दुःस्वप्न (डरावने सपने) उनके फल एवं शांति उपाय - स्वप्न फलदर्पण
आनंदातिरेक से जो स्वप्न में जोर से हंसता है या खुद का विवाह और नाच-गाना देखता है तो स्वप्नदृष्टा पर निश्चय ही संकट खड़ा होता है।
स्वप्न में अपने दांत गिराये जा रहे हैं और वे नीचे गिर रहे हैं ऐसा देखने पर आर्थिक नुकसान होकर शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।
स्वप्न में अभ्यंग, स्नान करके गधा, ऊंट, भैंसा इनमें से किसी पर सवार होकर दक्षिण की तरफ प्रयाण करते हुए देखता है उसे निश्चित ही मौत आती है।
जो स्वप्न में अपने कान में उगे अशोक, कर्दली के फूल देखेगा या तेल या नमक उस दिखायी देगा तो उसे संकटों से सामना करना पड़ेगा। नग्न, नाक कटी हुई काली, शूद्र विधवा, जटा, ताड़ी के फल देखने पर शोकजनक घटना उपस्थित होती है।
स्वप्न में चिड़ा हुआ ब्राह्मण एवं चिड़ी हुई ब्राह्मणी देखें तो स्वप्नदृष्टा पर संकट या कहर होता है और लक्ष्मी सदा के लिए घर छोड़ जाती है।
स्वप्न में जंगली फूल, लालफल, कपास, टांक एवं सफेद फूल देखने पर बड़े दुख का सामना करना पड़ता है।
हंसने वाली, गाने वाली, काले वस्त्र परिधान किये हुए काले रंग की विधवा देखे तो निश्चय ही मृत्यु होती है।
काले वस्त्र पहने हुई एवं काले फूलों की मालाएं गले में डाली हुई स्त्री यदि आलिंगन दे तो मृत्यु होती है।
नाचने वाले, गाने वाले, हंसने वाले, दंड बजाने वाले देवगण स्वप्न में देखे तो मृत्यु हो जाती है।
स्वप्न में मरे हुए हिरन का बच्चा, मनुष्य का मस्तक, रूडमाला दिखे तो मुसीबतो का संकेत है ।
गधा या ऊँट के रथ में बैठे हुए देखे और नींद खुल जाय तो मृत्यु का आलिंगन देता है।
स्वप्न में जो हविष्टय के पदार्थ, दूध, दही, छांछ एवं गुड़ शरीर को लगा हुआ देखे तो स्वप्नदृष्टा को शारीरिक क्लेश होता है।
स्वप्न में लाल फूलों की माला पहनी हुई, लाल रंग के वस्त्र परिधान की हुई स्त्री आलिंगन दे तो स्वप्नदृष्टा रोगग्रस्त होता है।
स्वप्न में अपने टूटे हुए नाखून, बुझी अग्नि, पूर्ण रूप से जली हुई चिता देखने पर स्वप्नदृष्टा को दुख होता है।
स्वप्न में पादुका, कपाल की हड्डी, लाल फूलों की माला, उड़द, मसूर, मूग दिखने पर शरीर पर फोड़े होते हैं या जख्म होता है।
स्वप्न में श्मशान, सूखी घास, लोहा, काली स्याही एवं काले घोड़े दिखाई दें तो देखने वाला संकटग्रस्त होता है।
स्वप्न में सेना, गिरगिट, कौआ, सियार, बंदर, नीलीगाय, रस्सी एवं मल शरीर से निकलते देखे तो स्वप्नदृष्टा को रोग-ग्रस्त होना पड़ता है।
स्वप्न में टूटे-फूटे बरतन, जख्म, शूद्र, कुष्ठ रोगी, लाल वस्त्र, जटाधारी, सूअर, भैंसा, काला अंधेरा, मरा हुआ प्राणी एवं योनीदर्शन हो तो देखने वाला संकटग्रस्त होता है।
