तो वाहन के द्वारा कष्ट, बुध पीड़ित है तो शिक्षा में कष्ट होता है। इस प्रकार घटना का सम्बन्ध भाव, भावेश तथा कारक ग्रह से होता है।related post
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