आओ सीखें हस्तरेखा ज्ञान हिंदी में सीखें
हस्तरेखा से आप अपना खुद का भविष्य खुद जान सकते है इसके लिए आपको किसी भी ज्योतिषी के पास जाने की जरुरत नहीं है बस हाथ की रेखाओ को समझना होगा। हाथ में रेखाओ का जाल बना हुआ है लेकिन ये बहुत सरल है आप खुद से जान सकते हो आपकी शादी कब होगी और कितने बच्चे होंगे क्युकी सबकी अपनी अलग रेखा होती है। इसलिए तो हस्तरेखा को सम्पूर्ण विज्ञानं कहा गया है। आप सबकुछ अपनी हाथो की लकीरो से जान सकते हो की नौकरी कब लगेगी, सरकारी मिलेगी या नहीं , पत्नी कैसी होगी, पति कैसा होगा , ससुराल कैसी मिलेगी , अमीर घर में शादी होगी या मिडिल क्लास में होगी , हेल्थ कैसी रहेगी और बाकी सबकुछ जो भी समस्या है उसका समाधान हस्तरेखा से आपको मिल जायगा।
करतल पर दृष्टि डालने के साथ ही कुछ रेखायें दृष्टि गोचर होती हैं। ये रेखायें आड़ी हो सकती हैं सीधीहथेली को दो भागों में बांटती हुई हो सकती हैं, अर्ध चंद्राकार या खड़ी रेखायें हो सकती हैं। कभी-कभी तो हाथ में इस प्रकार की रेखाओं का जाल सा बना दिखायी देता है। इन रेखाओं के आधार पर ही किसी जातक के चरित्र, स्वभाव, योग्यता तथा जीवन में घटने वाली घटनाओं का ज्ञान किया जाता है।
करतल पर दृष्टि डालने के साथ ही कुछ रेखायें दृष्टि गोचर होती हैं। ये रेखायें आड़ी हो सकती हैं सीधीहथेली को दो भागों में बांटती हुई हो सकती हैं, अर्ध चंद्राकार या खड़ी रेखायें हो सकती हैं। कभी-कभी तो हाथ में इस प्रकार की रेखाओं का जाल सा बना दिखायी देता है। इन रेखाओं के आधार पर ही किसी जातक के चरित्र, स्वभाव, योग्यता तथा जीवन में घटने वाली घटनाओं का ज्ञान किया जाता है।
इस प्रकार की समस्त रेखाओं की संख्या 14 होती है। इनमें सात रेखाओं को मुख्य रेखायें तथा शेष सात रेखाओं को सहायक रेखाएं कहा जाता है। इनका वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है :
मुख्य रेखायें :
1. जीवन रेखा (Jeevan Rekha/Jivan Rekha)
2. भाग्य रेखा (Bhagya Rekha/Shani Rekha)
3. मस्तिष्क रेखा (Mastak Rekha/Mastisk Rekha)
4. हृदय रेखा (Hridhya Rekha/Hridya Rekha)
5. सूर्य रेखा (Surya Rekha/Ravi Rekha)
6. स्वास्थ्य रेखा (Swasthaya Rekha/Vyapaar Rekha)
7. विवाह रेखा (Vivah Rekha/Prem Rekha)
सहायक रेखाये :
1. संतान रेखा (Santaan Rekha/Baccho Ki Rekha)
2. बुध रेखा (Budh Rekha/Vyapaar Rekha)
3. शुक वलय (Shukar Valay)
4. मंगल रेखा (Mangal Rekha)
5. विवाह रेखा (Vivah Rekha/Prem Rekha)
6. मणिबन्ध का तीसरा बन्ध (Manibandh Rekha)
7. प्रेरणा रेखा (Preranna Rekha)
7. प्रेरणा रेखा (Preranna Rekha)
रेखाओं के अध्ययन में करतल के समान ही रंग का भी महत्व होता है। यह आवश्यक नहीं है कि हथेली तथा करतल रेखाओं के रंगों में एकरुपता हो। कई बार हथेली तथा रेखाओं के रंग में भिन्नता स्पष्ट रुप से दिखायी देती है। परन्तु प्रायः ही इसके लिये विशेष दृष्टि की आवश्यकता होती है। यह विशेष दृष्टि विभिन्न प्रकार के हाथों के निरन्तर अध्ययन तथा साधना से ही सम्भव होती है। मुख्य रेखाओं में जीवन रेखा, हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा तथा स्वास्थ्य रेखा आदि सम्मिलित हैं। कहीं-कहीं इस रेखा को अन्तज्ञान रेखा अथवा लाईन आफ इन्टीयूशन भी कहा गया है। इसी रेखा को व्यापार रेखा भी कहा जाता है।