स्वप्न में मुर्दा देखें तो वह मृत्यु की पूर्व सूचना है। स्वप्न में जो अपने शरीर पर मछलिया धारण करे तो उसके भाई की मृत्यु होगी।
स्वप्न में जख्मी या बिना सिर का धड़ मुंडन किये प्राणी नाचते देखना मृत्यु का ही संकेत है। मरा हुआ मनुष्य या काले रंग की लेछ स्त्री जिसे आलिंगन देगी उसकी मृत्यु निश्चित ही होती है।
स्वप्न में जिसके दांत गिरते हों, बाल झड़ते हों तो उसका आर्थिक नुकसान होता है। शारीरिक कष्ट भी सहना पड़ता है।
स्वप्न में सींगवाले प्राणी पर बच्चे एवं आदमी टूट पड़े तो स्वप्नदृष्टा को राजभय रहता है ।
कटा हुआ, नीचे गिरता हुआ पेड़, छुरी, धदकते अंगारे एवं पत्थरों की बारिश होते हुए दिखने पर दुख उठाना पड़ता है। स्वप्न में जो रथ, मकान, पर्वत, पेड़ गाय, हाथी एवं घोड़ा आकाश से पृथ्वी पर गिरते देखे तो संकट आता है।
स्वप्न में ऊपर से नीचे गिर रहे ग्रह, पर्वत, धूमकेतु, टूटा हुआ मनुष्य दिखे तो देखने वाले को दुःख में शामिल होना पड़ता है।
जो स्वप्न में रथ, मकान, पर्वत, पेड़, गाय, हाथी, घोड़ा आकाश से पृथ्वी पर गिरते हुए देखे तो स्वप्नदृष्टा को संकटों से जूझना पड़ता है।
स्वप्न में मस्तक पर आच्छादित छत्र कोई छीन ले तो स्वप्नदृष्टा के पिता, गुरू या राजा का नाश होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । स्वप्न में भयभीत गाय अपने बछड़े के साथ भाग जाय तो देखने वाले की लक्ष्मी एवं जमीन का नाश होता है। स्वप्न में शत्रु, कौआ, मुर्गा, भालू अपने ऊपर आक्रमण करते हुए दिखायी दें तो मृत्यु होती है। बिगड़ा हुआ भालू, सूअर, भैंसा, ऊंट एवं गधे हमला करें तो रोगग्रस्त होता है।
शांति उपाय-दुःस्वप्नों के बुरे फल प्राप्त न हों, इसलिए हमारे पूर्वाचार्यों ने प्राचीन ग्रंथों में शांति उपाय बताये हैं। वे निम्न प्रकार के हैं
१. लाल चंदन की समिधा घी में डुबोकर एक हजार गायत्री मंत्र का हवन करने दुस्वप्नों के कारण होने वाले दोषों की शांति होती है।
2 शुचिर्भूत होकर पूर्वाभिमुख आसनस्थ होकर अच्युत केशव, विष्णु, हरि, सत्य, जनार्दन इंस एवं नारायण इन आठ नामों का उच्चारण दस बार करने से पाप नाश होकर दुस्वप्न शुभदायी होता है।
3. भक्तिभाव से विष्णु, नारायण, कृष्ण, माधव, मधुसूदन, हरि, नरहरी, राम, गोविंद, दधिवामन इन दस नामों का एक सौ बार जाप करे तो दुस्वप्नों का परिणाम नहीं रहता है।
४. जो निष्ठापूर्वक एक हजार श्री कृष्ण नाम का जाप करेगा उसके दुःस्वप्न शुभ फलदायी होंगे। । ५. वेदों में स्वप्नविज्ञान पर विपुल्य साहित्य है। “स्वप्नोपनिषद” नामक एक स्वतंत्र ग्रंथ भी है। इस ग्रंथ में स्वप्नों का वैज्ञानिक विश्लेषण उपलब्ध है। “अथर्ववेद में स्वप्न की उत्पत्ति सृष्टि प्रारंभ से होने की बात का उल्लेख है। सर्वप्रथम स्वप्न ब्रह्मा जी ने देखा था। तैतीस देवों ने स्वप्न को शक्ति प्रदान की है।
