प्रतिभा रेखा, सफलता रेखा, यश रेखा, धर्म रेखा, पुण्य रेखा, विद्या रेखा, विवेक रेखा, ज्ञान रेखा, प्रतिष्ठा रेखा एवं ऐश्वर्य रेखा

 

प्रतिभा रेखा, सफलता रेखा, यश रेखा, धर्म रेखा, पुण्य रेखा, विद्या रेखा, विवेक रेखा, ज्ञान रेखा, प्रतिष्ठा रेखा एवं ऐश्वर्य रेखा हस्तरेखा
हस्तरेखा में सूर्य रेखा एक ऊर्ध्वगामी रेखा है, जो सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होती है। इसे Line of the Sun, Line of Success, Line of Brilliancy, Line of Apollo, प्रतिभा रेखा, सफलता रेखा, यश रेखा, धर्म रेखा, पुण्य रेखा, विद्या रेखा, विवेक रेखा, ज्ञान रेखा, प्रतिष्ठा रेखा एवं ऐश्वर्य रेखा आदि नामों से भी जाना जाता है। 

सूर्य रेखा मूलतः भाग्य रेखा की सहायक रेखा है। इसके द्वारा जातक की सफलता, विद्या, विवेक, यश, सौभाग्य, प्रतिष्ठा व आर्थिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। सूर्य रेखा और भाग्य रेखा के विषयों में काफ़ी समानता है। दोनों ही रेखाएं जीवन की प्रगति या सफलता की परिचायक हैं। भाग्य रेखा जातक के आर्थिक भाग्य को निर्धारित करती है, किन्तु सूर्य रेखा प्रतिष्ठापूर्ण भाग्योदय की परिचायक है, अर्थात् सूर्य रेखा का सम्बन्ध भी भाग्य रेखा की तरह भाग्य से ही है।

अन्तर केवल इतना है कि सूर्य रेखा भौतिक समृद्धि की अपेक्षा यश, कीर्ति, मान व प्रतिष्ठामूलक भाग्य पर विशेष रूप से केन्द्रित होती है, जबकि भाग्य रेखा भौतिक जीवन की प्रगति का निदर्शन कराती है। 

पढ़ें - सूर्य रेखा का अर्थ तथा  पूरा विवरण

सूर्य रेखा को बार रेखा (छोटी आडी रेखा) द्वारा काटा जाना | Hast Rekha Gyan

सूर्य रेखा को बार रेखा (छोटी आडी रेखा) द्वारा काटा जाना  | Hast Rekha Gyan


सूर्य रेखा को बार रेखा (छोटी आडी रेखा) द्वारा काटा जाना  

जब भी सूर्य रेखा को कोई आडी रेखा काट देती है तो यह ईर्ष्या का संकेत है।  यदि बार रेखा पतली है तो ईर्ष्या के कारण हस्तछेप मामूली रहेगा लेकिन यदि बार रेखा गहरी है तो ऐसे ईर्ष्या व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकती है। 

यदि  बार रेखा एक से अधिक है (आड़ी तिरछी) तो व्यक्ति से ईर्ष्या करने वाले अधिक रहेंगे और वह हमेशा ईर्ष्या करने वाले शत्रुओ का निशाना बनता रहेगा।  इस ही वजह से व्यक्ति की तरक्की नहीं हो पाती है और जीवन में अधिक  रुकावट आती है क्युकी दुश्मन समय-समय पर नुकसान पहुंचाते रहते है। 

वह बहुत बार ऐसे व्यक्ति का ध्यान किसी भी एक कार्य में केंद्रित नहीं होता है इस वजह से उसको असफलता का मुँह देखना पड़ता है। 

इसके लिए व्यक्ति को गेहू का दान करना चाहिए और  सूर्य देवता की पूजा करनी चाहिए और माणक धारण करना चाहिए। 



सूर्य रेखा का अर्थ तथा पूरा विवरण ( Surya Rekha/Sun Line ) | Hast Rekha Gyan


surya rekha sun line
सूर्य रेखा (The Line of The Sun)

सूर्य रेखा ऊर्ध्वगामी रेखा है, जो सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होती है। इसे Line of the Sun, Line of Success Line of Brilliancy, Line of Apollo, प्रतिभा रेखा, सफलता रेखा, यश रेखा, धर्म रेखा, पुण्य रेखा, विद्या रेखा, विवेक रेखा, ज्ञान रेखा, प्रतिष्ठा रेखा एवं ऐश्वर्य रेखा आदि नामों से भी जाना जाता है। सूर्य रेखा मूलतः भाग्य रेखा की सहायक रेखा है। इसके द्वारा जातक की सफलता, विद्या, विवेक, यश, सौभाग्य, प्रतिष्ठा व आर्थिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। सूर्य रेखा और भाग्य रेखा के विषयों में काफ़ी समानता है। दोनों ही रेखाएं जीवन की प्रगति या सफलता की परिचायक हैं। भाग्य रेखा जातक के आर्थिक भाग्य को निर्धारित करती है, किन्तु सूर्य रेखा प्रतिष्ठापूर्ण भाग्योदय की परिचायक है, अर्थात् सूर्य रेखा का सम्बन्ध भी भाग्य रेखा की तरह भाग्य से ही है।


अन्तर केवल इतना है कि सूर्य रेखा भौतिक समृद्धि की अपेक्षा यश, कीर्ति, मान व प्रतिष्ठामूलक भाग्य पर विशेष रूप से केन्द्रित होती है, जबकि भाग्य रेखा भौतिक जीवन की प्रगति का निदर्शन कराती है।  सूर्य रेखा के प्रभाव एवं गुणों में भी हाथ की बनावट के अनुसार भिन्नता आ जाती है। ऐसा देखा गया है कि दार्शनिक, कोनिक और अत्यन्त नुकीले हाथों में यह स्पष्ट और गहरे रूप से अंकित होती है, किन्तु ऐसे हाथों में उतनी प्रभावशाली नहीं होती, जितनी कि वर्गाकार, चमसाकार या निम्न श्रेणी के हाथों में होती है।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । इसलिए सूर्य रेखा की प्रकृति व प्रभाव आदि का विश्लेषण करते समय हाथ की बनावट का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। भाग्य रेखा के गुणों और प्रभावों का समुचित लाभ तभी मिलता है, जब मस्तिष्क रेखा और अंगूठा सबल हो तथा हाथ के अन्य लक्षण भी अनुकूल हों, अन्यथा यह प्रभावहीन हो जाती है।

अभी सिर्फ लेख प्रकाशित किया जा रहा है लेकिन चित्र जल्दी ही प्रकाशित किये जायेँगे।

(1) सूर्य रेखा का आरम्भ - हस्तरेखा विज्ञान विश्वकोश

1. शुक्र क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा: यदि सूर्य रेखा का आरम्भ जीवन रेखा के भीतर शुक्र क्षेत्र से हो (चित्र-581), तो जातक का आरम्भिक जीवन घर-परिवार वालों के प्रभाव में गुजरता है। उसे अपने आरम्भिक जीवन में घर-परिवार द्वारा संचित सामाजिक प्रतिष्ठा का लाभ मिलता है।

2. जीवन रेखा से निकलने वाली सूर्य रेखा : जीवन रेखा से निकलने वाली सूर्य रेखा (चित्र-582) कलाप्रियता, साहित्यिक अभिरुचि और व्यक्तिगत प्रयासों से अर्जित सफलता की परिचायक होती है। यदि अंगुलियां लम्बी हों, तो जातक पूर्ण रूप से सौन्दर्योपासक होगा। ऐसे लोग घर-परिवार से सहायता प्राप्त कर स्वयं को योग्य बनाते हैं और इच्छित क्षेत्र में सफल होते है। वे जीवन, व्यवसाय, विवाह व स्वास्थ्य के मामले में खुशनसीब होते हैं।

3. नेप्च्यून क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ नेप्च्यून क्षेत्र से हो (चित्र-583), तो बौद्धिक योग्यता, ख्याति और समृद्धि प्रदान करती है, किन्तु यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मणिबन्ध की तीसरी अन्तिम रेखा से हो, तो इन गुणों में कमी आ जाती है।

4. चन्द्र क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा चन्द्र क्षेत्र से निकले (चित्र-584), तो विशिष्टता और सफलता दूसरों के ऊपर निर्भर होती है, किन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि ऐसी रेखा वाले जातकों को अपनी योग्यता के अनुसार ही सफलता मिलती है। ऐसे लोग जनता के सम्पर्क में रहने के कारण लोकप्रिय होते हैं और अपने परिवार के बाहर के लोगों से उन्हें सहायता मिलती है।प्रायः महिलाओं की सहायता से भी उन्हें उन्नति मिलती है। यह योग नेताओं, अभिनेताओं व कलाकारों के हाथों में पाया जाता है।

5. निम्न मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा निम्न मंगल क्षेत्र से निकले (चित्र-585), तो जातक को बहुत कठिन परिश्रम से ही सफलता मिलती है। सौभाग्य ऐसी रेखा वालों की बिलकुल सहायता नहीं करता और न ही उन्हें विरासत में धन, सम्पत्ति व जमीन-जायदाद का लाभ होता है।

6. उच्च मंगल क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ उच्च मंगल क्षेत्र से हो (चित्र-586), तो जातक को शौर्य-प्रदर्शन के क्षेत्र में सफलता मिलती है। वह सेना में उच्च पद प्राप्त करके मान व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

7.मंगल के मैदान से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मंगल के मैदान यानी करतल के मध्य से हो (चित्र-587), तो जातक को अत्यन्त परिश्रम, विकट कठिनाइयों और संघर्षों के पश्चात् सफलता मिलती है। ऐसी रेखा वाले लोग जीवन के आरम्भिक दिनों में असहाय स्थिति में रहते हैं। उनका आरम्भिक जीवन गुमनामी व गरीबी की विकट परिस्थितियों से गुजरता है कि उनके भीतर आत्मचेतना होती है। भाग्य की भीषण आंधी भी उनकी महत्त्वाका योग्यता व उत्कण्ठा के चिराग को बुझा नहीं पाती है और पच्चीस से की उम्र होते-होते वे सफलता के सूर्य की तरह चमचमा उठते हैं, फिर भी उनका संघर्ष समाप्त नहीं होता। संघर्ष तो आजीवन चलता रहता है।