सहायक रेखाओं में सूर्य रेखा, आदि रेखाओं का समावेश होता है। इन दो प्रकार की रेखाओं के अतिरिक्त हथेली पर पर्वत क्षेत्र को घेरते हुए कुछ रेखाय होती है । इन्हें मुद्रिका कहा जाता है ।
यह चार प्रकार की होती है बृहस्पति मुद्रिका, शनि मुद्रिका, बुध मुद्रिका, सूर्य मुद्रिका , और शुक्र मुद्रिका ।
हाथ देखते समय हथेली की रेखाओ का जितना गंभीरता और गहराई से अध्ययन किया जायगा फलकथन में उतनी ही अधिक आसानी होगी ।
रेखाओ के चिन्ह विस्तार और वर्गीकरण -
1. रेखा किस स्थान से निकल कर किस और जा रही है । उसका रंग, लंबाई, चौड़ाई, उदय, अंत, स्थान, दिशा किस प्रकार के है । उसकी सरंचना कैसे है ।
2. हाथ में उपिस्थित अन्य रेखाय के साथ अध्ययन की जा रही रेखा का क्या कैसा सम्बन्ध है ।
3. यह रेखा कही पर टूटी है, झुकी हुई है, टेडी मेड़ी है मोती है या कही पर बारीक़ है, पतली है । हथेली में जिस रेखा अध्यन किया जा रहा है वह मोटी , पतली, महीन, छोटी, लंबी आदि किस प्रकार की है ।
4. अध्ययन की जा रही रेखा के प्रारम्भ एवं अंत में किस प्रकार की आकृतिया बनी हुई है । स्वयं रेखा पर किस प्रकार के चिन्ह उपिस्थत है ।
5. क्या कोई रेखा किसी दूसरे स्थान से आकर इस रेखा को काट रही है इससे छू रही है इस से मिल रही है इस रेखा की शाखाओ की स्थिति किस प्रकार की है ।
6. क्या कोई अत्यंत महीन रेखा इस रेखा के अत्यन्त समीप जा रही है? इसके समानान्तर है? इस प्रकार की निकटवर्ती अथवा समानान्तर रेखाओं का फलादेश पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
7. हाथ में रेखायें केसी हैं। इकहरी हैं या दोहरी | हाथ में अधिकतर रेखायें दोहरी होने पर व्यक्ति की सफलता देर से मिलती है। परन्तु स्थायित्व प्राप्त करने के बाद उसे अच्छी सफलता मिलती है। सभी रेखायें दोहरी हों तो व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करता है। सफलता मिल तो जाती है साथ ही अशान्ति भी बनी रहती है। व्यक्ति का अपने जन्म स्थल से अधिक लगाव होता है।
8. परन्तु एक ही रेखा दोहरी होने से उस रेखा से सम्बन्धित गुणों में वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिये जीवन रेखा दोहरी होने पर व्यक्ति का कुटुम्ब बड़ा होगा | वह स्वयं दीर्घायु होगा। ध्यान रखिये कि हाथ हुआ हो तो व्यक्ति स्नायु अथवा शारीरिक रुप से निर्बल होता है। ऐसा व्यक्ति अधिक परिश्रम नहीं कर सकता और व्यर्थ चिन्ताओं से धिरा रहता है।
9. अगर हाथ में अधिक रेखायें न हों तो व्यक्ति परिश्रमी होता है और यदि हाथ में मुख्य रेखायें तो हों मगर सहायक रेखायें बिल्कुल न हों तो व्यक्ति अत्यन्त आलसी होता है। स्पष्ट है कि हाथ में रेखाओं का संतुलन अत्यन्त आवश्यक है।