“अथर्ववेद” तंत्र ज्ञान का प्राचीन ग्रंथ है। दुस्वप्ननाशक मंत्र इसमें उपलब्ध हैं। निम्न सूक्तों में कई मंत्र है जिन्हें पाठ करने से तथा इन मंत्रों से अपने ऊपर अभिषेक करने पर या हवनयुक्त मंत्रजाप करने से अशुभ स्वप्न शांत होते हैं। स्वप्न यमलोक से आते हैं और वे जलपुत्रचित पर स्थापित रहते हैं।
१३. रातभर कुछ टेढ़े-मेढे अजीबोगरीब स्वप्न दिखते हैं, स्वप्न में वीर्यपात होता है। ऐसा व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः प्राणायाम, भद्रासन एवं शवासन पाँच मिनिट तक करें।
आनंदातिरेक से जो स्वप्न में जोर से हंसता है या खुद का विवाह और नाच-गाना देखता है तो स्वप्नदृष्टा पर निश्चय ही संकट खड़ा होता है।
स्वप्न में अपने दांत गिराये जा रहे हैं और वे नीचे गिर रहे हैं ऐसा देखने पर आर्थिक नुकसान होकर शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।
स्वप्न में अभ्यंग, स्नान करके गधा, ऊंट, भैंसा इनमें से किसी पर सवार होकर दक्षिण की तरफ प्रयाण करते हुए देखता है उसे निश्चित ही मौत आती है।
जो स्वप्न में अपने कान में उगे अशोक, कर्दली के फूल देखेगा या तेल या नमक उस दिखायी देगा तो उसे संकटों से सामना करना पड़ेगा। नग्न, नाक कटी हुई काली, शूद्र विधवा, जटा, ताड़ी के फल देखने पर शोकजनक घटना उपस्थित होती है।
स्वप्न में चिड़ा हुआ ब्राह्मण एवं चिड़ी हुई ब्राह्मणी देखें तो स्वप्नदृष्टा पर संकट या कहर होता है और लक्ष्मी सदा के लिए घर छोड़ जाती है।
स्वप्न में जंगली फूल, लालफल, कपास, टांक एवं सफेद फूल देखने पर बड़े दुख का सामना करना पड़ता है।
हंसने वाली, गाने वाली, काले वस्त्र परिधान किये हुए काले रंग की विधवा देखे तो निश्चय ही मृत्यु होती है।
काले वस्त्र पहने हुई एवं काले फूलों की मालाएं गले में डाली हुई स्त्री यदि आलिंगन दे तो मृत्यु होती है।
नाचने वाले, गाने वाले, हंसने वाले, दंड बजाने वाले देवगण स्वप्न में देखे तो मृत्यु हो जाती है।
स्वप्न में मरे हुए हिरन का बच्चा, मनुष्य का मस्तक, रूडमाला दिखे तो मुसीबतो का संकेत है ।
स्वप्न में जो हविष्टय के पदार्थ, दूध, दही, छांछ एवं गुड़ शरीर को लगा हुआ देखे तो स्वप्नदृष्टा को शारीरिक क्लेश होता है।
स्वप्न में लाल फूलों की माला पहनी हुई, लाल रंग के वस्त्र परिधान की हुई स्त्री आलिंगन दे तो स्वप्नदृष्टा रोगग्रस्त होता है।
स्वप्न में अपने टूटे हुए नाखून, बुझी अग्नि, पूर्ण रूप से जली हुई चिता देखने पर स्वप्नदृष्टा को दुख होता है।
