आपका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा ? विवाह रेखा | The Line of Marriage Palmistry
विवाह रेखा को Line of Marriage, Line of Love, Line of Union, अनुराग रेखा, प्रेम सम्बन्ध रेखा, ललना रेखा, जीवन-साथी रेखा, आसक्ति रेखा आदि नामों से जाना जाता है। इस रेखा का प्रधान विषय विवाह और वैवाहिक जीवन है ।
प्राचीन मान्यताओं में विवाह रेखा को सुनिश्चित विवाह सम्बन्धों का संकेत माना जाता था। 'समुद्र ऋषि' ने इन रेखाओं की संख्या के आधार पर जातक के विवाहों की संख्या निर्धारित की है। उनकी मान्यता थी कि जितनी विवाह रेखाएं होती हैं, उतनी ही पत्नियां या पति होते हैं। 'विवेक विलास', 'शैव सामुद्रिक', 'प्रयोग पारिजात', 'हस्त संजीवन', 'करलक्खन' आदि प्राचीन ग्रन्थों में समुद्र ऋषि के कथन की पुष्टि की गयी है।पढ़ें - विवाह रेखा का फल चित्रों सहित - हस्तरेखा
'प्रयोग पारिजात' में विवाह रेखा के लक्षणों को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि कनिष्ठिका अंगुली तथा आयु रेखा (हृदय रेखा) के मध्य भाग में पुरुष जातक के हाथ में जितनी रेखाएं हों, उसके उतनी ही पत्नियां तथा स्त्री जातक के हाथ में जितनी रेखाएं हों, उसके उतने ही पति समझने चाहिएं। यदि ये रेखाएं विषम हों, तो नीच कुल की स्त्री और सम हों, तो समान कुल व शील वाली स्त्री से विवाह होता है।
यदि यह रेखा सूक्ष्म (पतली) तथा दीर्घ (लम्बी) हो, तो अक्षत योनि कन्या से तथा छोटी और मोटी हो, तो पुनर्भू, अर्थात् जिसका पहले विवाह हो चुका हो अथवा जो किसी पुरुष से पहले ही यौन-सम्बन्ध स्थापित कर चुकी हों, के साथ विवाह होता है। यदि रेखा पतली हो, तो भाग्यशाली स्त्री से और फटी हुई हो, तो दुर्भगा स्त्री के साथ विवाह होता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे में भी प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे। कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चन्द्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप में स्वीकार किया है, किन्तु अधिकांश विद्वानों ने हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र में स्थित आड़ी रेखाओं को ही विवाह रेखा की मान्यता दी है।
उपर्युक्त मान्यताएं अत्यन्त पुरानी हैं। उस समय की सामाजिक स्थिति और वर्तमान समय की सामाजिक स्थिति में बहुत अन्तर हो गया है। प्राचीन समय में विवाह सम्बन्धी जो मान्यताएं थीं, उनका जो स्वरूप था, वह आज बिलकुल बदल गया है। प्राचीन समय में विवाह को मनुष्य के सोलह संस्कारों में से एक गिना जाता था और जीवन-साथियों को एक-दूसरे के प्रति विवाह से पूर्व आकर्षण या प्रेम भाव रखने की कोई सामाजिक स्वीकृति या परम्परा नहीं थी।
पहले माता-पिता की इच्छा से सामाजिक विवाह हुआ करते थे और विवाह के बाद ही पति-पत्नी के रूप में प्रेम सम्बन्धों की शुरुआत होती थी। गान्धर्व विवाहों या प्रेम विवाहों की परम्परा अपवादस्वरूप थी। स्पष्टतः प्राचीन समय में विवाह के बाद ही प्रेम सम्बन्धों की शुरुआत होती थी।
किन्तु अब ज़माना बदल गया है और विवाह के स्वरूप ने भी अपना रास्ता बदल लिया है। आज पहले प्रेम होता है, फिर विवाह होता है। कभी-कभी प्रेम बीच में टूट जाता है और कभी आजीवन प्रेम चलता रहता है, किन्तु विवाह कभी नहीं होता। निष्कर्षतः पहले के ज़माने में प्रेम के लिए विवाह जरूरी था और अब विवाह के लिए प्रेम ज़रूरी है, अर्थात् प्रेम सम्बन्धों की सामाजिक या वैधानिक स्वीकृति का नाम ही आज विवाह बन गया है, किन्तु प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में प्रेम सम्बन्धों का कोई स्थान नहीं था ।