8. भाग्य रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा से निकले (चित्र-588), तो यह अत्यन्त शुभ लक्षण माना जाता है। इस योग के भाग्य रेखा से सफलता में वृद्धि होती है और जातक को विशिष्ट ख्याति पदोन्नति और राजयोग की प्राप्ति होती है। इस स्थिति में सफलता अप्रत्याशित, असाधारण और विस्मयजनक ढंग से प्राप्त होती है।

9. मस्तिष्क रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ मस्तिष्क रेखा से हो (चित्र-589), तो जातक को केवल अपनी बौद्धिक योग्यता और निजी प्रयत्नों से सफलता और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, किन्तु यह सफलता उसे पैंतीस वर्ष के बाद जीवन के दूसरे भाग में मिलती है। यह योग लेखकों, वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के हाथों में होता है।

10. हृदय रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का आरम्भ हृदय रेखा से हो (चित्र-590), तो जातक अत्यन्त कलाप्रिय व साहित्यिक अभिरुचि वाला होता है। सौन्दर्य और प्रेम का उसके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी रेखा वाले लोगों को जीवन के अन्तिम भाग में लगभग पचास वर्ष की आयु में सफलता मिलती है। ऐसे लोगों को वृद्धावस्था में सुख मिलता है।

11. बुध रेखा से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा : यदि भाग्य रेखा का आरम्भ बुध रेखा से हो (चित्र-591), तो जातक में व्यापारिक योग्यता होती है। वह व्यापार, विज्ञान एवं वाक्पटुता से सम्बन्धित क्षेत्र में सफल होता है।

12. यूरेनस क्षेत्र से आरम्भ होने वाली सर्य रेखा: इदय व मस्ति रेखा के बीच वृहत् आयत या यूरेनस क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा चित्र-592) जातक के आवेगात्मक स्वभाव की परिचायक होती है, इसलिए हाथ के अन्य लक्षण शुभ होने पर कीर्ति एवं अशुभ होने पर अपकीर्ति मिलती है। जिन व्यक्तियों के हाथों में ऐसी रेखा मौजूद होती है, वे चालीस से पैंतालीस वर्ष की आयु में सफलता प्राप्त करते हैं, लेकिन उनकी सफलता कठिन परिश्रम, बौद्धिक योग्यता और आत्मविश्वास का परिणाम होती है।

13. विभिन्न क्षेत्रों से आरम्भ होने वाली सूर्य रेखाएं : भाग्य रेखा की तरह सूर्य रेखा भी ऊर्ध्वगामी रेखा है। करतल की किसी भी रेखा या क्षेत्र से निकलकर सूर्य क्षेत्र की ओर जाने वाली रेखाएं सूर्य रेखा कहलाती हैं। ऐसी रेखाओं का होना अत्यन्त शुभ और सौभाग्यशाली लक्षण है।

14. हृदय रेखा के ऊपर सूर्य क्षेत्र से निकलने वाली सूर्य रेखा: यदि सूर्य रेखा हृदय रेखा के ऊपर सूर्य क्षेत्र में अंकित हो, तो जीवन में सुख और सफलता इतने विलम्ब से मिलती है कि उसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता (चित्र-593)।

(2) सूर्य रेखा का समापन

1. त्रिशूल चिह्न में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा सूर्य क्षेत्र में त्रिशुल की आकृति की तरह समाप्त हो (चित्र-594), तो धन, यश द मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

यदि ऐसी सूर्य रेखा की तीनों शाखाएं विभिन्न क्षेत्रों-बुध, शनि व सूर्य क्षेत्र की ओर चली जायें और समान रूप से स्पष्ट हों (चित्र-595), तो बहुत अधिक धनलाभ होता है और यश भी मिलता है। इस योग में शनि क्षेत्र के प्रभाव से अचल सम्पत्ति, भूमि व मकान आदि भी प्राप्त होता है।

यदि सूर्य रेखा के अन्त में सूर्य क्षेत्र में त्रिशूल हो और उसकी दोनों बाहरी शाखाएं अन्दर की ओर लौटकर झुक जायें (चित्र-596), तो यह योग अशुभ फल देता है तथा धनहानि और असफलता का सामना करना पड़ता है।

2. अत्यन्त पतली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने आरम्भिक स्थान पर मोटो हो और समापन स्थान की ओर जैसे-जैसे बढे, वैसे-वैसे पतली होती जाये तथा अन्त में अत्यन्त क्षीण हो जाये (चित्र-597) तो उसका प्रभाव भी धीरे-धीरे समाप्त होता रहता है। ऐसी रेखा उम्र की वृद्धि के साथ सतत घटने वाले जातक के यश, धन और प्रभाव की परिचायक होती है।

3. बहुत सी रेखाओं के रूप में सूर्य रेखा का समापन : यदि सूर्य रेखा अपने मापन स्थान पर अनेक छोटी-छोटी शाखाओं (गोपुच्छाकार) में विभक्त हो जाये (चित्र-598), तो वह अपना प्रभाव खो देती है, क्योंकि जातक की रुचि किसी एक विषय पर केन्द्रित न होकर अनेक विषयों की ओर परिवर्तित होगी, जिससे उसकी सफलता सन्दिग्ध हो जायेगी।

4. बिन्दु चिह्न पर समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि भाग्य रेखा का अन्त किसी स्पष्ट व गहरे बिन्दु चिह्न पर हो (चित्र-599), तो उसकी सफलता और समृद्धि अन्त में धूल में मिल जाती है।

5. गहरी आड़ी रेखा में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि भाग्य रेखा के अन्त में गहरी आड़ी रेखा हो (चित्र-600), तो जातक के जीवन की प्रगति अचानक अवरुद्ध हो जाती है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

6. सूर्य रेखा के अन्त में दो समानान्तर रेखाएं : यदि सूर्य रेखा सूर्य क्षेत्र तक जा पहुचे और उसके अगल-बगल दो समानान्तर सीधी रेखाएं भी उपस्थित हों (चित्र-601), तो यश और अति विशिष्ट सफलता की प्राप्ति होती है।

यदि इस योग में सहायक रेखाएं लहरदार हों (चित्र-602), तो रेखाओं का शुभ प्रभाव कम हो जाता है और व्यक्ति की प्रतिभा का सदुपयोग नहीं होता तथा उसके विचार अस्थिर और भ्रमित हो जाते हैं।

7. सूर्य रेखा के अन्त तक समानान्तर चलती प्रभाव रेखाएं : शुक्र या चः क्षेत्र से निकलकर सूर्य रेखा के समानान्तर सूर्य क्षेत्र की ओर जाने वाली रेखाएं (चित्र-603) उत्तरदान या वसीयत में प्राप्त सम्पत्ति का संकेत देती चन्द्र क्षेत्र की प्रभाव रेखा अप्रत्याशित रूप से मिली वसीयत की और शुक्र क्षेत्र की प्रभाव रेखा रिश्तेदारों से मिली वसीयत की पुष्टि करती है।

8. बृहस्पति क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने मूल स्थान से मुड़कर बृहस्पति क्षेत्र में समाप्त हो (चित्र-604), तो अधिकार और नेतृत्व (राजनीति) के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। इस प्रकार का योग बहुत कम हाथों में पाया जाता है।

9. शनि क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा शनि क्षेत्र की ओर मुड़कर समाप्त हो (चित्र-605), तो यह एक अशुभ योग माना जाता है, क्योंकि प्रतिभा का स्थान सूर्य क्षेत्र है और शनि क्षेत्र निराशा की भावना को जन्म देता है। इसलिए कार्य के प्रति उत्साह की अपेक्षा निराशा की भावना विकसित होने लगती है। फलतः जातक को सफलता मिलती भी है, तो वह सूर्य क्षेत्र पर पहुंचने वाली सूर्य रेखा की अपेक्षा बहुत कम होती है।

10. बुध क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा बुध क्षेत्र पर समाप्त हो चित्र-606). तो जातक हर कार्य धन-प्राप्ति के दृष्टिकोण से करता है। ऐसे लोग ख्याति की अपेक्षा धन को अधिक महत्त्व देते हैं। वे भौतिकतावादी विचारों के होते हैं और व्यापार में अत्यन्त सफल होते हैं।

11. दो लहरदार शाखाओं के रूप में सूर्य रेखा का अन्त : यदि सूर्य रेखा का अन्त दो लहरदार शाखाओं के रूप में हो (चित्र-607), तो जातक की सारी महत्त्वाकांक्षाएं मिट्टी में मिल जाती हैं।

12. सूर्य क्षेत्र में समाप्त होने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा का समापन सूर्य क्षेत्र में हो (चित्र-608), तो जातक अत्यन्त संवेदनशील, कलात्मक अभिरुचि वाला एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होता है। यदि ऐसी रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा सीधी हो व अंगूठा भी दृढ़ हो, तो जातक यश, धन, उच्च पद व सम्मान प्राप्त करता है।

13. सूर्य रेखा के अन्त में नक्षत्र चिह्न : यदि सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होने वाली सूर्य रेखा के अन्त में नक्षत्र चिह्न हो (चित्र-609), तो जातक को धन, प्रसिद्धि व मान-सम्मान सब कुछ मिलता है, किन्तु उसके मन में शान्ति नहीं होती। उसे अपने कार्यों में सफलता काफ़ी विलम्ब से मिलती है। तब तक उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। जब धन, यश प्राप्त होता है, तब मन की शान्ति और शारीरिक सुख समाप्त हो जाता है। सूर्य क्षेत्र का नक्षत्र चिह्न विपुल धन व भौतिक वैभव देता है, किन्तु मन की शान्ति, तृप्ति और चैन हर लेता है।

3. सूर्य रेखा की शाखाएं

1. यदि सूर्य रेखा में ऊपर की ओर उठती हुई कई शाखाएं हों, जिससे उसका स्वरूप वृक्ष की तरह बन गया हो (चित्र-610), तो यह असाधारण सफलता का चिह्न है। सौभाग्य ऐसे लक्षण वाले लोगों के चरण चूमता है।

2. सूर्य रेखा से निकलकर नीचे की ओर जाने वाली शाखाएं (चित्र-611) असफलता, निराशा तथा अवनति की सूचक होती हैं।

3. यदि सूर्य रेखा अपने समाप्ति-स्थान पर दो शाखाओं में विभक्त हो गयी हो और दोनों ही शाखाएं स्पष्ट, गहरी और सूर्य क्षेत्र में मौजूद हों, तो जातक को किन्हीं दो क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सफलता मिलती है (चित्र-612)। ऐसी रेखा वाले व्यक्तिं एक से अधिक क्षेत्रों में काम करने की योग्यता रखते हैं।