स्वप्न में पादुका, कपाल की हड्डी, लाल फूलों की माला, उड़द, मसूर, मूग दिखने पर शरीर पर फोड़े होते हैं या जख्म होता है।
स्वप्न में श्मशान, सूखी घास, लोहा, काली स्याही एवं काले घोड़े दिखाई दें तो देखने वाला संकटग्रस्त होता है।
स्वप्न में सेना, गिरगिट, कौआ, सियार, बंदर, नीलीगाय, रस्सी एवं मल शरीर से निकलते देखे तो स्वप्नदृष्टा को रोग-ग्रस्त होना पड़ता है।
स्वप्न में टूटे-फूटे बरतन, जख्म, शूद्र, कुष्ठ रोगी, लाल वस्त्र, जटाधारी, सूअर, भैंसा, काला अंधेरा, मरा हुआ प्राणी एवं योनीदर्शन हो तो देखने वाला संकटग्रस्त होता है।
गंदे कपड़े पहने, म्लेछ पाश एवं अस्त्र धारण किया हुआ यमदूत स्वप्न में देखे तो मृत्यु होती है।
ब्राह्मण-ब्राह्मणी, छोटा बालक, कन्या, क्रोध में विलाप करते हुए स्वप्न में दिखायी दें तो दुःख होता है।
काले फूल, काले फूलों की मालायें, शस्त्रधारी सेना, विकृत कायाधारी म्लेछ स्त्री स्वप्न में दिखने पर मृत्यु होती है।
'स्वप्न में लाल वस्त्र, वाद्य, नाचना-गाना, गाय का मृदंग बजाने वाला दिखे तो दुःख भोगना पड़ता है।
ब्राह्मण-ब्राह्मणी, छोटा बालक, कन्या, क्रोध में विलाप करते हुए स्वप्न में दिखायी दें तो दुःख होता है।
काले फूल, काले फूलों की मालायें, शस्त्रधारी सेना, विकृत कायाधारी म्लेछ स्त्री स्वप्न में दिखने पर मृत्यु होती है।
'स्वप्न में लाल वस्त्र, वाद्य, नाचना-गाना, गाय का मृदंग बजाने वाला दिखे तो दुःख भोगना पड़ता है।
स्वप्न में जख्मी या बिना सिर का धड़ मुंडन किये प्राणी नाचते देखना मृत्यु का ही संकेत है। मरा हुआ मनुष्य या काले रंग की लेछ स्त्री जिसे आलिंगन देगी उसकी मृत्यु निश्चित ही होती है।
स्वप्न में जिसके दांत गिरते हों, बाल झड़ते हों तो उसका आर्थिक नुकसान होता है। शारीरिक कष्ट भी सहना पड़ता है।
स्वप्न में सींगवाले प्राणी पर बच्चे एवं आदमी टूट पड़े तो स्वप्नदृष्टा को राजभय रहता है ।
कटा हुआ, नीचे गिरता हुआ पेड़, छुरी, धदकते अंगारे एवं पत्थरों की बारिश होते हुए दिखने पर दुख उठाना पड़ता है। स्वप्न में जो रथ, मकान, पर्वत, पेड़ गाय, हाथी एवं घोड़ा आकाश से पृथ्वी पर गिरते देखे तो संकट आता है।
स्वप्न में ऊपर से नीचे गिर रहे ग्रह, पर्वत, धूमकेतु, टूटा हुआ मनुष्य दिखे तो देखने वाले को दुःख में शामिल होना पड़ता है।
जो स्वप्न में रथ, मकान, पर्वत, पेड़, गाय, हाथी, घोड़ा आकाश से पृथ्वी पर गिरते हुए देखे तो स्वप्नदृष्टा को संकटों से जूझना पड़ता है।
स्वप्न में मस्तक पर आच्छादित छत्र कोई छीन ले तो स्वप्नदृष्टा के पिता, गुरू या राजा का नाश होता है। ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । स्वप्न में भयभीत गाय अपने बछड़े के साथ भाग जाय तो देखने वाले की लक्ष्मी एवं जमीन का नाश होता है। स्वप्न में शत्रु, कौआ, मुर्गा, भालू अपने ऊपर आक्रमण करते हुए दिखायी दें तो मृत्यु होती है। बिगड़ा हुआ भालू, सूअर, भैंसा, ऊंट एवं गधे हमला करें तो रोगग्रस्त होता है।