10. कल्पना कीजिये कि हाथ में बनी रेखायें किसी पाईप के समान हैं। यदि पाईप से पानी बह रहा है और उसके बहने की गति सामान्य हे तो पानी निकासी के मार्ग का व्यास कम कर देने पर उससे निकास होने वाले पानी की गति बढ़ जाती हे | यही सिद्धांत हाथ की। रेखाओं पर भी लागू होता है। रेखा जितनी सुडोल एवं महीन होगी उससे प्रवाहित होने वाली जीवनी शक्ति उतनी ही प्रबल होगी | व्यक्ति उतना ही भाग्यवान होगा। हथेली की रेखाओं के मोटा होने पर व्यक्ति का भाग्य देर से बनता है। उसमें भी अपूर्णता दिखायी पड़ती है। उसके स्वभाव में भी अपूर्णता होती है।
11. हाथ में जो भी रेखा अधूरी होगी मनुष्य के जीवन में उसी रेखा से सम्बन्धित आकांक्षाओं की तीव्रता होती है। उदाहरण के लिये यदि हाथ में मस्तिष्क रेखा अधूरी हो तो व्यक्ति में शिक्षा प्राप्त करने की आकांक्षा बलवती होगी | व्यक्ति इसी आकांक्षा को पूरी करने के लिये सबसे अधिक प्रयत्नशील रहेगा परन्तु उसकी यह आकांक्षा पूरी हो पाती है अथवा नहीं यह हाथ में अन्य लक्षणों पर भी निर्भर करेगा |
12. रेखाओं से फलादेश करते समय जीवन के विभिन्न पक्षों के लिये किसी विशिष्ट रेखा पर ध्यान देना आवश्यक होता हे । साथ ही हथेली की अन्य रेखाओं से उस परिणाम की पुष्टि करना भी आवश्यक होता हे |
13. आर्थिक स्थिति तथा भाग्योदय के सम्बन्ध में भाग्य रेखा, सूर्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा पर समन्वित रूप से विचार करने के साथ-साथ हथेली, अंगुली, नाखून, ग्रह क्षेत्र की स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिये। विद्या, बुद्धि के सम्बन्ध में विचार करते समय सूर्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर ध्यान दीजिये । प्रेम तथा विवाह पर विचार करते मुद्रिका, हृदय रेखा का अध्ययन करें। सन्तान के सम्बन्ध में विचार करते समय विवाह रेखा पर पाई जाने वाली संतान रेखाओं का भी विचार करें। ध्यान रखिये कि हथेली पर स्थित प्रत्येक रेखा भले ही वह गोण हो अथवा सहायक जीवन को विभिन्न क्षेत्रों में प्रभाव छोड़ने में सक्षम होती है।
14. रेखाओं को सामान्यतया चार व गों मोटी पतली, गहरी तथा उथली में विभाजित किया जाता है। आकृति के आधार पर रेखाओं को बारह उपवगों में विभाजित किया जाता है | इस प्रकार के वगीकरण से रेखाओं का अध्ययन सरल हो जाता हे | इन्हें समझने में सुविधा होती है था फलादेश को समझने में पष्टता आती हे |
15. रेखाओं के वगीकरण में प्रत्येक रेखा का नामकरण इस प्रकार किया गया है कि रेखा के नाम से ही उस रेखा के गुणों तथा Iवृति के विषय में ज्ञान हो जाता है। लहरदार रेखा, जजीराकार खा, बिन्दुदार रेखा, फटी हुई खा, द्वीप युक्त रेखा, वर्ग चिन्ह पुक्त रेखा, दोहरी रेखा, शाखा युक्त खा, टूटी हुई रेखा, गोपुच्छाकृति खा, अधोगामी रेखा, उध्र्वगामी (खा अपने नाम को सार्थक करती हैं। रेखाओ के इस वर्गीकरण को चत्राकृति में दिखाया गया है।
नितिन कुमार पामिस्ट