4. यदि सूर्य रेखा से एक से अधिक दोषयुक्त, टूटी-फूटी या लहरदार व कटी हुई ऊर्ध्वगामी शाखाएं निकल रही हों (चित्र-613), तो एकाग्रता की कमी के कारण कलात्मक एवं बौद्धिक कार्यों में जातक को असफलता का सामना करना पड़ेगा।

5. यदि सूर्य रेखा के अन्तिम बिन्दु से निकलने वाली एक शाखा बुध क्षेत्र की ओर तथा दूसरी शनि क्षेत्र को जाये (चित्र-614), तो जातक में विवेक, बुद्धि और चतुराई के गुणों का सम्मिश्रण होता है, जिसके बल पर जातक यश और समृद्धि प्राप्त करता है। ऐसी रेखा वाले व्यक्ति सन्तुलित विचारों के होते हैं।

6. यदि सूर्य रेखा से निकलने वाली कोई शाखा बुध क्षेत्र की ओर जाये (चित्र-615), तो बुध क्षेत्र के गुणों से जातक का स्वभाव प्रभावित होता है। वह विज्ञान व व्यापार के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। उसमें चतुराई, व्यापारिक योग्यता व वैज्ञानिक बुद्धि होती है।

7. यदि सूर्य रेखा की कोई ऊर्ध्वगामी रेखा शनि क्षेत्र में चली जाये (चित्र-616), तो गम्भीर अध्ययन, अनुसन्धान एवं निगूढ़ विद्याओं के क्षेत्र में जातक सफलता प्राप्त करता है।

8. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा चन्द्र क्षेत्र में प्रवेश करती हो (चित्र-617) तो जातक की कल्पना शक्ति बढ़ जाती है। उसे साहित्य, संगीत, मनोविज्ञान, रहस्य विज्ञान व निगूढ़ विद्या के क्षेत्रों में सफलता मिलती है। ऐसे लोग विदेशयात्रा या विदेश व्यापार में भी सफल होते हैं।

9. सर्य रेखा से निकलकर उच्च मंगल के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सर्य रेखा की शाखा जातक को आत्मविश्वास, आत्मस्वतन्त्रता और बहादुरी का गुण प्रदान करती है (चित्र-618), जिससे वह सेना या शौर्य-प्रदर्शन के क्षेत्रों में सफल होता है।

10. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा शुक्र क्षेत्र में प्रवेश करे (चित्र-619), तो जातक कलात्मक और स्निग्ध भावनाओं से सम्बन्धित विषयों की ओर आकृष्ट होता है। ऐसे लोग ललित कलाओं के प्रति विशेष दिलचस्पी रखते है।

11. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा भाग्य रेखा से मिल जाये (चित्र-620), तो यह एक अत्यन्त भाग्यवर्धक योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक को अप्रत्याशित सफलता के साथ-साथ विशिष्ट सम्मान भी मिलता है।

12 यदि सूर्य रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाये, तो बौद्धिक कार्यों में सफलता की सम्भावना रहती है (चित्र-621)। ऐसी रेखा वाले लोग बुद्धिजीवी होते हैं।

13. यदि सूर्य रेखा की शाखा हृदय रेखा से मिलती हो (चित्र-622), तो जातक को उसके प्रेम सम्बन्धों के कारण सम्मान मिलता है। वह अपने प्रेम सम्बन्धों का उपयोग कर सफलता प्राप्त करता है।

14. यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा बुध रेखा से मिल जाये (चित्र-623), तो व्यापार एवं वाक्पटुता से सम्बन्धित क्षेत्रों में सफलता मिलती है और जातक को सम्मान तथा धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोग विज्ञान व चिकित्सा के क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं और धन तथा यश प्राप्त करते हैं।

4. भाग्य रेखा एवं सूर्य रेखा का आपसी सम्बन्ध

यह पहले ही बताया जा चुका है कि भाग्य रेखा और सूर्य रेखा दोनों ही सफलता प्रदान करने वाली रेखाएं हैं, किन्तु भाग्य रेखा धन और जीवन-वृत्ति की सफलता का बोध कराती है, जबकि सूर्य रेखा मान, प्रतिष्ठा व प्रमुखता की अचानक व अप्रत्याशित वृद्धि करती है। जिस प्रकार सूर्य के निकलने से सम्पूर्ण अंधेरा व टिमटिमाते हुए तारे, यहां तक कि चन्द्रमा भी क्षीण और निर्बल हो जाता है, उसी प्रकार सूर्य रेखा की उपस्थिति से जातक की भाग्य रेखा में वर्णित भाग्य भी जीवन की विषमताओं व अंधेरों को नष्ट करता हुआ अचानक क्षितिज में चमक उठता है और जातक के ऊपर अनायास ही सबकी निगाहें पड़ने लगती हैं। उसकी कीर्ति व यशगाथाएं सूर्य की किरणों की भांति शीघ्र ही सर्वत्र बिखर जाती हैं।

सूर्य रेखा का समुचित विस्तार एवं उपस्थिति बहुत कम हाथों में देखने को मिलती है। अधिकांश हाथों में सूर्य रेखा या तो अनुपस्थित रहती है या अत्यन्त छोटी और अस्पष्ट होती है। सूर्य रेखा उन गरीब लोगों के हाथों में भी गायब रहती है, जिनका अस्तित्व समाज स्वीकार नहीं करता। वे निर्धनता, विपन्नता, विषमता की परिस्थितियों में मात्र अपना पेट-पालन करते हैं। उनके जीवन में कोई चमक-दमक नहीं होती। उनका जीवन मनुष्य का होते हुए भी पशुवत् होता है। इसके विपरीत जिन लोगों के हाथों में सूर्य रेखा होती है, वे प्रसन्नचित्त, उत्साही व आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं।  ये लेख भारत के प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री नितिन कुमार पामिस्ट द्वारा लिखा गया है अगर आप उनके दवारा लिखे सभी लेख पढ़ना चाहते है तो गूगल पर इंडियन पाम रीडिंग ब्लॉग को सर्च करें और उनके ब्लॉग पर जा कर उनके लिखे लेख पढ़ें । वे चाहे कलाकार न हों, फिर भी कलाप्रिय अवश्य होते हैं और सुन्दरता के बीच रहना पसन्द करते हैं। कभी-कभी वे भाग्यवश अनेक दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों व संघर्षों का सामना करते हैं, फिर भी अपने कार्यक्षेत्र में प्रमुख, असाधारण, अग्रणी और बहुचर्चित एवं लोकप्रिय होते हैं।

सूर्य रेखा बहुत कम हाथों में होती है, जबकि भाग्य रेखा अधिकांश हाथों में मौजूद रहती है। इसके अलावा दोनों ही रेखाएं ऊर्ध्वगामी और लगभग समान प्रकृति की होती हैं। इसलिए अनेक विद्वानों ने भाग्य रेखा को प्रधान रेखा के रूप में स्वीकार करते हुए सूर्य रेखा को उसकी सहायक रेखा का दर्जा दिया है। जिस व्यक्ति के हाथ में भाग्य रेखा और सूर्य रेखा दोनों स्पष्ट और सुन्दर हों, निश्चय ही वह समाज और राष्ट्र का अद्वितीय व असाधारण व्यक्ति होगा, परन्तु यदि भाग्य रेखा निर्बल हो तथा सूर्य रेखा शक्तिशाली हो, तो जातक की आर्थिक स्थिति बहुत वैभवपूर्ण नहीं होगी, फिर भी उसका जीवन वैभवपूर्ण और यशस्वी होगा।

यदि भाग्य रेखा अनुपस्थित हो, परन्तु सूर्य रेखा मौजूद हो, तो ऐसी स्थिति में सूर्य रेखा ही भाग्य रेखा का काम करती है और जातक को कोई कमी नहीं होती। यदि सूर्य रेखा बिलकुल न हो, परन्तु भाग्य रेखा प्रबल हो, तो जातक धनी होते हुए भी यशस्वी, लोकप्रिय व वैभवपूर्ण नहीं होगा।

निष्कर्षतः भाग्य रेखा की अपेक्षा सूर्य रेखा की उपस्थिति जीवन की सफलता, यश, वैभव आदि को अधिक सुनिश्चित और सुस्पष्ट करती है। इसलिए कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि वे व्यक्ति, जिनके हाथों में निर्बल भाग्य रेखाएं हों, वे भी सूर्य रेखा के बल पर अपने से अधिक योग्य लोगों से सफलता की बाजी मार ले जाते हैं, जबकि निर्बल सूर्य रेखा और सबल भाग्य रेखा वाले लोग सफलता, सौभाग्य व प्रतिष्ठा के मामले में पीछे रह जाते हैं।

भाग्य रेखा धन उतना नहीं देती, जितना कि मान, प्रतिष्ठा और यश प्रदान करती है। यही कारण है कि अच्छी सूर्य रेखा वाली वेश्या भी अपने क्षेत्र में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करती है। इसलिए सूर्य रेखा का अध्ययन और फलकथन जातक के स्तर, कार्यक्षेत्र व हाथ की बनावट आदि के आधार पर किया जाना चाहिए। वर्गाकार हाथों में छोटी-सी सूर्य रेखा भी सांसारिक सफलताओं, जैसे धन व यश आदि को प्रदान करने में सक्षम होती है। दार्शनिक व कलात्मक हाथों में यह रेखा साहित्य एवं कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट सफलता और यश देती है, जबकि निकृष्ट प्रकार के हाथों में अच्छी सूर्य रेखा भी जातक को चोर, डकैत, हत्यारा, अपराधी व देशद्रोही के रूप में व्यापक स्तर पर कुख्याति दिलाती है, किन्तु इन सब सफलताओं की सीमा को निर्धारित करने के लिए जातक के जीवन-स्तर की स्थिति पर विचार करना बहुत आवश्यक है।

इस सन्दर्भ में विद्वानों का मत है। कि “यदि कोई व्यक्ति संसद् सदस्य है, तो बलवान् सूर्य रेखा उसे मन्त्री या प्रधानमन्त्री भी बना सकती है। यदि कोई अधिकारी है, तो उच्च-से-उच्च पद तक पहुंच सकता है। यदि कोई व्यापारी है, तो वह व्यापार के क्षेत्र में प्रमुख बन सकता है, परन्तु यदि कोई साधारण मजदूर है, तो यही समझना चाहिए कि वह मजदूरों का प्रमुख-मेट या ठेकेदार बन सकता है। यद्यपि ऐसे भी बहुत से उदाहरण पाये जाते हैं, जब फैक्ट्री का एक साधारण कर्मचारी अपनी योग्यता द्वारा उसका स्वामी बन जाता है। कई देशों के ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने अपना कैरियर सड़कों पर समाचार-पत्र बेचकर आरम्भ किया था।

ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सूर्य रेखा का प्रबल प्रभाव अवश्य रहा होगा और हाथ के अन्य लक्षण भी अत्यन्त शुभ रहे होंगे, परन्तु याद रहे कि अत्यन्त संघर्ष के बाद अप्रत्याशित व उत्कृष्ट सफलता प्राप्त करने वालों के हाथों में सूर्य रेखा प्रायः करतल के मध्य मंगल के मैदान से आरम्भ होती है। विश्वविख्यात उद्योगपति हेनरी फोर्ड, अब्राहम लिंकन आदि इसी श्रेणी के व्यक्ति थे।

यदि सूर्य रेखा भाग्य रेखा की अपेक्षा अधिक गहरी और स्पष्ट हो, तो जातक को अपने पुरखों के महान् नाम का बोझ ढोना पड़ता है। सामान्यतः ऐसे लोग, जो अति प्रतिनि अक्तियों के दज होते हैं, उनमें यह क्ष दादा जाता है।

यदि भाग्य रेखा से निकलकर कोई शाखा सूर्य रेखा को स्पर्श करे, तो यह सफल विवाह का संकेत है, किन्तु जब ऐसो शाखा सूर्य रेखा को काटकर आगे निकल जाती है, तो वैवाहिक सम्बन्ध टुट जाता है।

यदि भाग्य रेखा को अगामी शाखा सूर्य रेखा के साथ मिलकर ऊपर को ओर बढने लगे चित्र-624, तो जातक को देना प्रयास, अचानक हो भाग्यवश धनलाभ या सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस लाभ या सौभाग्य को प्राप्त करने में व्यक्ति का अपना कोई व्यक्तिगत प्रयास नहीं होता बङि केसी ते को अन्य किसी अप्रत्याशित घटना या संयोग के कारण भाग्यवश उसे यह असर मिलता है। इस योग में समय की गणना भाग्य रेखा से निकलने वाली शाखा के उदगम स्थान के आधार पर करनी चाहिए।

इसके विपरीत यदि सूर्य रेखा की ऊगामी शाखा भाग्य रेखा से लेकर चित्र-625,तो जातक को मिलने वाली भौतिक सफलता के साथ-साथ विशिष्टता और लोकप्रियता मिलेगी तथा उसके विचारों और कार्यों माजिक आस्था तथा मान्यता प्राप्त होगी। यह एक अत्यन्त सौभाग्यशाली योग है।

सूर्य रेखा भाग्य रेखा की सहायक रेखा होती है। इसलिए जिस अवस्था में भाग्य रेखा टूटी हुई हो, उसी अवस्था में सूर्य रेखा स्पष्ट और सुन्दर हो (चित्र-626), तो जातक का वह जीवनकाल भाग्य रेखा के टूटे रहने पर भी यश और मान से परिपूर्ण होगा। भाग्य रेखा के खण्डित होने पर, उसके पास कोई सहायक समानान्तर रेखा थोड़ी दूर चलकर खण्डित होने के दोष का जितना निवारण करती है, उसकी अपेक्षा स्वतन्त्र व स्पष्ट सूर्य रेखा का काम कहीं अधिक है।

5. सूर्य रेखा की प्रकृति एवं दोहरी रेखाएं

जिन व्यक्तियों के हाथों में सूर्य रेखा होती है, वे अपने चारों ओर के वातावरण के सम्बन्ध में अत्यन्त सचेष्ट होते हैं। वे गन्दे या घुटन उत्पन्न करने वाले वातावरण को पसन्द नहीं करते। यह रेखा कलाप्रिय स्वभाव की परिचायक मानी जाती है। सूर्य रेखा वाले जातकों को वही वातावरण एवं वही वस्तु प्रिय लगती है, जो देखने में सुन्दर हो। जिनके हाथों में सूर्य रेखा नहीं होती, उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि उनकी बैठक की सजावट कैसी है, क़ायदे के परदे लगे हैं या नहीं, कालीन का रंग एवं अन्य सजावट अनुकूल है या नहीं?

यदि अनामिका अंगुली तर्जनी से अधिक लम्बी हो, तो जातक में रिस्क लेने व जुआ खेलने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। यदि सूर्य रेखा सुस्पष्ट हो, तो उसे जुए में सफलता मिलती है और धनलाभ भी होता है, परन्तु यदि अनामिका तर्जनी अंगुली के बराबर हो, तो जातक में यही धुन होगी कि धनी होते हुए भी और धन-संग्रह करता जाये। यदि अनामिका अंगुली असामान्य रूप से लम्बी हो और टेढ़ी-मेढ़ी भी हो, तो जातक किसी भी उपाय से, चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो, धन प्राप्त करने का प्रयास करेगा। यह अशुभ बनावट चोरों और अन्य अपराधियों के हाथों में पायी जाती है, जो धन प्राप्त करने के लिए। भयानक-से-भयानक कर्म कर गुजरते हैं। यदि इस स्थिति में मस्तिष्क रेखा करतल में बहुत ऊंचाई पर स्थित हो और अन्त में ऊपर की ओर मुड़ गयी हो, तो यह अवगुण और भी अधिक बढ़ जाता है।

यदि हाथ में एक से अधिक सूर्य रेखाएं मौजूद हों, तो जातक अत्यन्त कलाप्रिय स्वभाव का होता है। यदि ऐसी दो या तीन रेखाएं एक-दूसरे के बिलकुल समानान्तर हो, तो जातक को दो-तीन क्षेत्रों में सफलता मिलती है (चित्र-627)। निबल और पतली अनेक सर्य रेखाओं की उपस्थिति से विचारधारा और कार्यशक्ति अनेक क्षेत्रों में बंट जाती है, जिससे सफलता की सम्भावना कम हो जाता है। इसलिए अनेक निर्बल रेखाओं की अपेक्षा एक या दो स्पष्ट सूर्य रेखाओं का होना शुभ और उत्तम माना जाता है, किन्तु भाग्य रेखा के सम्बन्ध में सिद्धान्त अलग हैं। 

अकेली शाखाहीन भाग्य रेखा जातक के जीवन में एकरसता लाती है और हानि पहुंचाती है। करतल को मध्य भाग उभरा हुआ हो, तो सूर्य रेखा का प्रभाव बढ़ जाता है, किन्तु यदि करतल के मध्य में गड्डा हो, तो सूर्य रेखा प्रभावहीन हो जाती है।

6. सूर्य रेखा के दोष

1. अस्पष्ट या धुंधली सूर्य रेखा : यदि हाथ में सूर्य रेखा न हो या बिलकुल अस्पष्ट या धुंधली हो, तो जातक कितना भी परिश्रम करे, उसकी योग्यता और विचारों को महत्ता नहीं मिलती।यह सम्भव है कि ऐसे लोग सम्मान के अधिकारी व योग्यतासम्पन्न हों, परन्तु यश से वंचित रह जाते हैं। कभी-कभी ऐसे लोगों की मृत्यु के पश्चात् क़द्र होती है, किन्तु जीवित रहते ये अपनी योग्यता का फल नहीं भोग पाते।

2. गहरी और चौड़ी सूर्य रेखा : गहरी और चौड़ी सूर्य रेखा वाले जातक सुन्दरता के प्रति शीघ्रता से आकृष्ट होते हैं, किन्तु उनमें रचनात्मक कार्य करने की क्षमता कम होती है तथा उनका ध्यान विचलित होता रहता है। उनमें एकाग्रता का अभाव होता है।

3. श्रृंखलाकार सूर्य रेखा : सूर्य रेखा में उपस्थित द्वीप चिह्न जातक की प्रतिष्ठा का नाश कर देता है। श्रृंखलाकार रेखा द्वीप चिह्नों से मिलकर बनी होती है। इसलिए यह सफलता व सौभाग्य को बाधित कर देती है। ऐसी रेखा का न होना ही ठीक है।

4. लहरदार सूर्य रेखा : लहरदार सूर्य रेखा (चित्र-629) विचारों और लक्ष्यों के प्रति जातक के अस्थिर विचारों को प्रकट करती है। यदि ऐसी रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और अंगूठा श्रेष्ठ हो, तो सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है।

5. अनामिका के तीसरे पर्व तक जाने वाली सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अपने समापन स्थान को पार करती हुई अनामिका के तीसरे पर्व में प्रवेश कर जाये (चित्र-630), तो जातक प्रतिष्ठा के लिए अतिवादी स्वभाव का हो जाता है। उसके लिए जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रतिष्ठा बन जाती है और वह प्रतिष्ठा की प्राप्ति के लिए अपने जीवन की अन्य पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियां भूल जाता है। यहां तक कि अपने जीवन की आहुति देकर भी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त करने का प्रयास करता है। ऐसे लोग बहुत ही अहवादी, आत्मनिष्ठ व आत्मकेन्द्रित स्वभाव के होते हैं और जीवन में प्रगति की हर चीज़ को अपनी प्रतिष्ठा के तराजू में तौलते हैं। यदि हाथ के अन्य लक्षण अशुभ हो, तो जातक कुख्यात होकर भी अपनी आकांक्षा को पूरी करने से नहीं घबराता।

6. आड़ी रेखाओं से कटी हुई सूर्य रेखा : यदि सूर्य रेखा अनेक छोटी-छोटी जाड़ी रेखाओं से कटी हुई हो (चित्र-631). तो जातक की कलात्मक जीवन प्रगति या करियर को शत्रुता रखने वाले प्रतिद्वन्द्वी बाधित करते हैं। यदि ऐसी आड़ी रेखाएं सूर्य रेखा के बिलकुल आरम्भ में हों, तो यह समझना चाहिए कि माता-पिता से सम्बन्धित शत्रु जातक को हानि पहुंचाने का प्रयास करते हैं, किन्तु यदि आड़ी रेखाएं भाग्य रेखा के मध्य, ऊपर या अन्त में हों, तो प्रतिस्पर्धी स्वयं जातक के ही शत्रु होंगे।