शांति उपाय-दुःस्वप्नों के बुरे फल प्राप्त न हों, इसलिए हमारे पूर्वाचार्यों ने प्राचीन ग्रंथों में शांति उपाय बताये हैं। वे निम्न प्रकार के हैं
१. लाल चंदन की समिधा घी में डुबोकर एक हजार गायत्री मंत्र का हवन करने दुस्वप्नों के कारण होने वाले दोषों की शांति होती है।
2 शुचिर्भूत होकर पूर्वाभिमुख आसनस्थ होकर अच्युत केशव, विष्णु, हरि, सत्य, जनार्दन इंस एवं नारायण इन आठ नामों का उच्चारण दस बार करने से पाप नाश होकर दुस्वप्न शुभदायी होता है।
3. भक्तिभाव से विष्णु, नारायण, कृष्ण, माधव, मधुसूदन, हरि, नरहरी, राम, गोविंद, दधिवामन इन दस नामों का एक सौ बार जाप करे तो दुस्वप्नों का परिणाम नहीं रहता है।
४. जो निष्ठापूर्वक एक हजार श्री कृष्ण नाम का जाप करेगा उसके दुःस्वप्न शुभ फलदायी होंगे। । ५. वेदों में स्वप्नविज्ञान पर विपुल्य साहित्य है। “स्वप्नोपनिषद” नामक एक स्वतंत्र ग्रंथ भी है। इस ग्रंथ में स्वप्नों का वैज्ञानिक विश्लेषण उपलब्ध है। “अथर्ववेद में स्वप्न की उत्पत्ति सृष्टि प्रारंभ से होने की बात का उल्लेख है। सर्वप्रथम स्वप्न ब्रह्मा जी ने देखा था। तैतीस देवों ने स्वप्न को शक्ति प्रदान की है।
“अथर्ववेद” तंत्र ज्ञान का प्राचीन ग्रंथ है। दुस्वप्ननाशक मंत्र इसमें उपलब्ध हैं। निम्न सूक्तों में कई मंत्र है जिन्हें पाठ करने से तथा इन मंत्रों से अपने ऊपर अभिषेक करने पर या हवनयुक्त मंत्रजाप करने से अशुभ स्वप्न शांत होते हैं। स्वप्न यमलोक से आते हैं और वे जलपुत्रचित पर स्थापित रहते हैं।
अथर्ववेद में उल्लेखित दुःखस्वप्नाशक सुक्त
अ. पयावर्तेदुरूस्वप्नात् पापात् स्वप्न्यात मूत्वः ।
ब्रम्हाहमन्तंर वृष्ये परा स्वप्नुमुखाः शुचः ।।
ब्रम्हाहमन्तंर वृष्ये परा स्वप्नुमुखाः शुचः ।।
यत्स्वप्ने अन्नमशनामि न प्रातराधिगम्यते।
सर्व तदन्तु में शिवं तक्त तद् दृश्यते दिवा।।
-काण्ड ७, अध्याय ६, सूक्त १००/१०१
-काण्ड ७, अध्याय ६, सूक्त १००/१०१
ब . यमस्य लोकाद घ्याव व भूविध प्रमदा मत्र्यात प्रत्युनक्षि धीरः।
एकाकिना सर्थ यासि विद्वान्ह त्स्वप्नं मिमाता असुरस्य योनी।।
वन्धस्तोत्रं विश्वचया अपश्यत पुरा रात्र्याजनितोरेके अहितः ।
अतः स्वपेनमध्या बूमूविथ मिषग्यो रूपमय गृहमातः ।।
बृहद गावासुमयोधि देवातपापर्तन महिमान विच्छता।
तस्मै स्वप्नायद धुरादिपत्यं त्रयत्रिशांसः स्वरातशातः ।।
नैतां विदुः पित्तरो नोते देवा येषां जाद्विचरत्यन्तरेमू।
त्रिते स्वप्रपद धुराप्त्ये नर आदित्यासो वसण नातु शिष्ठाः ।।
