अपनी सूर्य रेखा का फल पता करे | Surya Rekha Hast Rekha Gyan


अपनी सूर्य रेखा का फल पता करे  | Surya Rekha Hast Rekha Gyan

सूर्य रेखा का फल पता करे | Surya Rekha 



यह रेखा हथेली की आवश्यक रेखाओं में से एक है, इसे सूर्य रेखा, रवि रेखा, यश रेखा आदि नामों से जानी जाती है। यह रेखा व्यक्ति के जीवन के मान, प्रतिष्ठा, यश, पद, ऐश्वर्य आदि को दर्शाती है।

व्यक्ति के हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय  रेखा कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो किन्तु उसके हाथ में श्रेष्ठ सूर्य रेखा न हो तो वह सब व्यर्थ है।

सूर्य रेखा दोनों हाथों यानि उल्टे और सीधे हाथों में पाई जाती है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं की दोनों हाथों में अच्छी ही हो ऐसा भी हो सकता है की एक हाथ में अच्छी लेकिन दूसरे हाथ में बुरी सूर्य रेखा हो । 

हस्त रेखा विशेषज्ञ को इस रेखा का विशेषत: अध्ययन करना चाहिए, यह रेखा आमतौर पर सूर्य पर्वत के नीचे होती है। 

इस रेखा के बारे में ध्यान देने का विषय है कि यह रेखा चाहे कहीं से भी शरू हो पर जिस रेखा की समाप्ति सूर्य पर्वत पर होती है वही सूर्य रेखा कही जाती है।


यह रेखा धन, सम्मान, कलात्मक प्रतिभा तथा वैभव करने वाली रेखा है। इसी रेखा द्वारा शनि रेखा पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, दूसरे शब्दों में शनि रेखा को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली रेखा सूर्य रेखा है।

इस रेखा का न होना किसी तरह भी अशुभ या असफलता का संकेत नहीं है। परन्तु इसकी अनुपस्थिति में संघर्ष और परिश्रम अधिक करना होता है।


लम्बी सूर्य रेखा व्यक्ति को सम्मान, प्रतिभा और अधिकार दिलाती है।


इस रेखा पर नक्षत्र होने से सुख, सौभाग्य, सफलता प्राप्त होती है।


इस रेखा पर वर्ग होने से मान सम्मान की क्षति से रक्षा होती है।


इस रेखा पर द्वीप हो तो मान मर्यादा को क्षति, पद को नष्ट करती है।


अन्य रेखाओं की भांति यह भी पर्वतों से आकर्षित, प्रभावित होती है।


विचलित सूर्य रेखायें मंगल के निम्न पर्वत पर भी उदय होती है।


जीवन के जिस आयु में सूर्य रेखा मोटी हो, यशार्जन का समय होगा।


बुध चतुराई, शनि अध्यवसाय, सूर्य यश और प्रतिभा प्रदान करता है।


शनि रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा होने से व्यक्ति को अनेक संघषो से सफलता और लक्ष्य की प्राप्ति होती है।


यदि सूर्य रेखा, हृदय रेखा से आरम्भ हो तो उसे प्रतिभा और विशिष्टता 50 वर्ष के उम्र पश्चात प्राप्त होती है।


सूर्य रेखा जीवन रेखा से आरम्भ होने पर व्यक्ति सौन्दर्योपासक होता है।


सूर्य रेखा, चन्द्र  रेखा से आरम्भ होने पर सफलता मिलती है। परन्तु दूसरों के सहारे से क्योंकि व्यक्ति दूसरे पर निर्भर होता है।


यह रेखा चन्द क्षेत्र पर हो, तो प्राय: काव्य, उपन्यास, शायर, कवि, राजनीतिज्ञ, गायक आदि बनाती है।


यदि यही रेखा शीर्ष रेखा से आरम्भ होती है, तो व्यक्ति को बौद्धिक क्षमता के द्वारा 35 वर्ष की उम्र  के बाद सफलता प्रदान करती है।


यदि अनामिका, मध्यमा के बाराबर हो, सूर्य रेखा लम्बी हो, व्यक्ति धन और विद्या उक्त  होता है तथा जुआ और खतरों भरा कार्य पसंद करता है।


यदि सूर्य रेखा हथेली से आरम्भ हो तो व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करने के बाद सफलता मिलती है।


यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा से आरम्भ हो तो जिस आयु में सूर्य रेखा भाग्य रेखा से उठती है उस आयु में उन्नति प्राप्त होती हैं। यह रेखा कला क्षेत्र में सहयोग करती है तथा कुछ विद्वानों के मत से यह राज योग होता है।