यदि शनि क्षेत्र से आने वाली कोई आड़ी रेखा सूर्य क्षेत्र में सूर्य रेखा को काट दे (चित्र-632), तो जातक गरीबी के कारण अपनी सफलता से वंचित रह जाता है, अर्थात् आर्थिक असमर्थता के कारण उसकी जीवन-प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसा योग प्रायः साहित्यकारों व संगीतकारों के हाथों में होता है। किन्तु यदि ऐसी रेखा बुध क्षेत्र से आकर सूर्य रेखा को काट दे (चित्र-633), तो जातक का उसके चञ्चल व ऐय्याश स्वभाव के कारण असफलता का सामना करना पड़ता है। यदि इस योग में बध क्षेत्र अधिक विकसित, उभरा हुआ व दोषपूर्ण हो तथा कानाष्ठका अंगुली भी टेढी हो तो जातक के कुटिल स्वभाव के कारण उसका सफलता में बाधा उत्पन्न होती है। याद उच्च मंगल के क्षेत्र से निकलकर कोई आडी रेखा सूर्य रेखा को काट दे 3-634), तो शत्रुओं के द्वारा उत्पन्न की गयी विषम परिस्थितियों के समाधान
में धनहानि होती है।

यदि उच्च मंगल क्षेत्र से निकलने वाली कोई वलयाकार आड़ी रेखा सूर्य क्षेत्र में सूर्य रेखा को काटकर शनि क्षेत्र की ओर बढ़ जाये (चित्र-635), तो जातक की अनेक महत्त्वाकांक्षाएं धूल में मिल जाती हैं, जबकि इनकी पूर्ति के लिए वह हर सम्भव साधनों व शक्तियों का उपयोग करता है।

7. सूर्य रेखा का खण्डित होना:- यदि सूर्य रेखा बीच में टूटी हुई हो, तो जातक को आर्थिक और प्रतिष्ठा से सम्बन्धित क्षति या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। यदि बायें हाथ में सूर्य रेखा खण्डित हो, तो परिवार वालों को आर्थिक क्षति होती है। यदि दाहिने हाथ में सूर्य रेखा टूट जाये, तो स्वयं जातक को आर्थिक क्षति होती है।

ऐसी सूर्य रेखा जो बीच में खण्डित हो जाये और उसकी ऊर्ध्वगामी शाखा कटान बिन्दु के थोड़ी नीचे से आरम्भ हो (चित्र-636), तो यह जातक द्वारा अपनी इच्छा से किये गये प्रतिष्ठा एवं कार्यक्षेत्र में परिवर्तन का संकेत है। यदि ऊर्ध्वगामी रखाखण्ड स्पष्ट हो और सूर्य क्षेत्र तक पहुंच जाये, तो इसे शुभ व सौभाग्यशाली लक्षण मानना चाहिए। इसमें न तो आर्थिक हानि होती है और न ही प्रतिष्ठा पर कोई बुरा प्रभाव पड़ता है।

यदि सूर्य रेखा वृहत् आयत अर्थात मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा के बीच में कटी हुई हो (चित्र-637), तो सफलता की अच्छी सम्भावना रहती है।

यदि सूर्य रेखा वृहत् आयत में टूटी हुई हो और शुक्र क्षेत्र में जाने वाली प्रभाव रेखा कटान बिन्दु के पास उसे स्पर्श करे, चित्र-638 तो यह जातक द्वारा अपने विचारों की मान्यता के लिए किये जाने वाले संघर्ष में मिली असफलता का संकेत है।

7. सूर्य रेखा में विभिन्न चिह्न

1. वर्ग चिह्नः यदि सूर्य रेखा में वर्ग चिड़ हो चित्र को मान-प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने का प्रयत्न करने वाले उसके विरोध और शत्रुओं से उसकी रक्षा होती है और धनहानि भी नहीं होती हुई रेड के में वर्ग चिह्न हो, तो सभी दोषों का निवारण होता है।

2. त्रिकोण चिहः सूर्य रेखा से जुड़ा हुआ हुदय रेखा के शत कि हो (चित्र-640), तो उस समयावधि में जातक को खुशी और प्रतिष्ठा मिलती है। यह योग सुखी और समृद्धिशाली जीवन का भी परिचायक है।

3. क्रॉस चिह: यदि सूर्य रेखा पर बुध क्षेत्र की ओर ऊस क्षेत्र हो (चित्र-641), तो जातक में यापारिक योग्यता की कमी होती है जैसे - असफलता मिलती है।

यदि क्रॉस का चित्र शनि क्षेत्र की ओर हो चित्र (642) तो जातक गंभीर स्वभाव का व पवित्र मन वाला होता है। उसकी प्रवर्ति धार्मिक भावनाओ की और होती है।

यदि शनि क्षेत्र की ओर क्रास चिह्न हो, चन्द्र और शनि क्षेत्र दूषित हत्या मस्तिष्क रेखा चन्द्र क्षेत्र की ओर अधिक झुकी हुई हो (चित्र-543, तो जातक को धार्मिक उन्माद का खतरा रहता है। यदि शनि क्षेत्र की ओर से देह हों, तो यह प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। यदि सूर्य रेखा का अन्त क्रास हि से हो (चित्र-644), तो जातक को अपने गलत निर्णयों के कारण कलकित होना पड़ता है व उसकी प्रतिष्ठा अन्त में धूल में मिल जाती है।

4. बिन्दु चिह्न : यदि सूर्य रेखा और हृदय रेखा के काटने के स्थान प्रकला बिन्दु हो (चित्र-645), तो उस अवस्था में जातक के दृष्टिहीन होने की सम्भावना होती है।

5. नक्षत्र चिह्न :सूर्य रेखा पर नक्षत्र चिह्न का होना (चित्र-65 इयत शुभ लक्षण है। इसके होने से जातक को प्रतिभा, सुख, सौभाग्य, सफलता, इन व ख्याति की प्राप्ति होती है।

यदि सूर्य रेखा के आरम्भ, अन्त या अन्य स्थानों पर नक्षत्र चिङ्ग हो, तो अत्यन्त शुभ होता है, किन्तु यदि यूरेनस क्षेत्र में सूर्य रेखा पर नक्षत्र चिह्न हो क्षेत्र तो यह किसी बड़ी विपत्ति का परिचायक है। यूरेनस क्षेत्र में सूर्य रेखा के ऊपर नक्षत्र चिह्न का होना अशुभ लक्षण है।

यदि सूर्य रेखा से निकलने वाली किसी शाखा में नक्षत्र चिह्न हो, तो यह भी एक अत्यन्त शुभ लक्षण है। नक्षत्र चिह्नयुक्त सूर्य रेखा की शाखा जिस ग्रह क्षेत्र की ओर जाती है या जिस रेखा से मिलती है, उसी के शुभ गुणों को द्विगुणित कर देती है (चित्र-648)।

6. द्वीप चिह्न : यदि सूर्य रेखा में द्वीप चिह्न हो (चित्र-649), तो जातक के धन व मान-प्रतिष्ठा को अत्यधिक हानि पहुंचती है, वह पदच्युत हो जाता है और कलंकित जीवन व्यतीत करता है। यदि द्वीप के अदृश्य हो जाने या उसकी अवधि समाप्त हो जाने पर बाद की रेखा सबल हो, तो जातक अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा और पद को पुनः प्राप्त कर लेता है तथा उसके ऊपर लगा हुआ कलंक धुल जाता है

यदि सूर्य रेखा के अन्त में द्वीप चिह्न हो (चित्र-650), तो यह एक अशुभ संकेत है। जातक को अन्तिम समय में अन्धकारपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है, उसकी समृद्धि और प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है।

यदि सूर्य रेखा के आरम्भ में द्वीप चिह्न हो (चित्र-651),तो जातक को अनुचित प्रेम सम्बन्धों के कारण जीवन में सफलता मिलती है। यह योग किसी उच्च स्थिति के व्यक्ति के जारज पुत्र के उज्ज्वल भविष्य का सूचक है। यदि द्वीप चिह्न के बाद सूर्य रेखा स्पष्ट और सुन्दर हो, तो जातक वैभवपूर्ण व सुद जीवन व्यतीत करता

यदि सर्य रेखा के बीच में द्वीप चिह्न हो और जीवन रेखा दोषयुक्त हो (चित्र-652), तो आंख की बीमारी का संकेत मिलता है।

यदि सूर्य रेखा के बीच में द्वीप चिह्न हो और शुक्र क्षेत्र से निकलने वाली प्रभाव रेखा द्वीप चिह्न के पहले जुड़ गयी हो (चित्र-653), तो पारिवारिक जीवन में कोई कलंक लगने व प्रतिष्ठा या धनहानि होने का खतरा रहता है।

9. आड़ी रेखा
यदि सर्य रेखा किसी आड़ी रेखा से कटी हुई हो, तो प्रतिष्ठा व धनहानि का संकेत देती है। यदि सूर्य रेखा को विवाह रेखा आकर काट दे या उसे बढ़ने से रोक दे (चित्र-654), तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धनहानि सहनी पड़ती है और वह पदच्युत हो जाता है।

चित्र समय के आभाव के चलते प्रकाशित नहीं किए जा सके है लेकिन जल्द ही किए जाएंगे । 


नितिन कुमार पामिस्ट

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दोषयुक्त भाग्य रेखा और दोषयुक्त सूर्य रेखा का समाधान | Bad Sun Line & Bad Fate Line Palmistry

दोषयुक्त भाग्य रेखा और दोषयुक्त सूर्य रेखा का समाधान |  Bad Sun Line & Bad Fate Line Palmistry

यदि आपके हाथ में सूर्य रेखा या भाग्य रेखा दोषयुक्त है और उसकी वजह से आप अपने जीवन में तरक्की नहीं कर पा रहे है और आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तो आप ये उपाय कर सकते है जिन से आपको अत्यंत लाभ होगा। 

सूर्य रेखा का दोषयुक्त होना यानि सूर्य रेखा पर काला तिल, द्वीप, उल्टा त्रिशूल या सूर्य रेखा का खंडित होना या फिर सूर्य रेखा को राहु रेखा या प्रभाव रेखा द्वारा काटा जाना। इस प्रकार की सूर्य रेखा दोषयुक्त सूर्य रेखा मानी जाती है। 

सूर्य रेखा पर आय दोष को समाप्त तो नहीं किया जा सकता है लेकिन उसका प्रभाव को कम किया जा सकता है।