स्वाभाविक है कि विवाह, प्रेम व अनुराग सम्बन्धी प्राचीन मान्यताओं में हुए इस अभूतपूर्व परिवर्तम से विवाह रेखाओं के अध्ययन, विश्लेषण व फलकथन के लिए निर्धारित पूर्व मानदण्डों में समय-समय पर परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव की गयी है, जिससे प्राचीन और आधुनिक मान्यताओं के बीच बहुत बड़ा अन्तर दिख रहा है, किन्तु मूल सिद्धान्त दोनों का एक ही है।
विवाह रेखाओं की उपस्थिति का सिद्धान्त
व्यवहार में ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोगों के हाथों में कई विवाह रेखाएं मौजूद रहती हैं, फिर भी उनका विवाह नहीं होता। इसके विपरीत विवाह रेखा के अनुपस्थित रहने पर भी विवाह हो जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों में हस्तरेखा विज्ञान के विवाह विषयक सामान्य सिद्धान्त असफल हो जाते हैं।
इन दोनों परिस्थितियों के कारणों और विसंगतियों की व्याख्या का प्रयास प्राचीन काल से ही आरम्भ हो चुका है। आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले साधुओं, संन्यासियों, योगियों और साध्वियों के हाथों में भी कभी-कभी विवाह रेखा देखने को मिलती है, जिनका न तो कोई प्रेम सम्बन्ध होता है और न ही विवाह सम्बन्ध, फिर भी विवाह रेखा की उपस्थिति एक विसंगति है। ऐसे लोगों के हाथों की विवाह रेखा को उनके भक्तों व आत्मीय शिष्यों की रेखा स्वीकार करने का निर्देश दिया गया है।
इसके विपरीत जिन लोगों के हाथों में विवाह रेखा अनुपस्थित रहती है, किन्तु शुक्र या चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली प्रभाव रेखाएं, जो भाग्य रेखा या सूर्य रेखा के साथ योग करती है, सशक्त होती हैं, उनका विवाह हो जाता है। इस दशा में प्रभाव रेखाएं अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
पढ़ें - विवाह रेखा और तलाक हस्तरेखा
इन दोनों ही परिस्थितियों और विसंगतियों में विवाह रेखा की भूमिका वैवाहिक सम्बन्धों के लिए निर्णायक प्रतीत नहीं होती, बल्कि यह गहरे आत्मिक प्रेम सम्बन्ध को, चाहे वह समलैंगिक हो या विषमलैंगिक, को प्रकट करती है, जैसा कि साधुओं और संन्यासियों के हाथों की रेखाओं से स्पष्ट है। इसलिए जिन विचारकों ने विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम रेखा, आकर्षण रेखा, Line of Love, Line of Attraction नाम से सम्बोधित करके, इसे मूलतः प्रेम भावना से ही सम्बद्ध करने का प्रयास किया है, वे अधिक उचित और तर्कसंगत प्रतीत होते हैं। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । विद्वानों का मत है कि "हाथ केवल विवाह संस्कार को, चाहे वह धार्मिक रीति से सम्पन्न हो या न्यायालय की लिखा-पढ़ी से हो, मान्यता नहीं देता। वह केवल व्यक्ति के जीवन पर दूसरे लोगों के प्रभावों को अंकित करता है। वह यह भी व्यक्त करता है कि वे प्रभाव किस प्रकार के हैं और उनका क्या परिणाम होगा।" इसलिए विवाह रेखा के सम्बन्ध में विचार करते समय शुक्र क्षेत्र और चन्द्र क्षेत्र से निकलने वाली अनुरागात्मक प्रभाव रेखाओं व हाथ के अन्य लक्षणों आदि का भी अध्ययन अवश्य किया जाना चाहिए, क्योंकि मात्र विवाह रेखा के लक्षणों के आधार पर ही जातक की वैवाहिक स्थिति की पूर्ण जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकती।