यस्य करणभजन्त दुष्कृतो स्वप्नेन सुकृतः पुण्यमायुः ।
स्वमंदीसि परमेण बन्धुना तप्यमानस्य मनसो धि यज्ञिषे।।
विमते सर्वाः परिजाः पुरस्तात विदरम स्वप्नयो अधिमा दूहाते।
यशोस्किनो यशतेह पाहयाराद् द्विषेमिरण याहि दूरम्।।
–काण्ड १६, अध्याय ७ सूक्त ५६।।
–काण्ड १६, अध्याय ७ सूक्त ५६।।
क. यथाकला यथाशंक धनर्ण संनषत्रन्ति।
एवा दुःषुष्यलय सर्वमप्रिये सनयामसि ।।
सरांजानो अगुः समृणा न्यगुः स कुष्ट अगुः संकला अगुः ।
समस्तासु सद् दुस्वप्नं निद्विषते दुःस्वप्न सुवाम।।
देवानां पत्नीनां गर्मममस्य कर या भद्रः स्वप्न।
त मम यः पापस्तद् द्विषते प्र हिणमः।।
मातृष्ठानामासि कृष्णशकुनेमूखम।
तं सत्वा स्वप्न यथासविदम सत्वं स्वप्राश्वश्वकायम विश्वपिम नीनाहम्।।
अनास्माकं देवपीयू पियां वच यदमास्तु। दुःस्वप्नय यगोषु यच्च नो गृहं।।।
अनास्माकस्तद देवीयुः पियार्निष्कसिव प्रतिमुत्र ताप्।
इवारस्त्रीनपमया अस्मांक ततः पदि।।
दुःस्वध्नयं सर्व द्विषने निर्दयामसि ।।
-काण्ड १६, अध्याय ७, सूक्त ५७ ।।
-काण्ड १६, अध्याय ७, सूक्त ५७ ।।
६. दुःस्वप्ननाशिनी शमी
गणेशपूजन में दूर्वा के साथ शमी का उपयोग गणेशजी को अर्पण करने के लिए किया जाता है। शमी एक अदभुत् वनस्पति है। यह "दुःस्वप्न–नाशिनी” कहलाती है। इसलिए जमीपजन से दुःस्वप्नों की शांति होती है। हमेशा बुरे स्वप्न देखने वाले हर रोज सोने से पहले शमी सिरहाने रखें। ऐसा करने से बुरे स्वप्न नहीं दिखते ऐसा हमारा अनुभव है।
७. दुःस्वप्न नाश के लिए प्रभावी मंत्र
आपदां हर्तार दातारं सर्व संपदाम् लोकाभिरामं श्रीरामम् भूयोभूयो नमाम्यहं।।
आपदां हर्तार दातारं सर्व संपदाम् लोकाभिरामं श्रीरामम् भूयोभूयो नमाम्यहं।।
बुरा स्वप्न देखने पर तुरंत नींद से जागकर मांडी डालकर उपरोक्त मंत्र दस बार बोलें जिससे कि बुरे स्वप्न का प्रभाव नहीं होता।
८. सूर्योदय के पूर्व पूर्वाभिमुखी आसनस्थ होकर गायत्री मंत्र का १०८ बार जाप करे। इससे दुःस्वप्न का परिहार होकर उसकी तीव्रता कम होगी।
८. सूर्योदय के पूर्व पूर्वाभिमुखी आसनस्थ होकर गायत्री मंत्र का १०८ बार जाप करे। इससे दुःस्वप्न का परिहार होकर उसकी तीव्रता कम होगी।
६. शुचिर्भूत होकर "ॐ नमः” इस मंत्र के साथ शिव, दुर्गा, गणपति, कार्तिकेय, दिनेश्वर, धर्मगगा, तुलसी, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती इन मंगलकारक एवं कल्याणकारी नामों का जाप करे। इस नामजाप के कारण दुःस्वप्न शुभदायी होकर जपार्टी के मनोरथपूर्ण होते हैं।
१०. “ॐ हीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।' शुचिर्भूत होकर दस बार इस अदभुत मंत्र का जाप करे। इससे दुःस्वप्न सुखदायी होता है।