उपाय - 

 1) सूर्य को प्रतिदिन जल देना। 
 2) “आदित्य ह्रदय स्तोत्र” का नियमित रूप से प्रतिदिन पाठ करना। 
 3) 5+ रत्ती का माणक अनामिका ऊँगली में धारण करना। 
 4) सूर्योदय को नमस्कार करना। 
 5) ताम्बे का सिक्का 43 दिन नदी में बहाना । 
 6) दवाई और कपडे दान करना। 
 7) गरीब बच्चे को शिक्षा दिलाना। 
 8) माता पिता के चरण छु कर कार्य का शुभारम्भ करना ।

विशेष लाभ हेतु - 

 ताम्बे के लौटे में 31 लाल मिर्च के बीज डाल कर सूर्योदय के समय सूरज को अर्क देना है और अपनी प्रार्थना मन में बोलनी है, ऐसा करने से आपकी समस्या दूर हो जायगी और आपकी मनोकामना पूरी हो जायगी लेकिन ये आपको नियमति प्रतिदिन करना है।

दोषयुक्त भाग्य रेखा के दोष को कम करने के लिए आप निम्न उपाय कर सकते है । 

 1) आप नीलम या लोहे का छल्ला मध्यमा ऊँगली में धारण कर सकते है ।
 2) आपको प्रतिदिन नियमित रूप से “हनुमान चालीसा” का पाठ करना चाहिए।
 3) शनिवार के दिन शनि मंदिर अवश्य जाय । अगर शनि मंदिर नहीं हो तो हनुमान जी की मंदिर मंगलवार और शनिवार को जरुर जाय । 
 4) अगर शनि,राहु एंव केतु की दशा खराब चल रही है तो किसी शनिवार के दिन एक छोटा काला पत्थर लांए,इसे तिल के तेल में डुबोकर 7 बार अपने ऊपर से उतार लें और अब इस पत्थर को दहकती आंच में डाल दें। वहीं ठंडा होने के बाद इस पत्थर को घर से दूर किसी सूखे कुएं में फेंक दें। ये उपाय कर लेने से आपका ग्रह दोष शांत हो जाएगा। 
 5) पक्षियों को बाजरा डाले। 
 6) पक्षियों के लिए घर की छत्त पर पानी की कुण्डी में जल भर के रखें।  

विशेष लाभ हेतु :-

आपको प्रत्येक शनिवार को एक पीपल का पत्ता तोड़ लेना है और उसको गंगाजल से धो लेना है और २१ बार गायत्री मंत्र बोल कर के अभिमंत्रित कर ले और फिर उस पत्ते को अपने लॉकर में रख ले जहा आप पैसे रखते है या उस स्थान पर रख ले जहा आप रूपए रखते है । 

हर शनिवार आपको नया पत्ता  काम में लेना है और पुराना पत्ता पीपल के पेड़ में डाल  देना है । ( व्यापार में लाभ  , पैसे , नौकरी , प्रमोशन के लिए )


मंगल के मैदान से शुरू होने वाली सूर्य रेखा | Sun Line Starts From Plain Of Mars Palmistry

मंगल के मैदान से शुरू होने वाली सूर्य रेखा | Sun Line Starts From Plain Of Mars Palmistry

मंगल के मैदान से शुरू होने वाली सूर्य रेखा 
हथेली के मध्य भाग से उद्गमः सूर्य रेखा का यह उद्गम सबसे ज्यादा दिखता है (चित्र 22A)। चूकि उद्गम स्थल मंगल का मैदान होता है, इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए इन लोगों को कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, जिसमें कई बार असफलता का भी सामना करना पड़ सकता है। इन्हें कोई भी बाहरी मदद नहीं मिलती। अपने भविष्य के निर्माता और रचयिता ये स्वयं होते हैं। यदि सूर्य रेखा अच्छी हो तो ऐसे लोगों की सफलता ठोस आधार पर होने के कारण स्थायी होती है।

रवि रेखा या सूर्य रेखा पर काला बिंदु | Hast Rekha Gyan

 कृष्ण बिंदु रवि रेखा पर ( काला तिल रवि रेखा पर होना ) 


रवि या सूर्य रेखा पर काला बिंदु स्पष्ट रूप से होने पर मनुष्य को कलापूर्ण कार्यो में असफलता ही प्राप्त होती है ।

रवि रेखा या सूर्य रेखा पर काला बिंदु स्पष्ट रूप से होने पर मनुष्य को कलापूर्ण कार्यो में असफलता ही प्राप्त होती है ।

ऐसा मनुष्य अपनी ही गलतियों की वजह से यश , मान-सम्मान, प्रतिष्ठा खो देता है और धनहानि झेलता है । (नितिन कुमार पामिस्ट)  अपनी बदनामी करवा के अपना पतन अपने आप देखता रहता है और धीरे धीरे ऐसा व्यक्ति समाज में कलंकित हो जाता है ।

ऐसे व्यक्ति को आँखों की शिकायत भी होती है और ऐसे व्यक्ति को पिता का सुख नहीं मिलता है कहने का अर्थ ये है या तो पिता का स्वर्गवास जल्दी हो जाता है या फिर पिता के सात वैचारिक मतभेद हमेसा बने रहते है । (नितिन कुमार पामिस्ट)


ऐसे व्यक्ति को सूर्य को जल देना चाहिए और " आदित्य हृदयम स्तोत्रम " का पाठ नियमित रूप से रोजाना करना चाहिए और अनामिका ऊँगली में मानक धारण करना चाहिए । (नितिन कुमार पामिस्ट)

सूर्य-रेखा की शाखाएँ (Branches Of Sun Line) - HASTREKHA VIGAN


सूर्य-रेखा की शाखाएँ - हस्तरेखा शास्त्र
(Surya Rekha Ki Shakha - Hast Rekha Shastra)
सूर्य-रेखा की शाखाएँ (Branches Of Sun Line) - HASTREKHA VIGAN
(१) यदि सूर्य-क्षेत्र पर पहुँचने पर सूर्य-रेखा से निकलकर एक शाखा शनि-क्षेत्र पर और दूसरी बुघ-क्षेत्र पर जाये तो जातक में योग्यता, बुद्धि की गम्भीरता और चतुरता तीनों गुण हैं और उसे धन और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। सूर्य रेखा को भाग्य रेखा (Bhagya Rekha) की सहायक रेखा भी कहा जाता है।

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(२) सूर्य-रेखा से निकलकर जो भी शाखाएँ या हल्की छोटी रेखाएँ ऊपर की ओर (उंगलियों की ओर) जावें तो शुभ लक्षण है, शुभ प्रभाव की वृद्धि होती है।

(३) सूर्य-रेखा से निकलकर हल्की-हल्की या नन्ही छोटी रेखाएँ नीचे की ओर प्रावें तो सूर्य-रेखा को कमजोर करती हैं । ऐसे जातक को विशेष परिश्रम करने पर सफलता मिलती है।

(४) यदि सूर्य-रेखा से कोई शाखा निकलकर बृहस्पति के क्षेत्र पर जावे तो जातक में महत्वाकांक्षा और हुकूमत करने की भावना विशेष होती है और उसे इसमें सफलता भी मिलेगी । यदि इस शाखा-रेखा के अन्त में बृहस्पति-क्षेत्र पर तारे का चिह्न हो तो विशेष शुभ लक्षण है। यदि साथ ही सूर्य-रेखा के अन्त पर भूर्यक्षेत्र पर भी तारे का चिह्न हो तो अवश्य ऐसा जातक महान् राज्य का अधिकारी होगा । किन्तु इन शुभ लक्षणों के साथ-साथ हाथ मुलायम हो, शुक्र का क्षेत्र उच्च हो, उंगलियाँ पतली और नुकीली हों तो केवल गायन विद्या में श्रेष्ठता होगी। यदि चन्द्र-क्षेत्र भी उच्च हो तो संगीत में और भी विशिष्टता प्राप्त होगी।

किन्तु यदि उंगलियाँ प्रागे से फैली हुई हों या चतुष्कोण हों तो जातक बाजा बजाने या अन्य कलाओं में सफल होगा। यदि उंगलियों के तृतीय पर्व लम्बे और पुष्ट हों तो कलाप्रियता न होकर केवल रुपया कमाने पर ध्यान होगा ।

(५) यदि सूर्य-रेखा से कोई रेखा निकलकर शनि-क्षेत्र पर जाये तो जातक में बुद्धि-गाम्भीर्य और मितव्ययता प्रादि गुण होंगे। अगर अँगूठा सख्त हो तो जातक बहुत कंजूस भी होगा। यदि शाखा-रेखा के अन्त में, शनि-क्षेत्र पर तारे का चिह्न हो तो विशेष सफलता प्राप्त होती है किन्तु यदि तारे के चिह्न की बजाय वहाँ कोई छोटी प्राड़ी रेखा, बिन्दु, क्रॉस या अशुभ चिह्न हो तो सफलता की बजाय अशुभता और बदनामी ही प्राप्त होगी। यदि शनि-क्षेत्र पर शाखारेखा के पास एक या दो सहायक-रेखा के रूप में रेखाएँ हों तो सफलता का चिह्न है । किन्तु यदि शाखा-रेखा शनि-क्षेत्र के पहुँचने के पहले ही रुक जावे और शनि-क्षेत्र पर कई खड़ी रेखाएँ हों तो जातक अनेक कार्यों में सफलता प्राप्त करने की चेष्टा करता है इस कारण उसे किसी भी कार्य से विशिष्टता प्राप्त नहीं होती । यदि शाखा-रेखा के अन्त में शनि-क्षेत्र पर शुभ लक्षण हो और सूर्य रेखा के अन्त में सूर्य-क्षेत्र पर तारे का चिह्न हो तो विशेष सफलता का द्योतक है।

(६) यदि सूर्य-रेखा से निकलकर कोई शाखा-रेखा बुध के क्षेत्र पर जावे तो बुध-क्षेत्र-सम्बन्धी प्रभाव या सफलता विशेष होती है । यदि उंगलियों के, खासकर कनिष्ठा उंगली का प्रथम पर्व लम्बा हो तो जातक अच्छा लेखक या वक्ता होगा । यदि कनिष्ठा का द्वितीय पर्व लम्बा हो और बुध-क्षेत्र पर कई खड़ी रेखा हों तो जातक ख्याति-प्राप्त डाक्टर होगा । यदि तृतीय पर्व लम्बा हो तो धन-उपार्जन में विशेष सफलता होगी। यदि दोनों शाखाओं के अन्त में तारे का चिह्न हो तो विशेष शुभ लक्षण और सफलता प्रकट होती है। किन्तु यदि बुध-क्षेत्र पर क्रॉस, बिन्दु या बाधा-रेखा का चिह्न हो तो घाटा लगेगा; यदि छोटी उंगली मुड़ी या टेढ़ी हो तो जातक चालाकी और बेईमानी का भी उपयोग करेगा ।