इस प्रकरण की व्याख्या करते हुए 'बैनहम' ने लिखा है कि कुछ लोगों के हाथों में अनेक विवाह या अनुराग रेखाएं होती हैं और कुछ लोगों के हाथों में एक भी रेखा नहीं होती। हमारा विचार और अनुभव यह है कि ये रेखाएं विवाह की सूचक तो होती हैं, परन्तु उनका निश्चित फल दूसरी रेखाओं और चिह्नों के साथ ही जाना जा सकता है। यदि केवल इन्हीं रेखाओं को देखकर फलादेश किया जाये, तो गलत हो सकता है। विवाह का प्रभाव लोगों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से पड़ता है । कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो विवाह को एक ऐसी घटना समझते हैं, जो उनके जीवन में घटित होनी ही थी। वे इस सम्बन्ध को भी अपनी दिनचर्या का एक अंग समझते हैं। बहुत सम्भव है कि ऐसे लोगों के हाथों में एक भी विवाह रेखा न हो। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो वैवाहिक सम्बन्ध में अपनी आत्मा और मन को समर्पित कर देते हैं। उनके हाथों में निश्चित रूप से गहरी विवाह रेखाएं होती हैं ।
पढ़ें - विवाह रेखा और सेक्स हस्तरेखा
विवाह सम्बन्ध को निर्धारित करने के लिए विवाह रेखा के अलावा शुक्र और चन्द्र क्षेत्र की प्रभाव रेखाओं तथा हाथ की बनावट का निर्णायक महत्त्व होता है। प्रभाव रेखाओं का वर्णन तीसरे अध्याय में तथा जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा के प्रकरणों में पहले ही किया जा चुका है। हाथ में ग्रह क्षेत्रों की प्रधानता व प्रबलता के अनुसार जातक की मनोवृत्तियां परिवर्तित होती रहती हैं। ऐसे व्यक्ति जिनके हाथ बृहस्पति प्रधान होते हैं, वे विवाह संस्था को मान्यता देते हैं, इसलिए वे कम अवस्था में ही विवाह कर लेते हैं। इनके हाथों में विवाह रेखा वास्तव में विवाह की सूचक होती है। शनि प्रधान व्यक्ति विवाह के नाम से चिढ़ते हैं। जब तक कोई व्यक्ति बहुत ही अधिक प्रभाव न डाले, वे विवाह नहीं करते। इसलिए शनि प्रधान हाथों में विवाह रेखा अत्यन्त बलवती और मध्यावस्था में हो, तभी विवाह होता है। अन्य अवस्थाएं या साधारण रेखाएं ऐसे लोगों के हाथ में निष्फल हो जाती हैं। यदि शनि प्रधान हाथों में उन्नत शुक्र क्षेत्र कामवासना की अधिकता दिखाये, तो भी ये व्यक्ति विवाह के झंझट में पड़ना नहीं पसन्द करते हैं और अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए कोई अन्य उपाय ढूंढ़ लेते हैं। सूर्य और बुध प्रधान लोग छोटी अवस्था में ही विवाह कर लेते हैं।
उनके हाथों में स्पष्ट रेखा को विवाह का लक्षण मान लेना चाहिए। चन्द्र प्रधान व्यक्ति अत्यन्त रहस्यमय और विचित्र स्वभाव के होते हैं। यदि उनके हाथों में बहुत गहरी और लम्बी रेखा हो, तभी विवाह की सूचक मानी जा सकती है। शुक्र प्रधान व्यक्तियों में इतना अधिक आकर्षण होता है कि उनको कोई अविवाहित रहने ही नहीं देता है, उनके हाथों में एक छोटी-सी विवाह रेखा भी विवाह का निश्चित संकेत होती है। मंगल प्रधान हाथों में बपचन या मध्यावस्था के बाद की रेखाएं अधिक निर्णायक होती हैं।
विवाह रेखा पर विवाह के समय की गणना
देशकाल की परम्पराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिए। इस सम्पूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों में विभाजित करने के लिए इसके बीच में तीन आड़ी रेखाएं खींच दी जायें, तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा से बचपन में विवाह (चौदह से अठारह वर्ष), मध्य की रेखा से युवावस्था में विवाह (इक्कीस से अट्ठाइस वर्ष) और कनिष्ठिका मूल के पास की रेखा से प्रौढ़ावस्था में विवाह (अट्ठाइस से पैंतीस वर्ष) समझना चाहिए, विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान, जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है।