यदि सूर्य क्षेत्र पर अनेक रेखायें हो तो व्यक्ति अधिक कल्पनाशील और कलाप्रिय होता है पर पूर्ण सफलता कम प्राप्त कर पाता है।


1. शुक्र पर्वत - शुक्र पर्वत से निकलने वाली सूर्य रेखा की यह प्रथम अवस्था होती है यह जीवन भाग्य, मस्तिष्क एवं ह्रदय रेखा को काटती हुई सीधी अपने स्थान रविक्षेत्र पर पहुंचती है।


शुक्र क्षेत्र प्रेम का प्रतीक है, स्त्री का द्योतक है। इस कारण उसकी उन्नति किसी महिला के द्वारा होती है, वही उसको भूमि, सम्पदा, धन आदि से सम्पन्न करती है। यह स्त्री स्वयं की पत्नी या प्रेमिका हो सकती है जो कि पवित्र प्रेम करती है।

2. जीवन रेखा - इससे निकलने वाली रेखा व्यक्ति को कलात्मक बनाती है, उसकी यह कला विभिन्न रूप धारण करती है और विभिन्न श्रोतों से उसका परिचय देती है।


वह एक सिद्ध हस्त दस्तकार, दर्जी, शिक्षक, शिल्पी, गायक और संगीतज्ञ, तान्त्रिक तथा अभिनेता हो सकता है, इनकी कलाओं में आकर्षण होता है।

यह कला इन्हे यश प्रदान करती है, किन्तु इन्हें परिश्रम द्वारा ही धन प्राप्त होता है, इन्हें सामान्य धनाभाव भी होता है। ये सौन्दर्य के अंधे और परम उपासक होते हैंं।


इन्हे परिवार द्वारा सफलता नहीं मिलती, ये स्वत: के बलबूते पर उन्नति करते हैं तथा स्वावलम्बी होते हैं। इनके माता-पिता कम, शिक्षा के स्वामी होते हैं, निर्धन निष्क्रिय और संसार विरक्त भी पाये जाते हैं। सात्विक हाथ में यह रेखा अच्छी और  हाथों में सामान्य मानी जाती है।

3. मष्तिष्क रेखा - इस रेखा से शुरू होने वाली सूर्य रेखा का स्वामी अदभुत कार्यकर्ता होता हैं। ऐसे व्यक्ति विशेष मस्तिष्क के स्वामी होते हैं। ये प्राय: महानपुरुष, प्रतिभाशाली, दिव्यज्ञानी, साहित्यिक, वैज्ञानिक आदि होते हैं।


ऐसे लोगों का कार्य बड़ी सू-हजय बू-हजय से सम्पन्न होता है तथा उस कार्य की विशेषता को मानव समुदाय हमेशा स्मरण रखता है। कभी-कभी ऐसे लोगों को मध्य आयु में सफलता प्राप्त होती पायी गयी है। अगर ये व्यापारी होते हैं तो खूब धन, कलाकार होते हैं तो खूब यश प्राप्त करते हैं।

4. मंगल पर्वत - मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा वीरता एवं चेतना को प्रदान करती है, जिनमें यह रेखा विद्यमान होती है वे हमेशा उत्साही, साहसी, आशावान, निडर और वाचाल होते हैं।


इनमें निरन्तर आत्मविश्वास की लहर दौड़ती रहती है तथा आपत्तियों का मुकाबला करने से नहीं डरते, इनमें हठ भी पाया जाता है परन्तु जिस कार्य को हठ भावना से करते हैं उसमें सफल भी पाये जाते हैं।


कभी-कभी विद्रोह की भावना भी जाग्रत होती है तथा रीतिरिवाजों के खिलाफ रहना इनकी विशेषता है। इनका हृदय एक ओर कठोर और दूसरी ओर कोमल होता हैं ये न्याय के प्रति हमेशा उतावले रहते हैं तथा न्याय के लिए स्वत: की बलि देना अपना कर्तव्य सम-हजयते हैं।

युद्ध स्थल में ये सफल सैनिक प्रमाणित होते हैं। ये लोग विषम परिस्थिति में भी अपने मनोबल और बैभव से सफल पाये जाते हैं।

5. ह्रदय रेखा - ह्रदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा के स्वामी कलाकारी, नाटक, कहानी, उपन्यास, काव्य, आदि कार्यो से लाभ कमाते हैं। यह रेखा उन्हें प्रौड अवस्था में सफलता देती है।


ऐसे व्यक्ति आरम्भ काल में सुखी एवं सम्पन्न नहीं होते । इस समय समाज में उन्हें निन्दा आदि का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पिछला समय उनका अंधकारमय कहा जा सकता है।