(७) यदि सूर्य-रेखा से कोई शाखा-रेखा निकलकर मंगल-क्षेत्र पर जाये तो जातक में उत्साह, प्रात्म-शक्ति और साहस विशेष होता है। मंगल-क्षेत्र पर शाखा-रेखा के अन्त में तारे प्रादि का शुभ चिह्न हो तो शुभ-परिणाम । यदि अशुभ चिह्न हो तो अशुभ परिणाम होता है।

(८) यदि चन्द्र-रेखा से कोई रेखा निकलकर सूर्य-रेखा में योग करे तो जातक में कल्पना-शक्ति विशेष होती है। यदि उंगलियाँ चिकनी हों और अग्रभाग नुकीले हों तो काव्य लिखने में विशेष यश मिलेगा । किन्तु यदि सूर्य-रेखा के अन्त में शुभ चिह्न हों तभी शुभ परिणाम समझना चाहिए। अशुभ-चिह्न हों तो अशुभ परिणाम ।

(९) यदि सूर्य-क्षेत्र से कोई रेखा निकलकर शुक्र-क्षेत्र पर जावे तो शुक्र-क्षेत्र-सम्बन्धी (ललित कला, गायन प्रादि) सफलता होती है। यदि सूर्य-रेखा के अन्त में प्रशुभ-चिह्न हों तो उलटे हानि ही होती है ।

(१०) यदि सूर्य-रेखा से कोई शाखा में विलीन हो जाये और शीर्ष-रेखा सुन्दर, सुस्पष्ट और बलवान हो तो जातक को अपनी दिमागी ताकत की वजह से सफलता और यश प्राप्त होंगे । (नितिन पामिस्ट)

(११) यदि सूर्य-रेखा से कोई शाखा निकलकर हृदय-रेखा में विलीन हो जाये तो जातक को शराफत और भलाई के कारण अनेक मित्रों और सम्बन्धियों की सहायता से सफलता मिलेगी ।

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सूर्य पर्वत और सूर्य रेखा से कौन सी बीमारी होती है | Surya Rekha Hast Rekha


सूर्य पर्वत और सूर्य रेखा से कौन सी बीमारी का पता लगता है - हस्तरेखा 

हस्तरेखा में सूर्य रेखा का बहुत अधिक महत्व है और व्यक्ति के सफल जीवन में सूर्य रेखा की अहम् भूमिका होती है।

यदि व्यक्ति के पास खाना, धन और सब कुछ है लेकिन मान-सम्मान नहीं है तो व्यक्ति के जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

सूर्य रेखा व्यक्ति को धन, यश और बीमारिया भी देती है।

पढ़ें - सूर्य रेखा का अच्छा और बुरा होने पर प्रभाव - हस्तरेखा

१). यदि सूर्य रेखा पर तिल हो नीचे की तरफ हृदय रेखा के ऊपर या उसके नजदीक तो आँख का ऑपेरशन या नेत्र रोग होता है।

२). यदि अनामिका ऊँगली के मूल से मतलब सूर्य पर्वत से छोटी छोटी और घूमती हुई टेडी रेखा निकलती है और सूर्य पर्वत दबा हुआ भी है तो जातक को हस्तमैथुन की लत होती है और उसकी वजह से उसको कमज़ोरी होती है और उसकी वजह से उसको कमरदर्द की शिकायत होती है।

३). सूर्य पर्वत के बीच में तिल होने पर व्यक्ति को कान और पैरों में तकलीफ या चोट लगती है।

४). सूर्य पर्वत पर यदि आड़ी तिरछी रेखा से जाल या जाली बनी हुई है तो उस व्यक्ति को अपच , कफ की शिकायत रहती है और उसकी पत्नी या औरत को गर्भपात होता है या औरत गर्भपात स्वेच्छा से करवाती है।

५). सूर्य रेखा पर द्धीप होने पर मानहानि और धनहानि और आँखों की बीमारी होती है।

६). सूर्य रेखा हृदय रेखा पर रुक जाय या हृदय रेखा द्वारा रोक दी जाय तो व्यक्ति को छाती में चोट लगती है और बुरे समाचार के कारण हृदयाघात यानि हार्ट अटैक होता है।



Tooti Hui Surya Rekha Hastrekha Gyan

Tooti Hui Surya Rekha Hastrekha Gyan

Agar vykti ke hath mein uski surya rekha tooti hui hai to aise vykti ko kabhi na kabhi maanhani aur dhanhani ka saamna karna hi padta hai aur agar aisa nahi hota hai to aise vykti ke vevahik jeevan mein takleef rahati hai aur bahut baar aise vykti ko aankho se sambandhit rog bhi hota paya gaya hai.

Aise vykti ko surya ko jal jaroor dena chahiye aur aditya hrudayam stotram ka path jaroor karna chahiye. 

मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप | Hast Rekha


मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप | Hast Rekha

sun mount island palmistry मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप | Hast Rekha

मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप

यह द्वीप मस्तिष्क रेखा में सूर्य की उंगली के नीचे पाया जाता है। यह व्यक्ति की आंख में रोग का लक्षण है। यदि हृदय रेखा में भी सूर्य की उंगली के नीचे कोई द्वीप हो या वहां बाहर से कोई रेखा आकर हदय रेखा को छूती हो तो निश्चित ही आंखों में दोष हो जाता है। यह द्वीप यदि गोलाकार अर्थात् वृत्त के आकार का हो तो व्यक्ति अन्धा हो जाता है।

ऐसे व्यक्ति की आंख में बाहर से आकर कोई चीज लगती है। सूर्य व शनि की उंगली के बीच मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो इस आयु में व्यक्ति के मस्तिष्क पर बड़ा भार पड़ता है या तो ये उदासीन हो जाते हैं या पागल अन्यथा मस्तिष्क में रसौली या खून का जमाव होकर लकवा हो जाता है। यह देखने की बात है कि द्वीप के दोनों ओर की रेखाएं मस्तिष्क रेखा जैसी या मौलिक मोटाई से कुछ कम मोटी होनी चाहिए। (नितिन पामिस्ट )

हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा | Hridya Rekha Se Surya Rekha Ka Shuru Hona


हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा
हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा | Hridya Rekha Se Surya Rekha Ka Shuru Hona
हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा को स्वामी कलाकारी, नाटक, कहानी उपन्यास काव्य, आदि कायों से लाभ कमाते हैं। यह रेखा उन्हें प्रौढ़ अवस्था में सफलता देती है। ऐसे व्यक्ति आरम्भ काल में सुखी एवं सम्पन्न नहीं होते । इस समय समाज में उन्हें निन्दा आदि का सामना करना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में पिछला समय उनका अधकारमय कहा जा सकता है। इस काल में उन्हें विफलता और अनेक अपयश का सामना करना पड़ता है तथा मन प्रसन्न नहीं रहता उनके चेहरे पर प्रफुल्लता नहीं होती, उदासी उन्हें खूब प्रताड़ित करती है, जिससे वे व्याकुलता अनुभव करते हैं।
किन्तु इनका जीवन बाद में सुखमय होता है, समाज में सम्मान एवं यश मिलता है तथा उनकी रचना या कार्य इस समय सराहनीय हो जाती है। कुछ लोग ऐसे भी पाये गये हैं, जिन्हे संघर्ष करते-करते मृत्यु हो गयी, बाद में उनके कार्यों का फल उनके पुत्रादि को प्राप्त होता है। उन्हें जीते जी न कीर्ति मिलती है और न ही विपुल धन राशि। यदि हृदय रेखा से शुरु होने वाली सूर्य रेखा दोषी हो तो अपयश तथा दुख प्राप्त होता है वे दर-बदर ठोकरें खाते हैं।

उनकी कला ही बला बन जाती और गति स्थिति में पागल भी होते पाये गये हैं। उनकी मृत्यु मी भयानक और अशोभनीय होती है, जीवन का संघर्ष ही उनकी मृत्यु का कारण बन जाती है।

हथेली पर लहरदार सूर्य रेखा हस्तरेखा शास्त्र | Lahardar Surya Rekha

हथेली पर लहरदार सूर्य रेखा

हथेली पर लहरदार सूर्य रेखा हस्तरेखा शास्त्र 

लहरदार सूर्य रेखा या सर्प जैसे सूर्य रेखा व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं है, यह कैरियर में अस्थिरता को दर्शाता है।

लहराती सूर्य रेखा बहुत काम हाथों पर पाई जाती है इसलिए यह एक दुर्लभ संकेत है।

यदि भाग्य रेखा भी लहरदार या कमजोर है तो यह बहुत दुर्भाग्य का संकेत देता है।

अधिकांश समय लहरदार सूर्य रेखा चतुर्भुज (हृदय रेखा और शीर्ष रेखा के बीच) या राहु के पर्वत से शुरू होती है ।

लहरदार सूर्य रेखा ऋण और धन की समस्या को दर्शाती है, यानि "आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया"।

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Surya Rekha From Heart Line | Hast Rekha Gyan


Surya Rekha From Heart Line | Hast Rekha Gyan
Adhiktar hatho mein surya rekha heart line ke upar hi payi jati hai aur kuch hatho mein surya rekha hridya rekha se shuru hoti hui payi jati hai jiska ye arth hai ki vykti ko madhya aayu ke paschat safalta, naam aur aishwarya milega (yani sansarik sukho ka anubhav vykti ko umar 48/50 ke baad hi milega) lekin practical mein dekhne mein aata hai ki yadi vykti ke hath mein hridya rekha se surya rekha nikal rahi hai ya surya rekha heart line ke thode upar se bhi nikal rahi hai aur sath hi bahut acchi bhagya rekha hai to vykti ko jeevan mein acchi safalta milti hai (aisa vykti acche sukhi aur sampann parivar mein janam leta hai).

Kuch vidhwano ka mat hai ki aise vykti bhagya vivah ke paschat khulta hai.

Agar suyra reha hridya rekha se kafi upar hai yani surya rekha kafi chotti hai to vykti ko kafi sangarsh karna padta hai.