विवाह रेखा का आरम्भ और उसका फल
1. विवाह रेखाएं करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। कभी-कभी ये बुध क्षेत्र से ही आरम्भ होती हैं और वहीं अंकित रहती हैं।
ऐसी रेखाएं, जो करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करती हैं, वे शुभ होती हैं और जो रेखाएं बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों में विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुन्दर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती हैं ।
2. यदि विवाह रेखा का आरम्भ हृदय रेखा के भीतर से हो या हृदय रेखा के आरम्भ होने के पहले वह उच्च मंगल क्षेत्र से चाप खण्ड की तरह आरम्भ होकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करे, तो जातक का विवाह बाल्यावस्था में, जब वह अबोध रहता है, तभी हो जाता है। ऐसे विवाह प्रायः बेमेल विवाह होते हैं और आगे चलकर परेशानी, आपसी मनमुटाव, सम्बन्ध-विच्छेद, अस्थिरता या दुःख का कारण बनते हैं। यदि इस योग के साथ जातक के हाथ में मध्य बुध क्षेत्र में दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो, तो दूसरे विवाह की सम्भावना अधिक रहती है।
3. यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका मूल की ओर करतल के बाहर से चाप खण्ड की तरह आरम्भ होकर उच्च बुध क्षेत्र में प्रवेश करे, तो जातक को वृद्धावस्था में अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह करना पड़ता है। ऐसे लोग, जो विधवा या विधुर हो जाते हैं, किन्तु बाद में समाज, परिवार या परिस्थितियों के दबाव में आकर अपना पुनर्विवाह करते हैं, उनके हाथों में इस प्रकार की रेखा पायी जाती है।
4. यदि विवाह रेखा के आरम्भ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो ऐसी रेखा विवाह में होने वाली देरी का संकेत देती है। जिसका कारण आर्थिक दिक़्क़त, बीमारी या अन्य देश में निवास होता है। यह योग ऐसी परिस्थिति का भी संकेत देता है कि शादी जल्दी हो जाती है, किन्तु अनेक दिक़्क़तों या आपसी मनमुटाव आदि के कारण पति-पत्नी को आरम्भिक वैवाहिक जीवन में एक-दूसरे से बिलकुल दूर और अलग रहना पड़ता है, किन्तु वैवाहिक सम्बन्ध किसी-न-किसी रूप में मौजूद रहता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों और एक सुन्दर रेखा के रूप में आगे बढ़ रही हों, तो पति-पत्नी का सम्बन्ध बाद में पुनः जुड़ जाता है तथा शेष जीवन सुखी रहता है।
5. यदि विवाह रेखा का आरम्भ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ में इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी में शादी की जाती है। ऐसी स्थिति में आरम्भिक वैवाहिक जीवन बहुत दुःखद, कष्टकर और शर्मनाक होता है। यदि बाद में रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं।
विवाह रेखा का समापन और उसका फल
1. यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र में समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण मान-प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है।
2. यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवन-साथी उच्च कुल का तथा प्रतिभा व वैभव से सम्पन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिए बहुत शुभ होता है, किन्तु उसे आजीवन अपने जीवन- साथी के प्रभाव में रहना पड़ता है।
3. यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे झुककर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक सम्बन्ध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुःख उठाना पड़ता है।
4. यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए जीवन-साथी को गम्भीर रूप से घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग में शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अन्त में क्रास चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप में मृत्युदण्ड दिया जाता है ।
5. यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यह वैधव्य या विधुरता का संकेत है।
6. यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये, तो यह समझना चाहिए कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लम्बी बीमारी होगा ।
7. ऐसी रेखा के ढलान में यदि क्रास चिह्न या आड़ी रेखा हो, तो जातक के जीवन-साथी की मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है ।
8. यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र में जाकर समाप्त हो, तो यदि यह योग सिर्फ़ बायें हाथ में ही हो, तो वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद करने की इच्छा को व्यक्त करता है। दोनों हाथों में यही योग हो, तो सम्बन्ध विच्छेद निश्चित हो जाता है ।
9. यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र में ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठिका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है ।
10. यदि विवाह रेखा लम्बे मोड़ के साथ नीचे मुड़कर मंगल के मैदान में समाप्त हो; तो जातक के जीवन-साथी का व्यवहार उद्दण्डतापूर्ण, अनुचित व झगड़ालू होता है। यह योग दुखी वैवाहिक जीवन का परिचायक है। यदि इस रेखा के अन्त में द्वीप चिह्न हो, तो वैवाहिक सम्बन्ध का अन्त किसी कलंकपूर्ण दुर्घटना से होता है।
11. यदि विवाह रेखा अन्त में अंकुश की तरह मुड़ जाये, तो प्रेम सम्बन्ध समाप्त हो जाता है।
12. यदि विवाह रेखा का अन्त त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद में सम्बन्धों के प्रति उदासीन हो जाता है।
13. यदि विवाह रेखा का अन्त उच्च मंगल क्षेत्र में हो और समापन स्थान पर क्रास चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन में अनियन्त्रित ईर्ष्या व द्वेष के कारण कोई प्राणघातक दुर्घटना घटित होती है।
विवाह रेखा की शाखाएं एवं प्रभाव रेखाएं और उनका फल
1. जब विवाह रेखा एकदम स्पष्ट हो और उससे बाल के समान सूक्ष्म रेखाएं हृदय रेखा की ओर गिरती हुई प्रतीत हों, तो जातक के जीवन-साथी की अस्वस्थता की सूचक होती हैं।
2. जब विवाह रेखा अपने अन्त में दो शाखाओं में विभाजित हो जाये और उसकी एक शाखा करतल के मध्य या मंगल के मैदान की ओर पहुंच जाये तो आपस में तलाक़ हो जाता है।
3. विवाह रेखा का अन्त में दो शाखाओं में विभक्त होना वैवाहिक सम्बन्धों के विच्छेदित होने का संकेत माना जाता है। ऐसी स्थिति में विवाह रेखा से निकलने वाली अधोगामी शाखा यदि हृदय रेखा की ओर नीचे झुकी हो, तो यह समझना चाहिए कि सुखहीन वैवाहिक सम्बन्ध जातक के क्रूर व्यवहार और हृदयहीनता के कारण समाप्त हो जायेगा ।
4. यदि विवाह रेखा के आरम्भ में दो शाखाएं हों, तो जातक के दोष के कारण वैवाहिक सम्बन्ध टूट जाता है या पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं, किन्तु उसमें जातक की कोई गलती नहीं होती है। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । यदि विवाह रेखा के आरम्भ और अन्त में दोनों ओर शाखाएं हों, तो कहीं दूर यात्रा में चले जाने से पति-पत्नी एक-दूसरे से काफ़ी दिनों के लिए अलग हो जाते हैं और वियोग पीड़ा सहते हैं, किन्तु वैधानिक तौर पर एक-दूसरे से अलग नहीं होते।
5. यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो जाये और एक अलग रेखा सूर्य रेखा में बने हुए द्वीप चिह्न तक जाये, तो जातक के पद और प्रतिष्ठा की हानि होती है और वैवाहिक सम्बन्ध कलंकपूर्ण परिस्थितियों में समाप्त होता है। जातक की मान-प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगता है।
6. यदि विवाह रेखा से निकलकर कोई शाखा मस्तिष्क रेखा में मिल जाये, तो जातक और उसके जीवन-साथी में गम्भीर मतान्तर के कारण वैवाहिक सम्बन्धों का दुःखद अन्त होता है।
7. जब विवाह रेखा द्वीप चिह्नों से भरी हुई हो और उसमें से सूक्ष्म रेखाएं नीचे की ओर गिर रही हों, तो ऐसी रेखा वाले जातक को कभी विवाह नहीं करना चाहिए। ऐसे चिह्नों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन अत्यन्त दुखी होता है। जब रेखा द्वीप चिह्नों से भरी हो और अन्त में दो शाखाओं में विभक्त हो जाये, तो वैवाहिक जीवन अत्यन्त दुःखद होता है।
8. यदि विवाह रेखा से निकलने वाली कोई ऊर्ध्वगामी रेखा सूर्य क्षेत्र में प्रवेश करे या सूर्य रेखा को स्पर्श करे, तो जातक विशिष्ट व्यक्ति से विवाह करता है। विवाह ही उसकी प्रतिष्ठा का कारण बनता है। ऐसा विवाह अनुपयुक्त होता है।
9. यदि विवाह रेखा की कोई अधोगामी शाखा सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक विवाह के बाद अपना पद खो बैठता है व उसकी प्रतिष्ठा में हानि होती है।
10. यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो और मंगल के मैदान में निकलने वाली प्रभाव रेखा जो भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा को काटती हुई ऊपर उठे तथा विवाह रेखा को भी काट दे , तो वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। यदि ऐसी प्रभाव रेखा द्वीप चिह्नयुक्त हो, तो विवाह विच्छेदित होने का कारण अनुचित व छलकपट की भावना होती है।
11. यदि शुक्र क्षेत्र से उठने वाली प्रभाव रेखा विवाह रेखा को बुध क्षेत्र में जाकर काट दे, तो जातक के परिवार वालों व रिश्तदारों के प्रभाव के कारण उसके वैवाहिक जीवन में दिक्कतें उत्पन्न होती हैं ।
12. यदि शुक्र क्षेत्र से उठने वाली प्रभाव रेखा जीवन रेखा की ऊर्ध्वगामी शाखा को काटती हुई बुध क्षेत्र में जाकर विवाह रेखा को काट दे, तो क़ानूनी ढंग से तलाक़ मंज़ूर हो जाता है, किन्तु इसके पहले अदालती कार्रवाई चलती है। इस तलाक़ का कारण भी परिवार का हस्तक्षेप होता है।
13. यदि एक पतली रेखा विवाह रेखा के निकट और समानान्तर हो, तो जातक का किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम सम्बन्ध था और विवाह के बाद भी बना रहेगा।
14. यदि कनिष्ठिका के मूलस्थान से कोई लम्बवत् रेखा आकर विवाह रेखा को काट दे, तो जातक के विवाह में अन्य लोगों के विरोध के कारण बहुत बाधाएं आती हैं।
15. यदि कोई बहुत पतली रेखा, विवाह रेखा को लगभग स्पर्श करती हुई, उसके समानान्तर चलती हो, तो जातक विवाह के पश्चात् अपने जीवन-साथी को बहुत प्यार करता है।