इस काल में उन्हें विफलता और अनेक अपयश का सामना करना पड़ता है तथा मन प्रसन्न नहीं रहता उनके चेहरे पर प्रफुल्लता नहीं होती, उदासी उन्हें खूब प्रताड़ित करती है, जिससे वे ब्याकुलता अनुभव करते हैं।

किन्तु इनका जीवन बाद में सुखमय होता है, समाज में सम्मान एवं यश मिलता है तथा उनकी रचना, या कार्य इस समय सराहनीय हो जती है। कुछ लोग ऐसे भी पाये गये हैं, जिन्हे संघर्ष करते-करते मृत्यु हो गयी, बाद

में उनके कार्यो का फल उनके पुत्रादि को प्राप्त होता है। 

उन्हें जीते जी न कीर्ति मिलती है और न ही विपुल धन राशि। यदि हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा दोषी हो तो अपयश तथा दु:ख प्राप्त होता है वे दर-बदर ठोकरें खाते हैं।


उनकी कला ही बला बन जाती और गति को अवरुद्ध कर देती है, कुछ कलाकार ऐसी स्थिति में पागल भी होते पाये गये हैं। उनकी मृत्यु भी भयानक और अशोभनीय होती है, जीवन का संघर्ष ही उनकी मृत्यु का कारण

बन जाती है।

6. मणिबन्ध पर्वत - मणिबन्ध से शुरू होने वाली सूर्य रेखा बड़ी उत्तम और उन्नत मानी जाती है, यह रेखा सर्व साधारण के हाथों में नहीं पायी जाती, यह रेखा भाग्यशाली होने का संकेत है। ऐसी रेखा, आदर, प्रतिष्ठा, प्रतिभा, सत्कार, उच्चाधिकार आदि प्रदान कराती है।


ऐसे लोगों के कार्यक्षमता का तारतम्य कभी नहीं टूटता। ऐसे लोगों की योजनायें सफल होती हैं तथा ये दानशील, न्यायप्रिय, परोपकारी एवं कलाविज्ञ होते हैंं। सफलता का अवसर स्वत: चलकर इनके पास आता है।

ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र एवं वकील, डाक्टर, इन्जीनियर, व्यापारी, अभिनेता, आदि होते हैं, ऐसे लोग सरकारी नौकरी वाले भी होते हैं जो कि उच्च पद प्राप्त करते हैं।

7. राहु पर्वत - राहु क्षेत्र से शुरू होने वाली सूर्य रेखा के व्यक्ति स्वतंत्र, व्यवसायी तथा लोभी होते हैंं, ऐसे मनुष्य उच्च स्तर के कवि, लेखक, सम्पादक हो सकते हैं। कभी -कभी एक से अनेक कार्य एक साथ करते हैं।


सूर्य रेखा यदि राहु क्षेत्र पर आकर टूट जाय या श्रृंखलाबद्ध हो जाये अथवा द्वीप हों तो व्यक्ति निकम्मा, निठल्ला अवगुण वाला एवं असफल होता है।

ऐसी स्थिति में यदि सूर्य की अंगुली का प्रथम पोर लम्बा, चौड़ा और सुडौल होगा तो व्यक्ति में कलाकारी, अविष्कार, वैज्ञानिक, चित्रकारी आदि का गुण पाया जाता है। यदि पहले की अपेक्षा दूसरा पोर अधिक बड़ा होगा, तो व्यक्ति प्रसिद्ध व्यापारी होता है।

यदि सूर्य अंगुली पर वर्ग और समकोण चतुथा±श हो तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में अधिकाधिक सफल होता है और अपने कार्यो से महान कहलाता है।


8. केतु पर्वत - केतु क्षेत्र से शुरू होने वाली सूर्य रेखा व्यक्ति को अधिकाधिक सुख प्रदान करती है । ऐसे व्यक्तियों को कमा-कमाया धन प्राप्त होता है।


दौलतमंद लोगों द्वारा उन्हें गोद भी लिया जा सकता है, ये पूर्वजों के जायदाद सम्पदा के मालिक बनते हैं। ऐसे लोगों को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता तथा समाज में प्रतिष्ठा मिलती है और ये साहूकार होते हैं।

यह सब होते हुए भी ये मन के अशुद्ध और मैले होते हैं, पापी होते हैं अधिक -हजयूंठ एवं वासना के पुतले होते हैं। अपने कंधे पर गुनाह और वासना का बो-हजय लादे रहते हैं।


धन की अधिकता से ये अनेक व्यसन, औरत खोरी, शराब खोरी आदि कई बुरी आदतों के शिकार होते हैं और दौलत के आगे ये किसी की भी परवाह नहीं करते।