११. “ऊँ नमो मृत्युजयाय स्वाहा।' इस मंत्र का एक लाख जाप करने से साक्षात मृत्यु । लौट जाती है एवं जपार्थी शतायुषी बनता है।
१०. “ॐ हीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।' शुचिर्भूत होकर दस बार इस अदभुत मंत्र का जाप करे। इससे दुःस्वप्न सुखदायी होता है।
११. “ऊँ नमो मृत्युजयाय स्वाहा।' इस मंत्र का एक लाख जाप करने से साक्षात मृत्यु । लौट जाती है एवं जपार्थी शतायुषी बनता है।
१२. शमी की तरह “तगर” वनस्पति में दुःस्वप्ननाशक गुण विद्यमान हैं। जिन्हें बार-बार दुरवप्न दिखते हों एवं मानसिक संतुलन बिगड़ता हो ऐसा व्यक्ति "तगर” वनस्पित के हरे पत्ते चबाकर खाये। इससे दुःस्वप्नों से दुख नहीं होता।
१३. रातभर कुछ टेढ़े-मेढे अजीबोगरीब स्वप्न दिखते हैं, स्वप्न में वीर्यपात होता है। ऐसा व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः प्राणायाम, भद्रासन एवं शवासन पाँच मिनिट तक करें।
१४. प्रमावी मंत्र "नारायण शर्गधरं श्रीधरं पुरुषोतमम् ।
वामनं खाडीग्रं चैव दुःस्वप्ने सदास्मरेन।"
वामनं खाडीग्रं चैव दुःस्वप्ने सदास्मरेन।"
इस मंत्र का १०८ बार जाप करें।
१५. “गजेन्द्रमोक्ष' इस दिव्य स्तोत्र का पाठ करने से दुःस्वप्न दिखायी नहीं देता।
१६. 'विष्णुसहस्त्रनाम” इस स्तोत्र को रोज पढे । दुःस्वप्न नहीं दिखेंगे।
१७. जातक को शनि महादशा प्रारंभ हो और उसमें केतु की अंतर्दशा हो तो इस कालखंड में भले बुरे एवं बेहद सपने दिखते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनेक वर्षों की साधना से लेखक ने यह अनुभव किया है। इस कालावधि में देखें स्वप्नों की अनष्टिता दूर करने के लिए "ॐ के केतवे नमः । इस मंत्र का जाप करे एवं हनुमान जी की उपासना करे।
१७. जातक को शनि महादशा प्रारंभ हो और उसमें केतु की अंतर्दशा हो तो इस कालखंड में भले बुरे एवं बेहद सपने दिखते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनेक वर्षों की साधना से लेखक ने यह अनुभव किया है। इस कालावधि में देखें स्वप्नों की अनष्टिता दूर करने के लिए "ॐ के केतवे नमः । इस मंत्र का जाप करे एवं हनुमान जी की उपासना करे।
१८. प्रभावी मंत्र -
योमांत्वाच सरश्यैव ग्रहास्यच दिवारणम् । गुल्म कोचक वेणूनां तं च शैलवर तया ।। प्रभा भास्करं गंगा नैमिषारण्य पुष्करष।। प्रभागं ब्रह्मतीर्थ च दणडकारण्यमे वच दुःस्वप्नों नष्यंते तेषां सुखप्रश्य भविष्यति।।।
योमांत्वाच सरश्यैव ग्रहास्यच दिवारणम् । गुल्म कोचक वेणूनां तं च शैलवर तया ।। प्रभा भास्करं गंगा नैमिषारण्य पुष्करष।। प्रभागं ब्रह्मतीर्थ च दणडकारण्यमे वच दुःस्वप्नों नष्यंते तेषां सुखप्रश्य भविष्यति।।।
उपरोक्त मंत्र का प्रातः १०८ बार जाप करने पर दुःस्वप्नों का परिहार होता है।