16. यदि बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा पुष्टता से अंकित हो और कोई प्रभाव रेखा चन्द्र क्षेत्र से आकर भाग्य रेखा से मिले, तो जातक विवाह के बाद धनवान् हो जाता है, परन्तु जब प्रभाव रेखा चन्द्र क्षेत्र पर पहले सीधी चढ़ जाये और फिर मुड़कर भाग्य रेखा से मिले, तो विवाह सम्बन्ध में सच्चे प्रेम की भावनाएं नहीं होती है, बल्कि दिखावा मात्र होता है। जब प्रभाव रेखा भाग्य रेखा से अधिक बलवती हो, तो जातक का व्यक्तित्व अपने प्रेमी के व्यक्तित्व की अपेक्षा निम्न स्तर का या कमज़ोर होता है, जिससे वह आजीवन दब्बू बना रहता है।
पढ़ें - विवाह रेखा का अर्थ हस्तरेखा
दोहरी विवाह रेखाएं का फल
व्यवहार में यह देखा गया है कि अधिकांश व्यक्तियों के हाथों में एक से अधिक विवाह रेखाएं मौजूद रहती हैं, फिर भी सामान्यतः उनकी एक ही शादी होती है। यह आवश्यक नहीं है कि हाथ में स्वस्थ विवाह रेखा हो, तो उपयुक्त शादी हो जायेगी, किन्तु जितनी रेखाएं बुध क्षेत्र में होती हैं, वे सब प्रेम और आकर्षण को अवश्य प्रकट करती हैं। इसलिए एक या एक से अधिक विवाह रेखाओं की उपस्थिति को अन्य प्रभाव रेखाओं के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित करना चाहिए। विवाह सम्बन्धों की पुष्टि के लिए मात्र विवाह रेखाओं पर ही निर्भर रहना उचित नहीं है।
इसके अतिरिक्त विवाह रेखाएं मूलतः अनुराग रेखाएं होती हैं, जो जातक के आकर्षण, अनुराग व प्रेमपूर्ण सम्बन्धों को प्रकट करती हैं। विवाह रेखाओं के होने मात्र से विवाह होना सम्भव नहीं है, किन्तु आकर्षण या प्रेम अवश्य होता है। यही कारण है कि जिन लोगों का विवाह हो जाता है, वे फिर भी वैवाहिक सम्बन्धों के प्रति उदासीन रहते हैं, उनके हाथों में विवाह के बावजूद विवाह रेखाएं नहीं होती हैं।
इसके विपरीत कई लोगों से अनुरागात्मक सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों के हाथों में कई विवाह रेखाएं होती हैं, किन्तु व्यवहार में उनकी शादी नहीं होती या मात्र एक ही होती है इसलिए दोहरी विवाह रेखाओं या एक से अधिक विवाह रेखाओं के होने पर वैवाहिक सम्बन्धों की संख्या का निर्णय शुक्र क्षेत्र, चन्द्र क्षेत्र व जीवन रेखा से निकलने वाली अन्य प्रभाव रेखाओं के आधार पर करना चाहिए। यदि सहायक लक्षण न हों, तो विवाह रेखाओं को आकर्षण, प्रेम या अनुराग रेखा मानना चाहिए ।
यदि बुध क्षेत्र में दो विवाह रेखाएं मौजूद हों और भाग्य रेखा से निकलकर उनकी एक शाखा हृदय रेखा में मिल जाए तो जातक की दूसरी शादी होती है । इसी प्रकार अन्य प्रभाव रेखाओ के आधार पर विवाह संबंधों की संख्या व समय का स्पष्ट पता लगता है ।
विवाह रेखाओं के दोष और उनका फल
1. विवाह रेखा का खण्डित होना : यदि विवाह रेखा अचानक खण्डित हो जाये, तो वैवाहिक सम्बन्ध अचानक टूट जाता है, किन्तु यदि उसके बाद रेखा स्पष्ट हो और दोनों टुकड़े एक-दूसरे के ऊपर हों, तो सम्बन्ध विच्छेद होता है, किन्तु बाद में पति-पत्नी के बीच समझौता हो जाता है।
यदि विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर मुड़ गयी हो और मोड़ में अचानक खण्डित हो, तो जातक के जीवन-साथी की बीमारी के कारण मृत्यु हो जाती है।
2. विवाह रेखा से निकलती हुई शाखाएं : यदि विवाह रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं ऊपर की ओर उठ रही हों, तो भारतीय परम्परा में इसे सौतन योग नाम दिया गया है, अर्थात् जिस महिला के हाथ में ऐसी रेखाएं हों, उसकी अनेक सौतें होती हैं। जितनी संख्या में रेखाएं ऊपर उठ रही हों, उतनी ही उसकी सौतें होती हैं। आधुनिक परम्परा में ऐसी रेखाओं को जातक के जीवन- साथी के प्रेम और आकर्षण के विभाजन की रेखाएं स्वीकार किया गया है। यदि आप भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट के लिखे लेख पढ़ना चाहते है तो उनके पामिस्ट्री ब्लॉग को गूगल पर सर्च करें "ब्लॉग इंडियन पाम रीडिंग" और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी रेखाएं होंगी, उसके जीवन-साथी का आकर्षण और प्रेम मात्र जातक तक ही सीमित न रहकर और अन्य लोगों के बीच विभाजित होगा। यदि विवाह रेखा से ऐसी शाखाएं हृदय रेखा की ओर गिर रही हों, तो जीवन- साथी का स्वास्थ्य हमेशा ख़राब रहता है।