Double Surya Rekha | Dohari Surya Rekha

Double Surya Rekha | Dohari Surya Rekha
Double Surya rekha ya dohari surya rekha hone par vykti ki life mein stability nahi aa pati hai karan uska man kisi bhi ek kaam mein nahi lagta hai.  Aisa vykti humesha ek kaam ko pura kiye bina hi dusara kaam shuru kar deta hai jis ki wajah se usko asafalta ka muh dekhna padta hai.  Halaki aisa vykti bahumukhi partibha ka dhani hota hai lekin yadi bhagya rekha acchi nahi hai to usko safalta muskil se hi mil pati hai.  Lekin agar bhagya rekha acchi hai to aise vykti ko double sun line dohara labh yani dohari aay (double income) bhi karati hai. 

Surya Rekha Par Cross Hona (Left Side/Right Side)


indian palmistry
(fig-1A)
Yadi surya rekha par cross shani parvat ki taraf (yani right side) par bana hua hai to aise vykti ka jhukaav tantra-mantra, dharmik karyo mein adhik rahta hai.   (fig-1A)


palm reading palmistry
(fig-2A)
Yadi suyra rekha par cross budh parvat ki taraf (left side) par bana hua hai to aise vykti ko vyapar mein anubhav na hone ke karan nuksan uthana padta hai. (fig-2A)

Ulta Aur Seedha Trishul Surya Rekha Par Hona Hast Rekha Gyan


Ulta Aur Seedha Trishul Surya Rekha Par Hona Hast Rekha Gyan
Ulta Aur Seedha Trishul Surya Rekha Par Hona Hast Rekha Gyan
Fig-1


Agar hath mein surya rekha ke upar seedha trishul ban raha ho to insan ko khoob naam aur shohrat milti hai aur samaaj mein naamcheen aadmi hota hai aur paise wala hota matlab vykti ke pass humesha paise rahte hai aur uska kaam kabhi nahi rukta hai.  fig-1



Fig-2
Agar surya rekha par gopuch ban raha ho to aisa vykti dhurbhagyashali hota hai usko bad luck ka samna karna padta hai uska koi bhi kaam bahut muskil se hota hai.  Usko jeevan mein jyadatar nirasha hath lagti hai. fig-2
Fig-3



Agar hath mein trishul surya rekha par ulta bana ho vykti ek se jyada kaam mein hath daalta hai aur us wajah se usko kisi ek kaam mein bhi safalta nahi milti hai.  Matlab aisa insan tay hi nahi kar pata hai ki usko kis field mein career banana hai.  Aisa insan khali sapne dekhta rahta hai ya phir jaha man kiya waha chala jata hai ya wo kaam shuru kar deta hai.  Koi bhi kaam lagatar nahi kar sakta hai aur humesha ek se jyada kaamo mein apne aapko fasa kar rakhta hai jis wajah se usko career mein safalta nahi mil pati hai.


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Improve Your Sun Line By Reciting आदित्यहृदयम्‌ ( Aditya Hridaya Stotra ) Palm Reading


Hath Mein Surya Rekha Ka Kamzor Hona


Hath Mein Surya Rekha Ka Kamzor Hona

Aapki surya rekha kamzor hai ya phir tooti-footi hai ya phir doshyukt hai to aapko "aditiya hridyam srotam" ka path karna bahut jaroori hai uske bina aapko safalta nahi milegi.

Kamzor surya rekha ke karan vykti ko naukri nahi milti hai.

Kamzor surya rekha ke karan insaan ko tarakki nahi milti hai.

Kamzor surya rekha ke karan aadmi ka jeevan bina matlab ka rah jata hai usko koi bhi dusara insan importance nahi deta hai.

Jiske hath mein surya rekha nahi hoti hai wo insan sirf nokar ki tarah puri jindgi majdoori hi karta hai aur malik ki chamchagiri mein hi pura jeevan nikal deta hai.

Agar aapke hath mein surya rekha nahi hai ya phir surya rekha khrabh hai us par island bana hua hai to aapko "aditiya hridhyam stortam" ka path daily jaoor karna chahiye.

Is path karne se aapko safalta milne lagegi aur kuch hi samay ke andar aapko apne hath mein ek nai rekha teesari ungli ke neeche banti hui nazar aane lagegi.  Wo surya rekha hi hogi aur aapko safalta milne lagegi.

Agar aapki koi bhi samasya hai jaise marriage, career, naukari, astrology, black magic, tona totka, parivar, dushman, business, ya aur koi bhi samasya hai to neeche di gayi post ko padein yaha par sabhi tarah ki problem ka solution aur upay diya gaya hai.


॥अथ आदित्यहृदयम्‌॥


ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌॥१॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः॥२॥

Rama, exhausted and about to face Ravana ready for a fresh battle was lost deep in contemplation.
The all knowing sage agastya who had joined the gods to witness the battle spoke to Rama thus .. 1,2
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्‌।
येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि॥३॥
Oh Rama, mighty-armed Rama, listen to this eternal secret
Which will help you destroy all your enemies in battle. 3
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम्‌॥४॥
This holy hymn dedicated to the Sun deity will result in destroying all enemies
And bring you victory and never ending supreme bliss. 4
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌।
चिंताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम्‌॥५॥
This hymn is supreme and is a guarantee of complete prosperity and is the destroyer of sin,
Anxiety, anguish and is the bestower of longevity. 5
रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌॥६॥
Worship the One, possessed of rays when he has completely risen, held in reverence by the devas and asuras and who is the Lord of the universe by whose efflugence all else brighten. 6
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभिः॥७॥
He indeed represent the totality of all celestial beings. He is self-luminous and sustains all with his rays. He nourishes and energizes the inhabitants of all the worlds and the race of Devas and Asuras. 7
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥८॥
He is Brahma, Vishnu, Shiva, Skands, Prajapati.
He is also Mahendra, Kubera, Kala, Yama, Soma and Varuna. 8
पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥९॥
He is the Pitrs, Vasus, Sadhyas, Aswini Devas, Maruts, Manu,
Vayu, Agni, Prana and, being the source of all energy and light, is the maker of all the six seasons. 9
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्‌।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥१०॥ or भानुर्विश्वरेता
He is the son of Aditi, creator of the universe, inspirer of action, transverser of the heavens. He is the sustainer, illumination of all directions, the golden hued brilliance and is the maker of the day. 10
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌।
तिमिरोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्‌॥११॥ or मार्तण्ड
He is the Omnipresent One who pervades all with countless rays. He is the power behind the seven sense organs, the dispeller of darkness, bestower of happiness and prosperity, the remover of misfortunes and is the infuser of life. 11
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥१२॥
He is the primordial being manifesting as the Trinity. He ushers in the Day and is the teacher (of Hiranyagarbha),
The fire-wombed, the son of Aditi, and has a vast and supreme felicity. He is the remover of intellectual dull-headedness. 12
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः॥१३॥
He is the Lord of the firmament, dispeller of darkness. Master of all the vedas,
He is a friend of the waters and causes rain. He has crossed the Vindya range and sports in the Brahma Nadi. 13
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥१४॥
He, whose form is circular and is colored yellow, is intensely absorbed and inflicts death.
He is the destroyer of all and is the Omniscient one being exceedingly energetic sustains the universe and all action. 14
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते॥१५॥
He is the lord of stars, planets and all constellations. He is the origin of everything in the universe
And is the cause of the lustre of even the brilliant ones. Salutations to Thee who is the One being manifest in the twelve forms of the Sun. 15
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥१६॥
Salutations to the Eastern and western mountain,
Salutations to the Lord of the stellar bodies and the Lord of the Day. 16
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥१७॥
Salutations to the One who ordains victory and the prosperity that follows. Salutations to the one possessed of yellow steeds and to the thousand rayed Lord, and to Aditya. 17
नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥१८॥ or मार्तण्डाय
Salutations to the Terrible one, the hero, the one that travels fast.
Salutations to the one whose emergence makes the lotus blossom and to the
fierce and omnipotent one. 18
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥१९॥
Salutations to the Lord of Brahma, shiva and Achyuta, salutations to the
powerful and to the effulgence in the Sun that is both the illuminator and
devourer of all and is of a form that is fierce like Rudra. 19
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥२०॥
Salutations to he transcendental atman that dispels darkness, drives away all fear, and destroys all foes. Salutations also to the annihilator of the ungrateful and to the Lord of all the stellar bodies. 20
तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे। or हरये विश्वकर्मणे
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥२१॥
Salutations to the Lord shining like molten gold, to the transcendental fire, the fire of supreme knowledge, the architect of the universe, destroyer of darkness and salutations again to the efflugence that is the Cosmic witness. 21
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥२२॥
Salutations to the Lord who destroys everything and creates them again.
Salutations to Him who by His rays consumes the waters, heats them up and sends them down as rain. 22
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌॥२३॥
Salutations to the Lord who abides in the heart of all beings keeping awake when they are asleep. He is both the sacrificial fire and the fruit enjoyed by the worshippers. 23
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥२४॥
The Sun is verily the Lord of all action in this universe. He is verily the vedas, the sacrifices mentioned in them and the fruits obtained by performing the sacrifices. 24
॥फलश्रुतिः॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन्‌ पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥२५॥
Raghava, one who recites this hymn in times of danger, during an affliction or when lost in the wilderness and having fear, he will not lose heart (and become brave). 25
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्‌।
एतत्‌ त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥२६॥
Raghava, worship this Lord of all Gods and the Universe with one-pointed devotion. Recite this hymn thrice and you will win this battle. 26
अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम च यथागतम्‌॥२७॥
O mighty armed one, you shall slayRavana this very moment.
Having spoken thus, Agastya returned his original place. 27
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्‌॥२८॥
Raghava became free from worry after hearing this.
He was greatly pleased and became brave and energetic. 28
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्‌।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌॥२९॥
Gazing at the sun with devotion, He recited this hymn thrice and experienced bliss.
Purifying Himself by sipping water thrice, He took up His bow with His mighty arms. 29
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्‌।
सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्‌॥३०॥
Seeing Ravana coming to fight,
He put forth all his effort with a determination to destroy Ravana. 30
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥३१॥
Then knowing that the destruction of the lord of prowlers at night (Ravana) was near, Aditya, who was at the center of the assembly of the Gods, looked at Rama and exclaimed 'Hurry up' with great delight. 31

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Benefits Of Aditiya Hridyam Strotam:

The Aditya Hridaya Stotra is a very powerful prayer in praise of Surya or the Sun, it is a prayer which was recited by Rama before his epic battle with Ravana. Recitation of this prayer removes all obstacles in life including diseases and eye troubles, trouble from enemies and all worries and tensions.



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