3. आड़ी रेखाओं से कटी हुई विवाह रेखा : विवाह रेखा को काटने वाली आड़ी रेखाएं आपसी सम्बन्धों के टूटने, अवरुद्ध होने या जीवन-साथी के अस्वस्थ होने अथवा उसकी दुर्घटना का संकेत देती हैं, जिनकी वजह से वैवाहिक जीवन में अनावश्यक दिक्कतें उत्पन्न होती हैं।
4. बुध क्षेत्र पर अंकुश की तरह मुड़ी हुई विवाह रेखा : यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र तक जाये और वहां पर अंकुश की तरह नीचे की ओर मुड़ जाये, तो ऐसा व्यक्ति किसी से प्रेम नहीं कर पाता अथवा वह जिससे प्रेम करता है, वही उससे प्रेम नहीं करता। सम्भव है कि ऐसी रेखा महाराज भर्तृहरि के हाथों में रही होगी। इसलिए उन्होंने कहा है-
यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता ।
साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्त ।
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या ।
धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां च ।।
अर्थात् जिस स्त्री का मैं (भर्तृहरि) चिन्तन करता हूं, वह (रानी पिंगला) मुझसे विरक्त है, वह दूसरे पुरुष (अश्वपति) को चाहती है और वह (अश्वपति) अन्य स्त्री (वेश्या) को चाहता है और हमारे लिए यह गणिका-जिसे अश्वपति चाहता है- ही पुरितुष्टि प्रदान करती है। इसलिए उस स्त्री को, उस पुरुष को, कामदेव को, इस स्त्री को और मुझको धिक्कार है।
विवाह रेखा में विभिन्न चिह्न और उनका फल
1. द्वीप चिह्न : यदि विवाह रेखा के अन्त में और अंगूठे के मूल में द्वीप चिह्न स्पष्ट अंकित हो, तो जातक का विवाह किसी नज़दीकी रिश्तेदार के साथ होता है।
विवाह रेखा के मध्य में उपस्थित द्वीप चिह्न वैवाहिक जीवन में आने वाली दिक्कतों का संकेत देते हैं ।
2. क्रास चिह्न : क्रास चिह्न सम्बन्ध विच्छेद या मृत्यु होने का संकेत देते हैं। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़ गयी हो और उसके अन्त में क्रास चिह्न हो, तो जीवन-साथी की मृत्यु हो जाती है। विवाह रेखा को स्पर्श करता हुआ ऊपर की ओर स्थित क्रास चिह्न गर्भपात का संकेत है।
3. बिन्दु चिह्न : विवाह रेखा पर काले रंग का बिन्दु चिह्न हो, तो जातक के जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है।
4. नक्षत्र चिह्न : यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र तक पहुंचे और वहां पर नक्षत्र चिह्न हो, तो जातक का विवाह उच्च कुल में होता है और मान-प्रतिष्ठा तथा बहुत अधिक धन का लाभ होता है।
यदि विवाह रेखा में नक्षत्र चिह्न हो, तो जीवन-साथी की मृत्यु के कारण जातक के जीवन में अंधेरा छा जाता है और अत्यन्त आत्मिक कष्ट होता है।
यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका मूल की ओर मुड़ी हुई हो और उसके अन्त में नक्षत्र चिह्न हो, तो प्रेम सम्बन्धों का विमोह भंग हो जाता है। जातक अपने प्रेमी की कलुषित भावनाओं को सत्य रूप में जान लेता है और उसका मोह भंग हो जाता है।
5. वर्ग चिह्न : विवाह रेखा के ऊपर बना हुआ वर्ग चिह्न विवाह में होने वाली परेशानियों के दुष्प्रभाव को कम करता है।